Wednesday, September 29, 2021

 Class 12 CBSE TERM 1

Sample question paper with answer key /November 2021

सीबीएसई छात्रों कक्षा  12 के टर्म 'एक' 2021 का परीक्षा पत्र कैसा होगा ,

यहाँ दिए गए official लिंक से प्रश्न पत्रों के नमूने देख सकते हैं, साथ ही मार्किंग स्कीम भी दी गई है ।   

Class XII Sample Question Paper & Marking Scheme for Exam 2021-22

Subject Sample Question Paper Marking Scheme
Accountancy SQP MS
Arabic SQP MS
Assamese SQP MS
Bengali SQP MS
Bharatanatyam SQP MS
Bhutia SQP MS
Biology SQP MS
Biotechnology SQP MS
Bodo SQP MS
Business Studies SQP MS
Carnatic Melodic SQP MS
Carnatic Percussion SQP MS
Carnatic Vocal SQP MS
Commercial Art SQP MS
Chemistry SQP MS
Computer Science SQP MS
Dance Manipuri SQP MS
Economics SQP MS
Engg. Graphic SQP MS
English Core SQP MS
English Elective SQP MS
Entrepreneurship SQP MS
French SQP MS
Geography SQP MS
German SQP MS
Gujarati SQP MS
Hindi Elective SQP MS
Hindi Core SQP MS
History SQP MS
Hindustani Music (Melodic) SQP MS
Hindustani Music (Percussion) SQP MS
Hindustani Music (Vocal) SQP MS
Home Science SQP MS
Informatics Practices SQP MS
Japanese SQP MS
Kannada SQP MS
Kashmiri SQP MS
Kathak SQP MS
Kathakali SQP MS
Kuchipudi SQP MS
Legal Studies SQP MS
Lepcha SQP MS
Limboo SQP MS
Malayalam SQP MS
Manipuri SQP MS
Marathi SQP MS
Applied Arts SQP MS
Applied Mathematics SQP MS
Mathematics SQP MS
Mizo SQP MS
NCC SQP MS
Nepali SQP MS
KTPI SQP MS
Odia SQP MS
Painting SQP MS
Graphic SQP MS
Sculpture SQP MS
Persian SQP MS
Physical Education SQP MS
Physics SQP MS
Political Science SQP MS
Psychology SQP MS
Punjabi SQP MS
Russian SQP MS
Sindhi SQP MS
Science SQP MS
Sociology SQP MS
Spanish SQP MS
Sanskrit Core SQP MS
Sanskrit Elective SQP MS
Tamil SQP MS
Tangkhul SQP MS
Telugu (AP) SQP MS
Telugu (Telangana) SQP MS
Tibetan SQP MS
Urdu Core SQP MS
Urdu ElectiveSQPMS

CBSE Class 10 TERM 1 sample question paper with answer key /November 2021

Class 10 CBSE TERM 1 

Sample question paper with answer key /November 2021

सीबीएसई छात्रों कक्षा   दस के टर्म एक 2021 का परीक्षा पत्र कैसा होगा ,यहाँ दिए गए official लिंक से प्रश्न पत्रों के नमूने देख सकते हैं, साथ ही मार्किंग स्कीम भी दी गई है ।  

Class X Sample Question Paper & Marking Scheme for Exam 2021-22

Subject Sample Question Paper Marking Scheme
Science SQP MS
Elements of Book Keeping and Accountancy SQP MS
Elements of Business SQP MS
English (Language & Literature) SQP MS
Hindi A SQP MS
Hindi B SQP MS
Home Science SQP MS
Computer Application SQP MS
Mathematics (Basic) SQP MS
Mathematics (Standard) SQP MS
Social Science SQP MS
NCC SQP MS
Hindustani Music (Melodic) SQP MS
Hindustani Music (Percussion) SQP MS
Hindustani Music (Vocal) SQP MS
Carnatic Music-Melodic Instruments SQP MS
Carnatic Music-Percussion Instruments SQP MS
Carnatic Music-Vocal SQP MS
Painting SQP MS
Arabic SQP MS
Bengali SQP MS
Assamese SQP MS
Bahasa Melayu SQP MS
Bhutia SQP MS
Bodo SQP MS
French SQP MS
German SQP MS
Gujarati SQP MS
Gurung SQP MS
Japanese SQP MS
Kannada SQP MS
Kashmiri SQP MS
Lepcha SQP MS
Limboo SQP MS
Malayalam SQP MS
Manipuri SQP MS
Mizo SQP MS
Marathi SQP MS
Nepali SQP MS
Odia SQP MS
Persian SQP MS
Punjabi SQP MS
Rai Language SQP MS
Russian SQP MS
Sanskrit SQP MS
Sherpa SQP MS
Sindhi SQP MS
Spanish SQP MS
Tamil SQP MS
Tamang SQP MS
Tangkhul SQP MS
Telugu AP SQP MS
Telugu Telangana SQP MS
Thai SQP MS
Tibetan SQP MS
Urdu A SQP MS
Urdu BSQP MS

Monday, September 13, 2021

अंधेर नगरी (प्रहसन ) - भारतेंदु हरिश्चंद्र

  अंधेर नगरी
भारतेंदु हरिश्चंद्र


अंधेर नगरी चौपट्ट राजा
टके सेर भाजी टके सेर खाजा

प्रथम दृश्य

(वाह्य प्रान्त)
(महन्त जी दो चेलों के साथ गाते हुए आते हैं)
सब : राम भजो राम भजो राम भजो भाई।
राम के भजे से गनिका तर गई,
राम के भजे से गीध गति पाई।
राम के नाम से काम बनै सब,
राम के भजन बिनु सबहि नसाई ॥
राम के नाम से दोनों नयन बिनु
सूरदास भए कबिकुलराई।
राम के नाम से घास जंगल की,
तुलसी दास भए भजि रघुराई ॥
महन्त : बच्चा नारायण दास! यह नगर तो दूर से बड़ा सुन्दर दिखलाई पड़ता है! देख, कुछ भिच्छा उच्छा मिलै तो ठाकुर जी को भोग लगै। और क्या।
ना. दा : गुरु जी महाराज! नगर तो नारायण के आसरे से बहुत ही सुन्दर है जो सो, पर भिक्षा सुन्दर मिलै तो बड़ा आनन्द होय।
महन्त : बच्चा गोवरधन दास! तू पश्चिम की ओर से जा और नारायण दास पूरब की ओर जायगा। देख, जो कुछ सीधा सामग्री मिलै तो श्री शालग्राम जी का बालभोग सिद्ध हो।
गो. दा : गुरु जी! मैं बहुत सी भिच्छा लाता हूँ। यहाँ लोग तो बड़े मालवर दिखलाई पड़ते हैं। आप कुछ चिन्ता मत कीजिए।
महंत : बच्चा बहुत लोभ मत करना। देखना, हाँ।-
लोभ पाप का मूल है, लोभ मिटावत मान।
लोभ कभी नहीं कीजिए, यामैं नरक निदान ॥
(गाते हुए सब जाते हैं)


दूसरा दृश्य
(बाजार)


कबाबवाला : कबाब गरमागरम मसालेदार-चैरासी मसाला बहत्तर आँच का-कबाब गरमागरम मसालेदार-खाय सो होंठ चाटै, न खाय सो जीभ काटै। कबाब लो, कबाब का ढेर-बेचा टके सेर।
घासीराम : चने जोर गरम-
चने बनावैं घासीराम।
चना चुरमुर चुरमुर बौलै।
चना खावै तौकी मैना।
चना खायं गफूरन मुन्ना।
चना खाते सब बंगाली।
चना खाते मियाँ- जुलाहे।
चना हाकिम सब जो खाते।
चने जोर गरम-टके सेर।
नरंगीवाली : नरंगी ले नरंगी-सिलहट की नरंगी, बुटबल की नरंगी, रामबाग की नरंगी, आनन्दबाग की नरंगी। भई नीबू से नरंगी। मैं तो पिय के रंग न रंगी। मैं तो भूली लेकर संगी। नरंगी ले नरंगी। कैवला नीबू, मीठा नीबू, रंगतरा संगतरा। दोनों हाथों लो-नहीं पीछे हाथ ही मलते रहोगे। नरंगी ले नरंगी। टके सेर नरंगी।
हलवाई : जलेबियां गरमा गरम। ले सेब इमरती लड्डू गुलाबजामुन खुरमा बुंदिया बरफी समोसा पेड़ा कचैड़ी दालमोट पकौड़ी घेवर गुपचुप। हलुआ हलुआ ले हलुआ मोहनभोग। मोयनदार कचैड़ी कचाका हलुआ नरम चभाका। घी में गरक चीनी में तरातर चासनी में चभाचभ। ले भूरे का लड्डू। जो खाय सो भी पछताय जो न खाय सो भी पछताय। रेबडी कड़ाका। पापड़ पड़ाका। ऐसी जात हलवाई जिसके छत्तिस कौम हैं भाई। जैसे कलकत्ते के विलसन मन्दिर के भितरिए, वैसे अंधेर नगरी के हम। सब समान ताजा। खाजा ले खाजा। टके सेर खाजा।
कुजड़िन : ले धनिया मेथी सोआ पालक चैराई बथुआ करेमूँ नोनियाँ कुलफा कसारी चना सरसों का साग। मरसा ले मरसा। ले बैगन लौआ कोहड़ा आलू अरूई बण्डा नेनुआँ सूरन रामतरोई तोरई मुरई ले आदी मिरचा लहसुन पियाज टिकोरा। ले फालसा खिरनी आम अमरूद निबुहा मटर होरहा। जैसे काजी वैसे पाजी। रैयत राजी टके सेर भाजी। ले हिन्दुस्तान का मेवा फूट और बैर।
मुगल : बादाम पिस्ते अखरोट अनार विहीदाना मुनक्का किशमिश अंजीर आबजोश आलूबोखारा चिलगोजा सेब नाशपाती बिही सरदा अंगूर का पिटारी। आमारा ऐसा मुल्क जिसमें अंगरेज का भी दाँत खट्टा ओ गया। नाहक को रुपया खराब किया। हिन्दोस्तान का आदमी लक लक हमारे यहाँ का आदमी बुंबक बुंबक लो सब मेवा टके सेर।
पाचकवाला :
चूरन अमल बेद का भारी। जिस को खाते कृष्ण मुरारी ॥
मेरा पाचक है पचलोना।
चूरन बना मसालेदार।
मेरा चूरन जो कोई खाय।
हिन्दू चूरन इस का नाम।
चूरन जब से हिन्द में आया।
चूरन ऐसा हट्टा कट्टा।
चूरन चला डाल की मंडी।
चूरन अमले सब जो खावैं।
चूरन नाटकवाले खाते।
चूरन सभी महाजन खाते।
चूरन खाते लाला लोग।
चूरन खावै एडिटर जात।
चूरन साहेब लोग जो खाता।
चूरन पूलिसवाले खाते।
ले चूरन का ढेर, बेचा टके सेर ॥
मछलीवाली : मछली ले मछली।
मछरिया एक टके कै बिकाय।
लाख टका के वाला जोबन, गांहक सब ललचाय।
नैन मछरिया रूप जाल में, देखतही फँसि जाय।
बिनु पानी मछरी सो बिरहिया, मिले बिना अकुलाय।
जातवाला : (ब्राह्मण)।-जात ले जात, टके सेर जात। एक टका दो, हम अभी अपनी जात बेचते हैं। टके के वास्ते ब्राहाण से धोबी हो जाँय और धोबी को ब्राह्मण कर दें टके के वास्ते जैसी कही वैसी व्यवस्था दें। टके के वास्ते झूठ को सच करैं। टके के वास्ते ब्राह्मण से मुसलमान, टके के वास्ते हिंदू से क्रिस्तान। टके के वास्ते धर्म और प्रतिष्ठा दोनों बेचैं, टके के वास्ते झूठी गवाही दें। टके के वास्ते पाप को पुण्य मानै, बेचैं, टके वास्ते नीच को भी पितामह बनावैं। वेद धर्म कुल मरजादा सचाई बड़ाई सब टके सेर। लुटाय दिया अनमोल माल ले टके सेर।
बनिया : आटा- दाल लकड़ी नमक घी चीनी मसाला चावल ले टके सेर।
(बाबा जी का चेला गोबर्धनदास आता है और सब बेचनेवालों की आवाज सुन सुन कर खाने के आनन्द में बड़ा प्रसन्न होता है।)
गो. दा. : क्यों भाई बणिये, आटा कितणे सेर?
बनियां : टके सेर।
गो. दा. : औ चावल?
बनियां : टके सेर।
गो. दा. : औ चीनी?
बनियां : टके सेर।
गो. दा. : औ घी?
बनियां : टके सेर।
गो. दा. : सब टके सेर। सचमुच।
बनियां : हाँ महाराज, क्या झूठ बोलूंगा।
गो. दा. : (कुंजड़िन के पास जाकर) क्यों भाई, भाजी क्या भाव?
कुंजड़िन : बाबा जी, टके सेर। निबुआ मुरई धनियां मिरचा साग सब टके सेर।
गो. दा. : सब भाजी टके सेर। वाह वाह! बड़ा आनंद है। यहाँ सभी चीज टके सेर। (हलवाई के पास जाकर) क्यों भाई हलवाई? मिठाई कितणे सेर?
हलवाई : बाबा जी! लडुआ हलुआ जलेबी गुलाबजामुन खाजा सब टके सरे।
गो. दा. : वाह! वाह!! बड़ा आनन्द है? क्यों बच्चा, मुझसे मसखरी तो नहीं करता? सचमुच सब टके सेर?
हलवाई : हां बाबा जी, सचमुच सब टके सेर? इस नगरी की चाल ही यही है। यहाँ सब चीज टके सेर बिकती है।
गो. दा. : क्यों बच्चा! इस नगर का नाम क्या है?
हलवाई : अंधेरनगरी।
गो. दा. : और राजा का क्या नाम है?
हलवाई : चौपट राजा।
गौ. दा. : वाह! वाह! अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा (यही गाता है और आनन्द से बिगुल बजाता है)।
हलवाई : तो बाबा जी, कुछ लेना देना हो तो लो दो।
गो. दो. : बच्चा, भिक्षा माँग कर सात पैसे लाया हूँ, साढ़े तीन सेर मिठाई दे दे, गुरु चेले सब आनन्दपूर्वक इतने में छक जायेंगे।
(हलवाई मिठाई तौलता है-बाबा जी मिठाई लेकर खाते हुए और अंधेर नगरी गाते हुए जाते हैं।)
(पटाक्षेप)


तीसरा दृश्य
(स्थान जंगल)


(महन्त जी और नारायणदास एक ओर से 'राम भजो इत्यादि गीत गाते हुए आते हैं और एक ओर से गोबवर्धनदास अन्धेरनगरी गाते हुए आते हैं')
महन्त : बच्चा गोवर्धन दास! कह क्या भिक्षा लाया? गठरी तो भारी मालूम पड़ती है।
गो. दा. : बाबा जी महाराज! बड़े माल लाया हँ, साढ़े तीन सेर मिठाई है।
महन्त : देखूँ बच्चा! (मिठाई की झोली अपने सामने रख कर खोल कर देखता है) वाह! वाह! बच्चा! इतनी मिठाई कहाँ से लाया? किस धर्मात्मा से भेंट हुई?
गो. दा. : गुरूजी महाराज! सात पैसे भीख में मिले थे, उसी से इतनी मिठाई मोल ली है।
महन्त : बच्चा! नारायण दास ने मुझसे कहा था कि यहाँ सब चीज टके सेर मिलती है, तो मैंने इसकी बात का विश्वास नहीं किया। बच्चा, वह कौन सी नगरी है और इसका कौन सा राजा है, जहां टके सेर भाजी और टके ही सेर खाजा है?
गो. दा. : अन्धेरनगरी चौपट्ट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
महन्त : तो बच्चा! ऐसी नगरी में रहना उचित नहीं है, जहाँ टके सेर भाजी और टके ही सेर खाजा हो।
दोहा : सेत सेत सब एक से, जहाँ कपूर कपास।
ऐसे देस कुदेस में कबहुँ न कीजै बास ॥
कोकिला बायस एक सम, पंडित मूरख एक।
इन्द्रायन दाड़िम विषय, जहाँ न नेकु विवेकु ॥
बसिए ऐसे देस नहिं, कनक वृष्टि जो होय।
रहिए तो दुख पाइये, प्रान दीजिए रोय ॥
सो बच्चा चलो यहाँ से। ऐसी अन्धेरनगरी में हजार मन मिठाई मुफ्त की मिलै तो किस काम की? यहाँ एक छन नहीं रहना।
गो. दा. : गुरू जी, ऐसा तो संसार भर में कोई देस ही नहीं हैं। दो पैसा पास रहने ही से मजे में पेट भरता है। मैं तो इस नगर को छोड़ कर नहीं जाऊँगा। और जगह दिन भर मांगो तो भी पेट नहीं भरता। वरंच बाजे बाजे दिन उपास करना पड़ता है। सो मैं तो यही रहूँगा।
महन्त : देख बच्चा, पीछे पछतायगा।
गो. दा. : आपकी कृपा से कोई दुःख न होगा; मैं तो यही कहता हूँ कि आप भी यहीं रहिए।
महन्त : मैं तो इस नगर में अब एक क्षण भर नहीं रहूंगा। देख मेरी बात मान नहीं पीछे पछताएगा। मैं तो जाता हूं, पर इतना कहे जाता हूं कि कभी संकट पड़ै तो हमारा स्मरण करना।
गो. दा. : प्रणाम गुरु जी, मैं आपका नित्य ही स्मरण करूँगा। मैं तो फिर भी कहता हूं कि आप भी यहीं रहिए।
महन्त जी नारायण दास के साथ जाते हैं; गोवर्धन दास बैठकर मिठाई खाता है।,
(पटाक्षेप)
 

चौ था दृश्य
(राजसभा)


(राजा, मन्त्री और नौकर लोग यथास्थान स्थित हैं)
1 सेवक : (चिल्लाकर) पान खाइए महाराज।
राजा : (पीनक से चैंक घबड़ाकर उठता है) क्या? सुपनखा आई ए महाराज। (भागता है)।
मन्त्री : (राजा का हाथ पकड़कर) नहीं नहीं, यह कहता है कि पान खाइए महाराज।
राजा : दुष्ट लुच्चा पाजी! नाहक हमको डरा दिया। मन्त्री इसको सौ कोडे लगैं।
मन्त्री : महाराज! इसका क्या दोष है? न तमोली पान लगाकर देता, न यह पुकारता।
राजा : अच्छा, तमोली को दो सौ कोड़े लगैं।
मन्त्री : पर महाराज, आप पान खाइए सुन कर थोडे ही डरे हैं, आप तो सुपनखा के नाम से डरे हैं, सुपनखा की सजा हो।
राजा : (घबड़ाकर) फिर वही नाम? मन्त्री तुम बड़े खराब आदमी हो। हम रानी से कह देंगे कि मन्त्री बेर बेर तुमको सौत बुलाने चाहता है। नौकर! नौकर! शराब।
2 नौकर : (एक सुराही में से एक गिलास में शराब उझल कर देता है।) लीजिए महाराज। पीजिए महाराज।
राजा : (मुँह बनाकर पीता है) और दे।
(नेपथ्य में-दुहाई है दुहाई-का शब्द होता है।)
कौन चिल्लाता है-पकड़ लाओ।
(दो नौकर एक फरियादी को पकड़ लाते हैं)
फ. : दोहाई है महाराज दोहाई है। हमारा न्याव होय।
राजा : चुप रहो। तुम्हारा न्याव यहाँ ऐसा होगा कि जैसा जम के यहाँ भी न होगा। बोलो क्या हुआ?
फ. : महाराजा कल्लू बनिया की दीवार गिर पड़ी सो मेरी बकरी उसके नीचे दब गई। दोहाई है महाराज न्याय हो।
राजा : (नौकर से) कल्लू बनिया की दीवार को अभी पकड़ लाओ।
मन्त्राी : महाराज, दीवार नहीं लाई जा सकती।
राजा : अच्छा, उसका भाई, लड़का, दोस्त, आशना जो हो उसको पकड़ लाओ।
मन्त्राी : महाराज! दीवार ईंट चूने की होती है, उसको भाई बेटा नहीं होता।
राजा : अच्छा कल्लू बनिये को पकड़ लाओ।
(नौकर लोग दौड़कर बाहर से बनिए को पकड़ लाते हैं) क्यों बे बनिए! इसकी लरकी, नहीं बरकी क्यों दबकर मर गई?
मन्त्री : बरकी नहीं महाराज, बकरी।
राजा : हाँ हाँ, बकरी क्यों मर गई-बोल, नहीं अभी फाँसी देता हूँ।
कल्लू : महाराज! मेरा कुछ दोष नहीं। कारीगर ने ऐसी दीवार बनाया कि गिर पड़ी।
राजा : अच्छा, इस मल्लू को छोड़ दो, कारीगर को पकड़ लाओ। (कल्लू जाता है, लोग कारीगर को पकड़ लाते हैं) क्यों बे कारीगर! इसकी बकरी किस तरह मर गई?
कारीगर : महाराज, मेरा कुछ कसूर नहीं, चूनेवाले ने ऐसा बोदा बनाया कि दीवार गिर पड़ी।
राजा : अच्छा, इस कारीगर को बुलाओ, नहीं नहीं निकालो, उस चूनेवाले को बुलाओ।
(कारीगर निकाला जाता है, चूनेवाला पकड़कर लाया जाता है) क्यों बे खैर सुपाड़ी चूनेवाले! इसकी कुबरी कैसे मर गई?
चूनेवाला : महाराज! मेरा कुछ दोष नहीं, भिश्ती ने चूने में पानी ढेर दे दिया, इसी से चूना कमजोर हो गया होगा।
राजा : अच्छा चुन्नीलाल को निकालो, भिश्ती को पकड़ो। (चूनेवाला निकाला जाता है भिश्ती, भिश्ती लाया जाता है) क्यों वे भिश्ती! गंगा जमुना की किश्ती! इतना पानी क्यों दिया कि इसकी बकरी गिर पड़ी और दीवार दब गई।
भिश्ती : महाराज! गुलाम का कोई कसूर नहीं, कस्साई ने मसक इतनी बड़ी बना दिया कि उसमें पानी जादे आ गया।
राजा : अच्छा, कस्साई को लाओ, भिश्ती निकालो।
(लोग भिश्ती को निकालते हैं और कस्साई को लाते हैं)
क्यौं बे कस्साई मशक ऐसी क्यौं बनाई कि दीवार लगाई बकरी दबाई?
कस्साई : महाराज! गड़ेरिया ने टके पर ऐसी बड़ी भेंड़ मेरे हाथ बेंची की उसकी मशक बड़ी बन गई।
राजा : अच्छा कस्साई को निकालो, गड़ेरिये को लाओ।
(कस्साई निकाला जाता है गंडे़रिया आता है)
क्यों बे ऊखपौड़े के गंडेरिया। ऐसी बड़ी भेड़ क्यौं बेचा कि बकरी मर गई?
गड़ेरिया : महाराज! उधर से कोतवाल साहब की सवारी आई, सो उस के देखने में मैंने छोटी बड़ी भेड़ का ख्याल नहीं किया, मेरा कुछ कसूर नहीं।
राजा : अच्छा, इस को निकालो, कोतवाल को अभी सरबमुहर पकड़ लाओ।
(गंड़ेरिया निकाला जाता है, कोतवाल पकड़ा जाता है) क्यौं बे कोतवाल! तैंने सवारी ऐसी धूम से क्यों निकाली कि गड़ेरिये ने घबड़ा कर बड़ी भेड़ बेचा, जिस से बकरी गिर कर कल्लू बनियाँ दब गया?
कोतवाल : महाराज महाराज! मैंने तो कोई कसूर नहीं किया, मैं तो शहर के इन्तजाम के वास्ते जाता था।
मंत्री : (आप ही आप) यह तो बड़ा गजब हुआ, ऐसा न हो कि बेवकूफ इस बात पर सारे नगर को फूँक दे या फाँसी दे। (कोतवाल से) यह नहीं, तुम ने ऐसे धूम से सवारी क्यौं निकाली?
राजा : हाँ हाँ, यह नहीं, तुम ने ऐसे धूम से सवारी कयों निकाली कि उस की बकरी दबी।
कोतवाल : महाराज महाराज
राजा : कुछ नहीं, महाराज महाराज ले जाओ, कोतवाल को अभी फाँसी दो। दरबार बरखास्त।
(लोग एक तरफ से कोतवाल को पकड़ कर ले जाते हैं, दूसरी ओर से मंत्री को पकड़ कर राजा जाते हैं)
(पटाक्षेप)


पांचवां दृश्य
(अरण्य)


(गोवर्धन दास गाते हुए आते हैं)
(राग काफी)
अंधेर नगरी अनबूझ राजा। टका सेर भाजी टका सेर खाजा॥
नीच ऊँच सब एकहि ऐसे। जैसे भड़ुए पंडित तैसे॥
कुल मरजाद न मान बड़ाई। सबैं एक से लोग लुगाई॥
जात पाँत पूछै नहिं कोई। हरि को भजे सो हरि को होई॥
वेश्या जोरू एक समाना। बकरी गऊ एक करि जाना॥
सांचे मारे मारे डाल। छली दुष्ट सिर चढ़ि चढ़ि बोलैं॥
प्रगट सभ्य अन्तर छलहारी। सोइ राजसभा बलभारी ॥
सांच कहैं ते पनही खावैं। झूठे बहुविधि पदवी पावै ॥
छलियन के एका के आगे। लाख कहौ एकहु नहिं लागे ॥
भीतर होइ मलिन की कारो। चहिये बाहर रंग चटकारो ॥
धर्म अधर्म एक दरसाई। राजा करै सो न्याव सदाई ॥
भीतर स्वाहा बाहर सादे। राज करहिं अमले अरु प्यादे ॥
अंधाधुंध मच्यौ सब देसा। मानहुँ राजा रहत बिदेसा ॥
गो द्विज श्रुति आदर नहिं होई। मानहुँ नृपति बिधर्मी कोई ॥
ऊँच नीच सब एकहि सारा। मानहुँ ब्रह्म ज्ञान बिस्तारा ॥
अंधेर नगरी अनबूझ राजा। टका सेर भाजी टका सेर खाजा ॥

गुरु जी ने हमको नाहक यहाँ रहने को मना किया था। माना कि देस बहुत बुरा है। पर अपना क्या? अपने किसी राजकाज में थोड़े हैं कि कुछ डर है, रोज मिठाई चाभना, मजे में आनन्द से राम-भजन करना।
(मिठाई खाता है)
(चार प्यादे चार ओर से आ कर उस को पकड़ लेते हैं)
1. प्या. : चल बे चल, बहुत मिठाई खा कर मुटाया है। आज पूरी हो गई।
2. प्या. : बाबा जी चलिए, नमोनारायण कीजिए।
गो. दा. : (घबड़ा कर) हैं! यह आफत कहाँ से आई! अरे भाई, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो मुझको पकड़ते हौ।
1. प्या. : आप ने बिगाड़ा है या बनाया है इस से क्या मतलब, अब चलिए। फाँसी चढ़िए।
गो. दा. : फाँसी। अरे बाप रे बाप फाँसी!! मैंने किस की जमा लूटी है कि मुझ को फाँसी! मैंने किस के प्राण मारे कि मुझ को फाँसी!
2. प्या. : आप बड़े मोटे हैं, इस वास्ते फाँसी होती है।
गो. दा. : मोटे होने से फाँसी? यह कहां का न्याय है! अरे, हंसी फकीरों से नहीं करनी होती।
1. प्या. : जब सूली चढ़ लीजिएगा तब मालूम होगा कि हंसी है कि सच। सीधी राह से चलते हौ कि घसीट कर ले चलें?
गो. दा. : अरे बाबा, क्यों बेकसूर का प्राण मारते हौ? भगवान के यहाँ क्या जवाब दोगे?
1. प्या. : भगवान् को जवाब राजा देगा। हम को क्या मतलब। हम तो हुक्मी बन्दे हैं।
गो. दा. : तब भी बाबा बात क्या है कि हम फकीर आदमी को नाहक फाँसी देते हौ?
1. प्या. : बात है कि कल कोतवाल को फाँसी का हुकुम हुआ था। जब फाँसी देने को उस को ले गए, तो फाँसी का फंदा बड़ा हुआ, क्योंकि कोतवाल साहब दुबले हैं। हम लोगों ने महाराज से अर्ज किया, इस पर हुक्म हुआ कि एक मोटा आदमी पकड़ कर फाँसी दे दो, क्योंकि बकरी मारने के अपराध में किसी न किसी की सजा होनी जरूर है, नहीं तो न्याव न होगा। इसी वास्ते तुम को ले जाते हैं कि कोतवाल के बदले तुमको फाँसी दें।
गो. दा. : तो क्या और कोई मोटा आदमी इस नगर भर में नहीं मिलता जो मुझ अनाथ फकीर को फाँसी देते हैं!
1. प्या. : इस में दो बात है-एक तो नगर भर में राजा के न्याव के डर से कोई मुटाता ही नहीं, दूसरे और किसी को पकड़ैं तो वह न जानैं क्या बात बनावै कि हमी लोगों के सिर कहीं न घहराय और फिर इस राज में साधु महात्मा इन्हीं लोगों की तो दुर्दशा है, इस से तुम्हीं को फाँसी देंगे।
गो. दा. : दुहाई परमेश्वर की, अरे मैं नाहक मारा जाता हूँ! अरे यहाँ बड़ा ही अन्धेर है, अरे गुरु जी महाराज का कहा मैंने न माना उस का फल मुझ को भोगना पड़ा। गुरु जी कहां हौ! आओ, मेरे प्राण बचाओ, अरे मैं बेअपराध मारा जाता हूँ गुरु जी गुरु जी-
(गोबर्धन दास चिल्लाता है,
प्यादे लोग उस को पकड़ कर ले जाते हैं)
(पटाक्षेप)


छठा दृश्य
(स्थान श्मशान)


(गोबर्धन दास को पकड़े हुए चार सिपाहियों का प्रवेश)
गो. दा. : हाय बाप रे! मुझे बेकसूर ही फाँसी देते हैं। अरे भाइयो, कुछ तो धरम विचारो! अरे मुझ गरीब को फाँसी देकर तुम लोगों को क्या लाभ होगा? अरे मुझे छोड़ दो। हाय! हाय! (रोता है और छुड़ाने का यत्न करता है)
1 सिपाही : अबे, चुप रह-राजा का हुकुम भला नहीं टल सकता है? यह तेरा आखिरी दम है, राम का नाम ले-बेफाइदा क्यों शोर करता है? चुप रह-
गो. दा. : हाय! मैं ने गुरु जी का कहना न माना, उसी का यह फल है। गुरु जी ने कहा था कि ऐसे-नगर में न रहना चाहिए, यह मैंने न सुना! अरे! इस नगर का नाम ही अंधेरनगरी और राजा का नाम चौपट्ट है, तब बचने की कौन आशा है। अरे! इस नगर में ऐसा कोई धर्मात्मा नहीं है जो फकीर को बचावै। गुरु जी! कहाँ हौ? बचाओ-गुरुजी-गुरुजी-(रोता है, सिपाही लोग उसे घसीटते हुए ले चलते हैं)
(गुरु जी और नारायण दास आरोह)
गुरु. : अरे बच्चा गोबर्धन दास! तेरी यह क्या दशा है?
गो. दा. : (गुरु को हाथ जोड़कर) गुरु जी! दीवार के नीचे बकरी दब गई, सो इस के लिये मुझे फाँसी देते हैं, गुरु जी बचाओ।
गुरु. : अरे बच्चा! मैंने तो पहिले ही कहा था कि ऐसे नगर में रहना ठीक नहीं, तैंने मेरा कहना नहीं सुना।
गो. दा. : मैंने आप का कहा नहीं माना, उसी का यह फल मिला। आप के सिवा अब ऐसा कोई नहीं है जो रक्षा करै। मैं आप ही का हूँ, आप के सिवा और कोई नहीं (पैर पकड़ कर रोता है)।
महन्त : कोई चिन्ता नहीं, नारायण सब समर्थ है। (भौं चढ़ाकर सिपाहियों से) सुनो, मुझ को अपने शिष्य को अन्तिम उपदेश देने दो, तुम लोग तनिक किनारे हो जाओ, देखो मेरा कहना न मानोगे तो तुम्हारा भला न होगा।
सिपाही : नहीं महाराज, हम लोग हट जाते हैं। आप बेशक उपदेश कीजिए।
(सिपाही हट जाते हैं। गुरु जी चेले के कान में कुछ समझाते हैं)
गो. दा. : (प्रगट) तब तो गुरु जी हम अभी फाँसी चढ़ेंगे।
महन्त : नहीं बच्चा, मुझको चढ़ने दे।
गो. दा. : नहीं गुरु जी, हम फाँसी पड़ेंगे।
महन्त : नहीं बच्चा हम। इतना समझाया नहीं मानता, हम बूढ़े भए, हमको जाने दे।
गो. दा. : स्वर्ग जाने में बूढ़ा जवान क्या? आप तो सिद्ध हो, आपको गति अगति से क्या? मैं फाँसी चढूँगा।
(इसी प्रकार दोनों हुज्जत करते हैं-सिपाही लोग परस्पर चकित होते हैं)
1 सिपाही : भाई! यह क्या माजरा है, कुछ समझ में नहीं पड़ता।
2 सिपाही : हम भी नहीं समझ सकते हैं कि यह कैसा गबड़ा है।
(राजा, मंत्री कोतवाल आते हैं)
राजा : यह क्या गोलमाल है?
1 सिपाही : महाराज! चेला कहता है मैं फाँसी पड़ूंगा, गुरु कहता है मैं पड़ूंगा; कुछ मालूम नहीं पड़ता कि क्या बात है?
राजा : (गुरु से) बाबा जी! बोलो। काहे को आप फाँसी चढ़ते हैं?
महन्त : राजा! इस समय ऐसा साइत है कि जो मरेगा सीधा बैकुंठ जाएगा।
मंत्री : तब तो हमी फाँसी चढ़ेंगे।
गो. दा. : हम हम। हम को तो हुकुम है।
कोतवाल : हम लटकैंगे। हमारे सबब तो दीवार गिरी।
राजा : चुप रहो, सब लोग, राजा के आछत और कौन बैकुण्ठ जा सकता है। हमको फाँसी चढ़ाओ, जल्दी जल्दी।
महन्त :
जहाँ न धर्म न बुद्धि नहिं, नीति न सुजन समाज।
ते ऐसहि आपुहि नसे, जैसे चौपटराज॥
(राजा को लोग टिकठी पर खड़ा करते हैं)

(पटाक्षेप)
॥ इति ॥
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