Tuesday, October 24, 2017

15.Stri -Shiksha ke Virodhi kutarkon ka khandan-Lesson explained-स्त्री-...

Your doubts and my answers:



Dushyant n apne ptni aur bete ko pehchanne s mna kyun kiya
Ans: दुष्यंत शकुन्तला के साथ वन में मिले और गंधर्व विवाह के बाद चले गए .उसके बाद कभी मिले नहीं ..बेटे होने की खबर उन्हें नहीं थी .. .राजा भूल गए थे ,शकुन्तला ने जब उन्हें अँगूठी दिखाई तब पहचाना..उनके बेटे का नाम भरत था जो आगे चलकर राजा भरत हुए और उनके नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा.

mam vadantvadi ka kya meaning h

Ans:पिंटू ,आपकी कक्षा[१०] के स्तर पर यही उत्तर दे सकती हूँ कि वेदांत को मानने वाले वेदान्तवादी होते हैं ,सरल शब्दों में ये उपनिषदों के ज्ञानी होते हैं[Highly intellectual ]। अद्वैत वेदान्तवादी ब्रह्म को प्रधान मानते हैं और जीव व् जगत को उससे अभिन्न मानते हैं जबकि द्वैत वेदान्तवादी मानते हैं कि जगत्‌ और जीव ईश्वर से भिन्न हैं लेकिन ईश्वर द्वारा नियंत्रित हैं।




man is chapter Stri Shiksha ke Virodhi kutrkon ka kahndan me jo sloka diya hai uske mening kaya hai?
Ans: Shatkshi, shlok..vachyvastvya....kulsy? ka arth check at 29:53
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vizza aur Sheela Kaun thi
अल्पना वर्मा: पाठ में पुरातन काल में महिलाओं की स्थिति पढ़ाई -लिखाई के मामले में बहुत अच्छी थी यह बताते हुए लेखक ने इन दो नामों का ज़िक्र किया है. वे दोनों महिलाएँ विदुषी थीं , उनकी शार्ङ्गधर-पद्धति में संस्कृत में लिखी पद्य रचनाएँ मिलती हैं जिन्हें सभी ने [पुरुषों ने भी]सराहा और सम्मान दिया था. [ शीला 'कौण्डिन्य मुनि' की पत्नी थीं.]
Gandrav vivah means?
रितिका बहुत अच्छा प्रश्न किया ,इसका उत्तर है: पुराने समय में विवाह के जो आठ प्रकार मान्य थे, उनमें से एक है गंधर्व विवाह ।परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के [अग्नि के केवल ३ फेरों में ] विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है।दुष्यंत ने शकुन्तला से 'गंधर्व विवाह' ही किया था ,वे उनसे वन में मिले थे :) आज के समय में जिसे हम 'लव मेरिज' कहते हैं ।ये विवाह भी लोकभावना के ही विरुद्ध होता था!
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14.2Ek kahani yeh bhi First half एक कहानी यह भी Class 10Hindi

14.1Ek kahani yeh bhi -Last Part -एक कहानी यह भी- -Class 10 Hindi

13.Manviy karuna ki divy chamak -मानवीय करुणा की दिव्य चमक - Explanation...



Q.Mam, 'parimal' kya hota he ? Ye hindi ke ek model paper me aaya he ye ques.

Ans -
R.S.Chauhan, इलाहाबाद में 'परिमल' एक साहित्यिक संस्था थी ,फादर उस की गोष्ठी में सबसे बड़े माने जाते थे । वे उस संस्था में  सबका पथ प्रदर्शन करते थे और सबके साथ पारिवारिक रिश्ता बनाकर रखते थे  

12.Lakhnawi andaaz--Lesson explanation-लखनवी अंदाज़ - Class 10 Hindi A -

10.Netaji ka Chashma -with explanation- Class 10 Hindi -नेताजी का चश्मा Q Answers

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11.Balgobin Bhagat -with Explanation-Class 10 Hindi-बालगोबिन भगत

L 1.Aatmparichay आत्मपरिचय व्याख्या सहित -Part 1- Class 12 Poem

आत्मपरिचय
 Aatmparichay व्याख्या सहित -Part 1-
 Class 12 Poem

 
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Sunday, October 22, 2017

Reedh ki haddi / रीढ़ की हड्डी/Ekaanki Summary-Hindi Q-Ans

रीढ़ की हड्डी -Reedh ki haddi एकांकी  -

Summary-Class 9 Hindi  -kritika




प्रस्तुत एकांकी 'रीढ़ की हड्डी' श्री जगदीश चन्द्र माथुर द्वारा रचित है। यह एकांकी लड़की के विवाह की एक सामाजिक समस्या पर आधरित है।
पात्र परिचय. -
उमा : लड़की. रामस्‍वरूप : लड़की का पिता. प्रेमा : लड़की की माँ. शंकर : लड़का. गोपालप्रसाद : लड़के का बाप. रतन : नौकर.
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एकांकी का उद्देश्य
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हमारे समाज की विडंबनाओं को दिखाना इस एकांकी का  मुख्य उद्देश्य है ।इसके अलावा औरतों की दशा को सुधारना व उनको उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कराना है। लड़कियों के विवाह में आने वाली समस्या को समाज के सामने लाना,स्त्री -शिक्षा के प्रति दोहरी मानसिकता रखने वालों को बेनकाब करना,
स्त्री को भी अपने विचार व्यक्त करने की आज़ादी देना। बेटियों के विवाह के समय माता-पिता की परेशानियों को  बताना ।स्त्री को उसके व्यक्तित्व की रक्षा करने का संदेश भी यह एकांकी देता  है
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रीढ़ की हड्डी के प्रश्न उत्तर

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1: रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद बात-बात पर “एक हमारा जमाना था ...” कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं। इस प्रकार की तुलना करना कहाँ तक तर्कसंगत है?

उत्तर: ऐसा अक्सर देखा जाता है कि एक विशेष  उम्र के लोग अपने जमाने की खूबियों को याद करके नये जमाने को कोसते रहते हैं। उनकी बातें सुनना अच्छा लग सकता है लेकिन दो ज़माने  की इस तरह से तुलना करना किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं है। क्योंकि समय बदलता रहता  और समय के साथ परिस्थितियाँ भी बदलती हैं। हर जमाने के अपने मूल्य और जीवन जीने के अपने तरीके होते हैं । जिस तरह से तकनिकी बदलाव हुए हैं हम देखें तो आधुनिक जमाना बीते हुए जमाने की तुलना में प्रगतिशील ही है।
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2: रामस्वरूप का अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना और विवाह के लिए छिपाना, यह विरोधाभास उनकी किस विवशता को उजागर करता है?

उत्तर:  रामस्वरूप की बेटी की उम्र विवाह लायक हो चुकी है। भारतीय परंपरा के हिसाब से उन्हें जल्दी से कोई योग्य वर देखकर अपनी बेटी का विवाह तय करना है। नाटक जिस समय और परिस्थितों को बता रहा है उसके अनुसार ,तत्कालीन समय में लड़कियों का अधिक पढ़ा- लिखा होना अच्छी बात नहीं मानी जाती थी।इस वजह से रामस्वरूप को अपनी बेटी के लिए योग्य वर तलाशने में कठिनाई हो रही थी ।वह विवश हो जाता है  कि अपनी बेटी की उच्च शिक्षा को विवाह के लिए छिपा दे ।
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3: अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं, वह उचित क्यों नहीं है?

उत्तर: हमारे समाज में  विवाह हेतु ,जब बड़े बुजुर्गों द्वारा रिश्ते परंपरागत तरीके से तय  किये जाते हैं तो वर पक्ष को कुछ अधिक ही अधिकार प्राप्त होते हैं। लड़के वाले हर तरीके से ठोक बजाकर लड़की को जाँचते परखते हैं। यह बात किसी भी स्वाभिमानी लड़की को नापसंद हो सकती  है। उस पर , यह आशा  की जाती है कि लड़के से कोई भी सवाल न पूछा जाये।जबकि हर व्यक्ति को इस बात का अधिकार होना चाहिए कि उसकी शादी ठीक होते वक्त उसकी बात भी सुनी जाये।अब येही बात महिलाओं के सम्मान और अधिकारों का हनन करती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं, वह उचित नहीं है।
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4: गोपाल प्रसाद विवाह को ‘बिजनेस’ मानते हैं और रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्च शिक्षा छिपाते हैं। क्या आप मानते हैं कि दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं? अपने विचार लिखें।

उत्तर: गोपाल प्रसाद के लिए रिश्तों और व्यक्तियों का कोई महत्व नहीं है।इसलिए हम उनको अपराधी कहेंगे, रामस्वरूप भी एक अपराधी हैं क्योंकि वे समाज  के दबाव में आकर एक पाप कर रहे हैं। गोपाल प्रसाद को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि उनके बेटे का वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा।वहीँ  रामस्वरूप किसी तरह से अपनी बेटी की शादी कर देना चाहते  हैं।
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5: “... आपके लाड़ले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं ...” उमा इस कथन के माध्यम से शंकर की किन कमियों की ओर संकेत करना चाहती है?
उत्तर: शंकर पिटा के सामने किसी आज्ञाकारी बालक की तरह चुपचाप बैठा है। उसमें स्वाभिमान की सख्त कमी है।उसके लिए उसकी अपनी इच्छा का कोई मतलब नहीं है।  यह बात उसके यह मान लेने से पता चलती है कि वह इस बात से आश्वस्त नहीं है कि उसकी पढ़ाई कब पूरी होगी। उसे अपनी होने वाली  पत्नी के व्यक्तित्व को जानने में भी कोई रुचि नहीं है।इस स्वाभिमान को ही लड़के की रीढ़ की हड्डी कहा गया है .
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6: शंकर जैसे लड़के या उमा जैसी लड़की – समाज को कैसे व्यक्तित्व की जरूरत है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर:शंकर अपने पिता की कमाई पर ऐश करना जानता है,उसके  जैसे लड़के समाज पर बोझ सिद्ध होते हैं। जबकि उमा में आत्मसम्मान कूट-कूट कर भरा है। वह  बाहरी दिखावे का विरोध करती है। आज  इस समाज को उमा जैसी लड़की की बहुत जरूरत है।
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7: ‘रीढ़ की हड्डी’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस नाटक में दो मुख्य पात्र हैं; उमा और शंकर। दोनों का व्यक्तित्व एक- दूसरे के विपरीत हैं। एक ओर उमा  स्वाभिमानी  है तो दूसरी ओर शंकर पास स्वाभिमान की कमी है। यहाँ पर ‘रीढ़ की हड्डी’ उसी स्वाभिमान का सूचक है। इसलिए यह शीर्षक इस नाटक के लिए  सटीक है।
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8: कथावस्तु के आधार पर आप किसे एकांकी का मुख्य पात्र मानते हैं और क्यों?

उत्तर:  इस नाटक के ज्यादातर संवाद रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद के  हैं लेकिन पूरा नाटक उमा पर केन्द्रित  है।नाटक में  शुरु की सारी तैयारी उमा की शादी तय करने के लिए होती दिखाई गयी है। नाटक का अंत  उमा के मुखर विरोध से होता है। इसलिए हम कह सकते हैं किउमा ही इस नाटक की मुख्य पात्र है।
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9: एकांकी के आधार पर रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए।

उत्तर: रामस्वरूप आधुनिक खयाल के व्यक्ति हैं लेकिन वे जमाने से समझौता करने को भी तैयार रहते हैं। उनके द्वारा उमा की पढ़ाई को प्रोत्साहित करना उनके आधुनिक खयालों को दर्शाता है। लेकिन उमा की शादी के लिए कुछ समझौते करना समाज के सामने  उनकी मजबूरी को दिखाता है। गोपाल प्रसाद बड़े धूर्त  लगते हैं; क्योंकि वे शादी को भी व्यापार समझते हैं। वे उस पुरुष प्रधान समाज के प्रतिनिधि  हैं जिसमें स्त्रियों के लिए कोई स्थान नहीं है।
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10: इस एकांकी का क्या उद्देश्य है? लिखिए।

उत्तर: इस एकांकी का उद्देश्य है -
१.समाज की विडंबनाओं को दिखाना। एक ओर समाज आगे बढ़ने की इच्छा रखता है तो दूसरी ओर समाज के रीती-रिवाजों की बेड़ियाँ उसे आगे नहीं बढ़ने दे रही हैं। लेकिन हम जानते हैं , हर काल में हर समाज में कुछ ऐसे बहादुर और स्वाभिमानी लोग आगे आते हैं जो पुरानी बेड़ियों को तोड़ने की कोशिश करते हैं और सफल भी होते हैं ।
 २.औरतों की दशा को सुधारना व उनको उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कराना।
३. लड़कियों के विवाह में आने वाली समस्या को समाज के सामने लाना।
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11: समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने हेतु आप कौन-कौन से प्रयास कर सकते हैं?

उत्तर: समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने हेतु कई प्रयास किये जा सकते हैं,जैसे  - महिलाओं को शिक्षा के लिए प्रोत्साहन देना।कहते हैं यदि आप एक  महिला को शिक्षित करते हैं तोआप उसके  पूरे परिवार और समाज को शिक्षित करते हैं। इसके अलावा आज  महिलाओं के प्रति पुरुषों का दृष्टिकोण बदलने की भी जरूरत है,जिसके लिए पुरुषों को शिक्षित करना और उन्हें समझाना होगा ।
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Friday, October 20, 2017

K4-Ehi thayyan jhulani herani ho rama-एही ठैयाँ झुलनी-Class 10 A



What is moral of story?


This story is about two Indians who sacrificed their lives for the country.There are many such people whose sacrifice for the country has gone unnoticed and not recorded in history. This story is to tell people about two such unknown 'freedom fighters'.It is presented as a love story so people will take interest to listen or read But writer's aim is to highlight their sacrifice. Do you think That lady was spared? No, she was also killed as she became rebellious.Moral is ..we should remember that this freedom we enjoy today is because of many sacrifices. It was not easy to get..We need to respect this freedom also all freedom fighters.
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fanku sardar kon tha ?

फेंकू सरदार पुलिस का एक मुखबिर था ।वह दुलारी को पसंद करता था परंतु दुलारी तो मन ही मन टुन्नू को चाहती थी। ।
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Sana Sana Hath Jodi -साना साना हाथ जोड़ी -Class 10 Kritika 3


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=============== ========== =============== Sana Sana Hath Jodi -साना साना हाथ जोड़ी -Class 10 Kritika NCERT -----------

George Pancham ki naak-जॉर्ज पंचम की नाक-Class 10 Kritika

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Mata ka Anchal -माता का अँचल-Class 10 Kritika NCERT

Mata ka Anchal /माता का अँचल/Class 10 A ==================

चन्द्र गहना से लौटती बेर Chandr Gahana se lautTi ber Explanation -Class 9 A

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देख आया चंद्र गहना
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।


एक बीते के बराबर
ये हरा ठिगना चना
बांधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का
सजकर खड़ा है।


पास ही मिलकर उगी है
बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली
नीले फूले फूल को सर पर चढ़ा कर
कह रही, जो छुए यह
दूँ हृदय का दान उसको।

और सरसों की न पूछो
हो गयी सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।

देखता हूँ मैं, स्वयंवर हो रहा है
प्रकृति का अनुराग अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।




और पैरों के तले है एक पोखर
उठ रहीं इसमें लहरियाँ।
नील तल में जो उगी हैं घास भूरी
ले रही वो भी लहरियाँ।
एक चांदी का बड़ा सा गोल खम्भा
आँख को है चकमकाता।
है कई पत्थर किनारे
पी रहे चुप चाप पानी
प्यास जाने कब बुझेगी।
चुप खड़ा बगुला डुबाये टांग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान निद्रा त्यागता है,
चट दबा कर चोंच में
नीचे गले को डालता है।



एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबाकर
दूर उड़ती है गगन में।
औ यहीं से
भूमि ऊंची है जहाँ से
रेल की पटरी गयी है
ट्रेन का टाइम नहीं है
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ
जाना नहीं है।


चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊंची ऊंची पहाड़ियां
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर उधर रीवां के पेड़
कांटेदार कुरूप खड़े हैं।



सुन पड़ता है मीठा मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें।
सुन पड़ता है वनस्थली का हृदय चीरता
उठता गिरता सारस का स्वर
टिरटों टिरटों।



मन होता है
उड़ जाऊं मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची प्रेम कहानी सुन लूं
चुप्पे चुप्पे।
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L-13/Gram Shree/ग्राम श्री /Explanation /Class 9 A


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 फैली खेतों में दूर तलक,
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिससे रवि की किरणें
चांदी की सी उजली जाली।
तिनके के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भूतल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक।
रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूं में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिनियाँ हैं शोभाशाली।
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कली, तीसी नीली।
रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हंस रहीं सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकी
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी।
फिरती है रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते ही फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली
झर रहे ढ़ाक, पीपल के दल
हो उठी कोकिला मतवाली।
महके कटहल, मुकुलित जामुन
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नीम्बू, दारिम
आलू, गोभी, बैगन, मूली।
पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं
पक गये सुनहरे मधुर बेर
अंवली से तरु की डाल जड़ी
लहलह पालक, महमह धनिया
लौकी औ सेम फलीं फैलीं।
मखमली टमाटर हुए लाल
मिरचों की बड़ी हरी थैली।
बालू के सांपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपट छाई
तट पर तरबूजों की खेती
अंगुली की कंघी से बगुले
कलगी संवारते हैं कोई
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती है सोई।
हंसमुख हरियाली हिम आतप
सुख से अलसाए से सोये,
भीगी अंधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोये।
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम
जिस पर नीलम नभ आच्छादन
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन।
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L-12-Qaidi aur kokila क़ैदी और कोकिला Explanation -Class 9 A



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L-11-Raskhan ke savaiye -रसखान के सवैये Explanation -Class 9 / Q Ans



रसखान

Explanation of these सवैये are  in the video.

1.
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।
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  •  ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है?



उत्तर: कवि ने ब्रजभूमि के प्रति अपने प्रेम को कई रूपों में अभिव्यक्त किया है। कवि की इच्छा है कि वे चाहे जिस रूप में जन्म लें, हर रूप में ब्रजभूमि में ही वाह करें। यदि मनुष्य हों तो गोकुल के ग्वालों के रूप में बसना चाहिए। यदि पशु हों तो नंद की गायों के साथ चरना चाहिए। यदि पत्थर हों तो उस गोवर्धन पहाड़ पर होना चाहिए जिसे कृष्ण ने अपनी उंगली पर उठा लिया था। यदि पक्षी हों तो उन्हें यमुना नदी के किनार कदम्ब की डाल पर बसेरा करना पसंद हैं।
  • कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं?


उत्तर: कवि का कृष्ण के प्रति जो प्रेम है वह सभी सीमाओं से परे है। कवि को ब्रज की एक एक वस्तु में कृष्ण ही दिखाई देते हैं। इसलिए कवि ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारते रहना चाहता है।
  •  आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है?


उत्तर: कवि कृष्ण से इतना प्रेम करता है कि अपना पूरा जीवन उनके समीप बिताना चाहता है। इसलिए वह जिस रूप में संभव हो उस रूप में ब्रजभूमि में रहना चाहता है। इसलिए कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करना चाहता है।

  • कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन सा अलंकार है?


उत्तर:  ‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार  है।
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2.
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं॥
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं॥
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  • एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार हैं?


उत्तर: कवि हर वह काम करने को तैयार है जिससे वह कृष्ण के सान्निध्य में रह सके। इसलिए वह एक लकुटी और कम्बल पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है
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  • भाव स्पष्ट कीजिए:
  • कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।

उत्तर: कृष्ण के प्रेम के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। यहाँ तक कि ब्रज की कांटेदार झाड़ियों के लिए भी वे सौ महलों को भी निछावर कर देंगे।
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3.
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥
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काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए: 
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।



उत्तर:  'मुरली मुरलीधर 'में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है। 
 ' ब्रजभाषा ' का प्रयोग  है। 
इस एक  पंक्ति से कवि ने बहुत बड़ी बात व्यक्त की है। गोपियाँ कृष्ण का रूप धरने को तैयार हैं लेकिन उनकी मुरली को अपने होठों से लगाने को तैयार नहीं हैं।क्योंकि वह मुरली  सदैव कृष्ण के अधरों से लगी रहती है  और  गोपियों को वह अपनी  सौतन की तरह लगती है ।

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4.काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै॥
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै॥
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  • सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।



उत्तर: सखी ने गोपी से कृष्ण का रूप धारण करने का आग्रह किया था। वे चाहती हैं कि गोपी मोर मुकुट पहनकर, गले में माला डालकर, पीले वस्त्र धारण कर और हाथ में लाठी लेकर पूरे दिन गायों और ग्वालों के साथ घूमने को तैयार हो जाये। इससे सखियों को हर समय कृष्ण के रूप के दर्शन होते रहेंगे।
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  • गोपियाँ अपने आप को क्यों विवश पाती हैं?



उत्तर: कृष्ण की मुरली की धुन इतनी मोहक होती है कि उसे सुनने के बाद कोई भी अपना आपा खो देता है। गोपियाँ वह हर काम कर सकती हैं जिससे उनपर कृष्ण के पड़ने वाले प्रभाव को छुपा सकें। लेकिन उनका सारा प्रयास कृष्ण की मुरली की तान पर व्यर्थ हो जाता है। उसके बाद उनके तन मन की खुशी को छुपाना असंभव हो जाता है। इसलिए गोपियाँ अपने आप को विवश पाती हैं।
भाव स्पष्ट कीजिए:

  • माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।



उत्तर:  गोपियों को  डर है और ब्रजवासी भी कह रहे हैं कि जब कृष्ण की मुरली बजेगी तो उसकी टेर सुनकर गोपियों के मुख की मुसकान सम्हाले नहीं सम्हलेगी। उस मुसकान से पता चल जाएगा कि वे कृष्ण के प्रेम में कितनी डूबी हुई हैं।
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L-10-Vaakh-ललद्यद के वाख Class 9 A / Easy Explanation With Ques/Ans (2020)

ललद्यद के वाख Class 9 A / Easy Explanation With Ques/Ans (2020)
L-10-Vaakh-


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  •  ‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है? 
  • उत्तर: जीवन की नाव को खींचने के लिए किये जा रहे प्रयासों को रस्सी की संज्ञा दी गई है। यह रस्सी कच्चे धागे की बनी है अर्थात बहुत ही कमजोर है और कभी भी टूट सकती है।
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  •  कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?

    उत्तर: कवयित्री के प्रयास ऐसे  हैं जैसे कोई मिट्टी के कच्चे सकोरे में पानी भरने का प्रयास  कर रहा हो। ऐसे में पानी जगह से जगह से रिसने लगता है और सकोरा पूरा  भर नहीं पाता है। कवयित्री को लगता है कि इसी तरह भक्त के प्रयास निरर्थक साबित हो रहे हैं।
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     कवयित्री को ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?
    उत्तर: यहाँ पर भगवान से मिलने की इच्छा को 'घर जाने की चाह' बताया गया है।
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    बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?
    उत्तर: बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवयित्री  ने इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने का सुझाव दिया है। इसका मतलब है कि यदि आप सच्चे अर्थों  में भगवान को पाना चाहते हैं तो आपको लोभ और लालच से मोहभंग करना होगा।
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  •  ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?

    उत्तर:  कवयित्री का मानना है कि जो मनुष्य मंदिर-मस्जिद या विभिन्न देवी देवताओं में उलझा रहता है उसे ज्ञान नहीं मिल पाता है। जिसने आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया वही सच्चा ज्ञानी है।
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    ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?

    उत्तर: आई सीधी राह से, गई न सीधी राह्।
    सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह। 
  • ==============================
  • रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
    जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार्।
    पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
    जी में उठती रह रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे॥
    खा खाकर कुछ पाएगा नहीं,
    न खाकर बनेगा अहंकारी।
    सम खा तभी होगा समभावी,
    खुलेगी साँकल बंद द्वार की।
    आई सीधी राह से, गई न सीधी राह्।
    सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
    जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
    माझी को दूँ, क्या उतराई।
    थल थल में बसता है शिव ही,
    भेद न कर क्या हिंदू मुसलमां।
    ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
    वही है साहिब से पहचान॥
  • ==========================

L-9-Kabeer ke sabad -कबीर सबद Explanation -Class 9 A

L-9-Kabeer -Saakhiyan-साखियाँ Explanation -Class 9 A क्षितिज /प्रश्न उत्तर

================================== Sabad
= ============== मानसरोवर सुभग जल हंसा केलि कराहि
मुकताफल मुकता चुगै अब उड़ी अनत न जाही।
 ---------------------------

  • साखी दोहा छंद
     सहज और सरल  सधुक्कड़ी भाषा है
    केलि कराही में क वर्ण और मुकताफल मुकता' में म वर्ण की आवृति के कारण अनुप्रास अलंकार है /
  • पूरे दोहे में 'रूपक' अलंकार है।

प्रेमी ढ़ूँढ़त मैं फिरौ प्रेमी मिले न कोई
प्रेमी कौं प्रेमी मिले सब विष अमृत होई।
साखी दोहा छंद
 सहज और सरल  सधुक्कड़ी भाषा है 

दूसरी पंक्ति में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है

(यह अलंकार क्या है ?अतिशयोक्ति अलंकार का एक भेद जिसमें वर्णन रूपक की तरह होता है परंतु केवल उपमान का उल्लेख करके उपमेय का स्वरूप उपस्थित किया जाता है।)



हस्ती चढ़िये ज्ञान कौं सहज दुलीचा डारी
स्वान रूप संसार है भूंकन दे झख मारि।
रूपक    अलंकार

पखापखी के कारने सब जग रहा भुलान
निरपख होई के हरी भजै, सोई संत सुजान।

सोई संत सुजानमें अनुप्रास अलंकार

हिंदू मूया राम कही मुसलमान खुदाई
कहे कबीर सो जीवता जे दुहूँ के निकटि जाई।

काबा फिरि कासी भया रामहि भया रहीम
मोट चून मैदा भया रहा कबीरा जीम।

उँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होई
सुबरन कलस सुरा भरा, साधु निंदा सोई।

सबद

मोकों कहाँ ढ़ूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतहि मिलियो, पल भर की तालास में।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वांसो की स्वांस में।
=======

२. संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे।( सीबीएसई पाठ्यक्रम में नहीं है २०२१ )
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी॥
हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा।
जोग जुगति काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी॥
आँधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ॥
=========
प्रश्न -उत्तर
  • ‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है?
  • उत्तर: यहाँ पर ‘मानसरोवर’ से आशय यह संसार है जिसके मोह में  आदमी बंधा रहता है और सांसारिक  सुख को न छोड़ने के लोभ में वहाँ से निकलना ही नहीं चाहता है।
  • कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
  • उत्तर:  भक्त को सच्चा प्रेमी कहा गया है। एक सच्चे प्रेमी की तरह एक भक्त भी बिना कुछ पाने की लालसा लिये अपने आराध्य की आराधना करता है। सच्चे प्रेमी की तरह अपने प्रेम में पूरी तरह समर्पित रहता है।
  • तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार से ज्ञान को महत्व दिया है?
  • उत्तर: कवि का मानना है कि ज्ञान मिलना बहुत ही कठिन होता है क्योंकि अक्सर लोग सही ज्ञान को पहचान ही नहीं पाते हैं। यहाँज्ञान को किसी दूर की कौड़ी की तरह बताया गया है।
  • इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?
  • उत्तर: सच्चा संत वही होता है जो पक्षपात से दूर होता है। वह निष्पक्ष होकर अपने काम में तल्लीन होता है।
  • अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
  • उत्तर: इन दोहों में कवि ने धर्म की संकीर्ण परिभाषा की ओर संकेत किया है। कवि का मानना है कि भले ही धर्म अलग-अलग हों लेकिन सबका लक्ष्य ईश्वर से मिलन' होता है ।
  • किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
  • उत्तर: किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से नहीं बल्कि उसके कर्मों से होती है। इतिहास में ऐसे कई उदाहरणहैं जिनमें किसी गरीब परिवार में जन्मे व्यक्ति ने अपने अच्छे कर्मों से अपना नाम किया है। दूसरी ओर ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ किसी राजपुत्र ने अपने गलत कर्मों की वजह से अपने राजवंश का नाश  किया है।
  • मनुष्य ईश्वर को कहाँ कहाँ ढ़ूँढ़ता फिरता है?
  • उत्तर: मनुष्य ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, मजार, चर्च, गुरुद्वारा, मजार और तीर्थस्थानों में ढ़ूँढ़ता फिरता है।
  • कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
  • उत्तर: कबीर ने ईश्वर के प्राप्ति के कई प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है। कवि ने बताया है कि मंदिर, मस्जिद या तीर्थस्थलों पर जाने से कुछ नहीं मिलता। कवि ने यह भी बताया है कि बिना मतलब के आडंबरों या पूजा पाठ से कुछ भी हासिल नहीं होता।
  • कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
  • उत्तर: ज्ञान का आगमन उस क्षणिक अवसर की तरह होता है जो तेजी से आता है और उतनी ही तेजी से हमसे बहुत दूर चला जाता है। सामान्य हवा तो हमेशा हमारे चारों ओर व्याप्त रहती है। लेकिन आँधी तेजी से आती है और उतनी ही तेजी से चली जाती है। इसलिए कबीत ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से की है।
  • ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  • उत्तर: जब आँधी आती है,वह अपने साथ बहुत चीजों को उड़ा ले जाती है और कई चीजों को तहस नहस कर देती है। इसी तरह से जब ज्ञान की आँधी आती है तो वह हमारे अंदर कई बड़े परिवर्तन कर देती है।
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L 6 -Premchand ke phate Jutey-प्रेमचंद के फटे जूते- Class 9 Hindi A

L 6 -Premchand ke phate Jutey-प्रेमचंद के फटे जूते- Class 9-

Lesson Explanation

Kshitij  Bhag 1 {NCERT}

L-5. Nana Sahab ki putri Maina नाना साहब की पुत्री देवी मैना -Class 9 Hindi A





L-5. Nana Sahab ki putri Maina नाना साहब की पुत्री देवी मैना -Class 9 Hindi A

Video lecture

L-4-Sanwale sapnon ki yaad साँवले सपनों की याद -Class 9 Hindi A





L-4-Sanwale sapnon ki yaad साँवले सपनों की याद -Class 9 Hindi A

Lesson explanation by Alpana Verma

Book-Kshitij  Bhag 1 {NCERT}

L 3.Upbhoktavad ki sanskriti -उपभोक्तावाद की संस्कृति -Class 9 Hindi A





L 3.Upbhoktavad ki sanskriti  -उपभोक्तावाद की संस्कृति -

Kshitij Bhag 1-[NCERT]

Explained by Alpana Verma

Lhasa ki Or |ल्हासा की ओर|Class 9 Hindi |Kshitij|NCERT Question Answers

उज्जवल ने पूछा : -लेखक ने आस-पास गाँवों में गंडे ना बाँटने के लिए सुमति को पैसे क्यों दिए?
 Answer:- listen it at @23:24 लेखक ने गंडे ना बाँटने के लिए सुमति को पैसे दिए क्योंकि वे उसे आस-पास के गाँवों में उसके यजमानों के पास जाने से रोकना चाहते थे .अगर वह अपने यजमानों के पास जाता तो उसे काफी समय लग सकता था और लेखक को एक सप्ताह तक उसकी प्रतीक्षा करनी पड़ती .

Mam i have a question Lekhak ko bhikmange ke bhesh me yatra kyu karni padi? mam your explanation is really good i tell my all friends about you...thank you Waiting for your answer mam
अजय ,मेरे प्रयासों को सराहने हेतु धन्यवाद .आपने ध्यान से अगर विडियो देखी  -सुनी है  तब आपको उत्तर मिल जाता  क्योंकि विडियो के शुरू में यह बात बताई गयी है जो आपने पूछी है. विडियो को @1:02 पर     सुनें.
आपका प्रश्न है :लेखक को भिखमंगे के वेश में यात्रा क्यों करनी पड़ी?
उत्तर :लेखक ने जब  पहली बार   तिब्बत की  यात्रा की तब  ब्रिटिश भारत में  भारतीयों को तिब्बत जाने की अनुमति नहीं दी जाती थी।  भिखमंगे पर कोई संदेह भी नहीं करता  इसलिए लेखक को भीखमंगे के  वेश में अपनी पहचान छुपाकर जाना पड़ा था ।
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पाठ को सुनते हुए नोट्स बनाएँ,फिर कभी पाठ को  भूलेंगे नहीं .
Kshitij Bhag 1 {NCERT} Lesson 2 -Easy explanation

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प्रश्न-उत्तर
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1: थोङ्ला के पहले के आखिरी गाँव में पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका क्यों?

उत्तर: तिब्बत के लोग किसी भी अजनबी का स्वागत  मुक्त  भाव और खुले दिल से करते हैं। लेकिन बहुत कुछ लोगों की उस वक्त की मन:स्थिति पर निर्भर करता है। शाम के वक्त अधिकतर लोग छङ का  नशा करते हैं उसके  में धुत्त रहते हैं , उस समय उनका व्यवहार बदल सकता है। इसलिए पहली बार तो लेखक को ठहरने के लिए सही जगह मिल गई। लेकिन दूसरी बार शाम हो जाने के कारण उन्हें ठहरने के लिए सही जगह नहीं मिल पाई।
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2: उस समय तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था?

उत्तर: उस समय तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण, वहाँ के लोग बंदूक और पिस्तौल ऐसे रखते थे जैसे कि लोग 'लाठी' रखते हैं। ऐसे में किसी भी ओर से जानलेवा हमले का खतरा बना रहता था।
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 3: लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया?

उत्तर: लेखक गलत मोड़ की तरफ मुड़ गया था, जिसके कारण वह रास्ता भटक गया था। दोबारा से सही रास्ते पर आने में उसे कुछ समय लगा इसलिए वह अपने साथियों से पिछड़ गया था।
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4: लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका, परंतु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया?

उत्तर: लेखक को डर था कि सुमति अपने यजमानों से मिलने के चक्कर में दो -चार दिन उधर ही न बरबाद कर दे। ऐसे में बिना कारण ही यात्रा में देर हो जाती, इसलिए लेखक ने पहली बार सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका।
दूसरी बार लेखक को कुछ ऐसी पुस्तकें मिल गईं जिन्हें पढ़ने में वह डूब गया। वह उन्हें पढने के लिए स्वयं भी समय चाहता था  इसलिए उसने इस बार सुमति को मना नहीं किया।
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5: अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?

उत्तर: अपनी यात्रा के दौरान लेखक को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। एक बार उन्हें ठहरने के लिए सही जगह नहीं मिली। फिर भारी सामान पीठ पर लादकर पहाड़ी चढ़ाई पर चढ़ने में तकलीफ हुई। ठंड भी बहुत अधिक थी जिसकी लेखक को आदत नहीं थी इसलिए सर्दी   के कारण उसका बुरा हाल हो गया था । एक अन्य  बार  लेखक रास्ता ही भटक गया  जिसके कारण वह अपने साथियों से पिछे रह  गया।
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6: प्रस्तुत यात्रा-वृत्तांत के आधार पर बताइए कि उस समय का तिब्बती समाज कैसा था?

उत्तर: उस समय का तिब्बती समाज बड़ा ही सरल और मिलनसार था। वहाँ के सीधे -सादे लोग अजनबियों का भी स्वागत खुले दिल से करते थे। परन्तु पर्याप्त पुलिस आदि से   सुरक्षा  के अभाव में डाकुओं  द्वारा या अन्य लोगों द्वारा किसी की हत्या करना आम बात थी।
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7: ‘मैं अब पुस्तकों के भीतर था।‘
नीचे दिए गए विकल्पों में से कौन सा इस वाक्य का अर्थ बतलाता है:

लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
लेखक पुस्तकों की शेल्फ के भीतर चला गया।
लेखक के चारों ओर पुस्तकें ही थीं।
पुस्तक में लेखक का परिचय और चित्र छपा था।

उत्तर: (१) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
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8: सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?

उत्तर: सुमति के व्यक्तित्व की  विशेषताएँ -:

  • सुमति एक बौद्ध भिक्षु है और  बहुत ही   मिलनसार व्यक्ति है। 
  • वह बहुत लोकप्रिय  है और उसके यजमान हर गाँव में  हैं।
  • उसे  जब भी मौका मिलता है अपने यजमानों से जरूर मिलता है। 
  • वह बहुत मददगार है।


9: ‘हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था।‘ उक्त कथन के अनुसार हमारे आचार-व्यवहार के तरीके वेशभूषा के आधार पर तय होते हैं। आपकी समझ से यह उचित है अथवा अनुचित, विचार व्यक्त करें।

उत्तर:  अक्सर  किसी के प्रति हमारा व्यवहार उस व्यक्ति की वेशभूषा पर निर्भर करता है। अगर कोई व्यक्ति साफ -सुथरे और महंगे कपड़ों में होता है तो हम उसे अत्यधिक सम्मान देते हैं और उससे बात करना पसंद करते हैं । लेकिन यदि कोई व्यक्ति मैले -कुचैले,फाटे-पुराने गंदे  कपड़े पहने होता है तो हम उसकी अवमानना कर देते हैं। सच तो यह है कि ऐसा  व्यवहार किसी के द्वारा भी उचित  नहीं है, क्योंकि हम केवल  कपडे देखकर किसी के स्वभाव या व्यक्तित्व का अनुमान नहीं लगा सकते हैं ।
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L-2-Mere sang ki aurten मेरे संग की औरतें -व्याख्या सहित-Class 9 Hindi A

L-2-Mere sang ki aurten-Explanation-मेरे संग की औरतें -व्याख्या सहित-Class 9 Hindi A

Kritika Bhag 1 -NCERT



L-1-Is Jal Pralay mein - इस जल प्रलय में Class 9 Hindi -

L-1-Is Jal Pralay mein - इस जल प्रलय में Class 9 Hindi  A-Easy explanation

Kritika 1 NCERT



Thursday, October 19, 2017

खुसरो की पहेलियाँ और मुकरियाँ

 khusro ki paheliyan aur mukriyan

पहेली की परिभाषा: किसी वस्तु या विषय का ऐसा गूढ़ वर्णन जिसके आधार पर उत्तर देने या उस वस्तु का नाम बताने में बहुत सोच-विचार करना पड़े उसे पहेली या बुझौअल भी कहा जाता है।

बूझ पहेली (अंतर्लापिक)

1.बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया।

 खुसरो कह दिया उसका नाव, अर्थ करो नहीं छोड़ो गाँव।।

 उत्तर– दीया (दीपक)

2. इधर को आवे उधर को जावे। हर हर फेर काट वह खावे।।

  ठहर रहे जिस दम वह नारी। खुसरो कहें वारे को आरी।।

  उत्तर- आरी

3. एक नार वह दांत दंतीली। पतली दुबली छैल छबीली।।

  जब वा तिरियहिं लागै भूख। सूखे हरे चबावे रुख।।

  जो बताय वाही बलिहारी। खुसरो कहें वारे को आरी।।

  उत्तर- आरी

4. श्याम बरन और दांत अनेक। लचकत जैसी नारी।।

   दोनों हाथ से खुसरो खींचे। और कहें तू आरी।।

   उत्तर- आरी

5. एक नार जब बात कर आवे। मालिक अपने ऊपर बुलावे।।

   है वह नारी सब के गौ की। खुसरो नाम लिए तो चौंकी।।

   उत्तर- चौकी

6. टूटी टाट के धूप में पड़ी। जों जों सुखी हुई बड़ी।।

   उत्तर- बड़ी

7. फ़ारसी बोली आई ना। तुर्की ढूँढी पाई ना।।

  हिन्दी बोली आरसी आए। खुसरो कहें कोई न बताए।।

  उत्तर- आरसी (दर्पण, आइना)

8. पौन चलत वह दें बढ़ावे। जल पीवत वह जीव गँवावे।।

   है वह प्यारी सुंदर नार। नार नहीं पर है वह नार।।

   उत्तर- नार (आग)

9. एक नार करतार बनाई। न वह क्वारी न वह ब्याही।।

   सूहा रंगहि वाको रहै। भाबी-भाबी हर कोई कहै।।

   उत्तर- बिरबहुटी

10. एक पेड़ रेती में होवे। बिन पानी ही हरा रहे।।

    पानी दिये से वह जल जाय। आँख लगे अँधा हो जाए।।

    उत्तर-आक

11. घूम घुमेला लहँगा पहिने, एक पाँव से रहे खड़ी।

    आठ हात हैं उस नारी के, सूरत उसकी लगे परी ।।

    सब कोई उसकी चाह करे है, मुसलमान हिन्दू स्त्री।

    खुसरो ने यह कही पहेली, दिल में अपने सोच जरी।

    उत्तर– छतरी

13. सावन भादों बहुत चलत है, माघ पूस में थोड़ी।

    अमीर खुसरो यूँ कहें, तू बूझ पहेली मोरी।

    उत्तर- मोरी (नाली)

14. चार महीने बहुत चले हैं और महीने थोड़ी।

    अमीर खुसरो यों कहें तू बूझ पहेली मोरी।।

    उत्तर- मोरी (नाली)

15. अन्दर है और बाहर बहे। जो देखे सो मोरी कहें।।

    उत्तर- मोरी (नाली)

16. गोल मटोल और छोटा-मोटा, हर दम वह तो जमीं पर लोटा।

    खुसरो कहें नहीं है झूठा, जो न बूझे अकिल का खोटा।

    उत्तर- लोटा

17. खडा भी लोटा पडा पडा भी लोटा।

    है बैठा और कहे हैं लोटा।

    खुसरो कहे समझ का टोटा॥

    उत्तर- लोटा

18. नारी से तू नर भई और श्याम बरन भई सोय।

    गली-गली कूकत फिरे कोइलो-कोइलो लोय।।

    उत्तर- कोयल।

19. सरकंडो के ठटट बंधे, और बद लगे हैं भारी।

    देखी है पर चाखी नाहीं, लोग कहें हैं खारी।।

    उत्तर- टोकरी

20. घूम घाम के आई है, औ बद लगे हैं भारी।

    देखी है पर चाखी नहीं, अल्ला की कसम खाई।।

    उत्तर- खाई (खन्दक)

21. पान फूल वाके सर माँ है, लड़ें-कटें जब मद पर आहैं।

    चिट्टे काले वाके बाल, बुझ पहेली मेरे लाल।

     उत्तर- लाल (चिड़िया)

22. एक नार हाथे पर खासी, जानवर बैठा बीच खवासी।

    अता-पता मत पूछों हमसे, कुछ तो मरहम होगी।।

    उत्तर-अँगिया

23. एक नार चरन वाके चार, स्याम बरन, सुरत बदकार।

    बूझो तो मुश्क है, न बूझो तो गँवार।

    उत्तर- कस्तुरी

24. मुझको आवे यही परेख, पैर न गर्दन मोढ़ा एक।।

    उत्तर- मोढ़ा (बैठने का समान)

25. एक मंदिर के सहस्त्र दर, हर दर में तिरिया का घर।

    बीच-बीच वाके अमृत ताल, बूझ है इनकी बड़ी महाल।

    उत्तर- शहद का छत्ता

26. एक नार तरवर से उतरी, सर पर वाके पांव।

    ऐसी नार कुनार को, मैं ना देखन जाँव।

    उत्तर- मैंना।

27. हाड़ की देही उज् रंग, लिपटा रहे नारी के संग।

    चोरी की ना खून किया, वाका सर क्यों काट लिया।

    उत्तर- नाखून।

28. बीसों का सर काट लिया, ना मारा ना ख़ून किया।

    उत्तर- नाखून

29. जल-जल चलती बसती-गाँव, बस्ती में ना वाका ठांव।

    खुसरो ने दिया बाका नांव, बूझ अरथ नहिं छोड़ों गाँव।

    उत्तर- नाव

30. तरवर से इक तिरिया उतरी’ उसने बहुत रिझाया।

    बाप का उससे नाम जो पूछा’ आधा नाम बताया।

    आधा नाम पिता पर प्यारा’ बूझ पहेली मोरी।

    अमीर ख़ुसरो यूँ कहे’ अपना नाम नबोली।

    उत्तर—निम्बोली

31. एक नार तरवार से उतरी’ माँ सो जनम न पायो।

    बाप को नांव जो वासे पुछ्यों, आधो नांव बतायो।

    आधौ नाव वताओ खुसरो, कौन देश की बोली।

    वाको नाँव जो पुछ्यों मैने, अपने नांव न बोली।

    उत्तर-निबोली

32. एक नारी जोड़ी दिठी, जब बोले तब लागे मीठी।

    एक नहाय एक तापनहारा, चल खुसरो का कुच नकारा।

    उत्तर- नक्कारा

33. ऐन मैन है सीप की सूरत, आँखे देखी कहती है।

       अन खावे ना पानी पीवे, देखे से वह जीती है।

       दौड़-दौड़ जमी पर दौड़े, आसमान पर उड़ती है।

       एक तमाशा हमने देखा, हाथ पाँव नहिं रखती है।

       उत्तर- आँख

34. एक तरुवर का फल है तर, पहले नारी पीछे नर।

       व फल की यह देखो चाल, बाहर खाल औ भीतर बाल।

       उत्तर भुट्टा

35. चालीस मान नार रखावे, सुखी जैसी तीली।

       कहने को पर्दे की बीबी, पर वह रँग-रँगीली।।

        उत्तर- चिक (पर्दा)

36. अँधा बहिरा गूंगा बोले, गूंगा आप कहावे ।

       देख सफेदी होत अंगारा, गूंगे से भीड़ जावे।

       बांस का मंदिर वाका बासा, बासे का वह खाजा।

       संग, इले तो सिर पर रखें, वाको रानी तामें बैठा एक।

       उल्टा-सीधा घर फिर देखो, वाही एक का एक।

       भेद पहेली मैं कही तू, सुन ले मेरे लाल।

      अरबी हिन्दी फारसी, तीनों करो ख्याल।

      उत्तर- लाल

बिन-बूझ पहेली (बहिर्लापिका) – इस पहेली का उत्तर पहेली के बाहर होता है।

बिधना ने एक पुरुख बनाया। तिरिया दी औ नीर लगाया।।

चुक भई कुछ वासे ऐसी। देश छोड़ भयो परदेश।।1।।

उत्तर- आदमी

झिलमिल का कुंआ, रतन की क्यारी।

बताओं तो बताओं, नहीं तो दूँगी गारी।।2 ।।

उत्तर- दर्पण

एक नार पानी पर तेरे। उसका पुरुख लटका मरे।।

ज्यों-ज्यो खंदी गोटा खाय। त्यों-त्यों भडुआ मारा जाए।।3।।

उत्तर- घड़ी और घंटा

पानी में निसदिन रहे, जाके हाड़ मास।

काम करे तलवार, का फिर पानी में बास।।4।।  

उत्तर- कुम्हार का डोरा

एक जानवर जल में रहे, औ नाम में वाके खींच।

उछल वार खड़ा करे, जल का जल के बीच।।5।।

उत्तर- कुम्हार का डोरा

गोल हाल औ सुंदर मूरत, कला मुँह तिस पर खुबसूरत।

उसको जो हो महरम बूझे, सीना देख पिरोना सूझे।।6।।

उत्तर-छाती

एक रुख में अचरज देखा, दाल घनी देखलावे।

एक है पत्ता वाके ऊपर, माथ छुवे कुम्हलावे।

सुंदर वाकी छाँव है, औ सुंदर वाको रूप।

खुला रहे औ नहिं कुम्ह्लावे, जों-जों लागे धूप।।7।।

उत्तर- छाता

बालों बाँधी एक छिनाल, नित वो रहती खोले बाल।

पी को छोड़ नफ़र से राजी, चतुरा हो सो जीते बाजी।।8।।

उत्तर- चुनरी

डाला था सब को मन भाया, टांग उठाकर खेल बनाया।

कमर पकड़ का दिया ढकेल, जब होवे वह पूरा खेल।।9।।

उत्तर- झूला

क्या करूं बिन पाँव के, तुझे ले गया बिन सिर का।

क्या करू लंबी दूँम के, तुझे खा गय बिना चोंच के का लड़का।।10।।

उत्तर-जाल

बिन सिर का निकला चोरी को, बिन हथ पकड़ा जाए।

दौड़ा वह बिन पाँव के, बिन सिर का लिए जाय।।11।।

उत्तर- जाल

ताना बाना जल गया, जला नहीं एक ताग।

घर का छोर पकड़ा गया, घर में मोरी से भागा।।12।।

उत्तर- जाल

एक नार कुँए में रहे, वाका नीर खेत में बहे।

जो कोई वाके नीर को चाखे, फिर जीवन की आस न राखे।।13।।

उत्तर – तलवार

चाम मांस वाके नहीं नेक, हाड़-हाड़ में वाके छेद।

मोहि अचंभो आवत ऐसे, वामे जीव बसत है कैसे।।14।।

उत्तर – पिंजड़ा

एक पुरुष और सहसो नार, जले पुरुख देखे संसार।

बहुत जले औ होवे राख, तब तिरियाँ की होवे साख।।15।।

उत्तर- हंडिया

एक पुरुख और नौलाख नारी, सेज चढ़ी वह तिरिया सारी।

जले पुरुख देखे संसार, इन तिरियों का यही सिंगार।।ˎ16।।

उत्तर-हंडिया

सर पर जटा गले में झोली, किसी गुरु का चेला है।

भर-भर झोली घर को धावै, उसका नाम पहेला है।।17।।

उत्तर- भुट्टा

आगे-आगे बहिना आई, पीछे-पीछे भइया।

दाँत निकाले बाबा आए, बुरका ओढ़े मइया।।18।।

उत्तर– भुट्टा

एक नार नौरंगी चंगी, वह भी नार कहावे।

भांति-भाँती के कपड़े पहिने, लोगों को तरसावे।।19।।

उत्तर- बदली

भांति-भांति के देखी नारी, नीर भारी है गोरी काली।

ऊपर बसे और जग धावे, रच्छा करे जब नीर बहावे।।20।।

उत्तर- बदली

है वह नारी सुंदर नार, नार नहीं पर वह है नार।

दूर से सब को छवि दिखलावे, हाथ किसी के कभू न आवे।।21।।

उत्तर- बिजली आसमान

देख सखि पी की चतुराई, हाथ लगावत चोरी आई।।22।।

उत्तर- आई

उज्जवल अति वह मोती बरनी, पाये कंत दिए मोहि धरनी।

जहाँ धरि थी वहाँ न पाई, हाट-बाजार सभी ढूढ़ि आई।

सुनों सखि अब कीजै क्या, पी माँगे ती दीजै क्या?23

उत्तर- ओला

एक नार दो को ले बैठी, टेढ़ी होक बिल में बैठी।

जिसके पैठे उसे सुहाय, खुसरो उसके बल-बल जाए।।24।।

उत्तर- पायजामा

एक नार जाके मुँह सात, सो हम देखि बड़ी जात।

आधा मानुस निगले रहे, आँखों देखि खुसरू कहें।।25।।

स्याम बरन की है एक नारी, माथे ऊपर लागै प्यारी।

जो मानुस इस अरथ को खोले, कुत्ते की वह बोली बोले।।26।।

उत्तर – भौं (भौंए आँख के ऊपर होती हैं।)

आवे तो अँधेरी लावे, जावे तो सब सुख ले जावे।

क्या जानूं वह कैसा है, जैसा देखो वैसा है।।27।।

उत्तर- आँख

एक थाल मोती से भरा। सबके सिर पर औंधा धरा।

चारों ओर वह थाली फिरे। मोती उससे एक न गिरे॥28।।

उत्तर– आकाश

एक बुढ़िया शैतान की खाला। सिर सफेद औ मुहँ है काला।।

लौंड़े घेरे है वह नार। लड़के रखे हैं उससे प्यार।।

उछले कूदे नाचे वो। आग लगे उस बुढ़िभस को।।29।।

उत्तर- आक की बुढ़िया

एक नार पिया को भानी, तन वाकी सगरा ज्यों पानी।

आब रहे पर पानी नाही, पिया को राखे हिरदय माँह।

जब पी को वह मुख दिखलावे, आपहि सगरी पी हो जावे।।30।।

उत्तर- आईना

आना जाना उसका भाए, जिस घर जाए लकड़ी खाए।।31।।

उत्तर- आरी

जा घर लाल बलैया जाय, ताके घर में दुंद मचाय।

लाखन मान पानी पी जाए, धरा ढका सब धार का खाय।।32।।

उत्तर- आग

एक पुरुष जब मद पर आय, लाखों नारी संग लपटाय।

जब वह नारी मद पर आय, तब वह नारी नर कहलाय॥33।।

उत्तर- आम

अर्थ तो उसका बुझेगा, मुँह देखो तो सूझेगा॥34।।

उत्तर आईना

सामने आय, कर दे दो, मारा जाय, न जख्मी हो॥35।।

उत्तर- आईना

हाथ में लीजै, देखा कीजै ॥36।।

उत्तर- आईना

गोरी सुन्दर पातली, केहर काले रंग।

ग्यारह देवर छोड़ कर, चली जेठ के संग।।37।।

उत्तर- अरहर की दाल।

आग लगे फूले फले, सींचत जावे सुख।

मैं तोहि पूछों ऐ सखी, फूल के भीतर रुख।।38।।

उत्तर- अनार (आतिशबाजी)

रात समय एक सूहा आया, फूलों-पातों सबको भाया।

आग दिए वह होय रुख, पानी दिए वह जाए सुख॥39।।

उत्तर- अनार (आतिशबाजी)

जल से गाढो थल धरो, जल देखे कुम्हिलाय।

लाओ बसुन्दर फूँक दे जो, अमरवेल हो जाए॥40।।

उत्तर- ईट

बाँस बरेली से एक नारी, लाई जुल्मी मार कटारी।

पी कुछ उसके कान में फूँके, बोली वह सुन पी के मुँह के।

आह पिया यह कैसी किनी, आग विरह की भड़का दिनी।।41।।

उत्तर- बाँसुरी

एक राजा की अनोखी रानी, नीचे से वह पीवे पानी।।42।।

उत्तर- दिए की बत्ती

एक नार ने अचरज किया। साँप मार पिंजरे में दिया।

ज्यों-ज्यों साँप ताल को खाए। सूखै ताल साँप मरि जाए॥43।।

उत्तर– दीये की बत्ती

आगे से वह गाँठ गठोला, पीछे से वह टेढ़ा।

हाथ लगाए कहर खुदा का, बूझ पहेला मेरा।।44।।

उत्तर- बिच्छू

एक अचम्भा देखो चाल, सुखी लकड़ी लागा फल।

जो कोई इस फल खावें, पेड़ छोड़ कहि और न जावे।।45।।

उत्तर- चाकू का फल

उज्जवल बरन अधीन तन, एक चित्त दो ध्यान।

देखत मैं तो साधु है, पर निपट पार की खान।।46।।

उत्तर- बगुला (पक्षी)

एक गाँव में सहदा कुँए, कुँए-कुँए पनिहार।

मुरख तो जाने नही, पर निपट पाप की खान।।47।।

उत्तर- बर्र या शहद का छाता

श्याम बरन पीताम्बर काँधे, मुरलीधर ना होए।

बिन मुरली वह नाद करत है, बिरला बूझे कोय।।48।।

उत्तर- भौंरा

अचरज बँगला एक बनाया, ऊपर नीव तरे घर छाया।

बाँस न बल्ला बंधन घने, कह खुसरो कैसे घर बने।।49।।

उत्तर- बए का घोसला

एक नार करतार बनाई, सूहा जोड़ा पहिन के आई।

हाथ लगाए वह शर्माय, या नारी को चतुर बताय।।50।।

उत्तर- बिरबहुटी

एक गुनी ने ये गुन कीना, हरियल पिंजरे में दे दीना।
देखो जादूगर का कमाल, डारे हरा निकाले लाल।।51।।
उत्तर-पान

हरा रूप है निज वह बात, मुक्ख में धरे दिखावे जता।

तीन वस्तु से अधिक पीआर, जान देय सबही नर-नार।

हर एक सभा का रखे मान, चतुराई का ठाठ पहिचान।।52।।

उत्तर- पान

अजब तरह की एक नार, वाका मैं करू विचार।

दिन वह रहे व्यक्ति के संग, लाग हरि निस वाके अंग।।53।।

उत्तर- परछाई

धूपों से वह पैदा होवे, छाँव देख मुरझाये।

एरी सखि मैं तुझसे पूंछू हवा लगे मर जाए।।54।।

उत्तर- पसीना

सोने में वह नार कहावे, बिना कसौटी बाण दिखावे॥55।।

उत्तर-चारपाई

खेत में उपजे सब कोई खाय। घर में होवे घर खा जाय॥56।।

उत्तर– फूट

एक नार दो सींगो से, नित खेले उठ धिगों से।

जाके द्वार जाय के अडे, मानुस लिये बिना नहिं टले॥57।।

उत्तर-डोली

एक कन्या ने बालक जाय, वा बालक ने जगत सताया।

मारा मरे न काटा जाय, वा बालक को नारी खाए॥58।।

उत्तर- जाड़ा

दूध में दिया दही में लिया ॥59।।

उत्तर- जामन, खट्टा

काजल की कजलौटी उधो, पेडन का सिंगार।

हरि दाल पर मैना बैठी, है कोई बुझनहार।।60।।

उत्तर- जामुन

एक पुरुख बहुत गुन भरा, लेटा जागै सोवे खड़ा।

उलटा होकर डाले बेल, यह देखो करतार का खेल।।61।।

उत्तर- चरखा

एक नारी के हैं दो बालक, दोनों एकहि रंग।

एक फिर एक ठाढ़ा रहे, फिर भी दोनों संग।।62।।

उत्तर- चक्की।

मिला रहे तो नर रहे, अलग होय तो नार।

सोने का-सा रंग है, कोई चतुर विचार।।63।।

उत्तर- चना

तीनों तेरे हाथ में, मैं फिरूँ तेरे घात में।

मैं हर फिर मारूं तेरी, तू बूझ मेरी पहेली।।64।।

उत्तर- चौसर

चारों दिशा की सोलह रानी, तीन पुरुख के हाथ बिकानी।

मरना-जीना उसके हाथ, कभी न सोवे वह एक साथ।।65।।

उत्तर-चौसर

बाल नुचे कपड़े फटे मोती लिए उतार।

यह बिपदा कैसी बनी, जो नंगी कर दई नार।।66।।

उत्तर- भुट्टा (छल्ली)

सुख के कारज बना एक मंदर, पौन न जावे वा के अन्दर।

इस मंदर की रित दीवानी, बुझावे आग और ओढ़े पानी।।67।।

उत्तर- गुसलखाना

सूली चढ़ मुसकत करे, स्याम बरन एक नार।

दो से दस से बीस से, मिलत एक ही बार।।68।।

उत्तर- मिस्सी

स्याम बरन एक नार कहावे, ताँबा अपना नाम धरावे।

जो कोई वाको मुख पर लावे, रती से सेर हो जावे।।69।।

उत्तर- मिस्सी

नर से पैदा होवे नार, हर कोई उससे रखे प्यार।

एक ज़माना उसको खावे, खुसरो पेट में वह न जावे।।70।।

उत्तर- धूप

ऐन पहेली तीन का गुच्छा, जिसमे एक सुंदर है।

ऐ सखि मैं तुझ से पूंछू, दोबाहर एक अन्दर है।।71।।

उत्तर- डोली

श्याम बरन औ सोहनी, फूलन छाई पीठ।

सब सूरन के गले परत है, ऐसी बन गई ढीठ।।72।।

उत्तर- ढाल

लोहे के चने, दांत तले पाते है उसको।

खाया वह नहीं जाता, पर खाते है उसको।।73।।

उत्तर- रूपया

दानाई से दांत उस पै, लगाता नहीं कोई।

सब उसको भुनाते है, पै खाता नहीं कोई।।74।।

उत्तर- रुपया

चन्द्रबदन जख्मी तन, पाँव बिना वह चलता।

अमीर खुसरो यों कहें, वह होले-होले चलता है।।75।।

उत्तर- रुपया

एक राजा ने महल बनाया, एक थम पर वाने बँगला छाया।

भोर भई जब बाजी बम, नीचे बँगला ऊपर थम।।76।।

उत्तर- मथनी, रही, बिलौनी

एक नारी के सार पर नार, पीके लगत में खड़ी लाचार।

सीस धुनें औ चले न चोर, रो-रो कर वह करे है भोर।।77।।

उत्तर- दिये की बाती

मोटा पतला सब को भावे, दो मिठों का नाम धरावे।।78।।

उत्तर- शक्करकंद

एक नार ने अचरज किया। साँप मार पिंजरे में दिया।
ज्यों-ज्यों साँप ताल को खाए। सूखै ताल साँप मरि जाए॥79।।
उत्तर- दीये की बत्ती

जब काटो तब ही बढ़े, बिन काटे कुम्हिलाय।

ऐसी अद्भूत नार का, अंत न पायो जाय।।80।।

उत्तर- दिये की बाती

एक पुरुष का अचरज लेख, मोती फलत आँखों देखा।

जहाँ से उपजे वहाँ समाय, जो फल गिरे सो जल-जल जाए।।81।।

उत्तर- फव्वारा

जब से तरुवर उपजा एकए, पात नहीं पर डाल अनेक।

इस तरुवर की शीतल छाया, नीचे एक न बैठन पाया।।82।।

उत्तर- फव्वारा

बात की बात ठठोली की ठठोली, मरद की माँग औरत ने खोली।।83।।

उत्तर- ताल

भीतर चिलमन बाहर चिल्माब, बीच कलेजा धड़के।

अमीर खुसरो यों कहें, वह दो-दो अंगुल सरके।।84।।

उत्तर- कैँची

आदि कटे से सबको पाले। मध्य कटे से सबको घाले।
अन्त कटे से सबको मीठा। खुसरो वाको ऑंखो दीठा॥85।।
उत्तर- काजल

जल कर उपजे जल में रहे, आँखों देखा खुसरो कहें।।86।।

उत्तर- काजल

आधा मटका सारा पानी, जो बुझ सो बड़ा गियानी।।87।।

उत्तर- काजल

एक नार चातुर कहलावे, मुरख को ना पास बुलावे।

चातुर मरद जो हाथ लगावे, खोल सतर वह आप दिखावे।।88।।

उत्तर- पुस्तक

कीली पर खेती कर, औ पेड़ में दे दे आग।

रास ढ़ोय घर में रखे, रह जाए है राख।।89।।

उत्तर- कुम्हार

माटी रौदूँ चक धर्रूँ, फेर्रूँ बारम्बर।

चातुर हो तो जान ले मेरी जात गँवार।।90।।

उत्तर– कुम्हार

एक पुरुख ने ऐसी करी, खूंटी ऊपर खेती करी।

खेती बारि दई जलाय, वाई के ऊपर बैठा खाय।।91।।

उत्तर-कुम्हार

चार अंगुल का पेड़, सवा मन का पत्ता।

फल लागे अलग अलग, पक जाए इकट्ठा।।92।।

उत्तर- कुम्हार की चाक

अंगूठे-सी जड़ चौड़ा पात, छोटे-बड़े फल एक ही साथ।।93।।

उत्तर- कुम्हार की चाक

गाँठ गंठीला रंग रंगीला, एक पुरुख हम देखा।

मरद इस्तरी उसको रखें, उसका क्या कहूँ लेखा।।94।।

उत्तर- कंठा

एक कहानी मैं कही कहूँ, तू सुनले मेरे पूत।

बिना परों वह उड़ गया, बाँध गले में सूत ।।95।।

उत्तर- पतंग

नारी काट के नर किया, सब से रहे अकेला।

चलों सखि वां चाल के देखें, नर-नारी का मेला।।96।।

उत्तर- कुआँ

अंबर चढ़ें न भू गिरे, धरती धरे न पाँव।

चाँद-सूरज ओझल बसे, वाका क्या है नाँव।।97।।

उत्तर- गुलर का कीड़ा

उकडू बैठक मारण लगा, बीच कलेजा धड़के।

अमीर खुसरो यों कहें, वह दो-दो अंगुल सरके ।।98।।

उत्तर- मूठ, जाद टोनका

एक जानवर रंग रंगीला, बिना मारे वह रोवे।

उस के सिर पर तीन तिलाके, बिन बताए सोवे।।99।।

उत्तर- मोर

सर पर जाली, पेट है खाली, पसली देख एक-एक निराली।।100।।

उत्तर- मोढ़ा, मूढा

बाँस करे ठांय-ठांय, नदी को कंगु आया।

कँवल का-सा फूल जैसे, अंगुल-अंगुल जाय।।101।।

उत्तर- नाव

ऊपर से वह सुखी-साखी नीचे से पनहाई।

एक उतरे और चढ़े और एक ने टांग उठाई।।102 ।।

उत्तर- नाव

मोटा डंडा खाने लगी, यह देखो चतुराई।

अमीर खुसरो यों कहें तुम अरथ देव बताई।।103।।

उत्तर- नाव

मीठी-मीठी बात बनावे, ऐसा पुरुष वह किसको भावे।

बूढा बाला जो कोई आए, उसके आगे सीस नवाएँ।।104।।

उत्तर- नाई

नारी में नारी बसे, नारी में नर दोय।

दो नर में नारी बसे, बूझे बिरला कोय।।105।।

उत्तर- नथिया या नथ

एक नार दखिन से आई, है वह नर और नार कहाई।

काला मुँह कर जग दिखलावे, मोय हरे जब वाको पावे।।106।।

उत्तर- नगीना

लाल रंग वह चिपटा-चिपटा, मुँह करके काला।

थूक लगाकर दाब दिया, जब खसम का नाम निकाला।।107।।

उत्तर- नगीना

पंसारी का तेल, कुम्हार का बर्तन।

हाथी की सूंड, नवाब का पताका।।108।।

उत्तर-दिया

अग्नि कुंड में गिर गया, और जल में किया निकास।

परदे-परदे अवना, अपने पिया (प्रियतम) के पास।।109।।

उत्तर- हुक्के का धुँआ

एक नार वो औषध खाए, जिस पर ठुके वह मर जाए।

उसका पिया जब छाती लाए, अँधा नहीं तो काना हो जाए।।110।।

उत्तर- बन्दुक (निशाना लगाते समय एक आँख बंद कर लेते है)

नयी की ढ़ीली, पुरानी की तंग।

बूझो तो बूझो नहीं तो काना हो जाए।।111।।

उत्तर- चिलम

एक नार कुँए में रहे, वाका नीर खेत में बहे।

जो कोई वाके नीर को चाखे, फिर जीवन की आस न राखे।।112।।

उत्तर- तलवार

चाम मांस वाके नहीं नेक, हाड़ मास में वाके छेड़।

मोहि अचंभे आवत ऐसे, वामे जीव बसत है कैसे।।113।।

उत्तर- पिंजड़ा

आगे-आगे बहिना आई, पीछे-पीछे भइया।

दांत निकाले बाबा आए, बुरका ओढ़े मइया।।114।।

उत्तर- भुट्टा

अचरज बंगला एक बनाया, बाँस न बल्ला बंधन धने।

ऊपर नींव तरे घर छाया, कहे खुसरो घर कैसे बने।।115।।

उत्तर- बयाँ पंछी का घोंसला

खेत में उपजे सब कोई खाय, घर में होवे घर खा जाए।।114।।

उत्तर- फूट

दोहे पहेलियाँ

ऊपर से एक रंग हो, और भीतर चित्तीदार।

सो प्यारी बातें करे फिकर अनोखी नार।।1।।

उत्तर– सुपारी

एक परख है सुंदर मूरत, जो देखे वो उसी की सूरत।
फिक्र पहेली पायी ना, बोझन लागा आयी ना।।2।।
उत्तर- आईना

एक जानवर रंग रंगीला, बिना मारे वह रोवे।

उस के सिर पर तीन तिलाके, बिन बताए सोवे।।3।।

उत्तर- मोर।

बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया।

खुसरो कह दिया उसका नाव, अर्थ करो नहीं छोड़ो गाँव।।4।।

उत्तर – दिया।

नारी से तू नर भई, और श्याम बरन भई सोय।

गली-गली कूकत फिरे, कोइलो-कोइलो लोय।।5।।

उत्तर- कोयल।

बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया।
खुसरो कह दिया उसका नाँव, अर्थ कहो नहीं छाड़ो गाँव।।6।।
उत्तर—दिया

एक नारि के हैं दो बालक, दोनों एकहिं रंग।

एक फिरे एक ठाढ रहे, फिर भी दोनों संग॥7।।
उत्तर- चक्की


फ़ारसी बोली आईना, तुर्की सोच न पाईना।

हिन्दी बोलते आरसी, आए मुँह देखे जो उसे बताए।।8।।

उत्तर—दर्पण

एक गुनी ने ये गुन कीना, हरियल पिंजरे में दे दीना।

देखो जादूगर का कमाल, डारे हरा निकाले लाल।।9।।

उत्तर—पान

एक परख है सुंदर मूरत, जो देखे वो उसी की सूरत।

फिक्र पहेली पायी ना, बोझन लागा आयी ना।।10।।

उत्तर—आईना

आदि कटे से सबको पारे। मध्य कटे से सबको मारे।

अन्त कटे से सबको मीठा। खुसरो वाको ऑंखो दीठा।।11।।

उत्तर– काजल

एक नारि के हैं दो बालक, दोनों एकहिं रंग।

एक फिरे एक ठाढ रहे, फिर भी दोनों संग।।12।।

उत्तर– चक्की


मुकरियाँ :

मुकरी भी एक प्रकार का पहेली’ (अप्नहुति) है। परन्तु मुकरी को बूझने के लिए उसमे उसका उत्तर प्रश्नोत्तर के रूप में दिया रहता है।

जैसे- “लिपट लिपट के वा के संग सोई, छाती से छाती लगा के रोई।    दांत से दांत बजे तो ताड़ा ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा!

इस प्रकार ‘ऐ सखी साजन ना सखी जाड़ा।’ इस प्रकार उत्तर देने के कारण इसका नाम कह-मुकरी पड़ गया।  

अंगों मेरे लपटा आवे, वाका खेल मोरे मन भावे।

कर गहि, कुछ गहि, गहे मोरि माला।

ऐ सखी साजन ना सखी बाला।।1।।

आपने आये देत ज़माना है सोते को यहाँ जगाना।।

रंग और रस का फाग मचाया, आप भिजे औ मोहि भिजाया।।

वाको कौन न चाहे नेह, ऐ सखी साजन ना सखी मेह ।।2।।

नीला कंठ और पहिरे हरा, सीस मुकुट नीचे वह खड़ा।

देखत घटा अलापे जोर, ऐ सखी साजन ऐ सखी मोर।।3।।

देखत में है बड उजियारी, है सागर से आती प्यारी।

सिगरी रैना संग ले आती, ऐ सखी साजन ना सखी मोती।।4।।

उठा दोनों टांगन बीच डाला, नाप-टोल में है वह मंहगा।

मोल-टोल में है वह मंहगा, ऐ सखी साजन ना सखी लहँगा ।।5।।

धमक चढ़े सुध-बुध बिसरावै, दावत जांघ बहुत सुख पावै।

अति बलवंत दिनन को थोड़ा, ऐ सखी साजन ना सखी घोडा ।।6।।

आठ अंगुल का है वह असली, उसके हड्डी न उसके पसली।

लटाधारी गुरु का चेला, ए सखि साजन न सखि केला ।।7।।

देखन में वह गाँठ-गठीला, चाखन में वह अधिक रसीला।

मुख चूमू तो रस का भाँड, ऐ सखी साजन ऐ सखी गांडा।।8।।

टट्टी तोड़ के घर में आया, अरतन-बर्तन सब सरकाया।

खा गया पी गया दे गया बुत्ता, ऐ सखी साजन ऐ सखी कुत्ता।।9।।

दूर-दूर करू तो भगा जाए, छन बाहर छन आँगन आये।

देहलि छोड़ कहीं नहीं सुतता, ऐ सखी साजन ना सखी कुत्ता ।।10।।

सेज पड़ी मेरे आँखों आया, डाल सेज मोहि मजा दिखाया।

किससे कहूँ मजा मैं अपना, ऐ सखी साजन ना सखी सपना।।11।।

मेरा मुँह पोछे मोको प्यार करे, गरमी लगे तो बयार करे

ऐसा चाहत सुन यह हाल, ऐ सखी साजन ना सखी रुमाल।।12।।

द्वारे मोरे खड़ा रहे, धुप-छाव सब सर पर सहे।

जब देखो मोरि जाए भूख, ऐ सखी साजन ना सखी रुख।।13।।

एक सजन मोरे मन को भावै, जासे मजलिस बड़ी सुहावे।

सूत सुनू उठ दौड़ जाग, ऐ सखी साजन ना सखी राग।।14।।

सगरी रैन मोहे संग जागा, भोर भई तब बिछुड़न लागा।
वाके बिछुड़त फाटे हिया, ऐ सखी साजन ना सखी दीया (दीपक) ।।15।।

रैन पड़े जब घर में आवे, वाका आना मोको भावे।

ले पर्दा मैं घर में लिए, ऐ सखी साजन ना सखी दीया (दीपक) ।।16।।

अंगों मेरे लिपटा रहे, रंग-रूप का सब रस पिए।

मैं भर जनम न वाको छोड़ा, ऐ सखी साजन ना सखी चूड़ा।।17।।

मेरे घर में दीनी सेंध, धूलकत आवे जैसे गेंद।

वाके आए पड़त है सोर, ऐ सखी साजन ना सखी चोर।।18।।

नित मेरे घर वह आवत है, रात गए फिर वह जावत है।

फसत अमावास गोरि के फंदा, ऐ सखी साजन ना सखी चंदा।।19।।

द्वारे मोरे अलख जगावे, भभूत विरह के अंग लगावे।

सिंगी फूकत फिरै वियोगी, ऐ सखी साजन ना सखी जोगी।।20।।

टप-टप चुसत तन को रस’ बासे नाहि मेरा बस।

लट-लट के मैं गई पिंजरा, ऐ सखी साजन ना सखी जरा।।21।।

जोर भरी हैं जवानी दिखावत, हुमुकी मो पे चढ़ी आवत।

पेट में पाँव दे दे मारा, ऐ सखी साजन ना सखी जाड़ा।।22।।

लौंडा भेज उड़े बुलवाया, नंगी होकर मैं लगवाया।

हमसे उससे हो गया मेल, ऐ सखी साजन ना सखी तेल।।23।।

रात दिन जाको हैं गौन, खुले द्वार वह आवे भौंन।

वाको हर एक बतावे कौन, ऐ सखी साजन ना सखी पौन।।24।।

हाट-चलत में पड़ा जो पाया, खोटा-खड़ा न परखाया।

ना जानूँ वह हैगा कैसा ऐ सखी साजन ना सखी पैसा।।25।।

रात समय वह घर आवे, भोर भये वह घर उठि जावे।

यह अचरज है सबसे न्यारा, ऐ सखी साजन ना सखी तारा।।26।।

हर रंग मोहि लागत निको, वा बिन जग लागत है फीको।

उतरत चढ़त मरोरत अंग, ऐ सखी साजन ना सखी अंग।।27।।

कसके छाती पकडे रहे, मुँह से बोले न बात कहें।

ऐसा है कमिनी का रंगिया, ऐ सखी साजन ना सखी अँगिया।।28।।

बन रहे वह तिरछी खड़ी, देख सके मेरे पीछे पड़ी।

उन बिन मेरा कौन हवाल, ऐ सखी साजन ना सखी बाल।।29।।

पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो, जब उतरयो तो पसीना आयो।

सहम गई नहीं सकी पुकार, ऐ सखी साजन ना सखी बुखार।।30।।

आँख चलावे भौं मटकावे, नाच-कूद के खेल दिखावे।

मन में आवे ले जाऊं अन्दर, ऐ सखी साजन ना सखी बन्दर।।31।।

उछल-कूद के वह जो आया, धरा-टंगा वह सब कुछ खाया।

दौड़ झपट जा बैठा अन्दर, ऐ सखी साजन ना सखी बन्दर।।32।।  

छोटा-मोटा अधिक सोहाना, जो देखे सो होय दीवाना।

कभी वह बाहर कभी वह अन्दर ऐ सखी साजन ना सखी बन्दर।।33।।  

सब्ज रंग मेंहदी सा आवे, कर छुवत नैनन चढ़ जावे।

बैठत-उठत मरोरत अंग, ऐ सखी साजन ना सखी भंग।।34।।

शोभा सदा बढ़ावत हारा, आँखिन से छिन होत न न्यारा।

आठ पहर मेरो मनरंजन, ऐ सखी साजन ना सखी अंजन (काजल) ।।35।।

बरसा-बरस वह देस में आवे, मुँह से मुहँ लगा रस प्यावे।

वा खातिर मैं खरचे दाम, ऐ सखी साजन? न सखी आम।।36।।

वाको रगड़ा निको लागे, चढ़े जोबन पर मजा दिखावे।

उतरत मुँह का फीका रंग, ऐ सखी साजन ना सखी भंग।।37।।  

मो खातिर बाजार से आवे, करे सिंगार तब चूमा पावे।

मन बिगड़े नित राखत मान, ऐ सखी साजन ना सखी पान।।38।।  

बन-ठन के सिंगार करे, धर मुँह पर मुँह प्यार करे।

प्यार से मो पै देत है जान, ऐ सखी साजन ना सखी पान।।39।।  

वा बिन मोको चैन न आवे, वह मेरी तिस आन बुझावे।

है वह सब गुण बारहबानी, ऐ सखी साजन ना सखी पानी ।।40।।

आप हिले और मोहे हिलाए, वाका हिलना मोए मन भाए।

हिल-हिल के वह हुआ निसंखा, ऐ सखी साजन? ना सखी पंखा ।।41।।

छठे-छमासे मेरे घर आवे, आप हिले औ मोहे हिलाए।
नाम लेत मोहे आवेसंखा, ऐ सखी साजन? ना सखी पंखा!।।42।।

मद भर जोर हमें दिखलावे, मुफ्त मेरे छाती चढ़ आवे।

छूट गया सब पूजा-पाठ, ऐ सखी साजन ना सखी ताप।।43।।

घर आवे मुख घेरे-फेरे, दें दुहाई मन को हेरें,

कभू करत है मीठे बैन, कभी करत है रूखे नैन।

ऐसा जग में कोई होता, ऐ सखी साजन? न सखी तोता।।44।।

सब्ज रंग औ मुख पर लाली, उस प्रीतम गल कंठी काली।

भाव-सुभाव जंगल में होता, ऐ सखी साजन ना सखी तोता।।45।।    

अति सुरंग है रंग रंगीलो, है गुणवंत बहुत चटकीलो।
राम भजन बिन कभी न सोता, ऐ सखी साजन? ना सखी तोता!।।46।।

सुरुख सफेद है वाका रंग, साँझ फिरि मैं वाके संग।

गले में कंठा स्याह थे गेसू, ऐ सखी साजन ना सखी टेसू।।47।।

लिपट लिपट के वा के सोई, छाती से छाती लगा के रोई।
दांत से दांत बजे तो ताड़ा, ऐ सखी साजन? ना सखी जाड़ा!।।48।।

नंगे पाँव फिरन नहिं देत, पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत।
पाँव का चूमा लेत निपूता, ऐ सखी साजन? ना सखी जूता!।।49।।

ऊंची अटारी पलंग बिछायो, मैं सोई मेरे सिर पर आयो।
खुल गई अंखियां भयी आनंद, ऐ सखी साजन? ना सखी चांद!।।50।।

आधी रात गए आयो दईमारो, सब अभरन मेरे तन में उतारो

इतने में सखि हो गई भोर, ऐ सखी साजन ना सखी चोर।।51।।

मोको तो पूरा ही भावे, घटे-बढ़े पर मोय न सुहावे

ढूंढ-ढूंढ के लाई पूरा, क्यों सखी साजन न सखी चूड़ा।।52।।

सोलह मूहर या सेज पै लावै, हड्डी से हड्डी खटकावै।

खेलत खेल है बाजी बद कर, ऐ सखी साजन ना सखी चौसर।।53।।

एक सजन वह गहरा प्यारा, जा से घर मेरा उजियारा।

भोर भई तब बिदा मैं किया, ऐ सखी साजन ना सखी दिया।।54।।

वो आवै तो शादी होय, उस बिन दूजा और न कोय।
मीठे लागें वा के बोल, ऐ सखी साजन? ना सखी ढोल।।55।।

बखत-बेबखत मोए वा की आस, रात दिना ऊ रहत मो पास
मेरे मन को सब करत है काम, ऐ सखी साजन? ना सखी राम।।56।।


तन-मन-धन का वह है मालिक, वाने दिया मोरे गोद में बालक।

वासे निकसत जी को काम, ऐ सखी साजन ना सखी राम।।57।।

उकरु बैठ के बनावट है, सौ-सौ चक्कर दे के घुमावत है।

तब वाके रस की क्या देत बहार, ऐ सखी साजन ना सखी बहार।।58।।

अति सुंदर जग चाहे जाको, मैं भी देख भुलानी वाको।

देख रूप माया जो टोना, ऐ सखी साजन ना सखी सोना।।59।।

राह चलत मोरा अंचरा गहे, मेरी सुने न अपनी कहे।
ना कुछ मोसे झगडा-टंटा, ऐ सखी साजन ना सखी कांटा।।60।।

वाकी मोको तनिक न लाज, मेरे सब वह करत है काज

मूड से मोको देखत नंगी, ऐ सखी साजन ना सखी कंघी ।।61।।

बैशाख में मेरे ढिग आवत, मोको नंगी सेज पर डारत।

न सोवन न सोवन देत अधरमी, ऐ सखी साजन ना सखी गरमी।।62।।

चढ़ छाती मोको लचकावत, धोय हाथ मो पर चढ़ी आवत।

समर लगत देखत है सगरी, ऐ सखी साजन ना सखी गगरी।।63।।

हुमक-हुमक पकडे मोरी छाती, हँस-हँस मो वा खेल खिलाती।

चौंकी पड़ी जो पायो खड़का, ऐ सखि साजन ना सखि लड़का।।64।।

जब माँगू तब जल भरि लावे, मेरे मन की तपन बुझावे।
मन का भारी तन का छोटा, ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा।।65।।

जब मोरे मंदिर में आवे, सोते मुझको आँन जगावे।

पढ़त फिरत वह बिरह के अच्छर, ऐ सखि साजन ना सखि  मच्छर।।66।।

बेर-बेर सोवतहिं जगावे, ना जागूँ तो काटे खावे।
व्याकुल हुई मैं हक्की-बक्की, ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी।।67।।

आठ प्रहर मेरे संग रहे, मीठी प्यारी बातें करे।
श्याम बरन और राती नैंना, ऐ सखि साजन ना सखि! मैंना।।68।।

उमड़-घुमड़ कर वह जो आया, अन्दर मैने पलंग बिछाया।

मेरा वाका लगा नेह, ऐ सखि साजन ना सखि मेह ।।69।।

मुख मेरा चूमत दिन रात, होंठो लगत कहत नहीं बात।

जासे मेरी जगत में पत, ऐ सखि साजन ना सखि नथ।।70।।

सरब सलोना सब गुण नीका, वा बन सब जग लागे फीका।

वा के सर पर होवे कोन, ऐ सखी साजन ना सखी लोन (नामक) ।।71।।

हिलत-झूमत निको लागै, अपने ऊपर मोहि चढ़ावै।

मैं वाकी वह मेरा साथी, ऐ सखी साजन ना सखी हाथी।।72।।

एक तो वह देह का भारु, छोटे-नैन सदा मतवारु।

वह पिउ मेरे सेज का साथी, ऐ सखी साजन ना सखी हाथी ।।73।।

सगरी रैन छतियां पर राख, रूप रंग सब वा का चाख।

भोर भई जब दिया उतार, ऐ सखी साजन ना सखी हार।।74।।

अर्ध निशा वह आया भौन, सुंदरता बरने कवि कौन।
निरखत ही मन भयो अनंद, ऐ सखि साजन? ना सखि चंद! ।।75।।

खा गय पी गया दे गया बुत्ता, ऐ सखी साजन ना सखी कुत्ता।।75।।

जीवन सब जग जासौ कहै, वा बिनु नेक न धीरज रहै।

हरै छिनक में हिय की पीर, ऐ सखी साजन ना सखी नीर ।।76।।

बिन आये सबहीं सुक्ग भूले, आये ते अँग-अँग सब फूले।

सीरी भई लगावत छाती, ऐ सखी साजन ना सखी पाती।।77।।

राह चलत मोरा अंचरा गहे, मेरी सुने न अपनी कहें।

ना कुछ मोसे झगड़ा-टंटा, ऐ सखी साजन ना सखी काँटा।।78।।

सगरी रैन मिही संग जागा, भोर भई तब बिछुड़न लागा

उसके बिछुड़न फाटे हिया, ऐ सखी साजन ना सखी दिया (दीपक) ।।79।।

रात समय वह मेरे आवे, भोर भये वह घर उठि जावे
यह अचरज है सबसे न्यारा, ऐ सखी साजन? ना सखी तारा! ।।80।।

बेर-बेर सोवतहिं जगावे, ना जागूँ तो काटे खावे
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की, ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी! ।।81।।

आप हिले और मोहे हिलाए, वा का हिलना मोए मन भाए
हिल हिल के वो हुआ निसंखा, ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा! ।।82।।

आठ प्रहर मेरे संग रहे, मीठी प्यारी बातें करे।
श्याम बरन और राती नैंना, ऐ सखि साजन न सखि! मैंना।।।।83।।

सेज पड़ी मोरे आंखों आए, डाल सेज मोहे मजा दिखाए
किस से कहूं अब मजा में अपना, ऐ सखि साजन? ना सखि सपना! ।।84।।

जीवन सब जग जासों कहै, वा बिनु नेक न धीरज रहै
हरै छिनक में हिय की पीर, ऐ सखि साजन? ना सखि नीर! ।।85।।

नित मेरे घर आवत है,, रात गए फिर जावत है।
मानस फसत काऊ के फंदा, ऐ सखि साजन न सखि! चंदा।।86।।