khusro ki paheliyan aur mukriyan
पहेली की परिभाषा: किसी वस्तु या विषय का ऐसा गूढ़ वर्णन जिसके आधार पर उत्तर देने या उस वस्तु का नाम बताने में बहुत सोच-विचार करना पड़े उसे पहेली या बुझौअल भी कहा जाता है।
बूझ पहेली (अंतर्लापिक)
1.बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया।
खुसरो कह दिया उसका नाव, अर्थ करो नहीं छोड़ो गाँव।।
उत्तर– दीया (दीपक)
2. इधर को आवे उधर को जावे। हर हर फेर काट वह खावे।।
ठहर रहे जिस दम वह नारी। खुसरो कहें वारे को आरी।।
उत्तर- आरी
3. एक नार वह दांत दंतीली। पतली दुबली छैल छबीली।।
जब वा तिरियहिं लागै भूख। सूखे हरे चबावे रुख।।
जो बताय वाही बलिहारी। खुसरो कहें वारे को आरी।।
उत्तर- आरी
4. श्याम बरन और दांत अनेक। लचकत जैसी नारी।।
दोनों हाथ से खुसरो खींचे। और कहें तू आरी।।
उत्तर- आरी
5. एक नार जब बात कर आवे। मालिक अपने ऊपर बुलावे।।
है वह नारी सब के गौ की। खुसरो नाम लिए तो चौंकी।।
उत्तर- चौकी
6. टूटी टाट के धूप में पड़ी। जों जों सुखी हुई बड़ी।।
उत्तर- बड़ी
7. फ़ारसी बोली आई ना। तुर्की ढूँढी पाई ना।।
हिन्दी बोली आरसी आए। खुसरो कहें कोई न बताए।।
उत्तर- आरसी (दर्पण, आइना)
8. पौन चलत वह दें बढ़ावे। जल पीवत वह जीव गँवावे।।
है वह प्यारी सुंदर नार। नार नहीं पर है वह नार।।
उत्तर- नार (आग)
9. एक नार करतार बनाई। न वह क्वारी न वह ब्याही।।
सूहा रंगहि वाको रहै। भाबी-भाबी हर कोई कहै।।
उत्तर- बिरबहुटी
10. एक पेड़ रेती में होवे। बिन पानी ही हरा रहे।।
पानी दिये से वह जल जाय। आँख लगे अँधा हो जाए।।
उत्तर-आक
11. घूम घुमेला लहँगा पहिने, एक पाँव से रहे खड़ी।
आठ हात हैं उस नारी के, सूरत उसकी लगे परी ।।
सब कोई उसकी चाह करे है, मुसलमान हिन्दू स्त्री।
खुसरो ने यह कही पहेली, दिल में अपने सोच जरी।
उत्तर– छतरी
13. सावन भादों बहुत चलत है, माघ पूस में थोड़ी।
अमीर खुसरो यूँ कहें, तू बूझ पहेली मोरी।
उत्तर- मोरी (नाली)
14. चार महीने बहुत चले हैं और महीने थोड़ी।
अमीर खुसरो यों कहें तू बूझ पहेली मोरी।।
उत्तर- मोरी (नाली)
15. अन्दर है और बाहर बहे। जो देखे सो मोरी कहें।।
उत्तर- मोरी (नाली)
16. गोल मटोल और छोटा-मोटा, हर दम वह तो जमीं पर लोटा।
खुसरो कहें नहीं है झूठा, जो न बूझे अकिल का खोटा।
उत्तर- लोटा
17. खडा भी लोटा पडा पडा भी लोटा।
है बैठा और कहे हैं लोटा।
खुसरो कहे समझ का टोटा॥
उत्तर- लोटा
18. नारी से तू नर भई और श्याम बरन भई सोय।
गली-गली कूकत फिरे कोइलो-कोइलो लोय।।
उत्तर- कोयल।
19. सरकंडो के ठटट बंधे, और बद लगे हैं भारी।
देखी है पर चाखी नाहीं, लोग कहें हैं खारी।।
उत्तर- टोकरी
20. घूम घाम के आई है, औ बद लगे हैं भारी।
देखी है पर चाखी नहीं, अल्ला की कसम खाई।।
उत्तर- खाई (खन्दक)
21. पान फूल वाके सर माँ है, लड़ें-कटें जब मद पर आहैं।
चिट्टे काले वाके बाल, बुझ पहेली मेरे लाल।
उत्तर- लाल (चिड़िया)
22. एक नार हाथे पर खासी, जानवर बैठा बीच खवासी।
अता-पता मत पूछों हमसे, कुछ तो मरहम होगी।।
उत्तर-अँगिया
23. एक नार चरन वाके चार, स्याम बरन, सुरत बदकार।
बूझो तो मुश्क है, न बूझो तो गँवार।
उत्तर- कस्तुरी
24. मुझको आवे यही परेख, पैर न गर्दन मोढ़ा एक।।
उत्तर- मोढ़ा (बैठने का समान)
25. एक मंदिर के सहस्त्र दर, हर दर में तिरिया का घर।
बीच-बीच वाके अमृत ताल, बूझ है इनकी बड़ी महाल।
उत्तर- शहद का छत्ता
26. एक नार तरवर से उतरी, सर पर वाके पांव।
ऐसी नार कुनार को, मैं ना देखन जाँव।
उत्तर- मैंना।
27. हाड़ की देही उज् रंग, लिपटा रहे नारी के संग।
चोरी की ना खून किया, वाका सर क्यों काट लिया।
उत्तर- नाखून।
28. बीसों का सर काट लिया, ना मारा ना ख़ून किया।
उत्तर- नाखून
29. जल-जल चलती बसती-गाँव, बस्ती में ना वाका ठांव।
खुसरो ने दिया बाका नांव, बूझ अरथ नहिं छोड़ों गाँव।
उत्तर- नाव
30. तरवर से इक तिरिया उतरी’ उसने बहुत रिझाया।
बाप का उससे नाम जो पूछा’ आधा नाम बताया।
आधा नाम पिता पर प्यारा’ बूझ पहेली मोरी।
अमीर ख़ुसरो यूँ कहे’ अपना नाम नबोली।
उत्तर—निम्बोली
31. एक नार तरवार से उतरी’ माँ सो जनम न पायो।
बाप को नांव जो वासे पुछ्यों, आधो नांव बतायो।
आधौ नाव वताओ खुसरो, कौन देश की बोली।
वाको नाँव जो पुछ्यों मैने, अपने नांव न बोली।
उत्तर-निबोली
32. एक नारी जोड़ी दिठी, जब बोले तब लागे मीठी।
एक नहाय एक तापनहारा, चल खुसरो का कुच नकारा।
उत्तर- नक्कारा
33. ऐन मैन है सीप की सूरत, आँखे देखी कहती है।
अन खावे ना पानी पीवे, देखे से वह जीती है।
दौड़-दौड़ जमी पर दौड़े, आसमान पर उड़ती है।
एक तमाशा हमने देखा, हाथ पाँव नहिं रखती है।
उत्तर- आँख
34. एक तरुवर का फल है तर, पहले नारी पीछे नर।
व फल की यह देखो चाल, बाहर खाल औ भीतर बाल।
उत्तर भुट्टा
35. चालीस मान नार रखावे, सुखी जैसी तीली।
कहने को पर्दे की बीबी, पर वह रँग-रँगीली।।
उत्तर- चिक (पर्दा)
36. अँधा बहिरा गूंगा बोले, गूंगा आप कहावे ।
देख सफेदी होत अंगारा, गूंगे से भीड़ जावे।
बांस का मंदिर वाका बासा, बासे का वह खाजा।
संग, इले तो सिर पर रखें, वाको रानी तामें बैठा एक।
उल्टा-सीधा घर फिर देखो, वाही एक का एक।
भेद पहेली मैं कही तू, सुन ले मेरे लाल।
अरबी हिन्दी फारसी, तीनों करो ख्याल।
उत्तर- लाल
बिन-बूझ पहेली (बहिर्लापिका) – इस पहेली का उत्तर पहेली के बाहर होता है।
बिधना ने एक पुरुख बनाया। तिरिया दी औ नीर लगाया।।
चुक भई कुछ वासे ऐसी। देश छोड़ भयो परदेश।।1।।
उत्तर- आदमी
झिलमिल का कुंआ, रतन की क्यारी।
बताओं तो बताओं, नहीं तो दूँगी गारी।।2 ।।
उत्तर- दर्पण
एक नार पानी पर तेरे। उसका पुरुख लटका मरे।।
ज्यों-ज्यो खंदी गोटा खाय। त्यों-त्यों भडुआ मारा जाए।।3।।
उत्तर- घड़ी और घंटा
पानी में निसदिन रहे, जाके हाड़ मास।
काम करे तलवार, का फिर पानी में बास।।4।।
उत्तर- कुम्हार का डोरा
एक जानवर जल में रहे, औ नाम में वाके खींच।
उछल वार खड़ा करे, जल का जल के बीच।।5।।
उत्तर- कुम्हार का डोरा
गोल हाल औ सुंदर मूरत, कला मुँह तिस पर खुबसूरत।
उसको जो हो महरम बूझे, सीना देख पिरोना सूझे।।6।।
उत्तर-छाती
एक रुख में अचरज देखा, दाल घनी देखलावे।
एक है पत्ता वाके ऊपर, माथ छुवे कुम्हलावे।
सुंदर वाकी छाँव है, औ सुंदर वाको रूप।
खुला रहे औ नहिं कुम्ह्लावे, जों-जों लागे धूप।।7।।
उत्तर- छाता
बालों बाँधी एक छिनाल, नित वो रहती खोले बाल।
पी को छोड़ नफ़र से राजी, चतुरा हो सो जीते बाजी।।8।।
उत्तर- चुनरी
डाला था सब को मन भाया, टांग उठाकर खेल बनाया।
कमर पकड़ का दिया ढकेल, जब होवे वह पूरा खेल।।9।।
उत्तर- झूला
क्या करूं बिन पाँव के, तुझे ले गया बिन सिर का।
क्या करू लंबी दूँम के, तुझे खा गय बिना चोंच के का लड़का।।10।।
उत्तर-जाल
बिन सिर का निकला चोरी को, बिन हथ पकड़ा जाए।
दौड़ा वह बिन पाँव के, बिन सिर का लिए जाय।।11।।
उत्तर- जाल
ताना बाना जल गया, जला नहीं एक ताग।
घर का छोर पकड़ा गया, घर में मोरी से भागा।।12।।
उत्तर- जाल
एक नार कुँए में रहे, वाका नीर खेत में बहे।
जो कोई वाके नीर को चाखे, फिर जीवन की आस न राखे।।13।।
उत्तर – तलवार
चाम मांस वाके नहीं नेक, हाड़-हाड़ में वाके छेद।
मोहि अचंभो आवत ऐसे, वामे जीव बसत है कैसे।।14।।
उत्तर – पिंजड़ा
एक पुरुष और सहसो नार, जले पुरुख देखे संसार।
बहुत जले औ होवे राख, तब तिरियाँ की होवे साख।।15।।
उत्तर- हंडिया
एक पुरुख और नौलाख नारी, सेज चढ़ी वह तिरिया सारी।
जले पुरुख देखे संसार, इन तिरियों का यही सिंगार।।ˎ16।।
उत्तर-हंडिया
सर पर जटा गले में झोली, किसी गुरु का चेला है।
भर-भर झोली घर को धावै, उसका नाम पहेला है।।17।।
उत्तर- भुट्टा
आगे-आगे बहिना आई, पीछे-पीछे भइया।
दाँत निकाले बाबा आए, बुरका ओढ़े मइया।।18।।
उत्तर– भुट्टा
एक नार नौरंगी चंगी, वह भी नार कहावे।
भांति-भाँती के कपड़े पहिने, लोगों को तरसावे।।19।।
उत्तर- बदली
भांति-भांति के देखी नारी, नीर भारी है गोरी काली।
ऊपर बसे और जग धावे, रच्छा करे जब नीर बहावे।।20।।
उत्तर- बदली
है वह नारी सुंदर नार, नार नहीं पर वह है नार।
दूर से सब को छवि दिखलावे, हाथ किसी के कभू न आवे।।21।।
उत्तर- बिजली आसमान
देख सखि पी की चतुराई, हाथ लगावत चोरी आई।।22।।
उत्तर- आई
उज्जवल अति वह मोती बरनी, पाये कंत दिए मोहि धरनी।
जहाँ धरि थी वहाँ न पाई, हाट-बाजार सभी ढूढ़ि आई।
सुनों सखि अब कीजै क्या, पी माँगे ती दीजै क्या?23
उत्तर- ओला
एक नार दो को ले बैठी, टेढ़ी होक बिल में बैठी।
जिसके पैठे उसे सुहाय, खुसरो उसके बल-बल जाए।।24।।
उत्तर- पायजामा
एक नार जाके मुँह सात, सो हम देखि बड़ी जात।
आधा मानुस निगले रहे, आँखों देखि खुसरू कहें।।25।।
स्याम बरन की है एक नारी, माथे ऊपर लागै प्यारी।
जो मानुस इस अरथ को खोले, कुत्ते की वह बोली बोले।।26।।
उत्तर – भौं (भौंए आँख के ऊपर होती हैं।)
आवे तो अँधेरी लावे, जावे तो सब सुख ले जावे।
क्या जानूं वह कैसा है, जैसा देखो वैसा है।।27।।
उत्तर- आँख
एक थाल मोती से भरा। सबके सिर पर औंधा धरा।
चारों ओर वह थाली फिरे। मोती उससे एक न गिरे॥28।।
उत्तर– आकाश
एक बुढ़िया शैतान की खाला। सिर सफेद औ मुहँ है काला।।
लौंड़े घेरे है वह नार। लड़के रखे हैं उससे प्यार।।
उछले कूदे नाचे वो। आग लगे उस बुढ़िभस को।।29।।
उत्तर- आक की बुढ़िया
एक नार पिया को भानी, तन वाकी सगरा ज्यों पानी।
आब रहे पर पानी नाही, पिया को राखे हिरदय माँह।
जब पी को वह मुख दिखलावे, आपहि सगरी पी हो जावे।।30।।
उत्तर- आईना
आना जाना उसका भाए, जिस घर जाए लकड़ी खाए।।31।।
उत्तर- आरी
जा घर लाल बलैया जाय, ताके घर में दुंद मचाय।
लाखन मान पानी पी जाए, धरा ढका सब धार का खाय।।32।।
उत्तर- आग
एक पुरुष जब मद पर आय, लाखों नारी संग लपटाय।
जब वह नारी मद पर आय, तब वह नारी नर कहलाय॥33।।
उत्तर- आम
अर्थ तो उसका बुझेगा, मुँह देखो तो सूझेगा॥34।।
उत्तर आईना
सामने आय, कर दे दो, मारा जाय, न जख्मी हो॥35।।
उत्तर- आईना
हाथ में लीजै, देखा कीजै ॥36।।
उत्तर- आईना
गोरी सुन्दर पातली, केहर काले रंग।
ग्यारह देवर छोड़ कर, चली जेठ के संग।।37।।
उत्तर- अरहर की दाल।
आग लगे फूले फले, सींचत जावे सुख।
मैं तोहि पूछों ऐ सखी, फूल के भीतर रुख।।38।।
उत्तर- अनार (आतिशबाजी)
रात समय एक सूहा आया, फूलों-पातों सबको भाया।
आग दिए वह होय रुख, पानी दिए वह जाए सुख॥39।।
उत्तर- अनार (आतिशबाजी)
जल से गाढो थल धरो, जल देखे कुम्हिलाय।
लाओ बसुन्दर फूँक दे जो, अमरवेल हो जाए॥40।।
उत्तर- ईट
बाँस बरेली से एक नारी, लाई जुल्मी मार कटारी।
पी कुछ उसके कान में फूँके, बोली वह सुन पी के मुँह के।
आह पिया यह कैसी किनी, आग विरह की भड़का दिनी।।41।।
उत्तर- बाँसुरी
एक राजा की अनोखी रानी, नीचे से वह पीवे पानी।।42।।
उत्तर- दिए की बत्ती
एक नार ने अचरज किया। साँप मार पिंजरे में दिया।
ज्यों-ज्यों साँप ताल को खाए। सूखै ताल साँप मरि जाए॥43।।
उत्तर– दीये की बत्ती
आगे से वह गाँठ गठोला, पीछे से वह टेढ़ा।
हाथ लगाए कहर खुदा का, बूझ पहेला मेरा।।44।।
उत्तर- बिच्छू
एक अचम्भा देखो चाल, सुखी लकड़ी लागा फल।
जो कोई इस फल खावें, पेड़ छोड़ कहि और न जावे।।45।।
उत्तर- चाकू का फल
उज्जवल बरन अधीन तन, एक चित्त दो ध्यान।
देखत मैं तो साधु है, पर निपट पार की खान।।46।।
उत्तर- बगुला (पक्षी)
एक गाँव में सहदा कुँए, कुँए-कुँए पनिहार।
मुरख तो जाने नही, पर निपट पाप की खान।।47।।
उत्तर- बर्र या शहद का छाता
श्याम बरन पीताम्बर काँधे, मुरलीधर ना होए।
बिन मुरली वह नाद करत है, बिरला बूझे कोय।।48।।
उत्तर- भौंरा
अचरज बँगला एक बनाया, ऊपर नीव तरे घर छाया।
बाँस न बल्ला बंधन घने, कह खुसरो कैसे घर बने।।49।।
उत्तर- बए का घोसला
एक नार करतार बनाई, सूहा जोड़ा पहिन के आई।
हाथ लगाए वह शर्माय, या नारी को चतुर बताय।।50।।
उत्तर- बिरबहुटी
एक गुनी ने ये गुन कीना, हरियल पिंजरे में दे दीना।
देखो जादूगर का कमाल, डारे हरा निकाले लाल।।51।।
उत्तर-पान
हरा रूप है निज वह बात, मुक्ख में धरे दिखावे जता।
तीन वस्तु से अधिक पीआर, जान देय सबही नर-नार।
हर एक सभा का रखे मान, चतुराई का ठाठ पहिचान।।52।।
उत्तर- पान
अजब तरह की एक नार, वाका मैं करू विचार।
दिन वह रहे व्यक्ति के संग, लाग हरि निस वाके अंग।।53।।
उत्तर- परछाई
धूपों से वह पैदा होवे, छाँव देख मुरझाये।
एरी सखि मैं तुझसे पूंछू हवा लगे मर जाए।।54।।
उत्तर- पसीना
सोने में वह नार कहावे, बिना कसौटी बाण दिखावे॥55।।
उत्तर-चारपाई
खेत में उपजे सब कोई खाय। घर में होवे घर खा जाय॥56।।
उत्तर– फूट
एक नार दो सींगो से, नित खेले उठ धिगों से।
जाके द्वार जाय के अडे, मानुस लिये बिना नहिं टले॥57।।
उत्तर-डोली
एक कन्या ने बालक जाय, वा बालक ने जगत सताया।
मारा मरे न काटा जाय, वा बालक को नारी खाए॥58।।
उत्तर- जाड़ा
दूध में दिया दही में लिया ॥59।।
उत्तर- जामन, खट्टा
काजल की कजलौटी उधो, पेडन का सिंगार।
हरि दाल पर मैना बैठी, है कोई बुझनहार।।60।।
उत्तर- जामुन
एक पुरुख बहुत गुन भरा, लेटा जागै सोवे खड़ा।
उलटा होकर डाले बेल, यह देखो करतार का खेल।।61।।
उत्तर- चरखा
एक नारी के हैं दो बालक, दोनों एकहि रंग।
एक फिर एक ठाढ़ा रहे, फिर भी दोनों संग।।62।।
उत्तर- चक्की।
मिला रहे तो नर रहे, अलग होय तो नार।
सोने का-सा रंग है, कोई चतुर विचार।।63।।
उत्तर- चना
तीनों तेरे हाथ में, मैं फिरूँ तेरे घात में।
मैं हर फिर मारूं तेरी, तू बूझ मेरी पहेली।।64।।
उत्तर- चौसर
चारों दिशा की सोलह रानी, तीन पुरुख के हाथ बिकानी।
मरना-जीना उसके हाथ, कभी न सोवे वह एक साथ।।65।।
उत्तर-चौसर
बाल नुचे कपड़े फटे मोती लिए उतार।
यह बिपदा कैसी बनी, जो नंगी कर दई नार।।66।।
उत्तर- भुट्टा (छल्ली)
सुख के कारज बना एक मंदर, पौन न जावे वा के अन्दर।
इस मंदर की रित दीवानी, बुझावे आग और ओढ़े पानी।।67।।
उत्तर- गुसलखाना
सूली चढ़ मुसकत करे, स्याम बरन एक नार।
दो से दस से बीस से, मिलत एक ही बार।।68।।
उत्तर- मिस्सी
स्याम बरन एक नार कहावे, ताँबा अपना नाम धरावे।
जो कोई वाको मुख पर लावे, रती से सेर हो जावे।।69।।
उत्तर- मिस्सी
नर से पैदा होवे नार, हर कोई उससे रखे प्यार।
एक ज़माना उसको खावे, खुसरो पेट में वह न जावे।।70।।
उत्तर- धूप
ऐन पहेली तीन का गुच्छा, जिसमे एक सुंदर है।
ऐ सखि मैं तुझ से पूंछू, दोबाहर एक अन्दर है।।71।।
उत्तर- डोली
श्याम बरन औ सोहनी, फूलन छाई पीठ।
सब सूरन के गले परत है, ऐसी बन गई ढीठ।।72।।
उत्तर- ढाल
लोहे के चने, दांत तले पाते है उसको।
खाया वह नहीं जाता, पर खाते है उसको।।73।।
उत्तर- रूपया
दानाई से दांत उस पै, लगाता नहीं कोई।
सब उसको भुनाते है, पै खाता नहीं कोई।।74।।
उत्तर- रुपया
चन्द्रबदन जख्मी तन, पाँव बिना वह चलता।
अमीर खुसरो यों कहें, वह होले-होले चलता है।।75।।
उत्तर- रुपया
एक राजा ने महल बनाया, एक थम पर वाने बँगला छाया।
भोर भई जब बाजी बम, नीचे बँगला ऊपर थम।।76।।
उत्तर- मथनी, रही, बिलौनी
एक नारी के सार पर नार, पीके लगत में खड़ी लाचार।
सीस धुनें औ चले न चोर, रो-रो कर वह करे है भोर।।77।।
उत्तर- दिये की बाती
मोटा पतला सब को भावे, दो मिठों का नाम धरावे।।78।।
उत्तर- शक्करकंद
एक नार ने अचरज किया। साँप मार पिंजरे में दिया।
ज्यों-ज्यों साँप ताल को खाए। सूखै ताल साँप मरि जाए॥79।।
उत्तर- दीये की बत्ती
जब काटो तब ही बढ़े, बिन काटे कुम्हिलाय।
ऐसी अद्भूत नार का, अंत न पायो जाय।।80।।
उत्तर- दिये की बाती
एक पुरुष का अचरज लेख, मोती फलत आँखों देखा।
जहाँ से उपजे वहाँ समाय, जो फल गिरे सो जल-जल जाए।।81।।
उत्तर- फव्वारा
जब से तरुवर उपजा एकए, पात नहीं पर डाल अनेक।
इस तरुवर की शीतल छाया, नीचे एक न बैठन पाया।।82।।
उत्तर- फव्वारा
बात की बात ठठोली की ठठोली, मरद की माँग औरत ने खोली।।83।।
उत्तर- ताल
भीतर चिलमन बाहर चिल्माब, बीच कलेजा धड़के।
अमीर खुसरो यों कहें, वह दो-दो अंगुल सरके।।84।।
उत्तर- कैँची
आदि कटे से सबको पाले। मध्य कटे से सबको घाले।
अन्त कटे से सबको मीठा। खुसरो वाको ऑंखो दीठा॥85।।
उत्तर- काजल
जल कर उपजे जल में रहे, आँखों देखा खुसरो कहें।।86।।
उत्तर- काजल
आधा मटका सारा पानी, जो बुझ सो बड़ा गियानी।।87।।
उत्तर- काजल
एक नार चातुर कहलावे, मुरख को ना पास बुलावे।
चातुर मरद जो हाथ लगावे, खोल सतर वह आप दिखावे।।88।।
उत्तर- पुस्तक
कीली पर खेती कर, औ पेड़ में दे दे आग।
रास ढ़ोय घर में रखे, रह जाए है राख।।89।।
उत्तर- कुम्हार
माटी रौदूँ चक धर्रूँ, फेर्रूँ बारम्बर।
चातुर हो तो जान ले मेरी जात गँवार।।90।।
उत्तर– कुम्हार
एक पुरुख ने ऐसी करी, खूंटी ऊपर खेती करी।
खेती बारि दई जलाय, वाई के ऊपर बैठा खाय।।91।।
उत्तर-कुम्हार
चार अंगुल का पेड़, सवा मन का पत्ता।
फल लागे अलग अलग, पक जाए इकट्ठा।।92।।
उत्तर- कुम्हार की चाक
अंगूठे-सी जड़ चौड़ा पात, छोटे-बड़े फल एक ही साथ।।93।।
उत्तर- कुम्हार की चाक
गाँठ गंठीला रंग रंगीला, एक पुरुख हम देखा।
मरद इस्तरी उसको रखें, उसका क्या कहूँ लेखा।।94।।
उत्तर- कंठा
एक कहानी मैं कही कहूँ, तू सुनले मेरे पूत।
बिना परों वह उड़ गया, बाँध गले में सूत ।।95।।
उत्तर- पतंग
नारी काट के नर किया, सब से रहे अकेला।
चलों सखि वां चाल के देखें, नर-नारी का मेला।।96।।
उत्तर- कुआँ
अंबर चढ़ें न भू गिरे, धरती धरे न पाँव।
चाँद-सूरज ओझल बसे, वाका क्या है नाँव।।97।।
उत्तर- गुलर का कीड़ा
उकडू बैठक मारण लगा, बीच कलेजा धड़के।
अमीर खुसरो यों कहें, वह दो-दो अंगुल सरके ।।98।।
उत्तर- मूठ, जाद टोनका
एक जानवर रंग रंगीला, बिना मारे वह रोवे।
उस के सिर पर तीन तिलाके, बिन बताए सोवे।।99।।
उत्तर- मोर
सर पर जाली, पेट है खाली, पसली देख एक-एक निराली।।100।।
उत्तर- मोढ़ा, मूढा
बाँस करे ठांय-ठांय, नदी को कंगु आया।
कँवल का-सा फूल जैसे, अंगुल-अंगुल जाय।।101।।
उत्तर- नाव
ऊपर से वह सुखी-साखी नीचे से पनहाई।
एक उतरे और चढ़े और एक ने टांग उठाई।।102 ।।
उत्तर- नाव
मोटा डंडा खाने लगी, यह देखो चतुराई।
अमीर खुसरो यों कहें तुम अरथ देव बताई।।103।।
उत्तर- नाव
मीठी-मीठी बात बनावे, ऐसा पुरुष वह किसको भावे।
बूढा बाला जो कोई आए, उसके आगे सीस नवाएँ।।104।।
उत्तर- नाई
नारी में नारी बसे, नारी में नर दोय।
दो नर में नारी बसे, बूझे बिरला कोय।।105।।
उत्तर- नथिया या नथ
एक नार दखिन से आई, है वह नर और नार कहाई।
काला मुँह कर जग दिखलावे, मोय हरे जब वाको पावे।।106।।
उत्तर- नगीना
लाल रंग वह चिपटा-चिपटा, मुँह करके काला।
थूक लगाकर दाब दिया, जब खसम का नाम निकाला।।107।।
उत्तर- नगीना
पंसारी का तेल, कुम्हार का बर्तन।
हाथी की सूंड, नवाब का पताका।।108।।
उत्तर-दिया
अग्नि कुंड में गिर गया, और जल में किया निकास।
परदे-परदे अवना, अपने पिया (प्रियतम) के पास।।109।।
उत्तर- हुक्के का धुँआ
एक नार वो औषध खाए, जिस पर ठुके वह मर जाए।
उसका पिया जब छाती लाए, अँधा नहीं तो काना हो जाए।।110।।
उत्तर- बन्दुक (निशाना लगाते समय एक आँख बंद कर लेते है)
नयी की ढ़ीली, पुरानी की तंग।
बूझो तो बूझो नहीं तो काना हो जाए।।111।।
उत्तर- चिलम
एक नार कुँए में रहे, वाका नीर खेत में बहे।
जो कोई वाके नीर को चाखे, फिर जीवन की आस न राखे।।112।।
उत्तर- तलवार
चाम मांस वाके नहीं नेक, हाड़ मास में वाके छेड़।
मोहि अचंभे आवत ऐसे, वामे जीव बसत है कैसे।।113।।
उत्तर- पिंजड़ा
आगे-आगे बहिना आई, पीछे-पीछे भइया।
दांत निकाले बाबा आए, बुरका ओढ़े मइया।।114।।
उत्तर- भुट्टा
अचरज बंगला एक बनाया, बाँस न बल्ला बंधन धने।
ऊपर नींव तरे घर छाया, कहे खुसरो घर कैसे बने।।115।।
उत्तर- बयाँ पंछी का घोंसला
खेत में उपजे सब कोई खाय, घर में होवे घर खा जाए।।114।।
उत्तर- फूट
दोहे पहेलियाँ
ऊपर से एक रंग हो, और भीतर चित्तीदार।
सो प्यारी बातें करे फिकर अनोखी नार।।1।।
उत्तर– सुपारी
एक परख है सुंदर मूरत, जो देखे वो उसी की सूरत।
फिक्र पहेली पायी ना, बोझन लागा आयी ना।।2।।
उत्तर- आईना
एक जानवर रंग रंगीला, बिना मारे वह रोवे।
उस के सिर पर तीन तिलाके, बिन बताए सोवे।।3।।
उत्तर- मोर।
बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया।
खुसरो कह दिया उसका नाव, अर्थ करो नहीं छोड़ो गाँव।।4।।
उत्तर – दिया।
नारी से तू नर भई, और श्याम बरन भई सोय।
गली-गली कूकत फिरे, कोइलो-कोइलो लोय।।5।।
उत्तर- कोयल।
बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया।
खुसरो कह दिया उसका नाँव, अर्थ कहो नहीं छाड़ो गाँव।।6।।
उत्तर—दिया
एक नारि के हैं दो बालक, दोनों एकहिं रंग।
एक फिरे एक ठाढ रहे, फिर भी दोनों संग॥7।।
उत्तर- चक्की
फ़ारसी बोली आईना, तुर्की सोच न पाईना।
हिन्दी बोलते आरसी, आए मुँह देखे जो उसे बताए।।8।।
उत्तर—दर्पण
एक गुनी ने ये गुन कीना, हरियल पिंजरे में दे दीना।
देखो जादूगर का कमाल, डारे हरा निकाले लाल।।9।।
उत्तर—पान
एक परख है सुंदर मूरत, जो देखे वो उसी की सूरत।
फिक्र पहेली पायी ना, बोझन लागा आयी ना।।10।।
उत्तर—आईना
आदि कटे से सबको पारे। मध्य कटे से सबको मारे।
अन्त कटे से सबको मीठा। खुसरो वाको ऑंखो दीठा।।11।।
उत्तर– काजल
एक नारि के हैं दो बालक, दोनों एकहिं रंग।
एक फिरे एक ठाढ रहे, फिर भी दोनों संग।।12।।
उत्तर– चक्की
मुकरियाँ :
मुकरी भी एक प्रकार का पहेली’ (अप्नहुति) है। परन्तु मुकरी को बूझने के लिए उसमे उसका उत्तर प्रश्नोत्तर के रूप में दिया रहता है।
जैसे- “लिपट लिपट के वा के संग सोई, छाती से छाती लगा के रोई। दांत से दांत बजे तो ताड़ा ऐ सखि साजन? ना सखि जाड़ा!
इस प्रकार ‘ऐ सखी साजन ना सखी जाड़ा।’ इस प्रकार उत्तर देने के कारण इसका नाम कह-मुकरी पड़ गया।
अंगों मेरे लपटा आवे, वाका खेल मोरे मन भावे।
कर गहि, कुछ गहि, गहे मोरि माला।
ऐ सखी साजन ना सखी बाला।।1।।
आपने आये देत ज़माना है सोते को यहाँ जगाना।।
रंग और रस का फाग मचाया, आप भिजे औ मोहि भिजाया।।
वाको कौन न चाहे नेह, ऐ सखी साजन ना सखी मेह ।।2।।
नीला कंठ और पहिरे हरा, सीस मुकुट नीचे वह खड़ा।
देखत घटा अलापे जोर, ऐ सखी साजन ऐ सखी मोर।।3।।
देखत में है बड उजियारी, है सागर से आती प्यारी।
सिगरी रैना संग ले आती, ऐ सखी साजन ना सखी मोती।।4।।
उठा दोनों टांगन बीच डाला, नाप-टोल में है वह मंहगा।
मोल-टोल में है वह मंहगा, ऐ सखी साजन ना सखी लहँगा ।।5।।
धमक चढ़े सुध-बुध बिसरावै, दावत जांघ बहुत सुख पावै।
अति बलवंत दिनन को थोड़ा, ऐ सखी साजन ना सखी घोडा ।।6।।
आठ अंगुल का है वह असली, उसके हड्डी न उसके पसली।
लटाधारी गुरु का चेला, ए सखि साजन न सखि केला ।।7।।
देखन में वह गाँठ-गठीला, चाखन में वह अधिक रसीला।
मुख चूमू तो रस का भाँड, ऐ सखी साजन ऐ सखी गांडा।।8।।
टट्टी तोड़ के घर में आया, अरतन-बर्तन सब सरकाया।
खा गया पी गया दे गया बुत्ता, ऐ सखी साजन ऐ सखी कुत्ता।।9।।
दूर-दूर करू तो भगा जाए, छन बाहर छन आँगन आये।
देहलि छोड़ कहीं नहीं सुतता, ऐ सखी साजन ना सखी कुत्ता ।।10।।
सेज पड़ी मेरे आँखों आया, डाल सेज मोहि मजा दिखाया।
किससे कहूँ मजा मैं अपना, ऐ सखी साजन ना सखी सपना।।11।।
मेरा मुँह पोछे मोको प्यार करे, गरमी लगे तो बयार करे
ऐसा चाहत सुन यह हाल, ऐ सखी साजन ना सखी रुमाल।।12।।
द्वारे मोरे खड़ा रहे, धुप-छाव सब सर पर सहे।
जब देखो मोरि जाए भूख, ऐ सखी साजन ना सखी रुख।।13।।
एक सजन मोरे मन को भावै, जासे मजलिस बड़ी सुहावे।
सूत सुनू उठ दौड़ जाग, ऐ सखी साजन ना सखी राग।।14।।
सगरी रैन मोहे संग जागा, भोर भई तब बिछुड़न लागा।
वाके बिछुड़त फाटे हिया, ऐ सखी साजन ना सखी दीया (दीपक) ।।15।।
रैन पड़े जब घर में आवे, वाका आना मोको भावे।
ले पर्दा मैं घर में लिए, ऐ सखी साजन ना सखी दीया (दीपक) ।।16।।
अंगों मेरे लिपटा रहे, रंग-रूप का सब रस पिए।
मैं भर जनम न वाको छोड़ा, ऐ सखी साजन ना सखी चूड़ा।।17।।
मेरे घर में दीनी सेंध, धूलकत आवे जैसे गेंद।
वाके आए पड़त है सोर, ऐ सखी साजन ना सखी चोर।।18।।
नित मेरे घर वह आवत है, रात गए फिर वह जावत है।
फसत अमावास गोरि के फंदा, ऐ सखी साजन ना सखी चंदा।।19।।
द्वारे मोरे अलख जगावे, भभूत विरह के अंग लगावे।
सिंगी फूकत फिरै वियोगी, ऐ सखी साजन ना सखी जोगी।।20।।
टप-टप चुसत तन को रस’ बासे नाहि मेरा बस।
लट-लट के मैं गई पिंजरा, ऐ सखी साजन ना सखी जरा।।21।।
जोर भरी हैं जवानी दिखावत, हुमुकी मो पे चढ़ी आवत।
पेट में पाँव दे दे मारा, ऐ सखी साजन ना सखी जाड़ा।।22।।
लौंडा भेज उड़े बुलवाया, नंगी होकर मैं लगवाया।
हमसे उससे हो गया मेल, ऐ सखी साजन ना सखी तेल।।23।।
रात दिन जाको हैं गौन, खुले द्वार वह आवे भौंन।
वाको हर एक बतावे कौन, ऐ सखी साजन ना सखी पौन।।24।।
हाट-चलत में पड़ा जो पाया, खोटा-खड़ा न परखाया।
ना जानूँ वह हैगा कैसा ऐ सखी साजन ना सखी पैसा।।25।।
रात समय वह घर आवे, भोर भये वह घर उठि जावे।
यह अचरज है सबसे न्यारा, ऐ सखी साजन ना सखी तारा।।26।।
हर रंग मोहि लागत निको, वा बिन जग लागत है फीको।
उतरत चढ़त मरोरत अंग, ऐ सखी साजन ना सखी अंग।।27।।
कसके छाती पकडे रहे, मुँह से बोले न बात कहें।
ऐसा है कमिनी का रंगिया, ऐ सखी साजन ना सखी अँगिया।।28।।
बन रहे वह तिरछी खड़ी, देख सके मेरे पीछे पड़ी।
उन बिन मेरा कौन हवाल, ऐ सखी साजन ना सखी बाल।।29।।
पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो, जब उतरयो तो पसीना आयो।
सहम गई नहीं सकी पुकार, ऐ सखी साजन ना सखी बुखार।।30।।
आँख चलावे भौं मटकावे, नाच-कूद के खेल दिखावे।
मन में आवे ले जाऊं अन्दर, ऐ सखी साजन ना सखी बन्दर।।31।।
उछल-कूद के वह जो आया, धरा-टंगा वह सब कुछ खाया।
दौड़ झपट जा बैठा अन्दर, ऐ सखी साजन ना सखी बन्दर।।32।।
छोटा-मोटा अधिक सोहाना, जो देखे सो होय दीवाना।
कभी वह बाहर कभी वह अन्दर ऐ सखी साजन ना सखी बन्दर।।33।।
सब्ज रंग मेंहदी सा आवे, कर छुवत नैनन चढ़ जावे।
बैठत-उठत मरोरत अंग, ऐ सखी साजन ना सखी भंग।।34।।
शोभा सदा बढ़ावत हारा, आँखिन से छिन होत न न्यारा।
आठ पहर मेरो मनरंजन, ऐ सखी साजन ना सखी अंजन (काजल) ।।35।।
बरसा-बरस वह देस में आवे, मुँह से मुहँ लगा रस प्यावे।
वा खातिर मैं खरचे दाम, ऐ सखी साजन? न सखी आम।।36।।
वाको रगड़ा निको लागे, चढ़े जोबन पर मजा दिखावे।
उतरत मुँह का फीका रंग, ऐ सखी साजन ना सखी भंग।।37।।
मो खातिर बाजार से आवे, करे सिंगार तब चूमा पावे।
मन बिगड़े नित राखत मान, ऐ सखी साजन ना सखी पान।।38।।
बन-ठन के सिंगार करे, धर मुँह पर मुँह प्यार करे।
प्यार से मो पै देत है जान, ऐ सखी साजन ना सखी पान।।39।।
वा बिन मोको चैन न आवे, वह मेरी तिस आन बुझावे।
है वह सब गुण बारहबानी, ऐ सखी साजन ना सखी पानी ।।40।।
आप हिले और मोहे हिलाए, वाका हिलना मोए मन भाए।
हिल-हिल के वह हुआ निसंखा, ऐ सखी साजन? ना सखी पंखा ।।41।।
छठे-छमासे मेरे घर आवे, आप हिले औ मोहे हिलाए।
नाम लेत मोहे आवेसंखा, ऐ सखी साजन? ना सखी पंखा!।।42।।
मद भर जोर हमें दिखलावे, मुफ्त मेरे छाती चढ़ आवे।
छूट गया सब पूजा-पाठ, ऐ सखी साजन ना सखी ताप।।43।।
घर आवे मुख घेरे-फेरे, दें दुहाई मन को हेरें,
कभू करत है मीठे बैन, कभी करत है रूखे नैन।
ऐसा जग में कोई होता, ऐ सखी साजन? न सखी तोता।।44।।
सब्ज रंग औ मुख पर लाली, उस प्रीतम गल कंठी काली।
भाव-सुभाव जंगल में होता, ऐ सखी साजन ना सखी तोता।।45।।
अति सुरंग है रंग रंगीलो, है गुणवंत बहुत चटकीलो।
राम भजन बिन कभी न सोता, ऐ सखी साजन? ना सखी तोता!।।46।।
सुरुख सफेद है वाका रंग, साँझ फिरि मैं वाके संग।
गले में कंठा स्याह थे गेसू, ऐ सखी साजन ना सखी टेसू।।47।।
लिपट लिपट के वा के सोई, छाती से छाती लगा के रोई।
दांत से दांत बजे तो ताड़ा, ऐ सखी साजन? ना सखी जाड़ा!।।48।।
नंगे पाँव फिरन नहिं देत, पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत।
पाँव का चूमा लेत निपूता, ऐ सखी साजन? ना सखी जूता!।।49।।
ऊंची अटारी पलंग बिछायो, मैं सोई मेरे सिर पर आयो।
खुल गई अंखियां भयी आनंद, ऐ सखी साजन? ना सखी चांद!।।50।।
आधी रात गए आयो दईमारो, सब अभरन मेरे तन में उतारो
इतने में सखि हो गई भोर, ऐ सखी साजन ना सखी चोर।।51।।
मोको तो पूरा ही भावे, घटे-बढ़े पर मोय न सुहावे
ढूंढ-ढूंढ के लाई पूरा, क्यों सखी साजन न सखी चूड़ा।।52।।
सोलह मूहर या सेज पै लावै, हड्डी से हड्डी खटकावै।
खेलत खेल है बाजी बद कर, ऐ सखी साजन ना सखी चौसर।।53।।
एक सजन वह गहरा प्यारा, जा से घर मेरा उजियारा।
भोर भई तब बिदा मैं किया, ऐ सखी साजन ना सखी दिया।।54।।
वो आवै तो शादी होय, उस बिन दूजा और न कोय।
मीठे लागें वा के बोल, ऐ सखी साजन? ना सखी ढोल।।55।।
बखत-बेबखत मोए वा की आस, रात दिना ऊ रहत मो पास
मेरे मन को सब करत है काम, ऐ सखी साजन? ना सखी राम।।56।।
तन-मन-धन का वह है मालिक, वाने दिया मोरे गोद में बालक।
वासे निकसत जी को काम, ऐ सखी साजन ना सखी राम।।57।।
उकरु बैठ के बनावट है, सौ-सौ चक्कर दे के घुमावत है।
तब वाके रस की क्या देत बहार, ऐ सखी साजन ना सखी बहार।।58।।
अति सुंदर जग चाहे जाको, मैं भी देख भुलानी वाको।
देख रूप माया जो टोना, ऐ सखी साजन ना सखी सोना।।59।।
राह चलत मोरा अंचरा गहे, मेरी सुने न अपनी कहे।
ना कुछ मोसे झगडा-टंटा, ऐ सखी साजन ना सखी कांटा।।60।।
वाकी मोको तनिक न लाज, मेरे सब वह करत है काज
मूड से मोको देखत नंगी, ऐ सखी साजन ना सखी कंघी ।।61।।
बैशाख में मेरे ढिग आवत, मोको नंगी सेज पर डारत।
न सोवन न सोवन देत अधरमी, ऐ सखी साजन ना सखी गरमी।।62।।
चढ़ छाती मोको लचकावत, धोय हाथ मो पर चढ़ी आवत।
समर लगत देखत है सगरी, ऐ सखी साजन ना सखी गगरी।।63।।
हुमक-हुमक पकडे मोरी छाती, हँस-हँस मो वा खेल खिलाती।
चौंकी पड़ी जो पायो खड़का, ऐ सखि साजन ना सखि लड़का।।64।।
जब माँगू तब जल भरि लावे, मेरे मन की तपन बुझावे।
मन का भारी तन का छोटा, ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा।।65।।
जब मोरे मंदिर में आवे, सोते मुझको आँन जगावे।
पढ़त फिरत वह बिरह के अच्छर, ऐ सखि साजन ना सखि मच्छर।।66।।
बेर-बेर सोवतहिं जगावे, ना जागूँ तो काटे खावे।
व्याकुल हुई मैं हक्की-बक्की, ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी।।67।।
आठ प्रहर मेरे संग रहे, मीठी प्यारी बातें करे।
श्याम बरन और राती नैंना, ऐ सखि साजन ना सखि! मैंना।।68।।
उमड़-घुमड़ कर वह जो आया, अन्दर मैने पलंग बिछाया।
मेरा वाका लगा नेह, ऐ सखि साजन ना सखि मेह ।।69।।
मुख मेरा चूमत दिन रात, होंठो लगत कहत नहीं बात।
जासे मेरी जगत में पत, ऐ सखि साजन ना सखि नथ।।70।।
सरब सलोना सब गुण नीका, वा बन सब जग लागे फीका।
वा के सर पर होवे कोन, ऐ सखी साजन ना सखी लोन (नामक) ।।71।।
हिलत-झूमत निको लागै, अपने ऊपर मोहि चढ़ावै।
मैं वाकी वह मेरा साथी, ऐ सखी साजन ना सखी हाथी।।72।।
एक तो वह देह का भारु, छोटे-नैन सदा मतवारु।
वह पिउ मेरे सेज का साथी, ऐ सखी साजन ना सखी हाथी ।।73।।
सगरी रैन छतियां पर राख, रूप रंग सब वा का चाख।
भोर भई जब दिया उतार, ऐ सखी साजन ना सखी हार।।74।।
अर्ध निशा वह आया भौन, सुंदरता बरने कवि कौन।
निरखत ही मन भयो अनंद, ऐ सखि साजन? ना सखि चंद! ।।75।।
खा गय पी गया दे गया बुत्ता, ऐ सखी साजन ना सखी कुत्ता।।75।।
जीवन सब जग जासौ कहै, वा बिनु नेक न धीरज रहै।
हरै छिनक में हिय की पीर, ऐ सखी साजन ना सखी नीर ।।76।।
बिन आये सबहीं सुक्ग भूले, आये ते अँग-अँग सब फूले।
सीरी भई लगावत छाती, ऐ सखी साजन ना सखी पाती।।77।।
राह चलत मोरा अंचरा गहे, मेरी सुने न अपनी कहें।
ना कुछ मोसे झगड़ा-टंटा, ऐ सखी साजन ना सखी काँटा।।78।।
सगरी रैन मिही संग जागा, भोर भई तब बिछुड़न लागा
उसके बिछुड़न फाटे हिया, ऐ सखी साजन ना सखी दिया (दीपक) ।।79।।
रात समय वह मेरे आवे, भोर भये वह घर उठि जावे
यह अचरज है सबसे न्यारा, ऐ सखी साजन? ना सखी तारा! ।।80।।
बेर-बेर सोवतहिं जगावे, ना जागूँ तो काटे खावे
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की, ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी! ।।81।।
आप हिले और मोहे हिलाए, वा का हिलना मोए मन भाए
हिल हिल के वो हुआ निसंखा, ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा! ।।82।।
आठ प्रहर मेरे संग रहे, मीठी प्यारी बातें करे।
श्याम बरन और राती नैंना, ऐ सखि साजन न सखि! मैंना।।।।83।।
सेज पड़ी मोरे आंखों आए, डाल सेज मोहे मजा दिखाए
किस से कहूं अब मजा में अपना, ऐ सखि साजन? ना सखि सपना! ।।84।।
जीवन सब जग जासों कहै, वा बिनु नेक न धीरज रहै
हरै छिनक में हिय की पीर, ऐ सखि साजन? ना सखि नीर! ।।85।।
नित मेरे घर आवत है,, रात गए फिर जावत है।
मानस फसत काऊ के फंदा, ऐ सखि साजन न सखि! चंदा।।86।।
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