Tuesday, June 22, 2021

उठो लाल अब आँखें खोलो -कविता

 


वर दे, वीणावादिनि वर दे !

 

वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !

वर दे, वीणावादिनि वर दे।

चार दिशाएँ (कविता)/ बचपन में पढ़ी कविता

 

चार दिशाएँ (कविता)
 
उगता सूरज जिधर सामने
उधर खड़े हो मुँह करके तुम
ठीक सामने पूरब होता
और पीठ पीछे है पश्चिम
बायीं और दिशा उत्तर की
दायीं और तुम्हारे दक्षिण
चार दिशाएँ होती हैं यों
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण
— अज्ञात

Saturday, June 19, 2021

निर्मला उपन्यास का सार /लेखक : मुंशी प्रेमचंद

  


*’निर्मला’ का प्रकाशन काल नवंबर 1925 से नवंबर 1926 तक ’चांद’ पत्रिका में क्रमशः रूप से मानते हैं व पुस्तक रूप में ’चांद’ प्रेस इलाहाबाद से 1927 में प्रकाशित।*
 'निर्मला' दहेज तथा बेमेल विवाह की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है।

मुख्य पात्र 

  •  
  •  बाबू उदयभानुलाल और उनकी पत्नी कल्याणी
  • मुंशी तोताराम( पैंतीस वर्षीय वकील)
  • निर्मला-मुंशी तोताराम की पत्नी(उम्र पंद्रह वर्ष )
  • मन्साराम- मुंशी तोताराम का बड़ा बेटा
  • रुक्मिणी- मुंशी तोताराम की बहन
  • जियाराम, सियाराम- मुंशी तोताराम के छोटे बेटे
  • कृष्णा : निर्मला  की छोटी बहन
  • सुधा : डॉक्टर सिन्हा  की पत्नी
  • डॉक्टर सिन्हा : मनसाराम का इलाज करने वाले डॉक्टर


सार :
 
बाबू उदयभानुलाल पेशे से वकील, चार बच्चे हैं ,दो बेटी (निर्मला और कृष्णा) और दो बेटे हैं ।
वे अपनी पंद्रह वर्षीय  पुत्री निर्मला का विवाह बाबू भालचन्द्र के ज्येष्ठ पुत्र भुवनमोहन से पक्का करते हैं, परंतु जब अकस्मात् परिस्थितियों-वश बाबू उदयभानुलाल की मृत्यु हो जाती है, तब
 निर्मला का विवाह इस परिवार से टूट जाता है।

परिवार पर आर्थिक संकट आ जाने के कारण परिवार के सदस्य पहले ही साथ छोड़कर जा चुके थे अतः पर्याप्त दहेज न होने के कारण निर्मला का विवाह अन्त में वकील साहब से करना तय हो जाता है जिनकी पिछली बीवी का स्वर्गवास हो गया है और उनसे उनके तीन बच्चे है। बड़ा लड़का मंशाराम, उससे छोटा जियाराम एवं सबसे छोटा सियाराम। दहेज आदि की वकील साहब द्वारा कोई मांग नहीं की जाती है। परिवार में वकील साहब व उनके तीन बच्चों के अलावा उनकी विधवा बहन रूकमिणी रहती है। 


मुंशी तोताराम निर्मला को खुश रखने के लिये हर संभव प्रयास करते थे परन्तु जो व्यक्ति बाप की उम्र का हो उसके साथ मेल कैसे हो सकता है अतः निर्मला मुंशी जी से कटी-कटी रहती थी। 


निर्मला मंशाराम से अंग्रेज़ी पढ़ती थी, परन्तु मुंशी जी का यूं मंशाराम से अंग्रेज़ी पढ़ना व साथ में उठना बैठना पंसद न आता, वह उन दोनों को संदेह की दृष्टि से देखने लगते हैं। इसी शक की वजह से तोताराम मंशाराम को हॉस्टल में डाल देते हैं।


       हाॅस्टल में डाले जाने का कारण मंशाराम समझ जाता है तो उसे बड़ी ग्लानि होती है व खाना पीना छोड़ देता है अन्त में तबीयत ख़राब होने के कारण उसकी मृत्यु हो जाती है।


तोताराम का मंझला पुत्र जियाराम इस घटना के लिये निर्मला को ज़िम्मेदार ठहराता है इस कारण एक रात वह निर्मला के सारे गहने चोरी कर दोस्तों के साथ मिलकर सभी गहने बाज़ार में बेच देता है। चोरी का भेद खुल जाने के डर से  वह आत्महत्या कर लेता है। 

सबसे छोटा पुत्र सियाराम घर से भागकर साधु बन जाता है। इन सब घटनाओं से निर्मला अत्यधिक परेशान व व्यथित रहने लगती है। तोताराम भी सियाराम को ढूंढने के लिये घर से चले जाते है। 

अन्त में ज़िन्दगी से जूझते हुये निर्मला भी मृत्यु को प्राप्त होती है। रुक्मिणी को भी अपनी गलती का अहसास होता है । 

जब घर से निर्मला की लाश निकाली जाती है और उसका 'अंतिम संस्कार कौन करेगा' का प्रश्न उठ रहा होता है तभी  तोताराम घर लौटकर आ जाते है।

यहीं उपन्यास का अंत हो जाता है ।
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गौण  कथा
डॉक्टर  सिन्हा एवं उनकी पत्नी सुधा।
डॉक्टर  सिन्हा ने तोताराम के पुत्र मंशाराम की चिकित्सा की थी इस कारण मुंशी जी के घर पर उनका आना जाना लगा रहा था। इसी दौरान निर्मला डाॅ. सिन्हा की पत्नी सुधा के सम्पर्क में आती है। 

एक दिन सुधा एवं निर्मला के बीच हुई बातचीत के दौरान सुधा को पता चलता है कि उसके पति डा. सिन्हा वही व्यक्ति है जिनसे निर्मला का पहले विवाह तय हुआ था। परन्तु डा. सिन्हा ने निर्मला के परिवार से दहेज न मिल पाने की आशा से विवाह नहीं किया था।

सुधा की अनुपस्थिति में एक दिन डॉक्टर सिन्हा निर्मला से  बुरा व्यवहार करते हैं जिसका पता सुधा को चल जाता है ,आत्मग्लानि से वे विष  खाकर आत्महत्या कर लेते हैं। 

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Wednesday, June 2, 2021

श्रुतिसमभिन्नार्थक /श्रुतिसमोच्चारित भिन्नार्थक शब्द/Homonyms Words

  श्रुतिसमभिन्नार्थक अर्थात सुनने में समान; परन्तु भिन्न अर्थवाले।
 

'श्रुतिसम' का अर्थ है 'सुनने में एक समान' और 'भिन्नार्थक' का अर्थ है 'अर्थ में भिन्नता' ।
 

इन्हें श्रुति समत भिन्नार्थक शब्द,श्रुतिसमोच्चारित भिन्नार्थक शब्द ,समरूप भिन्नार्थक शब्द, समरूपी भिन्नार्थक और इंग्लिश में Homonyms Wordsभी कहा जाता है ।
 परिभाषा :
 

श्रुतिसमभिन्नार्थक वे शब्द होते हैं  जो अर्थ में भिन्न होने पर भी उच्चारण की दृष्टि से समान होने का भ्रम पैदा करते हैं।

 सरल शब्दों में 'श्रुतिसमभिन्नार्थक वे शब्द होते हैं  जो (सही  उच्चारण न होने  ) के कारण सुनने में एक जैसे लगते हैं पर उनकी वर्तनी अलग होती है और अर्थ भी अलग होता है। '

 

उदाहरण 

  • अवधि -समय ,                                                अवधी -अवध की भाषा 
  • दिशा -तरफ ,                                                 दशा -हालत
     
  •  गिरि -पर्वत ,                                                  गिरी -गिरना
  • परिणाम -नतीजा ,                                          परिमाण -मात्रा
  • और -तथा ,                                                     ओर -तरफ
  • अनल -आग ,                                                 अनिल -वायु    
  • अवलंब -सहारा                                            अविलंब -       शीघ्र / बिना देर किए

     
        


 

 

 

चित्रलिखित और 'किंकर्तव्यविमूढ़' का अर्थ

Chitralekha - Ravi Varma Press, Karla, Lonavala and Raja Ravi Varma —  Google Arts & Culture आज एक शब्द के विषय में हुई बहस में भाग लेने का अवसर मिल -मेरा उत्तर इस प्रकार था-

पाठक इसमें कोई दोष पायें तो  कृपया टिप्पणी में लिख दें।
सबसे पहले  धन्यवाद जो आपने मुझे आमंत्रित किया । आप ही के बताए शब्द के विषय में बताती हूँ -
'किंकर्तव्यविमूढ़' संस्कृत का शब्द है।
इसे ऐसे देखें- : किम् (क्या ) +‎ कर्तव्य (कार्य ) +‎ विमूढ( दुविधा/असमंजस में पड़ना  ,बुद्धि का चकरा जाना )
सीधा अर्थ है -: क्या कर्तव्य हो इस बारे में विमूढ़ता।
अब भी  स्थिति कभी भी आ  सकती है । इस स्थिति में आपके हाव-भाव से ज्ञात होगा कि आप दुविधा/confusion में हैं। चेहरा 'blank'नहीं होगा।आँखें स्थिर /जड़ नहीं होंगी , दिमाग सुन्न नहीं होगा,आप रास्ता सोचेंगे और उसके बाद जिसके कारण ऐसा हुआ उसके लिए कोई प्रतिक्रिया आप देंगे ।
जब किसी कलम या कूँची आदि की सहायता से चित्र अंकित किया जाता है तब वह प्रक्रिया चित्र लेखन कहलाती है ।
इसे हम चित्र निर्माण नहीं कहते । चित्र बनाने की कूँची को 'चित्रलेखा' भी कहते हैं
'चित्रलिखी' या 'चित्रलिखित' का अर्थ है चित्र के समान अंकित दिखायी देना या चित्र के समान दिखायी  देना या हो जाना ।
जब किसी में कोई हाव भाव नहीं वह जड़ दिखायी देती है तो कह देते हैं वह 'चित्रलिखी' सी हो गई ।
या किसी दृश्य या घटना के बाद आश्चर्य से भी यह स्थिति हो जाती है और दुख की अधिकता से भी ।
 जैसे कौशल्या की स्थिति राम के वन गमन के समय हो गई थी ,पुत्र वियोगिनी माता का दुख  तुलसीदास जी ने इस प्रकार लिखा  'कबहुँ समुझि वनगमन राम को रहि चकि चित्रलिखी सी। तुलसीदास वह समय कहे तें लागति प्रीति सिखी सी।
एक लेखिका ने पर्वतीय स्थल के सौन्दर्य से प्रभावित होकर ऐसी स्थिति में स्वयं को पाया -
'चित्रलिखित-सी मैं 'माया' और 'छाया' के इस अनूठे खेल को भर-भर आँखों देखती जा रही थी। प्रकृति जैसे मुझे सयानी (समझदार, चतूर) बनाने के लिए रहस्यों का उद्घाटन करने पर तुली हुई थी।'
ऐसी स्थिति से बाहर लाने के लिए कोई उद्दीपन चाहिए ,वह कोई आवाज हो सकती है या कोई स्पर्श या कुछ भी जो आपको वापस चेतना में ला दे !
'अहिल्या पत्थर बन गयी थी।' हम यह सुनते आए हैं यह उनकी ऐसी ही स्थिति थी जिसमें वे अपनी चेतनता (होश)को खो चुकी थी ।यहाँ उनकी स्थिति कुछ समय के लिए नहीं थी इसलिए कवि ने उन्हें चित्रलिखी सी नहीं कहा , 'पत्थर' कहा।

चित्रलिखित -चित्र हो जाना । चित्र बन जाना(रूपक अलंकार ) ,चित्रलिखी सा /सी -चित्र के समान (उपमा अलंकार ) जैसे :आप मेरे लिए भगवान जैसे ही हो,(उपमा)आप मेरे भगवान(रूपक) हो !


आज विद्यालयों में चित्रलेखन प्रतियोगिता को  'ड्रॉइंग काम्पिटिशन' कहा जाता है ,'चित्र 'देखकर अपने विचार लिखना ' को 'चित्र लेखन' कह देते हैं जो गलत है, चित्र देखकर लेखन  'चित्र वर्णन' कहलाता है । और भी बहुत से शब्द हम खो रहे हैं ।  हिन्दी से 'हिंगलिश' होते जाने की यह दुखद स्थिति है । कुछ दिनों में हम 'विद्यालय' शब्द पर भी बहस करेंगे क्योंकि अब हम इसे 'स्कूल' ही जानते हैं। आशा है मैं अपने  सीमित ज्ञान के आधार पर आपकी बात का उत्तर दे सकी हूँ। आभार।