Sunday, January 28, 2018

Yuva Kranti ke sholey -HSC -Class 12 Hindi

सरल ,संयुक्त ,मिश्रित वाक्यों को बदलना सीखें.

रचना के आधार पर वाक्य -भेद -हिंदी व्याकरण

रचना के आधार पर वाक्य भेद / वाक्य रूपांतरण
वाक्य – भेद
‘शब्दों का वह सार्थक समूह , जो किसी न किसी भाव को प्रकट करता है , वह वाक्य कहलाता है |’

रचना के आधार पर वाक्य भेद / वाक्य रूपांतरण

रचना के आधार पर वाक्य के तीन भेद होते हैं -

1. साधारण या सरल वाक्य
2. संयुक्त वाक्य
3. मिश्र या मिश्रित वाक्य
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Vaky bhed -Arth ke aadhar par - Hindi Grammar for all

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Saturday, January 20, 2018

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Aatmparichay poem
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Sunday, January 14, 2018

Yeh deep akela यह दीप अकेला Poem explanation Class 12


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यह दीप अकेला
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  -सच्चिदानंद  हीरानंद  वातस्यायन  ‘अज्ञेय’

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इसको भी पंक्ति को दे दो

यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गायेगा
पनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लायेगा?
यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगायेगा
यह अद्वितीय : यह मेरा : यह मैं स्वयं विसर्जित :

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो

यह मधु है : स्वयं काल की मौना का युगसंचय
यह गोरसः जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय
यह अंकुर : फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय
यह प्रकृत, स्वयम्भू, ब्रह्म, अयुतः
इस को भी शक्ति को दे दो

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो

यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,
वह पीड़ा, जिसकी गहराई को स्वयं उसी ने नापा,
कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र,
उल्लम्ब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा
जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय
इस को भक्ति को दे दो

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो
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मूल भाव -
‘यह दीप अकेला’ कविता में दीप के माध्यम से कवि व्यक्तिगत सत्ता को सामाजिक
सत्ता से जोड़ने की बात कर रहा है। मनुष्य में अतुलनीय सहनशीलता और संघर्ष की क्षमता है।
कवि कहता है कि समाज में उसके विलय से समाज और राष्ट्र मजबूत होगा।
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दीप अकेला होने के बावजूद प्रेम से भरा व गर्व से परिपूर्ण होने के कारण अपनों
से अलग है। वह मदमाता है क्योंकि वह सर्वगुण सम्पन्न है यदि उसे पंक्ति में सम्मिलित कर लिया
जाए तो उस दीप की शक्ति, महत्ता तथा सार्थकता बढ़ जाएगी। दीप व्यक्ति का प्रतीक है, कवि उसे
पंक्ति में लाकर मुख्यधारा से जोड़ना चाह रहा है। दीप के लिए पनडुब्बा, समिध, मधु , गोरस, अंकुर,
स्वयंभू, ब्रह्म, अयुत विश्वास तथा अमृत-पूतपय आदि उपमानों का प्रयोग किया गया है।
ये सभी उपमानएक स्नेह भरे दीप के लिए पूर्णतया उपयुक्त है।
पनडुब्बा के रूप में  वह सच्चे मोतियों का लाने वाला
है अर्थात् खतरों से खेलने वाला है, तो समिधा यज्ञ की लकड़ी बन कर संघर्षशील तथा दृढ़निश्चयी
है। शहद और गोरस   के रूप में मधुरता  एवं पवित्रा अमृतमय दुग्ध् के समान सुख देने वाला स्नेहशील,
परोपकारी है। वह अंकुर की तरह स्वयं पैदा होकर विशाल सूर्य को निडरता से ताकता है, वह उत्साही
है यह स्वयं ब्रहमा का रूप में अर्थात दीप ;मनुष्य स्वयं  तक ही सीमित नही है। उसे सांसारिक
गतिविधियों में शामिल करके सर्वजन हिताय प्रयोग में लाया जाए तो सम्पूर्ण मानवता को लाभ मिल सकेगा ।

‘यह अद्वित्तीय यह मेरा, यह मैं स्वयं विसर्जित’ पंक्ति के द्वारा कवि दीप को ‘स्व’ का भाव
प्रदान करता हुआ कहता है कि व्यक्ति अपनी अलग पहचान बनाते हुए समाज हित में समर्पित हो
जाए तो अत्याध्कि श्रेयस्कर होगा। व्यक्तिगत सत्ता का यदि सामाजिक व राष्ट्रीय सत्ता में विलय हो
जाए तो समाज, राष्ट्र एवं व्यक्ति सभी का उत्थान होगा।
दीप प्रकाश का, ज्ञान का तथा सभ्यता का प्रतीक है। कविता में  इसे सामाजिक इकाई अर्थात
व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। जब कहीं समाज में निंदा, अपमान, घृणा तथा अनादर एवं
उपेक्षा का अन्धकार  फैलता है, तो दीप उसे प्रकाशमान कर अनुकूल वातावरण प्रदान करता है। व्यक्ति
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी करूणामय होकर, द्रवित होकर, जागरूकता का परिचय देता हुआ, अनुराग
से देखता हुआ, सभी को गले लगाने वाली ऊँची उठी भुजाओं वाला बनकर आत्मीयता का परिचय
देता है। वह सदैव जागृत  रहता है। अन्धकार में रौशनी  की किरण बनकर  निंदा, अपमान,
घृणा और अवज्ञा को दूर करता है, तथा अनुकूल वातावरण तैयार करता है।
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