Thursday, May 23, 2019

दुनिया का सबसे अनमोल रतन /Duniya ka sabse anmol ratan /Premchand





हेच=हेय/तुच्छ।
मञ्जूषा=छोटा डिब्बा ।
सुर्ख़रू=सफल।
दिलफ़िगार एक कँटीले पेड़ के नीचे दामन चाक किये बैठा हुआ खून के आँसू बहा (असह्य कष्ट से अत्यंत दुखी होना )रहा था। वह सौन्दर्य की देवी यानी मलका दिलफ़रेब का सच्चा और जान देने वाला प्रेमी था। उन प्रेमियों में नहीं, जो इत्र-फुलेल में बसकर और शानदार कपड़ों से सजकर आशिक के वेश में माशूक़ियत का दम भरते हैं। बल्कि उन सीधे-सादे भोले-भाले फ़िदाइयों में जो जंगल और पहाड़ों से सर टकराते हैं और फ़रियाद मचाते फिरते हैं। दिलफ़रेब ने उससे कहा था कि अगर तू मेरा सच्चा प्रेमी है, तो जा और दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ लेकर मेरे दरबार में आ तब मैं तुझे अपनी गुलामी में क़बूल करूँगी। अगर तुझे वह चीज़ न मिले तो ख़बरदार इधर रुख़ न करना, वर्ना सूली पर खिंचवा दूँगी। दिलफ़िगार को अपनी भावनाओं के प्रदर्शन का, शिकवे-शिकायत का, प्रेमिका के सौन्दर्य-दर्शन का तनिक भी अवसर न दिया गया। -------------------------

हिंदी कहानी
  1. राजेंद्र बाला घोष (बंग महिला)౼ चंद्रदेव से मेरी बातें  https://youtu.be/1QmmdRRF8rI
  2. दुलाईवाली [ बंग महिला)-https://youtu.be/c6J679fy1Aw
  3. माधव सप्रे ౼ एक टोकरी भर मिट्टी https://youtu.be/7TfveUTrMBE
  4. सुभद्रा कुमारी चौहान ౼ राही  https://youtu.be/jSS9BAUxH0M
  5. प्रेमचन्द  ईदगाह, Part 1: https://youtu.be/yP9UOOZHakw Part 2:https://youtu.be/n-NYw94gTw8
  6. दुनिया का सबसे अनमोल रतन  https://youtu.be/E41exG3MYyY
  7. राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह ౼ कानों में कंगना  https://youtu.be/po07s2eSN3M
  8. चंद्रधर शर्मा गुलेरी ౼ उसने कहा था   https://youtu.be/3twNYaNB1FA
  9. जयशंकर प्रसाद ౼ आकाशदीप https://youtu.be/TRfg15WcSKs
  10. जैनेंद्र ౼ अपना अपना भाग्य    https://youtu.be/jZHakhS17hg
  11. फणीश्वर नाथ रेणु ౼ मारे गए गुलफ़ाम/तीसरी क़सम
  12. लाल पान की बेगम  https://www.youtube.com/watch?v=53EGF5dcZ2I
  13. अज्ञेय ౼ गैंग्रीन /रोज़   https://youtu.be/mwstia4bJQM
  14. शेखर जोशी ౼ कोसी का घटवार   https://youtu.be/rdMf92-GnCU
  15. भीष्म साहनी ౼ अमृतसर आ गया है, https://youtu.be/GR0Br5E5EJ0
  16. चीफ की दावत -https://youtu.be/-Nbz-ksNRdc
  17. कृष्णा सोबती ౼ सिक्का बदल गया https://youtu.be/uyldptpJ-ns
  18. हरिशंकर परसाई ౼ इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर  https://youtu.be/8atdzcvDkdw
  19. ज्ञानरंजन ౼ पिता https://youtu.be/OqXaB8WyoeU
  20. कमलेश्वर ౼ राजा निरबंसिया  Part 1:https://youtu.be/p_7B5mIN5lQ                                                                          Part 2:https://youtu.be/RFC3YV_it_Q
  21. निर्मल वर्मा ౼ परिन्दे   (posted) Parindey PART 1: https://youtu.be/57GOnrc7jrs
 Parindey PART 2: https://youtu.be/JQpG1QbAf2c

 Parindey PART 3 :https://youtu.be/BbWZfjrgMqk

Parindey Charcha/Q-answers:https://youtu.be/P3kJ0Du0t3c

==========================
UGC/NET -NTA

इकाई-V
--------
1.JaiShankar Prasad : Kamayani


2.Nirala ji : Saroj Smriti    Part 1     https://youtu.be/sURI2l73wY0                   
                      Part 2  https://youtu.be/QcrpFmDsybc
3.Agyey ji :
 Asadhy Veena Part 1 https://youtu.be/1jTjdoXYxvA              
Part 2  https://youtu.be/_PgkYjXRb7E
------
4.Yeh deep akela  = https://youtu.be/jvBM4RvAzFg
==================================================

इकाई- X
एक कहानी यह भी-Part 1   https://youtu.be/oNkASWeKNzI
Part 2  https://youtu.be/LLLSzt1eaUs

आवारा मसीहा

जामुन का पेड़ Jamun Ka Ped https://youtu.be/y189CqR0DVs

भोलाराम का जीव
================
-----------------------------

Wednesday, May 15, 2019

रसखान के पद अर्थ सहित




धूरि भरे अति शोभित श्याम जू,
तैसि बनी सिर सुन्दर चोटी
खेलत खात फिरै अँगना,
पग पैजनिया कटि पीरि कछौटी
[कृष्ण धूल भरे आंगन में खेलते- खाते हुए फिर रहे हैं,उनके सर पर सुन्दर चोटी बनी है और पाँव में घुँघरू बज रहे हैं ,कमर  में  पीली कछौटी ( अंगवस्त्र )पहन हुआ है ]

वा छवि को रसखान बिलोकत,
वारत काम कलानिधि कोटी
[रसखान कहते हें कि कृष्ण के इस रूप को देख कर करोड़ों कामदेव और करोड़ो चंद्रमा वारे जा सकते हैं।]
काग के भाग बड़े सजनी,
हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी"
[श्री कृष्ण के हाथ में माखन रोटी है जिसे कौआ आकर  ले जाता है
वे उस कौवे के भाग्य पर ईर्ष्या करते हैं जो साक्षात् हरि अर्थात  भगवान  के हाथ से रोटी छीनकर ले भागा है ।
=====================


सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तू पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥

जिनकी महिमा शेषनाग, गणेश, महेश, सूर्य, और इंद्र लगातार गाते रहते हैंIवेदों ने जिन्हें अनादि, अनंत, अखंड, अछेद और अभेद बताया हैIनारद, शुकदेव और व्यास ने जिन्हे पहचान कर संसार को पार कर लिया; उन्हीं भगवान कृष्ण को अहीर की  लड़कियाँ कटोरे भर छाछ पर नचाती हैं।
इस पद में निगुर्ण और सगुण, ज्ञान और प्रेम का  संगम देखने को मिलता है ।

=====================================

मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥

रसखान  कहते हैं यदि मनुष्य बनूँ तो गोकुलगाँव के ग्वालों के बीच रहूँ , यदि पशु बनूँ तो नंद की गायों के बीच रहकर घास चरा करूँ , पत्थर बनूँ तो उसी पहाड़ का बनूँ जिसे इंद्र के कोप से बचने के लिये कृष्ण ने छत्र की तरह उठा लिया था और अगर पक्षी बनूँ तो कालिंदी (यमुना) के किनारे कदम्ब की डालों पर बसेरा करूँ ।

उनका  तात्पर्य है कि वे हर जनम में हर रूप में कृष्ण के समीप रहना चाहते हैं I
=============

Tuesday, May 14, 2019

ह्रस्व स्वर, दीर्घ स्वर एवं प्लुत स्वर

उच्चारण के समय की दृष्टि से स्वर के तीन भेद किए गए हैं –
 ह्रस्व स्वर, दीर्घ स्वर एवं प्लुत स्वर।

उच्चारण के काल मान को मात्रा कहते हैं 


 ह्रस्व स्वर–
जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं/
सबसे कम समय में उच्चारित किया जाता है, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं।
इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।
यह चार हैं- अ, इ, उ, ऋ।
हिंदी में मूल स्वर तीन माने जाते हैं : अ, इ, उ


दीर्घ स्वर-
वह स्वर जिनको बोलने में ह्रस्व स्वरों से अधिक समय लगता है/
जिन वर्णों पर अधिक जोर दिया जाता है, वे दीर्घ कहलाते हैं, और उनकी मात्रा 2 होती है ।
{या कहें जिस स्वर के उच्चारण मे दो मात्राएँ लगती है}


जैसे- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ


प्लुत स्वर-
प्लुत का अर्थ हैं ‘ उछला हुआ .
संस्कृत में  स्वरों का यह  तीसरा भेद भी माना जाता है हिन्दी में इसका प्रयोग नहीं होता ।
प्लुत वर्णों का उच्चार अतिदीर्घ होता है, और उनकी मात्रा 3 होती है जैसे कि, “ओम”
.................................

छन्द शास्त्र में ह्रस्व और दीर्घ के लिये के लिये क्रमशः लघु और गुरु शब्द का प्रयोग होता है ।

लघु , गुरु एवं प्लुत के संकेत-चिह्न :
लघु       गुरु              प्लुत
।          S                      3


============================================

हिंदी वर्णमाला Hindi Varnmala

किसी एक भाषा या अनेक भाषाओं को लिखने के लिए प्रयुक्त मानक प्रतीकों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं। 


**वर्णों के समुदाय को ही वर्णमाला कहते हैं। 

हिंदी भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है। 
इसी ध्वनि को ही वर्ण कहा जाता है।

हिन्दी वर्णमाला में 44 वर्ण हैं। 

उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी वर्णमाला के दो भेद किए गए हैं: 


(क) स्वर  (ख) व्यंजन (ग) अयोगवाह 


स्वर :- अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ  ॠ (११ स्वर )
ॠ को  कुछ विद्वान  हिंदी का स्वर नहीं मानते ,यह संस्कृत का स्वर है.
उसके स्थान पर आगत स्वर ऑ' को वर्णमाला में रखने की बात कही जाती है.

उत्पत्ति के अनुसार स्वरों  के दो भेद हैं--

१. मूल स्वर : जिन स्वरों उत्पत्ति अन्य स्वरों से नहीं होती हैं , वे मूल स्वर कहलाते हैं I
अथवा 
जो स्वर दूसरे स्वरों के मेल से ना बने हों , उन्हें मूल स्वर कहते हैं ।
हिंदी में तीन  मूल स्वर हैं :- अ , इ ,उ I
[ॠ संस्कृत का स्वर है  ] २. संधि स्वर :जिन स्वरों की रचना मूल स्वरों के संयोग से होती हैं, वे संधि स्वर कहलाते हैं ,ये संधि स्वर सात हैं -:

अ + अ = आ                        इ + इ = ई
उ +  उ = ऊ                         अ + इ = ए
अ + ए = ऐ                          अ + उ = ओ

अ + ओ = औ
***आ, ई, तथा ऊ दीर्घ सन्धि-स्वर हैं ।***
--------------------------------------
जाति के अनुसार स्वरों के दो भेद हैं :-
१    सवर्ण या सजातीय – समान स्थान और प्रयत्न से उत्पन्न होने वाले स्वरों को सवर्ण या सजातीय स्वर कहते हैं । 
जैसे – अ, आ ; इ, ई ; उ, ऊ ।
२)   असवर्ण या विजातीय स्वर – जिन स्वरों के स्थान और प्रयत्न एक-से नही होते , वे असवर्ण या विजातीय स्वर कहलाते हैं ।
 जैसे – अ, ई ; अ, ऊ ; इ, ऊ ।
.................................................
मात्रा के संकेत चिह्न :
   अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ ,
          ा , ि‍ , ी , ु , ू , ृ , े , ै , ो , ौ ,

अ की  मात्रा नही होती , यह जब किसी व्यंजन के साथ मिलता है , तब व्यंजन का हल् चिह्न (्) लुप्त हो जाता है .  
--------------------------

अं अः  (अयोगवाह (२)=स्वर-व्यंजन से अलग वर्ण  )
अं' अनुस्वार कहलाता है .
---------------------


व्यंजन :- 
जिन वर्णों  के उच्चारण में  स्वर की सहायता लेनी पड़ती हैं वे व्यंजन कहलाते हैं I

क ख ग घ ङ 
च छ ज झ ञ 
ट ठ ड ढ ण 
त थ द ध न
प फ ब भ म 
य र ल व 
श ष स ह (३३ व्यंजन )
(ड़, ढ़) 
==================

संयुक्त व्यंजन = क्ष, त्र,ज्ञ,ष (४)
क्ष’ संयुक्त अक्षर में क् और मूर्धन्य ष का योग है
त्र = त् + र ,        
ज् + ञ = ज्ञ 
  सब मिलाकर कुल वर्ण ११+३३+२+४=५२
==================
व्यंजन के भेद

१. स्पर्श व्यंजन
२. अंतस्थ व्यंजन

३. उष्म व्यंजन

१. स्पर्श व्यंजन - जिन वर्णों  का उच्चारण  करते समय जिह्वा मुख़ के विभिन्न भागों को [कण्ठ , तालू   , मूर्धा , दाँत  और ओष्ठ ] स्पर्श करती  है, इसलिए ये स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं  I

 इन्हें  वर्गीय व्यंजन भी कहा जाता है । 
 इन  पाँच वर्गों के वर्ण स्पर्श व्यंजन हैं (‘क्’ से ‘म्’ तक के वर्णों को स्पर्श व्यंजन कहते हैं ।) :-

क वर्ग, च वर्ग,ट वर्ग , त वर्ग , प वर्ग 

क)    क वर्ग – क, ख, ग, घ, ङ, कण्ठ 
ख)   च वर्ग – च, छ, ज, झ, ञ, तालु
ग)     ट वर्ग – ट, ठ, ड, ढ, ण, मूर्धा
घ)     त वर्ग – त, थ, द, ध, न, दन्त ('न' को छोड़कर ,)

ङ)     प वर्ग – प, फ, ब, भ, म, ओष्ठ    
..............................................................................................

२. अंतस्थ व्यंजन :- इनका उच्चारण करते समय जिह्वा मुख के किसी भी भाग से स्पर्श नहीं करती Iइनका उच्चारण जीभ , तालु , दाँत , और ओठों के परस्पर सटाने से होता है ।
य् , र् , ल्  तथा  व् अंतस्थ व्यंजन हैं I


 इन चारों वर्णों को ‘अर्ध  स्वर’ भी कहा जाता है ।


३. उष्म व्यंजन :- इनका उच्चारण रगड़ या घर्षण से उत्पन्न ऊष्म वायु से होता है । या कहें ...>
   इनका उच्चारण करते समय एक प्रकार की उष्मा उत्पन्न होती हैI
ये ४ उष्म व्यंजन हैं --श  ष , स , ह  

===============

Friday, May 10, 2019

Chief ki dawat चीफ की दावत -भीष्म साहनी /UGC-NET

==================

Chief ki dawat 

चीफ की दावत -भीष्म साहनी 

 ==========

शामनाथ और उनकी धर्मपत्नी को पसीना पोंछने की फुर्सत न थी। पत्नी ड्रेसिंग गाउन पहने, उलझे हुए बालों का जूड़ा बनाए मुँह पर फैली हुई सुर्खी और पाउडर को मले और मिस्टर शामनाथ सिगरेट पर सिगरेट फूँकते हुए चीज़ों की फ़ेहरिस्त हाथ में थामे, एक कमरे से दूसरे कमरे में आ–जा रहे थे।
आख़िर पाँच बजते-बजते तैयारी मुकम्मल होने लगी। कुर्सियाँ, मेज़, तिपाइयाँ, नैपकिन, फूल, सब बरामदे में पहुँच गए। ड्रिंक का इन्तज़ाम बैठक में कर दिया गया। अब घर का फ़ालतू सामान अलमारियों के पीछे और पलंगों के नीचे छिपाया जाने लगा। तभी शामनाथ के सामने सहसा एक अडचन खडी हो गई, माँ का क्या होगा?
इस बात की ओर न उनका और न उनकी कुशल गृहिणी का ध्यान गया था। मिस्टर शामनाथ, श्रीमती की ओर घूमकर अँग्रेज़ी में बोले - "माँ का क्या होगा?" श्रीमती काम करते-करते ठहर गई, और थोडी देर तक सोचने के बाद बोलीं - "इन्हें पिछवाड़े इनकी सहेली के घर भेज दो, रात-भर बेशक वहीं रहें। कल आ जाएँ।"
शामनाथ सिगरेट मुँह में रखे, सिकुडी आँखों से श्रीमती के चेहरे की ओर देखते हुए पल-भर सोचते रहे, फिर सिर हिलाकर बोले - "नहीं, मैं नहीं चाहता कि उस बुढिया का आना-जाना यहाँ फिर से शुरू हो। पहले ही बडी मुश्किल से बन्द किया था। माँ से कहें कि जल्दी ही खाना खा के शाम को ही अपनी कोठरी में चली जाएँ। मेहमान कहीं आठ बजे आएँगे इससे पहले ही अपने काम से निबट लें।"
सुझाव ठीक था। दोनों को पसन्द आया। मगर फिर सहसा श्रीमती बोल उठीं - "जो वह सो गईं और नींद में खर्राटे लेने लगीं, तो? साथ ही तो बरामदा है, जहाँ लोग खाना खाएँगे।" "तो इन्हें कह देंगे कि अन्दर से दरवाज़ा बन्द कर लें। मैं बाहर से ताला लगा दूँगा। या माँ को कह देता हूँ कि अन्दर जाकर सोयें नहीं, बैठी रहें, और क्या?" "और जो सो गई, तो? डिनर का क्या मालूम कब तक चले। ग्यारह-ग्यारह बजे तक तो तुम ड्रिंक ही करते रहते हो।" शामनाथ कुछ खीज उठे, हाथ झटकते हुए बोले - "अच्छी-भली यह भाई के पास जा रही थीं। तुमने यूँही ख़ुद अच्छा बनने के लिए बीच में टाँग अड़ा दी!" "वाह! तुम माँ और बेटे की बातों में मैं क्यों बुरी बनूँ? तुम जानो और वह जानें।"
मिस्टर शामनाथ चुप रहे। यह मौका बहस का न था, समस्या का हल ढूंढने का था। उन्होंने घूमकर मां की कोठरी की ओर देखा। कोठरी का दरवाजा बरामदे में खुलता था। बरामदे की ओर देखते हुए झट से बोले - मैंने सोच लिया है, - और उन्हीं कदमों मां की कोठरी के बाहर जा खडे हुए। मां दीवार के साथ एक चौकी पर बैठी, दुपट्टे में मुंह-सिर लपेटे, माला जप रही थीं। सुबह से तैयारी होती देखते हुए मां का भी दिल धडक़ रहा था। बेटे के दफ्तर का बडा साहब घर पर आ रहा है, सारा काम सुभीते से चल जाय।
“मां, आज तुम खाना जल्दी खा लेना। मेहमान लोग साढे सात बजे आ जायेंगे।” मां ने धीरे से मुंह पर से दुपट्टा हटाया और बेटे को देखते हुए कहा, “आज मुझे खाना नहीं खाना है, बेटा, तुम जो जानते हो, मांस-मछली बने, तो मैं कुछ नहीं खाती।” “जैसे भी हो, अपने काम से जल्दी निबट लेना।” “अच्छा, बेटा।” “और मां, हम लोग पहले बैठक में बैठेंगे। उतनी देर तुम यहां बरामदे में बैठना। फिर जब हम यहां आ जाएं, तो तुम गुसलखाने के रास्ते बैठक में चली जाना।” मां अवाक बेटे का चेहरा देखने लगीं। फिर धीरे से बोलीं - “अच्छा बेटा।” “और मां आज जल्दी सो नहीं जाना। तुम्हारे खर्राटों की आवाज दूर तक जाती है।” मां लज्जित-सी आवाज में बोली - “क्या करूं, बेटा, मेरे बस की बात नहीं है। जब से बीमारी से उठी हूं, नाक से सांस नहीं ले सकती।”
मिस्टर शामनाथ ने इन्तजाम तो कर दिया, फिर भी उनकी उधेड-बुन खत्म नहीं हुई। जो चीफ अचानक उधर आ निकला, तो? आठ-दस मेहमान होंगे, देसी अफसर, उनकी स्त्रियां होंगी, कोई भी गुसलखाने की तरफ जा सकता है। क्षोभ और क्रोध में वह झुंझलाने लगे। एक कुर्सी को उठाकर बरामदे में कोठरी के बाहर रखते हुए बोले - “आओ मां, इस पर जरा बैठो तो।” मां माला संभालतीं, पल्ला ठीक करती उठीं, और धीरे से कुर्सी पर आकर बैठ गई। “यूं नहीं, मां, टांगे ऊपर चढाकर नहीं बैठते। यह खाट नहीं हैं।” मां ने टांगे नीचे उतार लीं। “और खुदा के वास्ते नंगे पांव नहीं घूमना। न ही वह खडाऊं पहनकर सामने आना। किसी दिन तुम्हारी यह खडाऊ उठाकर मैं बाहर फेंक दूंगा।” “मां चुप रहीं।” “कपडे क़ौनसे पहनोगी, मां?” “जो है, वही पहनूंगी, बेटा! जो कहो, पहन लूं।”
मिस्टर शामनाथ सिगरेट मुंह में रखे, फिर अधखुली आंखों से मां की ओर देखने लगे, और मां के कपडों की सोचने लगे। शामनाथ हर बात में तरतीब चाहते थे। घर का सब संचालन उनके अपने हाथ में था। खूंटियां कमरों में कहां लगायी जायें, बिस्तर कहां पर बिछे, किस रंग के पर्दे लगायें जाएं, श्रीमती कौन-सी साडी पहनें, मेज किस साइज की हो ..शामनाथ को चिन्ता थी कि अगर चीफ का साक्षात मां से हो गया, तो कहीं लज्जित नहीं होना पडे। मां को सिर से पांव तक देखते हुए बोले - “तुम सफेद कमीज और सफेद सलवार पहन लो, मां। पहन के आओ तो, जरा देखूं।” मां धीरे से उठीं और अपनी कोठरी में कपडे पहनने चली गयीं। “यह मां का झमेला ही रहेगा, उन्होंने फिर अंग्रेजी में अपनी स्त्री से कहा - “कोई ढंग की बात हो, तो भी कोई कहे। अगर कहीं कोई उल्टी-सीधी बात हो गयी, चीफ को बुरा लगा, तो सारा मजा जाता रहेगा।”
माँ सफेद कमीज और सफेद सलवार पहनकर बाहर निकलीं। छोटा-सा कद, सफेद कपडों में लिपटा, छोटा-सा सूखा हुआ शरीर, धुंधली आंखें, केवल सिर के आधे झडे हुए बाल पल्ले की ओट में छिप पाये थे। पहले से कुछ ही कम कुरूप नजर आ रही थीं। “चलो, ठीक है। कोई चूडियां-वूडियां हों, तो वह भी पहन लो। कोई हर्ज नहीं।” “चूडियां कहां से लाऊं, बेटा? तुम तो जानते हो, सब जेवर तुम्हारी पढाई में बिक गए।”
यह वाक्य शामनाथ को तीर की तरह लगा। तिनककर बोले - “यह कौन-सा राग छेड दिया, मां! सीधा कह दो, नहीं हैं जेवर, बस! इससे पढाई-वढाई का क्या तअल्लुक है! जो जेवर बिका, तो कुछ बनकर ही आया हूं, निरा लंडूरा तो नहीं लौट आया। जितना दिया था, उससे दुगना ले लेना।” “मेरी जीभ जल जाय, बेटा, तुमसे जेवर लूंगी? मेरे मुंह से यूंही निकल गया। जो होते, तो लाख बार पहनती!”
साढे पांच बज चुके थे। अभी मिस्टर शामनाथ को खुद भी नहा-धोकर तैयार होना था। श्रीमती कब की अपने कमरे में जा चुकी थीं। शामनाथ जाते हुए एक बार फिर मां को हिदायत करते गए - “मां, रोज की तरह गुमसुम बन के नहीं बैठी रहना। अगर साहब इधर आ निकलें और कोई बात पूछें, तो ठीक तरह से बात का जवाब देना।” “मैं न पढी, न लिखी, बेटा, मैं क्या बात करूंगी। तुम कह देना, मां अनपढ है, कुछ जानती-समझती नहीं। वह नहीं पूछेगा।”
सात बजते-बजते मां का दिल धक-धक करने लगा। अगर चीफ सामने आ गया और उसने कुछ पूछा, तो वह क्या जवाब देंगी। अंग्रेज को तो दूर से ही देखकर घबरा उठती थीं, यह तो अमरीकी है। न मालूम क्या पूछे। मैं क्या कहूंगी। मां का जी चाहा कि चुपचाप पिछवाडे विधवा सहेली के घर चली जाएं। मगर बेटे के हुक्म को कैसे टाल सकती थीं। चुपचाप कुर्र्सी पर से टांगे लटकाये वहीं बैठी रही।
एक कामयाब पार्टी वह है, जिसमें ड्रिंक कामयाबी से चल जाएं। शामनाथ की पार्टी सफलता के शिखर चूमने लगी। वार्तालाप उसी रौ में बह रहा था, जिस रौ में गिलास भरे जा रहे थे। कहीं कोई रूकावट न थी, कोई अडचन न थी। साहब को व्हिस्की पसन्द आई थी। मेमसाहब को पर्दे पसन्द आए थे, सोफा-कवर का डिजाइन पसन्द आया था, कमरे की सजावट पसन्द आई थी। इससे बढक़र क्या चाहिए। साहब तो ड्रिंक के दूसरे दौर में ही चुटकुले और कहानियां कहने लग गए थे। दफ्तर में जितना रोब रखते थे, यहां पर उतने ही दोस्त-परवर हो रहे थे और उनकी स्त्री, काला गाउन पहने, गले में सफेद मोतियों का हार, सेन्ट और पाउडर की महक से ओत-प्रोत, कमरे में बैठी सभी देसी स्त्रियों की आराधना का केन्द्र बनी हुई थीं। बात-बात पर हंसती, बात-बात पर सिर हिलातीं और शामनाथ की स्त्री से तो ऐसे बातें कर रही थीं, जैसे उनकी पुरानी सहेली हों।
और इसी रो में पीते-पिलाते साढे दस बज गए। वक्त गुजरते पता ही न चला।
आखिर सब लोग अपने-अपने गिलासों में से आखिरी घूंट पीकर खाना खाने के लिए उठे और बैठक से बाहर निकले। आगे-आगे शामनाथ रास्ता दिखाते हुए, पीछे चीफ और दूसरे मेहमान।
बरामदे में पहुंचते ही शामनाथ सहसा ठिठक गए। जो दृश्य उन्होंने देखा, उससे उनकी टांगें लडख़डा गई, और क्षण-भर में सारा नशा हिरन होने लगा। बरामदे में ऐन कोठरी के बाहर मां अपनी कुर्सी पर ज्यों-की-त्यों बैठी थीं। मगर दोनों पांव कुर्सी की सीट पर रखे हुए, और सिर दायें से बायें और बायें से दायें झूल रहा था और मुंह में से लगातार गहरे खर्राटों की आवाजें आ रही थीं। जब सिर कुछ देर के लिए टेढा होकर एक तरफ को थम जाता, तो खर्राटें और भी गहरे हो उठते। और फिर जब झटके-से नींद टूटती, तो सिर फिर दायें से बायें झूलने लगता। पल्ला सिर पर से खिसक आया था, और मां के झरे हुए बाल, आधे गंजे सिर पर अस्त-व्यस्त बिखर रहे थे।
देखते ही शामनाथ क्रुध्द हो उठे। जी चाहा कि मां को धक्का देकर उठा दें, और उन्हें कोठरी में धकेल दें, मगर ऐसा करना सम्भव न था, चीफ और बाकी मेहमान पास खडे थे।
मां को देखते ही देसी अफसरों की कुछ स्त्रियां हंस दीं कि इतने में चीफ ने धीरे से कहा - पुअर डियर!
मां हडबडा के उठ बैठीं। सामने खडे ऌतने लोगों को देखकर ऐसी घबराई कि कुछ कहते न बना। झट से पल्ला सिर पर रखती हुई खडी हो गयीं और जमीन को देखने लगीं। उनके पांव लडख़डाने लगे और हाथों की उंगलियां थर-थर कांपने लगीं।
“मां, तुम जाके सो जाओ, तुम क्यों इतनी देर तक जाग रही थीं? - और खिसियायी हुई नजरों से शामनाथ चीफ के मुंह की ओर देखने लगे।
चीफ के चेहरे पर मुस्कराहट थी। वह वहीं खडे-ख़डे बोले, “नमस्ते!” मां ने झिझकते हुए, अपने में सिमटते हुए दोनों हाथ जोडे, मगर एक हाथ दुपट्टे के अन्दर माला को पकडे हुए था, दूसरा बाहर, ठीक तरह से नमस्ते भी न कर पाई। शामनाथ इस पर भी खिन्न हो उठे।
इतने में चीफ ने अपना दायां हाथ, हाथ मिलाने के लिए मां के आगे किया। मां और भी घबरा उठीं। “मां, हाथ मिलाओ।” पर हाथ कैसे मिलातीं? दायें हाथ में तो माला थी। घबराहट में मां ने बायां हाथ ही साहब के दायें हाथ में रख दिया। शामनाथ दिल ही दिल में जल उठे। देसी अफसरों की स्त्रियां खिलखिलाकर हंस पडीं।
“यूं नहीं, मां! तुम तो जानती हो, दायां हाथ मिलाया जाता है। दायां हाथ मिलाओ।” मगर तब तक चीफ मां का बायां हाथ ही बार-बार हिलाकर कह रहे थे - “ हाउ डू यू डू?” “कहों मां, मैं ठीक हूं, खैरियत से हूं।” मां कुछ बडबडाई। “मां कहती हैं, मैं ठीक हूं। कहो मां, हाउ डू यू डू।” मां धीरे से सकुचाते हुए बोलीं - “हौ डू डू ..”
एक बार फिर कहकहा उठा। वातावरण हल्का होने लगा। साहब ने स्थिति संभाल ली थी। लोग हंसने-चहकने लगे थे। शामनाथ के मन का क्षोभ भी कुछ-कुछ कम होने लगा था।
साहब अपने हाथ में मां का हाथ अब भी पकडे हुए थे, और मां सिकुडी ज़ा रही थीं। साहब के मुंह से शराब की बू आ रही थी।
शामनाथ अंग्रेजी में बोले - “मेरी मां गांव की रहने वाली हैं। उमर भर गांव में रही हैं। इसलिए आपसे लजाती है।” साहब इस पर खुश नजर आए। बोले - “सच? मुझे गांव के लोग बहुत पसन्द हैं, तब तो तुम्हारी मां गांव के गीत और नाच भी जानती होंगी?” चीफ खुशी से सिर हिलाते हुए मां को टिकटिकी बांधे देखने लगे। “मां, साहब कहते हैं, कोई गाना सुनाओ। कोई पुराना गीत तुम्हें तो कितने ही याद होंगे।” मां धीरे से बोली - “मैं क्या गाऊंगी बेटा। मैंने कब गाया है?” “वाह, मां! मेहमान का कहा भी कोई टालता है?” “साहब ने इतना रीझ से कहा है, नहीं गाओगी, तो साहब बुरा मानेंगे।” “मैं क्या गाऊं, बेटा। मुझे क्या आता है?” “वाह! कोई बढिया टप्पे सुना दो। दो पत्तर अनारां दे ..”
देसी अफसर और उनकी स्त्रियों ने इस सुझाव पर तालियां पीटी। मां कभी दीन दृष्टि से बेटे के चेहरे को देखतीं, कभी पास खडी बहू के चेहरे को। इतने में बेटे ने गंभीर आदेश-भरे लिहाज में कहा - “मां!”
इसके बाद हां या ना सवाल ही न उठता था। मां बैठ गयीं और क्षीण, दुर्बल, लरजती आवाज में एक पुराना विवाह का गीत गाने लगीं - हरिया नी माये, हरिया नी भैणे हरिया ते भागी भरिया है!
देसी स्त्रियां खिलखिला के हंस उठीं। तीन पंक्तियां गा के मां चुप हो गयीं।
बरामदा तालियों से गूंज उठा। साहब तालियां पीटना बन्द ही न करते थे। शामनाथ की खीज प्रसन्नता और गर्व में बदल उठी थी। मां ने पार्टी में नया रंग भर दिया था।
तालियां थमने पर साहब बोले - “पंजाब के गांवों की दस्तकारी क्या है?” शामनाथ खुशी में झूम रहे थे। बोले - “ओ, बहुत कुछ - साहब! मैं आपको एक सेट उन चीजों का भेंट करूंगा। आप उन्हें देखकर खुश होंगे।” मगर साहब ने सिर हिलाकर अंग्रेजी में फिर पूछा - “नहीं, मैं दुकानों की चीज नहीं मांगता। पंजाबियों के घरों में क्या बनता है, औरतें खुद क्या बनाती हैं?” शामनाथ कुछ सोचते हुए बोले - “लडक़ियां गुडियां बनाती हैं, और फुलकारियां बनाती हैं।” “फुलकारी क्या?” शामनाथ फुलकारी का मतलब समझाने की असफल चेष्टा करने के बाद मां को बोले - “क्यों, मां, कोई पुरानी फुलकारी घर में हैं?”
मां चुपचाप अन्दर गयीं और अपनी पुरानी फुलकारी उठा लायीं।
साहब बडी रूचि से फुलकारी देखने लगे। पुरानी फुलकारी थी, जगह-जगह से उसके तागे टूट रहे थे और कपडा फटने लगा था। साहब की रूचि को देखकर शामनाथ बोले - “यह फटी हुई है, साहब, मैं आपको नयी बनवा दूंगा। मां बना देंगी। क्यों, मां साहब को फुलकारी बहुत पसन्द हैं, इन्हें ऐसी ही एक फुलकारी बना दोगी न?”
मां चुप रहीं। फिर डरते-डरते धीरे से बोलीं - “अब मेरी नजर कहां है, बेटा! बूढी आंखें क्या देखेंगी?” मगर मां का वाक्य बीच में ही तोडते हुए शामनाथ साहब को बोले - “वह जरूर बना देंगी। आप उसे देखकर खुश होंगे।”
साहब ने सिर हिलाया, धन्यवाद किया और हल्के-हल्के झूमते हुए खाने की मेज क़ी ओर बढ ग़ये। बाकी मेहमान भी उनके पीछे-पीछे हो लिये।
जब मेहमान बैठ गये और मां पर से सबकी आंखें हट गयीं, तो मां धीरे से कुर्सी पर से उठीं, और सबसे नजरें बचाती हुई अपनी कोठरी में चली गयीं।
मगर कोठरी में बैठने की देर थी कि आंखों में छल-छल आंसू बहने लगे। वह दुपट्टे से बार-बार उन्हें पोंछतीं, पर वह बार-बार उमड आते, जैसे बरसों का बांध तोडक़र उमड आये हों। मां ने बहुतेरा दिल को समझाया, हाथ जोडे, भगवान का नाम लिया, बेटे के चिरायु होने की प्रार्थना की, बार-बार आंखें बन्द कीं, मगर आंसू बरसात के पानी की तरह जैसे थमने में ही न आते थे।
आधी रात का वक्त होगा। मेहमान खाना खाकर एक-एक करके जा चुके थे। मां दीवार से सटकर बैठी आंखें फाडे दीवार को देखे जा रही थीं। घर के वातावरण में तनाव ढीला पड चुका था। मुहल्ले की निस्तब्धता शामनाथ के घर भी छा चुकी थी, केवल रसोई में प्लेटों के खनकने की आवाज आ रही थी। तभी सहसा मां की कोठरी का दरवाजा जोर से खटकने लगा।
“मां, दरवाजा खोलो।”
मां का दिल बैठ गया। हडबडाकर उठ बैठीं। क्या मुझसे फिर कोई भूल हो गयी? मां कितनी देर से अपने आपको कोस रही थीं कि क्यों उन्हें नींद आ गयी, क्यों वह ऊंघने लगीं। क्या बेटे ने अभी तक क्षमा नहीं किया? मां उठीं और कांपते हाथों से दरवाजा खोल दिया।
दरवाजे खुलते ही शामनाथ झूमते हुए आगे बढ आये और मां को आलिंगन में भर लिया।
“ओ अम्मी! तुमने तो आज रंग ला दिया! ..साहब तुमसे इतना खुश हुआ कि क्या कहूं। ओ अम्मी! अम्मी!
मां की छोटी-सी काया सिमटकर बेटे के आलिंगन में छिप गयी। मां की आंखों में फिर आंसू आ गये। उन्हें पोंछती हुई धीरे से बोली - “बेटा, तुम मुझे हरिद्वार भेज दो। मैं कब से कह रही हूं।” शामनाथ का झूमना सहसा बन्द हो गया और उनकी पेशानी पर फिर तनाव के बल पडने लगे। उनकी बाहें मां के शरीर पर से हट आयीं। “क्या कहा, मां? यह कौन-सा राग तुमने फिर छेड दिया?” शामनाथ का क्रोध बढने लगा था, बोलते गये - तुम मुझे बदनाम करना चाहती हो, ताकि दुनिया कहे कि बेटा मां को अपने पास नहीं रख सकता। “नहीं बेटा, अब तुम अपनी बहू के साथ जैसा मन चाहे रहो। मैंने अपना खा-पहन लिया। अब यहां क्या करूंगी। जो थोडे दिन जिन्दगानी के बाकी हैं, भगवान का नाम लूंगी। तुम मुझे हरिद्वार भेज दो!” “तुम चली जाओगी, तो फुलकारी कौन बनायेगा? साहब से तुम्हारे सामने ही फुलकारी देने का इकरार किया है।” “मेरी आंखें अब नहीं हैं, बेटा, जो फुलकारी बना सकूं। तुम कहीं और से बनवा लो। बनी-बनायी ले लो।” “मां, तुम मुझे धोखा देके यूं चली जाओगी? मेरा बनता काम बिगाडोगी? जानती नही, साहब खुश होगा, तो मुझे तरक्की मिलेगी!”
मां चुप हो गयीं। फिर बेटे के मुंह की ओर देखती हुई बोली - “क्या तेरी तरक्की होगी? क्या साहब तेरी तरक्की कर देगा? क्या उसने कुछ कहा है?” “कहा नहीं, मगर देखती नहीं, कितना खुश गया है। कहता था, जब तेरी मां फुलकारी बनाना शुरू करेंगी, तो मैं देखने आऊंगा कि कैसे बनाती हैं। जो साहब खुश हो गया, तो मुझे इससे बडी नौकरी भी मिल सकती है, मैं बडा अफसर बन सकता हूं।”
मां के चेहरे का रंग बदलने लगा, धीरे-धीरे उनका झुर्रियों-भरा मुंह खिलने लगा, आंखों में हल्की-हल्की चमक आने लगी। “तो तेरी तरक्की होगी बेटा?” “तरक्की यूं ही हो जायेगी? साहब को खुश रखूँगा, तो कुछ करेगा, वरना उसकी खिदमत करने वाले और थोडे हैं? “तो मैं बना दूंगी, बेटा, जैसे बन पडेग़ा, बना दूंगी।
और मां दिल ही दिल में फिर बेटे के उज्ज्वल भविष्य की कामनायें करने लगीं और मिस्टर शामनाथ, “अब सो जाओ, मां,” कहते हुए, तनिक लडख़डाते हुए अपने कमरे की ओर घूम गये।
========================

 

काल -चक्र /व्याख्या सहित /अपरा पाठ 10/ Vidyaniwas Mishr