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=========== यहाँ हर पंक्ति का अर्थ दे रही हूँ .. ================
श्रीकृष्ण के रूप का वर्णन ---
ाँयनि नूपुर मंजु बजै,
कृष्ण के पैरों के पायल मधुर धुन सुना रहे हैं।
कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
कमर में करघनी पहन रखी है जिसकी धुन भी मधुर लग रही है।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र लिपटा हुआ है और उनके गले में फूलों की माला बड़ी सुंदर लग रही है।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल,
उनके सिर पर मुकुट सजा हुआ है जिसके नीचे उनकी चंचल आँखें सुशोभित हो रही हैं।
मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
उनका मुँह चाँद जैसा लग रहा है जिससे मंद मंद मुसकान की चाँदनी बिखर रही है।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥
श्रीकृष्ण का रूप ऐसे निखर रहा है जैसे कि किसी मंदिर का दीपक जगमगा रहा हो।
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कवित्त
बसंत ऋतु की सुंदरता का वर्णन-
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
कवि बसंत को एक नन्हे से बालक के रूप में देख रहे हैं। बसंत के लिए किसी पेड़ की डाल का पालना बना हुआ है और उस पालने पर नई पत्तियों का बिस्तर लगा हुआ है।। बसंत ने फूलों से बने हुए कपड़े पहने हैं जिससे उसकी शोभा और बढ़ जाती है।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
पवन के झोंके उसे झूला झुला रहे हैं। मोर और तोते उसके साथ बातें कर रहे हैं।
कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।
कोयल भी उसके साथ बातें करके उसका मन बहला रही है। ये बीच-बीच में तालियाँ भी बजा रहे हैं।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
फूलों से पराग की खुशबू ऐसे आ रही जैसे की घर की बूढ़ी औरतें राई और नमक से बच्चे का नजर उतार रही हों।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥
बसंत तो कामदेव के सुपुत्र हैं जिन्हें सुबह सुबह गुलाब की कलियाँ चुटकी बजाकर जगाती हैं।
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कवित्त
चाँदनी रात की सुंदरता का वर्णन
फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,
चाँदनी का तेज ऐसे बिखर रहा है जैसे किसी स्फटिक के प्रकाश से धरती जगमगा रही हो
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
चारों ओर सफेद रोशनी ऐसे लगती है जैसे की दही का समंदर बह रहा हो।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
इस प्रकाश में दूर दूर तक सब कुछ साफ-साफ दिख रहा है।
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
ऐसा लगता है कि पूरे फर्श पर दूध का झाग फैल गया है। उस फेन में तारे ऐसे लगते हैं जैसे कि तरुणाई की अवस्था वाली लड़कियाँ खड़ी हों।
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
ऐसा लगता है कि मोतियों को चमक मिल गई है या जैसे बेले के फूल को रस मिल गया है।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
पूरा आसमान किसी दर्पण की तरह लग रहा है जिसमें चारों तरफ रोशनी फैली हुई है।
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥
पूर्णिमा का चाँद ऐसे लग रहा है जैसे उस दर्पण में राधा का प्रतिबिंब दिख रहा हो।