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Wednesday, July 31, 2019
Tuesday, July 30, 2019
अवतार सिंह पाश - सबसे खतरनाक Aaroh 1 NCERT
-अवतार सिंह पाश
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विशेष-
भाषा व्यंजना प्रधान है/सांकेतिक भाषा।
मुक्त छंद /खड़ी बोली है/उर्दू शब्दावली का प्रयोग
संवेदनशून्यता पर गहरा व्यंग्य ।
‘जमी बर्फ’, ‘मुहब्बत से चूमना’, ‘अंधेपन की भाप’, ‘रोजमर्रा के क्रम को पीती’ आदि नए भाषिक प्रयोग
‘अंधेपन की भाप’/आत्मा का सूरज /‘जिस्म के पूरब’ में रूपक अलंकार
गीत का मानवीकरण
‘मिचों की तरह’, ‘गुंडों की तरह’ में उपमा अलंकार
‘जुगनू की लौ’ से साधनहीनता/
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
गद्दारी, लोभ की मुट्ठी
सबसे ख़तरनाक नहीं होती
सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
ना होना तड़प का
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे खतरनाक वो आँखें होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है..
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीज़ों से उठती अन्धेपन कि भाप पर ढुलक जाती है
जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमे आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके ज़िस्म के पूरब में चुभ जाए
[यह कविता पंजाबी भाषा से अनूदित]
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- कवि पाश का मूल नाम अवतार सिंह संधू है। इनका जन्म 1950 ई. में पंजाब राज्य के जालंधर जिले के तलवंडी सलेम गाँव में हुआ।
- अनेक साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया और सिआड़, हेमज्योति, हॉक, एंटी-47 जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया।
- कुछ समय तक अमेरिका में रहे।
- मृत्यु 1988 ई. में हुई।
- इनकी रचनाएँ -
लौह कथा, उड़दें बाजां मगर, साडै। समिया बिच, लड़ेंगे साथी (पंजाबी); बीच का रास्ता नहीं होता, लहू है कि तब भी गाता है (हिंदी अनुवाद)।
अक्क महादेवी Aaroh 1 NCERT
1. हे भूख! मत मचल
इन्द्रियों का काम है अपने को तृप्त करना इन्द्रियों की तृप्ति के फेर में मानव जीवन भर भटकता रहता है। इन्द्रियाँ मानव को विषय-वासनाओं के जाल में उलझाकर लक्ष्य पथ से भटकाती रहती है। ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में तो इन्द्रियाँ सबसे बड़ी बाधक होती है यह साधक को संसार की मोह-माया में उलझाकर रखती है और ईश्वर भक्ति के मार्ग की ओर बढ़ने नहीं देती। अत: यह सरासर सत्य है की लक्ष्य प्राप्ति में इन्द्रियाँ बाधक होती है।
‘अपना घर’ से यहाँ आशय व्यक्तिगत मोह-माया में लिप्त जीवन से है। व्यक्ति इस घर के आकर्षण-जाल में उलझकर ईश्वर प्राप्ति के लक्ष्य में पीछे रह जाता है। कवयित्री ऐसे मोह-माया में लिपटे जीवन को छोड़ने की बात करती है क्योंकि यदि ईश्वर को पाना है तो व्यक्ति को इस जीवन का त्याग करना होगा। ईश्वर भक्ति में सबसे बड़ी बाधा यही होती है। अपने घर को छोड़कर ही ईश्वर के घर में कदम रखा जा सकता है।
2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर
पूरी तरह झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।
इस वचन में ईश्वर से सबकुछ छीन लेने की बात की गई है। कवयित्री चाहती है कि वह सांसारिक वस्तुओं से पूरी तरह खाली हो जाए। उसे खाने के लिए भीख तक न मिले। ऐसी परिस्थिति आने पर उसका अंहकार भाव नष्ट हो जाएगा और वह प्रभु भक्ति में समर्पित हो जाएगी।
दुष्यंत कुमार - ग़ज़ल - कहाँ तो तय था चरांगा हरेक घर के लिए Aaroh 1 NCERT
साए में धूप से एक ग़ज़ल
कहाँ तो तय था ....
लेखक परिचय और व्याख्या सहित
https://youtu.be/oCdCKMfILpg
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कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये
यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिये
न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये
ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये
वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिये
जियें तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले
मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिये.
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त्रिलोचन - चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती Aaroh 1 NCERT
-त्रिलोचन
Aaroh 1 NCERT
सार :-
‘चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती ’ कविता धरती संग्रह में संकलित है।
यह कविता पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त करती है।
इसमें ‘अक्षरों’ के लिए ‘काले-काले’ विशेषण का प्रयोग किया गया है जो एक ओर शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्विरोधों को उजागर करता है तो दूसरी ओर उस दारुण यथार्थ से भी हमारा परिचय कराता है जहाँ आर्थिक मजबूरियों के चलते घर टूटते हैं।
काव्य नायिका चंपा के मन में भविष्य को लेकरअनजान खतरा है। वह कहती है ‘कलकत्ते पर बजर गिरे।” कलकत्ते पर वज़ गिरने की कामना, जीवन के खुरदरे यथार्थ के प्रति चंपा के संघर्ष और जीवन को प्रकट करती है।
चंपा गाँव की अनपढ़ बालिका है। उसे अक्षर ज्ञान नहीं है।
जब कवि पढ़ने लगता है तब वह वहाँ आकर चुपचाप खड़ी-खड़ी सुनती रहती है। वह सुंदर ग्वाले की एक लड़की है ,गाएँ-भैसें चराने का काम करती है। वह अच्छी व चंचल है।
जब कवि पढ़ता है तो चुपचाप पास खड़ी होकर आश्चर्य से सुनती है।
कभी वह कवि की कलम चुरा लेती है तो कभी कागज। इससे कवि परेशान हो जाता है।
चंपा कहती है कि दिन भर कागज लिखते रहना क्या अच्छा है? कवि हँस देता है।
एक दिन कवि ने चंपा से पढ़ने-लिखने के लिए कहा। उन्होंने इसे गाँधी बाबा की इच्छा बताया। चंपा ने कहा कि गाँधी जी को बहुत अच्छे बताते हो, फिर वे पढ़ाई की बात कैसे कहेंगे? कवि ने कहा कि पढ़ना अच्छा है। लेकिन वह कहती है कि नहीं पढ़ेगी।
कवि समझाता है कि शादी के बाद तुम ससुराल जाओगी। तुम्हारा पति कलकत्ता काम के लिए जाएगा। अगर तुम नहीं पढ़ी तो उसके पत्र कैसे पढ़ोगी या अपना संदेशा कैसे दोगी? इस पर चंपा ने कहा कि तुम पढ़े-लिखे झूठे हो। वह शादी नहीं करेगी। यदि शादी करेगी तो अपने पति को कभी कलकत्ता नहीं जाने देगी। कलकत्ते पर बजर गिरे।” अर्थात कलकत्ता पर भारी विपत्ति आ जाए, ऐसी कामना वह करती है।
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सुमित्रानंदन पंत - वे आँखें /व्याख्या और प्रश्न-उत्तर सहित Aaroh 1 NCERT
सुमित्रानंदन पंत
पूरी कविता
सप्रसंग व्याख्या और प्रश्न-उत्तर सहित
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अधिकार की गुहा सरीखी
उन अखिों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुख का नीरव रांदन!
वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा अखिों में इसका,
छोड़ उसे मंझधार आज
संसार कगार सदृश बह खिसका।
लहराते वे खेत द्वगों में
हुआ बेदखल वह अब जिनसे,
हसती थी उसके जीवन की
हरियाली जिनके तृन-तृन से !
आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी अखिों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा।
बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कड़ी छोड़ी,
रह-रह आँखों में चुभती वह
कुक हुई बरधों की जोड़ी !
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती !
बिना दवा-दपन के घरनी
स्वरगा चली,-अखं आती भर,
देख-रेख के बिना दुधमुही
बिटिया दो दिन बाद गई मर!
घर में विधवा रही पताहू,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
पकडु मॅाया, कोतवाल ने,
डूब कुएँ में मरी एक दिन।
खैर , पैर की जूती[उपेक्षित], जोरू
न सही एक, दूसरी आती,
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लौटते, फटती छाती।
पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक हैं लाती,
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोंक सदृश बन जाती।
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रामनरेश त्रिपाठी - पथिक/ आरोह NCERT
पथिक
-रामनरेश त्रिपाठी
मीरा के पद |व्याख्या |कक्षा 11| Aaroh 1 NCERT
https://youtu.be/KFjv6PQfZbQ
i. मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई
ii. पग घुंघरू बांधि मीरां नाची
जवाहरलाल नेहरू - भारत-माता /Bharat Mata -Hindustan ki kahani-JawaharLal Nehru
Class 11 Aaroh NCERT
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कृश्नचंदर - जामुन का पेड़/Explanation Aaroh 1 NCERT
जामुन का पेड़- कृश्न चंदर
रात को बड़े जोर का अंधड़ चला। सेक्रेटेरिएट के लॉन में जामुन का एक पेड़ गिर पडा। सुबह जब माली ने देखा तो उसे मालूम हुआ कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है।
माली दौड़ा दौड़ा चपरासी के पास गया, चपरासी दौड़ा दौड़ा क्लर्क के पास गया, क्लर्क दौड़ा दौड़ा सुपरिन्टेंडेंट के पास गया। सुपरिन्टेंडेंट दौड़ा दौड़ा बाहर लॉन में आया। मिनटों में ही गिरे हुए पेड़ के नीचे दबे आदमी के इर्द गिर्द मजमा इकट्ठा हो गया।
"बेचारा जामुन का पेड़ कितना फलदार था।‘' एक क्लर्क बोला।
‘'इसके जामुन कितने रसीले होते थे।‘' दूसरा क्लर्क बोला।
‘'मैं फलों के मौसम में झोली भरके ले जाता था। मेरे बच्चे इसके जामुन कितनी खुशी से खाते थे।‘' तीसरे क्लर्क का यह कहते हुए गला भर आया।
‘'मगर यह आदमी?'' माली ने पेड़ के नीचे दबे आदमी की तरफ इशारा किया।
‘'हां, यह आदमी'' सुपरिन्टेंडेंट सोच में पड़ गया।
‘'पता नहीं जिंदा है कि मर गया।‘' एक चपरासी ने पूछा।
‘'मर गया होगा। इतना भारी तना जिसकी पीठ पर गिरे, वह बच कैसे सकता है?'' दूसरा चपरासी बोला।
‘'नहीं मैं जिंदा हूं।‘' दबे हुए आदमी ने बमुश्किल कराहते हुए कहा।
‘'जिंदा है?'' एक क्लर्क ने हैरत से कहा।
‘'पेड़ को हटा कर इसे निकाल लेना चाहिए।‘' माली ने मशविरा दिया।
‘'मुश्किल मालूम होता है।‘' एक काहिल और मोटा चपरासी बोला। ‘'पेड़ का तना बहुत भारी और वजनी है।‘'
‘'क्या मुश्किल है?'' माली बोला। ‘'अगर सुपरिन्टेंडेंट साहब हुकम दें तो अभी पंद्रह बीस माली, चपरासी और क्लर्क जोर लगा के पेड़ के नीचे दबे आदमी को निकाल सकते हैं।‘'
‘'माली ठीक कहता है।‘' बहुत से क्लर्क एक साथ बोल पड़े। ‘'लगाओ जोर हम तैयार हैं।‘'
एकदम बहुत से लोग पेड़ को काटने पर तैयार हो गए।
‘'ठहरो'', सुपरिन्टेंडेंट बोला- ‘'मैं अंडर-सेक्रेटरी से मशविरा कर लूं।‘'
सुपरिन्टेंडेंट अंडर सेक्रेटरी के पास गया। अंडर सेक्रेटरी डिप्टी सेक्रेटरी के पास गया। डिप्टी सेक्रेटरी जाइंट सेक्रेटरी के पास गया। जाइंट सेक्रेटरी चीफ सेक्रेटरी के पास गया। चीफ सेक्रेटरी ने जाइंट सेक्रेटरी से कुछ कहा। जाइंट सेक्रेटरी ने डिप्टी सेक्रेटरी से कहा। डिप्टी सेक्रेटरी ने अंडर सेक्रेटरी से कहा। फाइल चलती रही। इसी में आधा दिन गुजर गया।
दोपहर को खाने पर, दबे हुए आदमी के इर्द गिर्द बहुत भीड़ हो गई थी। लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। कुछ मनचले क्लर्कों ने मामले को अपने हाथ में लेना चाहा। वह हुकूमत के फैसले का इंतजार किए बगैर पेड़ को खुद से हटाने की तैयारी कर रहे थे कि इतने में, सुपरिन्टेंडेंट फाइल लिए भागा भागा आया, बोला- हम लोग खुद से इस पेड़ को यहां से नहीं हटा सकते। हम लोग वाणिज्य विभाग के कर्मचारी हैं और यह पेड़ का मामला है, पेड़ कृषि विभाग के तहत आता है। इसलिए मैं इस फाइल को अर्जेंट मार्क करके कृषि विभाग को भेज रहा हूं। वहां से जवाब आते ही इसको हटवा दिया जाएगा।
दूसरे दिन कृषि विभाग से जवाब आया कि पेड़ हटाने की जिम्मेदारी तो वाणिज्य विभाग की ही बनती है।
यह जवाब पढ़कर वाणिज्य विभाग को गुस्सा आ गया। उन्होंने फौरन लिखा कि पेड़ों को हटवाने या न हटवाने की जिम्मेदारी कृषि विभाग की ही है। वाणिज्य विभाग का इस मामले से कोई ताल्लुक नहीं है।
दूसरे दिन भी फाइल चलती रही। शाम को जवाब आ गया। ‘'हम इस मामले को हार्टिकल्चर विभाग के सुपुर्द कर रहे हैं, क्योंकि यह एक फलदार पेड़ का मामला है और कृषि विभाग सिर्फ अनाज और खेती-बाड़ी के मामलों में फैसला करने का हक रखता है। जामुन का पेड़ एक फलदार पेड़ है, इसलिए पेड़ हार्टिकल्चर विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है।
रात को माली ने दबे हुए आदमी को दाल-भात खिलाया। हालांकि लॉन के चारों तरफ पुलिस का पहरा था, कि कहीं लोग कानून को अपने हाथ में लेकर पेड़ को खुद से हटवाने की कोशिश न करें। मगर एक पुलिस कांस्टेबल को रहम आ गया और उसने माली को दबे हुए आदमी को खाना खिलाने की इजाजत दे दी।
माली ने दबे हुए आदमी से कहा- ‘'तुम्हारी फाइल चल रही है। उम्मीद है कि कल तक फैसला हो जाएगा।‘'
दबा हुआ आदमी कुछ न बोला।
माली ने पेड़ के तने को गौर से देखकर कहा, अच्छा है तना तुम्हारे कूल्हे पर गिरा। अगर कमर पर गिरता तो रीढ़ की हड्डी टूट जाती।
दबा हुआ आदमी फिर भी कुछ न बोला।
माली ने फिर कहा ‘'तुम्हारा यहां कोई वारिस हो तो मुझे उसका अता-पता बताओ। मैं उसे खबर देने की कोशिश करूंगा।‘'
‘'मैं लावारिस हूं।‘' दबे हुए आदमी ने बड़ी मुश्किल से कहा।
माली अफसोस जाहिर करता हुआ वहां से हट गया।
तीसरे दिन हार्टिकल्चर विभाग से जवाब आ गया। बड़ा कड़ा जवाब लिखा गया था। काफी आलोचना के साथ। उससे हार्टिकल्चर विभाग का सेक्रेटरी साहित्यिक मिजाज का आदमी मालूम होता था। उसने लिखा था- ‘'हैरत है, इस समय जब ‘पेड़ उगाओ' स्कीम बड़े पैमाने पर चल रही है, हमारे मुल्क में ऐसे सरकारी अफसर मौजूद हैं, जो पेड़ काटने की सलाह दे रहे हैं, वह भी एक फलदार पेड़ को! और वह भी जामुन के पेड़ को !! जिसके फल जनता बड़े चाव से खाती है। हमारा विभाग किसी भी हालत में इस फलदार पेड़ को काटने की इजाजत नहीं दे सकता।‘'
‘'अब क्या किया जाए?'' एक मनचले ने कहा- ‘'अगर पेड़ नहीं काटा जा सकता तो इस आदमी को काटकर निकाल लिया जाए! यह देखिए, उस आदमी ने इशारे से बताया। अगर इस आदमी को बीच में से यानी धड़ की जगह से काटा जाए, तो आधा आदमी इधर से निकल आएगा और आधा आदमी उधर से बाहर आ जाएगा और पेड़ भी वहीं का वहीं रहेगा।‘'
‘'मगर इस तरह से तो मैं मर जाऊंगा !'' दबे हुए आदमी ने एतराज किया।
‘'यह भी ठीक कहता है।‘' एक क्लर्क बोला।
आदमी को काटने का नायाब तरीका पेश करने वाले ने एक पुख्ता दलील पेश की- ‘'आप जानते नहीं हैं। आजकल प्लास्टिक सर्जरी के जरिए धड़ की जगह से, इस आदमी को फिर से जोड़ा जा सकता है।‘'
अब फाइल को मेडिकल डिपार्टमेंट में भेज दिया गया। मेडिकल डिपार्टमेंट ने फौरन इस पर एक्शन लिया और जिस दिन फाइल मिली उसने उसी दिन विभाग के सबसे काबिल प्लास्टिक सर्जन को जांच के लिए मौके पर भेज दिया गया।
सर्जन ने दबे हुए आदमी को अच्छी तरह टटोल कर, उसकी सेहत देखकर, खून का दबाव, सांस की गति, दिल और फेफड़ों की जांच करके रिपोर्ट भेज दी कि, ‘'इस आदमी का प्लास्टिक ऑपरेशन तो हो सकता है, और ऑपरेशन कामयाब भी हो जाएगा, मगर आदमी मर जाएगा।
लिहाजा यह सुझाव भी रद्द कर दिया गया।
रात को माली ने दबे हुए आदमी के मुंह में खिचड़ी डालते हुए उसे बताया ‘'अब मामला ऊपर चला गया है। सुना है कि सेक्रेटेरियट के सारे सेक्रेटरियों की मीटिंग होगी। उसमें तुम्हारा केस रखा जाएगा। उम्मीद है सब काम ठीक हो जाएगा।‘'
दबा हुआ आदमी एक आह भर कर आहिस्ते से बोला- ‘'हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन खाक हो जाएंगे हम, तुमको खबर होने तक।‘'
माली ने अचंभे से मुंह में उंगली दबाई। हैरत से बोला- ‘'क्या तुम शायर हो।‘'
दबे हुए आदमी ने आहिस्ते से सर हिला दिया।
दूसरे दिन माली ने चपरासी को बताया, चपरासी ने क्लर्क को और क्लर्क ने हेड-क्लर्क को। थोड़ी ही देर में सेक्रेटेरिएट में यह बात फैल गई कि दबा हुआ आदमी शायर है। बस फिर क्या था। लोग बड़ी संख्या में शायर को देखने के लिए आने लगे। इसकी खबर शहर में फैल गई। और शाम तक मुहल्ले मुहल्ले से शायर जमा होना शुरू हो गए। सेक्रेटेरिएट का लॉन भांति भांति के शायरों से भर गया।
सेक्रेटेरिएट के कई क्लर्क और अंडर-सेक्रेटरी तक, जिन्हें अदब और शायर से लगाव था, रुक गए। कुछ शायर दबे हुए आदमी को अपनी गजलें सुनाने लगे, कई क्लर्क अपनी गजलों पर उससे सलाह मशविरा मांगने लगे।
जब यह पता चला कि दबा हुआ आदमी शायर है, तो सेक्रेटेरिएट की सब-कमेटी ने फैसला किया कि चूंकि दबा हुआ आदमी एक शायर है लिहाजा इस फाइल का ताल्लुक न तो कृषि विभाग से है और न ही हार्टिकल्चर विभाग से बल्कि सिर्फ संस्कृति विभाग से है। अब संस्कृति विभाग से गुजारिश की गई कि वह जल्द से जल्द इस मामले में फैसला करे और इस बदनसीब शायर को इस पेड़ के नीचे से रिहाई दिलवाई जाए।
फाइल संस्कृति विभाग के अलग अलग सेक्शन से होती हुई साहित्य अकादमी के सचिव के पास पहुंची। बेचारा सचिव उसी वक्त अपनी गाड़ी में सवार होकर सेक्रेटेरिएट पहुंचा और दबे हुए आदमी से इंटरव्यू लेने लगा।
‘'तुम शायर हो उसने पूछा।‘'
‘'जी हां'' दबे हुए आदमी ने जवाब दिया।
‘'क्या तखल्लुस रखते हो''
‘'अवस''
‘'अवस''! सचिव जोर से चीखा। क्या तुम वही हो जिसका मजमुआ-ए-कलाम-ए-अक्स के फूल हाल ही में प्रकाशित हुआ है।
दबे हुए शायर ने इस बात पर सिर हिलाया।
‘'क्या तुम हमारी अकादमी के मेंबर हो?'' सचिव ने पूछा।
‘'नहीं''
‘'हैरत है!'' सचिव जोर से चीखा। इतना बड़ा शायर! अवस के फूल का लेखक!! और हमारी अकादमी का मेंबर नहीं है! उफ उफ कैसी गलती हो गई हमसे! कितना बड़ा शायर और कैसे गुमनामी के अंधेरे में दबा पड़ा है!
‘'गुमनामी के अंधेरे में नहीं बल्कि एक पेड़ के नीचे दबा हुआ... भगवान के लिए मुझे इस पेड़ के नीचे से निकालिए।‘'
‘'अभी बंदोबस्त करता हूं।‘' सचिव फौरन बोला और फौरन जाकर उसने अपने विभाग में रिपोर्ट पेश की।
दूसरे दिन सचिव भागा भागा शायर के पास आया और बोला ‘'मुबारक हो, मिठाई खिलाओ, हमारी सरकारी अकादमी ने तुम्हें अपनी साहित्य समिति का सदस्य चुन लिया है। ये लो आर्डर की कॉपी।‘'
‘'मगर मुझे इस पेड़ के नीचे से तो निकालो।‘' दबे हुए आदमी ने कराह कर कहा। उसकी सांस बड़ी मुश्किल से चल रही थी और उसकी आंखों से मालूम होता था कि वह बहुत कष्ट में है।
‘'यह हम नहीं कर सकते'' सचिव ने कहा। ‘'जो हम कर सकते थे वह हमने कर दिया है। बल्कि हम तो यहां तक कर सकते हैं कि अगर तुम मर जाओ तो तुम्हारी बीवी को पेंशन दिला सकते हैं। अगर तुम आवेदन दो तो हम यह भी कर सकते हैं।‘'
‘'मैं अभी जिंदा हूं।‘' शायर रुक रुक कर बोला। ‘'मुझे जिंदा रखो।‘'
‘'मुसीबत यह है'' सरकारी अकादमी का सचिव हाथ मलते हुए बोला, ‘'हमारा विभाग सिर्फ संस्कृति से ताल्लुक रखता है। आपके लिए हमने वन विभाग को लिख दिया है। अर्जेंट लिखा है।‘'
शाम को माली ने आकर दबे हुए आदमी को बताया कि कल वन विभाग के आदमी आकर इस पेड़ को काट देंगे और तुम्हारी जान बच जाएगी।
माली बहुत खुश था। हालांकि दबे हुए आदमी की सेहत जवाब दे रही थी। मगर वह किसी न किसी तरह अपनी जिंदगी के लिए लड़े जा रहा था। कल तक... सुबह तक... किसी न किसी तरह उसे जिंदा रहना है।
दूसरे दिन जब वन विभाग के आदमी आरी, कुल्हाड़ी लेकर पहुंचे तो उन्हें पेड़ काटने से रोक दिया गया। मालूम हुआ कि विदेश मंत्रालय से हुक्म आया है कि इस पेड़ को न काटा जाए। वजह यह थी कि इस पेड़ को दस साल पहले पिटोनिया के प्रधानमंत्री ने सेक्रेटेरिएट के लॉन में लगाया था। अब यह पेड़ अगर काटा गया तो इस बात का पूरा अंदेशा था कि पिटोनिया सरकार से हमारे संबंध हमेशा के लिए बिगड़ जाएंगे।
‘'मगर एक आदमी की जान का सवाल है'' एक क्लर्क गुस्से से चिल्लाया।
‘'दूसरी तरफ दो हुकूमतों के ताल्लुकात का सवाल है'' दूसरे क्लर्क ने पहले क्लर्क को समझाया। और यह भी तो समझ लो कि पिटोनिया सरकार हमारी सरकार को कितनी मदद देती है। क्या हम इनकी दोस्ती की खातिर एक आदमी की जिंदगी को भी कुरबान नहीं कर सकते।
‘'शायर को मर जाना चाहिए?''
‘'बिलकुल''
अंडर सेक्रेटरी ने सुपरिंटेंडेंट को बताया। आज सुबह प्रधानमंत्री दौरे से वापस आ गए हैं। आज चार बजे विदेश मंत्रालय इस पेड़ की फाइल उनके सामने पेश करेगा। वो जो फैसला देंगे वही सबको मंजूर होगा।
शाम चार बजे खुद सुपरिन्टेंडेंट शायर की फाइल लेकर उसके पास आया।
‘'सुनते हो?'' आते ही खुशी से फाइल लहराते हुए चिल्लाया ‘'प्रधानमंत्री ने पेड़ को काटने का हुक्म दे दिया है। और इस मामले की सारी अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली है। कल यह पेड़ काट दिया जाएगा और तुम इस मुसीबत से छुटकारा पा लोगे।‘'
‘'सुनते हो आज तुम्हारी फाइल मुकम्मल हो गई।‘' सुपरिन्टेंडेंट ने शायर के बाजू को हिलाकर कहा। मगर शायर का हाथ सर्द था। आंखों की पुतलियां बेजान थीं और चींटियों की एक लंबी कतार उसके मुंह में जा रही थी।
उसकी जिंदगी की फाइल मुकम्मल हो चुकी थी।
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मन्नू भंडारी - रजनी Aaroh 1 NCERT
रजनी
- मन्नू भंडारी
(मध्यवर्गीय परिवार के फ़्लैट का एक कमरा। एक महिला रसोई में व्यस्त है। घंटी बजती है। बाई दरवाज़ा खोलती है।
रजनी:
लीला बेन कहाँ हो...बाज़ार नहीं चलना क्या?
लीला:
(रसोई में से हाथ पोंछती हुई निकलती है) चलना तो था पर इस समय तो अमित आ रहा होगा अपना रिज़ल्ट लेकर। आज उसका रिज़ल्ट निकल रहा है न। (चेहरे पर खुशी का भाव)
रजनी:
अरे वाह! तब तो मैं मिठाई खाकर ही जाऊँगी। अमित तो पढ़ने में इतना अच्छा है कि फर्स्ट आएगा और नहीं तो सेकंड तो कहीं गया नहीं। तुमको मिठाई भी बढ़िया खिलानी पड़ेगी...सूजी के हलवे से काम नहीं चलने वाला, मैं अभी से बता देती हूँ।
लीला:
हाँ रजनी तुम कुछ करोगी-कहोगी तो अगले साल कहीं और ज्यादा परेशान न करें इसे। अब जब रहना इसी स्कूल में है तो इन लोगों से झगड़ा।
रजनी:
(बात को बीच में ही काटकर गुस्से से) यानी कि वे लोग जो भी जुलुम-ज्यादती करें, हम लोग चुपचाप बर्दाश्त करते जाएँ? सही बात कहने में डर लग रहा है तुझे, तेरी माँ को! अरे जब बच्चे ने सारा पेपर ठीक किया है तो हम कॉपी देखने की माँग तो कर ही सकते हैं...पता तो लगे कि आखिर किस बात के नंबर काटे हैं?
अमित:
(झुँझलाकर) बता तो दिया आंटी। आप...
रजनी:
(गुस्से से) ठीक है तो अब बैठकर रोओ तुम माँμबेटे दोनों।
लीला :
(दनदनाती निकल जाती है। दोनों के चेहरे पर एक असहाय-सा भाव।) अब यह रजनी कोई और मुसीबत न खड़ी करे।
दृश्य समाप्त
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नया दृश्य
हैडमास्टर:
देखिए यह टीचर्स और स्टूडेंट्स का अपना आपसी मामला है, वो पढ़ने जाते हैं और वो पढ़ाते हैं। इसमें न स्कूल आता है, न स्कूल के नियम! इस बारे में हम क्या कर सकते हैं?
रजनी:
कुछ नहीं कर सकते आप? तो मेहरबानी करके यह कुर्सी छोड़ दीजिए। क्योंकि यहाँ पर कुछ कर सकने वाला आदमी चाहिए। जो ट्यूशन के नाम पर चलने वाली धाँधलियों को रोक सके...मासूम और बेगुनाह बच्चों को ऐसे टीचर्स के शिकंजों से बचा सके जो ट्यूशन न लेने पर बच्चों के नंबर काट लेते हैं...और आप हैं कि कॉपियाँ न दिखाने के नियम से उनके सारे गुनाह ढक देते हैं।
हैडमास्टर:
(चीखकर) विल यू प्लीज़ गेट आउट ऑफ दिस रूम। (शोर-शोर से घंटी बजाने लगता है। दौड़ता हुआ चपरासी आता है) मेमसाहब को बाहर ले जाओ।
रजनी:
मुझे बाहर करने की शरूरत नहीं। बाहर कीजिए उन सब टीचर्स को जिन्होंने आपकी नाक के नीचे ट्यूशन का यह घिनौना रैकेट चला रखा है। (व्यंग्य से) पर आप तो कुछ कर नहीं सकते, इसलिए अब मुझे ही कुछ करना होगा और मैं करूँगी, देखिएगा आप। (तमतमाती हुई निकल जाती है।) (हैडमास्टर चपरासी पर ही बिगड़ पड़ता है) जाने किस-किस को भेज देते हो भीतर।
चपरासी:
मैंने तो आपको स्लिप लाकर दी थी साहब।
(हैडमास्टर गुस्से में स्लिप की चिंदी-चिंदी करके फेंक देता है, कुछ इस भाव से मानो रजनी की ही चिदियाँ बिखेर रहा हो।)
नया दृश्य
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दृश्य समाप्त
(रजनी का फ़्लैट। शाम का समय। घंटी बजती है। रजनी आकर दरवाज़ा खोलती है। पति का प्रवेश। उसके हाथ से ब्रीफकेस लेती है।)
रजनी:
देखो, तुम मुझे फिर गुस्सा दिला रहे हो रवि...गलती करने वाला तो है ही गुनहगार, पर उसे बर्दाश्त करने वाला भी कम गुनहगार नहीं होता जैसे लीला बेन और कांति भाई और हज़ारों-हज़ारों माँ-बाप। लेकिन सबसे बड़ा गुनहगार तो वह है जो चारों तरफ़ अन्याय, अत्याचार और तरह-तरह की धाँधलियों को देखकर भी चुप बैठा रहता है, जैसे तुम। (नकल उतारते हुए) हमें क्या करना है, हमने कोई ठेका ले रखा है दुनिया का। (गुस्से और हिकारत से) माई फुट (उठकर भीतर जाने लगती है। जाते-जाते मुड़कर) तुम जैसे लोगों के कारण ही तो इस देश में कुछ नहीं होता, हो भी नहीं सकता! (भीतर चली जाती है।)
पति:
(बेहद हताश भाव से दोनों हाथों से माथा थामकर) चढ़ा दिया सूली पर।
दृश्य समाप्त
नया दृश्य
साथ में एक-दो महिलाएँ और भी हैं। फिर एक के बाद एक तीन-चार घरों में माँ-बाप से मिल रही है उन्हें समझा रही है। साथ में लीला बेन और तीन-चार महिलाएँ और भी हैं।)
नया दृश्य
दृश्य समाप्त
(किसी अखबार का दफ्तर। कमरे में संपादक बैठे हैं, साथ में तीन-चार स्त्रियों के साथ रजनी बैठी है।)
संपादक:
आपने तो इसे बाकायदा एक आंदोलन का रूप ही दे दिया। बहुत अच्छा किया। इसके बिना यहाँ चीशें बदलती भी तो नहीं हैं। शिक्षा के क्षेत्र में फैली इस दुकानदारी को तो बंद होना ही चाहिए।
रजनी:
(एकाएक जोश में आकर) आप भी महसूस करते हैं न ऐसा?... तो फिर साथ दीजिए हमारा। अखबार यदि किसी इश्यू को उठा ले और लगातार उस पर चोट करता रहे तो फिर वह थोड़े से लोगों की बात नहीं रह जाती। सबकी बन जाती है...आँख मूँदकर नहीं रह सकता फिर कोई उससे। आप सोचिए ज़रा अगर इसके खिलाफ़ कोई नियम बनता है तो (आवेश के मारे जैसे बोला नहीं जा रहा है।) कितने पेरेंट्स को राहत मिलेगी...कितने बच्चों का भविष्य सुधर जाएगा, उन्हें अपनी मेहनत का फल मिलेगा, माँ-बाप के पैसे का नहीं, ...शिक्षा के नाम पर बचपन से ही उनके दिमाग में यह तो नहीं भरेगा कि पैसा ही सब कुछ है...वे...वे...
संपादक:
इसमें आप अखबारवालों को अपने साथ ही पाएँगी। अमित के उदाहरण से आपकी सारी बात मैंने नोट कर ली है। एक अच्छा-सा राइट-अप तैयार करके पीटीआई के द्वारा मैं एक साथ फ्लैश करवाता हूँ।
रजनी:
(गद्गद होते हुए) एक काम और कीजिए। 25 तारीख को हम लोग पेरेंट्स की एक मीटिंग कर रहे हैं, राइट-अप के साथ इसकी सूचना भी दे दीजिए तो सब लोगों तक खबर पहुँच जाएगी। व्यक्तिगत तौर पर तो हम मुश्किल से सौ-सवा सौ लोगों से संपर्क कर पाए हैं... वह भी रात-दिन भाग-दौड़ करके (ज़रा-सा रुककर) अधिक-से-अधिक
लोगों के आने के आग्रह के साथ सूचना दीजिए।
संपादक:
दी।
(सब लोग हँस पड़ते हैं।)
रजनी:
ये हुई न कुछ बात।
नया दृश्य
दृश्य समाप्त
(मीटिंग का स्थान। बाहर कपड़े का बैनर लगा हुआ है। बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं और भीतर जा रहे हैं, लोग खुश हैं, लोगों में जोश है। विरोध और विद्रोह का पूरा माहौल बना हुआ है। दृश्य कटकर अंदर जाता है। हॉल भरा हुआ है। एक ओर प्रेस वाले बैठे हैं, इसे बाकायदा फ़ोकस करना है। एक महिला माइक पर से उतरकर नीचे आती है। हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट। अब मंच पर से उठकर रजनी माइक पर आती है। पहली पंक्ति में रजनी के पति भी बैठे हैं।)
बहनों और भाइयों,
इतनी बड़ी संख्या में आपकी उपस्थिति और जोश ही बता रहा है कि अब हमारी मंजिल दूर नहीं है। इन दो महीनों में लोगों से मिलने पर इस समस्या के कई पहलू हमारे सामने आए...कुछ अभी आप लोगों ने भी यहाँ सुने। (कुछ रुककर) यह भी सामने आया कि बहुत से बच्चों के लिए ट्यूशन ज़रूरी भी है। माँएँ इस लायक नहीं होतीं कि अपने बच्चों को पढ़ा सकें और पिता (ज़रा रुककर) जैसे वे घर के और किसी काम में ज़रा-सी भी मदद नहीं करते, बच्चों को भी नहीं पढ़ाते। (ठहाका, कैमरा उसके पति पर भी जाए) तब कमजोर बच्चों के लिए ट्यूशन ज़रूरी भी हो जाती है। (रुककर) बड़ा अच्छा लगा जब टीचर्स की ओर से भी एक प्रतिनिधि ने आकर बताया कि कई प्राइवेट स्कूलों में तो उन्हें इतनी कम तनख्वाह मिलती है कि ट्यूशन न करें तो उनका गुज़ारा ही न हो। कई जगह तो ऐसा भी है कि कम तनख्वाह देकर ज्यादा पर दस्तखत करवाए जाते हैं। ऐसे टीचर्स से मेरा अनुरोध है कि वे संगठित होकर एक आंदोलन चलाएँ और इस अन्याय का पर्दाफ़ाश करें (हॉल में बैठा हुआ पति धीरे से फुसफुसाता है, लो, अब एक और आंदोलन का मसाला मिल गया, कैमरा फिर रजनी पर) इसलिए अब हम अपनी समस्या से जुड़ी सारी बातों को नज़र में रखते हुए ही बोर्ड के सामने यह प्रस्ताव रखेंगे कि वह ऐसा नियम बनाए (एक-एक शब्द पर शोर देते हुए) कि कोई भी टीचर अपने ही स्कूल के छात्रें का ट्यूशन नहीं करेगा। (रुककर) ऐसी स्थिति में बच्चों के साथ शोर-ज़बरदस्ती करने, उनके नंबर काटने की गंदी हरकतें अपने आप बंद हो जाएँगी। साथ ही यह भी हो कि इस नियम को तोड़ने वाले टीचर्स के खिलाफ़ सख्त-से-सख्त कार्यवाही की जाएगी...। अब आप लोग अपनी राय दीजिए।
(सारा हॉल, एप्रूव्ड, एप्रूव्ड की आवाजों और तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठता है।)
दृश्य समाप्त
नया दृश्य
(रजनी का फ़्लैट। सवेरे का समय। कमरे में पति अखबार पढ़ रहा है। पहला पृष्ठ पलटते ही रजनी की तस्वीर दिखाई देती है, जल्दी-जल्दी पढ़ता है, फिर एकदम चिल्लाता है।)
पति:
अरे रजनी...रजनी, सुनो तो बोर्ड ने तुम लोगों का प्रस्ताव ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लिया।
रजनी:
(भीतर से दौड़ती हुई आती है। अखबार छीनकर जल्दी-जल्दी पढ़ती है। चेहरे पर संतोष, प्रसन्नता और गर्व का भाव।)
रजनी:
तो मान लिया गया हमारा प्रस्ताव...बिलकुल जैसा का तैसा और बन गया यह नियम। (खुशी के मारे अखबार को ही छाती से चिपका लेती है।) मैं तो कहती हूँ कि अगर डटकर मुकाबला किया जाए तो कौन-सा ऐसा अन्याय है, जिसकी धज्जियाँ न बिखेरी जा सकती हैं।
पति: (मुग्ध भाव से उसे देखते हुए) आई एम प्राउड ऑफ यू रजनी...रियली, रियली...आई एम वैरी प्राउड ऑफ यू।
रजनी: (इतराते हुए) हूँ दो महीने तक लगातार मेरी धज्जियाँ बिखेरने के बाद। (दोनों हँसते हैं।)
(लीला बेन, कांतिभाई और अमित का प्रवेश)
लीला बेन:
उस दिन तुम्हारी जो रसमलाई रह गई, वह आज खाओ।
कांतिभाई:
और सबके हिस्से की तुम्हीं खाओ।
(अमित दौड़कर अपने हाथ से उसे रसमलाई खिलाने जाता है पर रजनी उसे अमित के मुँह में ही डाल देती है।)
(सब हँसते हैं। हँसी के साथ ही धीरे-धीरे दृश्य समाप्त हो जाता है।)
००००००००००००००००
रजनी के रूप में प्रिया (अभिनेत्री ) तस्वीर : वेब दुनिया से साभार | === |
कृष्णनाथ - स्पीति में बारिश Aaroh 1 NCERT
Aaroh 1 NCERT
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शेखर जोशी - गलता लोहा Aaroh 1 NCERT
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बालमुकुंद गुप्त - विदाई संभाषण Aaroh 1 NCERT
Aaroh 1 NCERT
Jeevan Parichay
Part 1 Vidayi Sambhashan -Shivshambhu ke chitthe
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Part 2 Vidayi Sambhashan
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सत्यजित राय - अपू के साथ ढाई साल/आरोह NCERT
सत्यजित राय ( फिल्म निर्देशक )
जन्म- कोलकाता में 1921 ई. में ।
पहली फीचर फिल्म पथेर पांचाली (बांग्ला) 1955 में प्रदर्शित।
तीस के लगभग फीचर फिल्में ,ज्यादातर फिल्में साहित्यिक कृतियों पर आधारित
फिल्मों के पटकथा-लेखन, संगीत-संयोजन एवं निर्देशन के अलावा बाल व किशोर साहित्य लेखन ।
रचनाएँ-
प्रो. शंकु के कारनामे, सोने का किला, जहाँगीर की स्वर्ण मुद्रा, बादशाही अँगूठी आदि। (बांग्ला), शतरंज के खिलाडी, सद्गति (हिंदी)।
महत्वपूर्ण सम्मान -फ्रांस का लेजन डी ऑनर, जीवन की उपलब्धियों पर आस्कर और भारत रत्न आदि ।
पाठ अपू के साथ ढाई साल नामक संस्मरण पथेर पांचाली फिल्म के अनुभवों से संबंधित है .
प्रेमचंद - नमक का दारोगा Aaroh 1 NCERT
Part 2: https://youtu.be/Az0noMjz6GM
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------- Part 2
आलो-आँधारि’ - बेबी हालदार Vitan Class 11 NCERT 3
बेबी हालदार
परिचय-
जन्म - जम्मू कश्मीर - 1974 ई. में ।
विवाह -तेरह वर्ष की आयु में
शिक्षा -सातवीं कक्षा में छोड़ दी ।
पति के घर से पलायन - 12-13 वर्षों के बाद , तीन बच्चों सहित फरीदाबादमें आई.
वर्तमान में - गुड़गाँव में ( घरेलू नौकरानी के रूप में काम ।
एकमात्र रचना[ मूल रचना बांग्ला भाषा में ]-आलो-आँधारि।
प्रमुख पात्र = बेबी/ आत्मकथात्मक शैली
अन्य पात्र -सुनील,तातुश,शर्मीला
पाठ से मिली जानकारी -
- समाज की यह सच्चाई उजागर होती है कि पुरुष के बिना स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं.
- रिश्तों का संबंध दिल से होता है, अन्यथा रिश्ते पराये होते हैं।दिल में स्नेह हो तो रिश्ते बन जाते हैं।
- आर्थिक संकटों के कारण समस्याएँ-गन्दी बस्तियों में रहने पर मजबूर ,अपूर्ण भोजन व दवाइयों के अभाव में बीमार ,कम उम्र में काम करना ,बच्चों का अशिक्षित रहना ।
- परिस्थितियाँ कितनी ही कठिन क्यों न हों, मनुष्य इच्छाशक्ति से अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
- पाठ ऐसे ही कई सामाजिक विषयों पर ध्यान खींचता है .
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राजस्थान की रजत बूँदें - अनुपम मिश्र Vitan Class 11 NCERT 1
खड़िया पट्टी क्या होती है ?
राजस्थान में रेत बहुत अधिक है, यहाँ अधिक वर्षा भी भूमि में जल्दी जमा हो जाती है। रेगिस्तान में कहीं कहीं रेत की सतह के नीचे प्राय: दस-पंद्रह हाथ से पचास-साठ हाथ नीचे खड़िया पत्थर की एक पट्टी चलती है। यह पट्टी लंबी-चौड़ी होती है, परंतु रेत में दबी होने के कारण दिखाई नहीं देती।खड़िया पत्थर की पट्टी वर्षा के जल को गहरे खारे भूजल तक जाकर मिलने से रोकती है। ऐसी स्थिति में उस क्षेत्र में बरसा पानी भूमि की रेतीली सतह और नीचे चल रही पथरीली पट्टी के बीच अटक कर नमी की तरह फैल जाता है।
खड़िया पट्टी के अलग-अलग नाम हैं- - चारोली , धाधड़ी, धड़धड़ी, बिट्टू रो बल्लियो ,कहीं इस पट्टी का नाम केवल ‘खड़ी’ भी है।
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पाठ के मुख्य भागों से -
इस पाठ में लेखक ने राजस्थान की रेतीली भूमि में पानी के स्रोत कुंई के बारे में विस्तार से वर्णन किया है।
चेलवांजी बसौली से खुदाई कर रहा है। अंदर भयंकर गर्मी है।वह कुंई खोद रहा है।
कुंई की गहराई में चल रहे मेहनती काम पर वहाँ की गरमी का असर पड़ेगा। गरमी कम करने के लिए ऊपर जमीन पर खड़े लोग बीच-बीच में मुट्ठी भर रेत बहुत जोर के साथ नीचे फेंकते हैं। इससे ऊपर की ताजी हवा नीचे फिकाती है और गहराई में जमा दमघोंटू गरम हवा ऊपर लौटती है। इतने ऊपर से फेंकी जा रही रेत के कण नीचे काम कर रहे चेलवांजी के सिर पर लग सकते हैं इसलिए वे अपने सिर पर कांसे, पीतल या अन्य किसी धातु का एक बर्तन टोप की तरह पहने हुए हैं। नीचे थोड़ी खुदाई हो जाने के बाद चेलवांजी के पंजों के आसपास मलबा जमा हो गया है। ऊपर रस्सी से एक छोटा-सा डोल या बाल्टी उतारी जाती है। मिट्टी उसमें भर दी जाती है। पूरी सावधानी के साथ ऊपर खींचते समय भी बाल्टी में से कुछ रेत, कंकड़-पत्थर नीचे गिर सकते हैं। टोप इनसे भी चेलवांजी का सिर बचाएगा। कुंई की चिनाई भी पत्थर, ईट, खींप की रस्सी या अरणी के लट्ठों से की जाती है।
कुंई एक और अर्थ में कुएँ से बिलकुल अलग है। कुआँ भूजल को पाने के लिए बनता है पर कुंई भूजल से ठीक वैसे नहीं जुड़ती जैसे कुआँ जुड़ता है। कुंई वर्षा के जल को बड़े विचित्र ढंग से समेटती है-तब भी जब वर्षा ही नहीं होती! यानी कुंई में न तो सतह पर बहने वाला पानी है, न भूजल है। यह तो ‘नेति-नेति’ जैसा कुछ पेचीदा मामला है। मरुभूमि में रेत का विस्तार और गहराई अथाह है। यहाँ वर्षा अधिक मात्रा में भी हो तो उसे भूमि में समा जाने में देर नहीं लगती। पर कहीं-कहीं मरुभूमि में रेत की सतह के नीचे प्राय: दस-पंद्रह हाथ से पचास-साठ हाथ नीचे खड़िया पत्थर की एक पट्टी चलती है। यह पट्टी जहाँ भी है, काफी लंबी-चौड़ी है पर रेत के नीचे दबी रहने के कारण ऊपूर से दिखती नहीं है।
मरुभूमि में रेत के कण समान रूप से बिखरे रहते हैं। यहाँ परस्पर लगाव नहीं, इसलिए अलगाव भी नहीं होता। पानी गिरने पर कण थोड़े भारी हो जाते हैं पर अपनी जगह नहीं छोड़ते। इसलिए मरुभूमि में धरती पर दरारें नहीं पड़तीं। भीतर समाया वर्षा का जल भीतर ही बना रहता है। एक तरफ थोड़े नीचे चल रही पट्टी इसकी रखवाली करती है तो दूसरी तरफ ऊपर रेत के असंख्य कणों का कड़ा पहरा बैठा रहता है। इस हिस्से में बरसी बूंद-बूंद रेत में समा कर नमी में बदल जाती है। अब यहाँ कुंई बन जाए तो उसका पेट, उसकी खाली जगह चारों तरफ रेत में समाई नमी को फिर से बूंदों में बदलती है। बूंद-बूंद रिसती है और कुंई में पानी जमा होने लगता है-खारे पानी के सागर में अमृत जैसा मीठा पानी।
कुंई की सफलता यानी सजलता उत्सव का अवसर बन जाती है। यों तो पहले दिन से काम करने वालों का विशेष ध्यान रखना यहाँ की परंपरा रही है, पर काम पूरा होने पर तो विशेष भोज का आयोजन होता था। चेलवांजी को विदाई के समय तरह-तरह की भेंट दी जाती थी। चेजारो के साथ गाँव का यह संबंध उसी दिन नहीं टूट जाता था। आच प्रथा से उन्हें वर्ष-भर के तीज-त्योहारों में, विवाह जैसे मंगल अवसरों पर नेग, भेंट दी जाती और फसल आने पर खलियान में उनके नाम से अनाज का एक अलग ढेर भी लगता था। अब सिर्फ मजदूरी देकर भी काम करवाने का रिवाज आ गया है।
निजी और सार्वजनिक संपत्ति का विभाजन करने वाली मोटी रेखा कुंई के मामले में बड़े विचित्र ढंग से मिट जाती है। हरेक की अपनी-अपनी कुंई है। उसे बनाने और उससे पानी लेने का हक उसका अपना हक है। लेकिन कुंई जिस क्षेत्र में बनती है, वह गाँव-समाज की सार्वजनिक जमीन है। उस जगह बरसने वाला पानी ही बाद में वर्ष-भर नमी की तरह सुरक्षित रहेगा और इसी नमी से साल-भर कुंइयों में पानी भरेगा। नमी की मात्रा तो वहाँ हो चुकी वर्षा से तय हो गई है। अब उस क्षेत्र में बनने वाली हर नई कुंई का अर्थ है, पहले से तय नमी का बँटवारा। इसलिए निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में बनी कुंइयों पर ग्राम समाज का अंकुश लगा रहता है। बहुत जरूरत पड़ने पर ही समाज नई कुंई के लिए अपनी स्वीकृति देता है।
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भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ : लता मंगेशकर कुमार गंधर्व Vitan Class 11 NCERT 1
बाल रामकथा (Bal Ram Katha)
विषय (Subject) - हिंदी (Hindi)
बाल राम कथा (Bal Ram Katha)
विषय - सूची
अवधपुरी में राम
जंगल और जनकपुर
दो वरदान
राम का वन-गमन
चित्रकूट में भरत
दंडक वन में दस वर्ष
सोने का हिरण
सीता की खोज
राम और सुग्रीव
लंका में हनुमान
लंका विजय
राम का राज्याभिषेक
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Santvani ।Kabeer।Tulsi। Kriparam Khidiya। Dohe।Vyakhya। Q Ans। संतवाणी ।Srijan
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Santvani Kabeer ke dohe Vyakhya Q Ans /संतवाणी Srijan
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Santvani Tulsidas Vyakhya /संतवाणी तुलसीदास के दोहे व्याख्या /सृजन
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Coming up...
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Santvani Kriparam Khidiya Dohe/Vyakhya Q Ans/संतवाणी Srijan ======== Revise karen- Objective Q Ans for Exam-: ========
Wednesday, July 24, 2019
शब्द शक्ति
शब्द एवं अर्थ का सम्बन्ध ही शब्द शक्ति है।
शब्द के अर्थ बोध कराने वाली शक्ति 'शब्द शक्ति' कहलाती है।
शब्द या शब्द समूह में जो अर्थ छिपा होता है, उसका बोध कराने वाली शक्ति का नाम 'शब्द शक्ति' है ।
शब्द से अर्थ का बोध होता है और शब्द को 'बोधक' (बोध करानेवाला) और अर्थ को 'बोध्य' (जिसका बोध कराया जाये) कहा जाता है ।
शब्द-शक्ति को संक्षेप में 'शक्ति' कहते हैं। इसे 'वृत्ति' या 'व्यापार' भी कहा जाता है।
सरल शब्दों में 'शब्द सुनकर जो समझ में आवे वह उसका अर्थ है।
अर्थ तीन प्रकार के होते हैं- वाच्यार्थ, लक्ष्यार्थ एवं व्यंग्यार्थ ।
- वाच्यार्थ कथित होता है,
- लक्ष्यार्थ लक्षित होता है,
- और व्यंग्यार्थ व्यंजित, ध्वनित, सूचित या प्रतीत होता है।
शब्द-शक्ति तीन प्रकार की हैं-
- अभिधा (Literal Sense Of a Word)जिस शक्ति के माध्यम से शब्द का साक्षात् या मुख्यार्थ का बोध हो, उसे 'अभिधा' कहते हैं।
- लक्षणा (Figurative Sense Of a Word)-जहाँ शब्दों के मुख्य अर्थ को बाधित कर परम्परा या लक्षणों के आधार पर अन्य अर्थ को ग्रहण किया जाता है, उसे 'लक्षणा' कहते हैं।
(1) रूढ़ा लक्षणा- जहाँ रूढ़ि के कारण मुख्यार्थ से भिन्न लक्ष्यार्थ का बोध हो, वहाँ 'रूढ़ा लक्षणा' होती है।
(2) प्रयोजनवती लक्षणा- जहाँ प्रयोजन के कारण मुख्यार्थ से भिन्न लक्ष्यार्थ का बोध हो, वहाँ 'प्रयोजनवती लक्षणा' होती है।
- व्यंजना (Suggestive Sense Of a Word)-काव्य सौंदर्य के बोध में व्यंजना शब्द-शक्ति कामहत्त्वपूर्ण स्थान है। व्यंजना शब्द-शक्ति काव्य में अर्थ की गहराई, सघनता और विस्तार लाती है।
अभिधा व लक्षणा के असमर्थ हो जाने पर जिस शक्ति के माध्यम से शब्द का अर्थ बोध हो, उसे 'व्यंजना' शब्द-शक्ति कहते हैं।
'व्यंजना' (वि + अंजना) शब्द का अर्थ है- 'विशेष प्रकार का अंजन' ।
भेद
(1) शाब्दी व्यंजना- शब्द पर आधारित व्यंजना को 'शाब्दी व्यंजना' कहते है।
(2)आर्थी व्यंजना- अर्थ पर आधारित व्यंजना को 'आर्थी व्यंजना' कहते हैं।
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सर्वनाम और उसके भेद
इसका प्रयोग संज्ञा के स्थान पर किया जाता है।
परिभाषा : संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्दों को 'सर्वनाम' कहते हैं ।
सर्वनाम मुख्य रूप से 6 प्रकार के हैं -
- पुरुषवाचक सर्वनाम,
- निश्चयवाचक सर्वनाम,
- अनिश्चयवाचक सर्वनाम,
- प्रश्नवाचक सर्वनाम,
- संबंधवाचक सर्वनाम ,
- निजवाचक सर्वनाम
जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग व्यक्तिवाचक संज्ञा के स्थान पर किया जाता है ,
उन्हें पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं ।
उदा. - मैं, तुम, हम, वे आदि ।
पुरुषवाचक सर्वनाम के तीन भेद हैं :-
उत्तम पुरुष /प्रथम पुरुष :-
इस सर्वनाम का प्रयोग बात कहने या बोलने वाला अपने लिए करता है ।
उदाहरण : मैं, हम, हमारा, आदि ।
मध्यम पुरुष-;
इन सर्वनाम का प्रयोग बात सुनने वाले के लिए किया जाता है ।
उदाहरण : तू, तेरा, तुम्हे,आदि ।
आदर सूचक : आप, आपका आदि ।
अन्य पुरुष
इन सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला अन्य किसी व्यक्ति के लिए करता है ।
उदाहरण :वह, उसका, वे, उनको, उनका, उन्हें, आदि ।
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निश्चयवाचक सर्वनाम
जिन सर्वनाम शब्दों से किसी निश्चित व्यक्ति या वस्तु का बोध होता है उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं ।
जैसे : यह मेरी कार है वह आपकी है । (निश्चय )
अनिश्चयवाचक सर्वनाम
जिन सर्वनाम शब्दों से किसी निश्चित व्यक्ति या वस्तु का बोध नहीं होता है उसे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं ।
जैसे : बाहर कोई आया है ।(अनिश्चय )
कुछ खाने को चाहिए ।
प्रश्नवाचक सर्वनाम
जिन सर्वनाम शब्दों से वाक्य में प्रश्न का बोध होता है उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं ।
जैसे- तुम कौन हो ? तुम्हें क्या चाहिए ? इन वाक्यों में कौन और क्या शब्द प्रश्नवाचक सर्वनाम हैं।
'कौन 'शब्द का प्रयोग प्राणियों के लिए और 'क्या' का प्रयोग जड़ पदार्थों के लिए होता है।
संबंधवाचक सर्वनाम
जिस सर्वनाम से वाक्य में किसी दिसरी संज्ञा या सर्वनाम से सम्बन्ध ज्ञात होता है उसे सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहते हैं ।
जैसे- जो करेगा सो भरेगा। इस वाक्य में जो शब्द संबंधवाचक सर्वनाम है और सो शब्द नित्य संबंधी सर्वनाम है।
निजवाचक सर्वनाम
जिन सर्वनाम शब्दों का कर्ता स्वयं के लिए प्रयोग करता है उन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते हैं ।
या
जो सर्वनाम तीनों पुरूषों (उत्तम, मध्यम और अन्य) में निजत्व का बोध कराता है, उसे निजवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे- मैं स्वयं खा लूँगा।
तुम अपने आप चले जाना।
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Monday, July 22, 2019
Chand aur kavi /चाँद और कवि कविता पाठ /Ramdhari Singh 'Dinkar'/Raat yun...
- रामधारी सिंह 'दिनकर'
रात यूँ कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।
जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।
आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो?
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।
मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?
मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ,
और उस पर नींव रखती हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाती हूँ।
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे-
रोज़ ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्न वालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।
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Friday, July 19, 2019
कथा-पटकथा। Abhivyakti madhyam lesson Class 11 /NCERT/katha - patkatha
कथा-पटकथा
कथा का अर्थ है- 'कहानी'
पट का अर्थ है 'पर्दा'।
पटकथा अर्थात ऐसी कथा जो पर्दे पर दिखाई जाए।
- फिल्मों या धारावाहिकों आदि का मूल आधार यह पटकथा ही होती है।
- निर्देशक, अभिनेता, तकनीशियन, सहायकों आदि को अपने-अपने विभागों की सभी सूचनाएं व जानकारी पटकथा से ही मिलती है।
- पटकथा किसी उपन्यास, कहानी, ऐतिहासिक पात्र, घटना आदि पर आधारित होती है।
- नाटक की भांति पटकथा में पात्र चरित्र-चित्रण, नायक-प्रतिनायक, घटनास्थल, दृश्य, कहानी का क्रमिक-विकास आदि सब कुछ होता है।
- द्वंद, टकराहट और फिर समाधान यह सब पटकथा के आवश्यक तत्व या अंग होते हैं।
- पटकथा लेखक इन्हीं तत्वों को आधार बनाकर पटकथा की रचना करता है।
- दृश्य पटकथा की मूल इकाई होता है। एक स्थान पर एक ही समय में चल रहे कार्य व्यापार के आधार पर दृश्य की तरह की जाती है। स्थान, समय व कार्य व्यापार आदि इन तीनों में से किसी एक के बदल जाने पर दृश्य बदल जाता है।
============== पटकथा और नाटक में अंतर==========
- नाटक और पटकथा के कुछ तत्व समान होते हैं, किंतु पटकथा और नाटक में कुछ मूल अंतर भी होते हैं।
- नाटक और पटकथा दोनों में दृश्य योजना होती है। किन्तु नाटक के दृश्य पटकथा के दृश्यों से लंबे होते हैं। इसी प्रकार नाटक में सीमित स्थान होता है जबकि फिल्म या टीवी सीरियल की पटकथा में कोई सीमा नहीं होती। प्रत्येक दृश्य किसी नए स्थान पर घटित हो सकता है।
- दोनों दृश्यों में एक मूलभूत अंतर है कि नाटक एक सजीव कला माध्यम है इसमें अभिनेता अपने जीवंत दर्शकों के सामने अपनी कला का प्रदर्शन करता है। जबकि सिनेमा या टी वी में पूर्व रिकॉर्डेड छवियों या ध्वनियाँ होती हैं।
- नाटक को सीमित अवधि के दौरान ही मंचित किया जाता है, जबकि फिल्म का समय 2 दिन से 2 वर्ष तक भी हो सकता है।
- नाटक के कार्य व्यापार व दृश्यों की संख्या और चरित्रों की संख्या सीमित होती है।
- सिनेमा टीवी में फ्लैशबैक या फ्लैश फॉरवर्ड अर्थात अतीत व आने वाले समय की कल्पना आदि को तकनीक के माध्यम से दिखाकर घटनाक्रम को किसी भी रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
- नाटक में एक ही समय एक ही काल खंड की घटनाओं को प्रस्तुत किया जाता है। जबकि फिल्म या टीवी में एक ही समय में अलग-अलग स्थानों पर क्या घटित हो रहा है, को एक साथ दिखाया जा सकता है।
- नाटक और पटकथा के अंतर को विभिन्न कहानियों को फिल्माने की प्रक्रिया से और भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
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फ़्लैशबैक तकनीक वह होती है जिसमें अतीत में घटी हुई किसी घटना को दिखाया जाता है। फ़्लैश फ़ॉरवर्ड वह तकनीक है जिसमें भविष्य में होनी वाली किसी घटना को पहले दिखा देते हैं। पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ की कहानी ‘गलता लोहा’ में मोहन जब घर से हँसुवे की धार लगवाने के लिए शिल्पकार टोले की ओर जाने लगता है तो वह फ़्लैशबैक में चला जाता है और उसे याद आ जाती है स्कूल में प्रार्थना करना। इसी कहानी में मोहन का लखनऊ पहुंचकर मुहल्ले में सब के लिए घरेलू नौकर जैसा काम करना।
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पटकथा लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
- प्रत्येक दृश्य के साथ होने वाली घटना के समय का संकेत भी दिया जाना चाहिए।
- पात्रों की गतिविधियों के संकेत भी प्रत्येक दृश्य के प्रारंभ में देने चाहिए। जैसे-रजनी चपरासी को घूर रही है, चपरासी मज़े से स्टूल पर बैठा है। साहब मेज़ पर पेपरवेट घुमा रहा है। फिर घड़ी देखता है।
- किसी भी दृश्य का बँटवारा करते समय यह ध्यान रखा जाए कि किन आधारों पर दृश्य का बँटवारा किया जा रहा है ।
- प्रत्येक दृश्य के साथ होने की सूचना देनी चाहिए।
- प्रत्येक दृश्य के साथ उस दृश्य के घटनास्थल का उल्लेख अवश्य करना चाहिए; जैसे-कमरा, बरामदा, पार्क, बस स्टैंड, हवाई अड्डा, सड़क आदि।
- पात्रों के संवाद बोलने के ढंग के निर्देश भी दिए जाने चाहिए; जैसे-रजनी (अपने में ही भुनभुनाते हुए)।
- प्रत्येक दृश्य के अंत में डिज़ॉल्व, फ़ेड आउट, कटटू जैसी जानकारी वश्य देनी चाहिए। इससे निर्देशक, एडीटर को बहुत सहायता मिलती है।
Read or Download chapter here https://ncert.nic.in/textbook/pdf/kham110.pdf
Thursday, July 18, 2019
Irshya tu na gayi mere mn se/ Vyakhya /Q. Ans/ईर्ष्या ,तू न गयी मे...
Irshya tu na gayi mere mn se/Part 2 Explanation/ Q Ans/Ramdhari Singh Dinkar /
रामधारी सिंह 'दिनकर '
ईर्ष्या ,तू न गयी मेरे मन से -भाग २ /प्रश्न-उत्तर सहित
Part 1:https://youtu.be/6t2SgLYw-6w
Part with Q Ans :https://youtu.be/CJV7FM0SKMc
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Tuesday, July 16, 2019
A Photograph -Poem/English Explanation/Class 11English- Hornbill NCERT
A Photograph -by Shirley Toulson
Poet wrote this poem in memory of her dead mother.
The poem describes 3 stages-
1. In the first stage--
The photograph shows the poet's mother enjoying her holiday at a beach with two younger girl cousins. She was 12 yrs old at that time.
2. The second stage -After 20/30 yrs Mother remembered her past with nostalgia.
3.The third Stage describes the sadness of the poet.
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what does a Photograph do?
A photograph captures a moment in time and also the emotions felt at the time when it was taken.So whenever a person looks at a photo, it brings those memories back.
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Sunday, July 14, 2019
देवरानी जेठानी की कहानी/Devrani Jethani ki kahani Hindi Novel Pandit Gau...
देवरानी जेठानी की कहानी/Devrani Jethani ki kahani Hindi Novel
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Saturday, July 6, 2019
साखी -कबीरदास /saakhi ICSE
कबीर की भाषा -----
कबीर की भाषा में भोजपुरी, अवधी, ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, खड़ी बोली, उर्दू और फ़ारसी के शब्द घुल-मिल गए हैं।
अत: उनकी भाषा को 'सधुक्कड़ी' या 'पंचमेल खिचड़ी 'भी कहा जाता है।
साखी
संस्कृत के ‘ साक्षी', शब्द का विकृत रूप है ।इसका अर्थ होता है स्वयं देखा हुआ / कबीर दास की अधिकांश साखियाँ दोहों में लिखी गयी हैं ।
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागू पायँ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोबिंद दियौ बताय॥
कबीरदास जी ने गुरु का स्थान ईश्वर से श्रेष्ठ माना है। वे कहते है जब गुरु और गोविंद (भगवान) दोनों एक साथ खडे हों तब तो गुरु के चरणों मे शीश झुकाना उत्तम है क्योंकि गुरु ही हमको ईश्वर के बारे में ज्ञान प्रदान करते हैं ।उन्हीं की कृपा से ईश्वर का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
कबीरदास ने गुरु को गोविंद से ऊँचा स्थान क्यों दिया है ?
कबीर के अनुसार कौन परमात्मा से मिलने का रास्ता दिखाता है? ----> गुरु
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।
प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि॥
यहाँ पर ‘मैं’ और ‘हरि’ शब्द का प्रयोग क्रमशः अहंकार और परमात्मा के लिए किया है।
जब व्यक्ति में अहंकार होगा तब वह ईश्वर को पा नहीं सकता और जब उसे यह ज्ञान मिल जाता है तब मन से अहंकार रूपी अन्धकार दूर हो जाता है. मनुष्य के मन में प्रेम लाने के लिए आवश्यक है कि वह अपने अहंकार को दूर करे / जिस मन में प्रेम हो वहीँ ईश्वर होता है / अहंकार और ईश्वर एक साथ नहीं रह सकते .
मनुष्य के हृदय में "मैं" और "हरि" का वास एक साथ संभव क्यों नहीं है ?
काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय॥
"ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय" - पंक्ति में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
कबीरदास ने मुसलमानों के धार्मिक आडंबर पर व्यंग्य किया है।
पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली,पीस खाय संसार॥
इस दोहे द्वारा कवि ने मूर्ति-पूजा जैसे बाह्य आडंबर का विरोध किया है। कबीर मूर्ति पूजा के स्थान पर घर की चक्की को पूजने कहते है जिससे अन्न पीसकर खाते है।
पत्थर पूजने से यदि भगवान की प्राप्ति होती है, तो इसले लिए कबीर क्या करने को तैयार हैं और क्यों ?
सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बरनाय।
सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाय।।
यदि मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बना लूँ और संसार के सभी वृक्षों की कलम बनाकर , सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी ईश्वर के गुणों को लिखना संभव नहीं है !
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गिरिधर की कुण्डलियाँ - गिरिधर कविराय/Giridhar ki kundaliyan
Part 1-
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
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कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
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गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ के एक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
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साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥
कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥
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वह जन्मभूमि मेरी - सोहनलाल द्विवेदी/Vah Janambhumi meri Poem Explanation /Question -Answers
- सोहनलाल द्विवेदी
वह जन्मभूमि मेरी,वह मातृभूमि मेरी .
ऊँचा खड़ा हिमालय ,आकाश चूमता है,
नीचे चरण तले झुक,नित सिंधु झूमता है!
गंगा यमुन त्रिवेणी,नदियाँ लहर रही हैं,
जगमग छटा निराली,पग पग छहर रही है!
वह पुण्य भूमि मेरी,वह स्वर्ण भूमि मेरी,
वह जन्मभूमि मेरी,वह मातृभूमि मेरी !
झरने अनेक झरते,जिसकी पहाड़ियों में,
चिड़ियाँ चहक रही हैं,हो मस्त झाड़ियों में!
अमराइयाँ घनी हैं,कोयल पुकारती है,
बहती मलय पवन है,तन मन सँवारती है!
वह धर्मभूमि मेरी,वह कर्मभूमि मेरी,
वह जन्मभूमि मेरी,वह मातृभूमि मेरी !
जन्मे जहाँ थे रघुपति,जन्मी जहाँ थी सीता,
श्रीकृष्ण ने सुनाई,वंशी पुनीत गीता !
गौतम ने जन्म लेकर,जिसका सुयश बढ़ाया,
जग को दया सिखाई,जग को दिया दिखाया !
वह युद्ध–भूमि मेरी,वह बुद्ध–भूमि मेरी,
वह मातृभूमि मेरी,वह जन्मभूमि मेरी!
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स्वर्ग बना सकते है / रामधारी सिंह दिनकर ICSE/Class 9 /Class 10 Hindi/Swarg bana sakte hain
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प्रसंग -
प्रस्तुत अंश दिनकर जी की प्रसिद्ध रचना ‘कुरुक्षेत्र’ से लिया गया है। महाभारत युद्ध के उपरांत धर्मराज युधिष्ठिर भीष्म पितामह के पास जाते हैं। वहाँ भीष्म पितामह उन्हें उपदेश देते हैं। यह भीष्म पितामह का युधिष्ठिर को दिया गया अंतिम उपदेश है। 40 के दशक में लिखी गई इस कविता के माध्यम से कवि भारत देश की सामाजिक दशा, उसके विकास में उपस्थित बाधाओं और उसमें परिवर्तन कर उसे स्वर्ग समान बनाने की बात करते हैं।
भावार्थ:
पितामह युधिष्ठिर को समझाते हुए कहते हैं कि यह भूमि किसी भी व्यक्ति-विशेष की खरीदी हुई दासी नहीं है। अर्थात उसकी निजी संपत्ति नहीं है। इस धरती पर रहने वाले हरेक मनुष्य का इस पर समान अधिकार है। सभी मनुष्यों को जीवन जीने हेतु प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है, किंतु कुछ शक्तिशाली लोग उनको उन सामान्य जनों तक पहुँचने से रोक रहे हैं। इस प्रकार वे मानवता के विकास में बाधक बने हुए हैं। जब तक सभी मनुष्यों में सुख का न्यायपूर्ण तरीके से समान वितरण नहीं होता है तब तक इस धरती पर शांति स्थापित नहीं हो सकती। तब तक संघर्ष चलता रहेगा। भीष्म पितामह के माध्यम से कवि कहते हैं कि मनुष्य निजी शंकाओं से ग्रस्त, स्वार्थी होकर भोग में लिप्त हो गया है, वह केवल अपने संचय में लगा हुआ है।
कवि कहते हैं कि ईश्वर ने हमारी धरती पर हमारी आवश्कता से कहीं अधिक सुख बिखेर रखा है। सभी मनुष्य मिलकर उसका समान भाव से भोग कर सकते हैं। स्वार्थ को त्याग, सुख समृद्धि पर सबका अधिकार समझते हुए, उसे सभी को समान भाव से बाँटकर हम इस धरती को पल भार में स्वर्ग बना सकते हैं।
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कविता—
धर्मराज यह भूमि किसी की
नहीं क्रीत है दासी
है जन्मना समान परस्पर
इसके सभी निवासी ।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए
सबको मुक्त समीरण
बाधा रहित विकास, मुक्त
आशंकाओं से जीवन ।
लेकिन विघ्न अनेक अभी
इस पथ पर अड़े हुए हैं
मानवता की राह रोककर
पर्वत अड़े हुए हैं ।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं
जब तक मानव-मानव को
चैन कहाँ धरती पर तब तक
शांति कहाँ इस भव को ?
जब तक मनुज-मनुज का यह
सुख भाग नहीं सम होगा
शमित न होगा कोलाहल
संघर्ष नहीं कम होगा ।
उसे भूल वह फँसा परस्पर
ही शंका में भय में
लगा हुआ केवल अपने में
और भोग-संचय में।
प्रभु के दिए हुए सुख इतने
हैं विकीर्ण धरती पर
भोग सकें जो उन्हें जगत में,
कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तुष्ट, एक सा
सब सुख पा सकते हैं
चाहें तो पल में धरती को
स्वर्ग बना सकते हैं ।
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शब्दार्थ—
क्रीत- खरीदी हुई
जन्मना- जन्म से
समीरण- वायु
मुक्त – बाधारहित, आज़ाद, स्वतंत्र
शमित – शांत
विघ्न- बाधा
भव- भविष्य
सम- समान
कोलाहल- शोर
भोग- उपयोग में लाना, ऐश
संचय- जमा करना
विकीर्ण- बिखरे हुए
तुष्ट- संतुष्ट
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मातृ मंदिर की ओर / सुभद्राकुमारी चौहान with q ans.
मातृ मंदिर की ओर [कविता]
सुभद्राकुमारी चौहान
व्यथित है मेरा हृदय-प्रदेश
चलूँ उसको बहलाऊँ आज ।
बताकर अपना सुख-दुख उसे
हृदय का भार हटाऊँ आज ।।
चलूँ मां के पद-पंकज पकड़
नयन जल से नहलाऊँ आज ।
मातृ-मन्दिर में मैंने कहा-
चलूँ दर्शन कर आऊँ आज ।।
किन्तु यह हुआ अचानक ध्यान
दीन हूं, छोटी हूं, अञ्जान!
मातृ-मन्दिर का दुर्गम मार्ग
तुम्हीं बतला दो हे भगवान !
मार्ग के बाधक पहरेदार
सुना है ऊंचे-से सोपान ।
फिसलते हैं ये दुर्बल पैर
चढ़ा दो मुझको यह भगवान !
अहा ! वे जगमग-जगमग जगी
ज्योतियां दीख रहीं हैं वहां ।
शीघ्रता करो, वाद्य बज उठे
भला मैं कैसे जाऊं वहां ?
सुनाई पड़ता है कल-गान
मिला दूं मैं भी अपने तान ।
शीघ्रता करो, मुझे ले चलो
मातृ-मन्दिर में हे भगवान !
देख लूं मां की प्यारी मूर्ति ।
अहा ! वह मीठी-सी मुसकान
जगाती होगी न्यारी स्फूर्ति ।।
उसे भी आती होगी याद
उसे ? हां, आती होगी याद ।
नहीं तो रूठूंगी मैं आज
सुनाऊँगी उसको फरियाद ।।
कलेजा मां का, मैं सन्तान,
करेगी दोषों पर अभिमान ।
मातृ-वेदी पर घण्टा बजा,
चढ़ा दो मुझको हे भगवान् !!
सुनूँगी माता की आवाज,
रहूँगी मरने को तैयार।
कभी भी उस वेदी पर देव !
न होने दूँगी अत्याचार।।
न होने दूँगी अत्याचार
चलो, मैं हो जाऊँ बलिदान
मातृ-मन्दिर में हुई पुकार
चढ़ा दो मुझको हे भगवान् ।
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देशभक्ति से ओतप्रोत मार्मिक रचना
चलना हमारा काम है - शिवमंगल सिंह 'सुमन'
गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।
कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ,
राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।
जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी
गति-मति न हो अवरूद्ध,
इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।
इस विशद विश्व-प्रहार में
किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पडा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ,
मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।
मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे?
जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।
कुछ साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी
जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम,
उसी की सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।
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Bhikshuk / भिक्षुक - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
वह आता--
दो टूक कलेजे को करता, पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को — भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता —
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाए।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए !
ठहरो ! अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूँगा
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम
तुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा।
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UP Board Class 10
- मित्रता – राम चन्द्र शुक्ल Part 1 Part 2
- ममता – जयशंकर प्रसाद Part 1 Part 2
- क्या लिखूँ – पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
- भारतीय संस्कृति – राजेन्द्र प्रसाद
- ईष्या तू न गयी मेरे मन से – Q ANS
रामधारी सिंह दिनकर - अजन्ता – भगवत शरण उपाध्याय
- पानी में चन्दा और चाँद – जय प्रकाश भारती
- तोता https://youtu.be/rw-5faSOJNw
- पद – सूरदास Part 1 Part 2 Part 3
- धनुष भंग Part 1 Part 2
- वन पथ पर – Part 1 Part 2 तुलसीदास
- Part 2 Raskhan सवैये,
- Part 1 कवित्त – रसखान
- भक्ति – Part 3/ part 2 /part 1 / बिहारी लाल -- नीति के दोहे
- रैदास पद
- चींटी, पाठ की व्याख्या / कविता पाठ /
- चन्द्रलोक में प्रथम बार – सुमित्रानन्दन पंत
- हिमालय से (कविता व्याख्या सहित ),
- वर्षा सुन्दरी के प्रति – महादेवी वर्मा
- स्वदेश प्रेम – रामनरेश त्रिपाठी
- पुष्प की अभिलाषा,
- जवानी – माखन लाल चतुर्वेदी
- झांसी की रानी की समाधि पर – सुभद्रा कुमारी चौहान
- --------
- नदी – केदारनाथ सिंह
- युवा जंगल,
- भाषा एकमात्र अनन्त है – अशोक बाजपेयी
Sanskrit
Lesson 1: वाराणसी /हिंदी अनुवाद और प्रश्न -उत्तर/ प्रथम पाठ
Lesson 2 : अन्योक्तिविलासः |Part 1|Anyoktivilasah|Hindi Meaning|
https://padho-seekho.blogspot.com/2019/08/anyoktivilas-hindi-meaning-part-1.html
अन्योक्तिविलासः |Part 2 |
https://padho-seekho.blogspot.com/2019/08/part-2-anyoktivilasahhindi-meaning.html
Lesson 3:वीर: वीरेण पूज्यते| पाठ 3| Veer Veeren Pujyte |Hindi Meaning
Lesson 4 : Prabuddho GraminLesson 5 :DeshbhakataH ChandrsheshakarH
Lesson 6 : Ken kim vardhte ?
With Q Ans.
Lesson 7: आरुणि-श्वेतकेतु संवाद Aaruni-shwetketu samvaad
Lesson 8 :Bharitya Sanskruti
Lesson 9 :Jeevan Sutraani
हिंदी व्याकरण हेतु व्याकरण की प्लेलिस्ट देखें.
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क्या लिखूँ | पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी| Kya likhun |Vyakhya Class 10 उत्तर प्रदेश
क्या लिखूँ | पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी| Kya likhun |Vyakhya
Class 10 उत्तर प्रदेश
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अच्छा विज्ञापन कैसे बनाएँ? Vigyapan Lekhan| Advertisement|Class 6,7,8,9,...
Vigyapan Lekhan- Advertisement writing -Class 9, 10
CBSE board exam-Marking scheme has 2 marks for presentation, 2 for originality /novelty of thoughts and 1 mark for language. Please Note- --- Colouring is not necessary. My suggestion to avoid it.Try to use Pencil. There is no negative marking for using pen though.
The picture can be on any side or in the centre, depends on your product or topic.
Also, it should grab attention, self-explanatory and make presentation meaningful!
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English mei EMAIL likh sakte hain & Phone number bhi like-: 0098XXXXXXXX
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विज्ञापन कैसे बनाएँ? -रचनात्मक लेखन
विज्ञापन क्या होते हैं? विज्ञापन लेखन के उद्देश्य ,रचना आदि.
परीक्षा में उत्तर लिखते समय ध्यान रखने की बातें.
Content ,video preparation and explanation by Alpana Verma.
For class 6,7,8,9, 10 /NCERT
फिर विकल हैं प्राण मेरे! -- महादेवी वर्मा /fir vikal hain pran mere
फिर विकल हैं प्राण मेरे!
तोड़ दो यह क्षितिज मैं भी देख लूं उस ओर क्या है!
जा रहे जिस पंथ से युग कल्प उसका छोर क्या है?
क्यों मुझे प्राचीर बन कर
आज मेरे श्वास घेरे?
सिन्धु की नि:सीमता पर लघु लहर का लास कैसा?
दीप लघु शिर पर धरे आलोक का आकाश कैसा?
दे रही मेरी चिरन्तनता
क्षणों के साथ फेरे!
बिम्बग्राहकता कणों को शलभ को चिर साधना दी,
पुलक से नभ भर धरा को कल्पनामय वेदना दी;
मत कहो हे विश्व! ‘झूठे
हैं अतुल वरदान तेरे’!
नभ डुबा पाया न अपनी बाढ़ में भी क्षुद्र तारे;
ढूँढने करुणा मृदुल घन चीर कर तूफान हारे;
अन्त के तम में बुझे क्यों
आदि के अरमान मेरे!
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Friday, July 5, 2019
चींटी कविता सप्रसंग व्याख्या /Chinti Kavita Explanation सुमित्रानंदन पन्त
चींटी कविता सप्रसंग व्याख्या /Chinti Kavita Explanation सुमित्रानंदन पन्त
Thursday, July 4, 2019
Chinti Poem चींटी/ /Sumitra Nandan Pant / कविता पाठ/कवि सुमित्रानंदन पन्त
Chinti Poem चींटी/ /Sumitra Nandan Pant / कविता पाठ/कवि सुमित्रानंदन पन्त
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Wednesday, July 3, 2019
संवाद सेतु के पाठ
- समाचार लेखन
- विविध प्रकार के लेखन
- साक्षात्कार लेने की कला
- विभिन्न क्षेत्रों में पत्रकारिता
- वार्ता
- रिपोर्ताज
- यात्रा वृत्तांत
- डायरी लेखन
- सन्दर्भ ग्रन्थ की महत्ता
- कार्यालयी पत्र
वीभत्स रस /vibhtas ras
घृणित वस्तुओं/दृश्य/ व्यक्ति को देखकर या उनके संबंध में सुनकर/सोच कर मन में उत्पन्न होने वाली घृणा ही वीभत्स रस उत्पन्न करती है / वीभत्स रस के लिए घृणा और जुगुप्सा का होना आवश्यक होता है।
वीभत्स रस के अवयव
- स्थाई भाव : ग्लानि / जुगुप्सा।
- आलंबन (विभाव) : दुर्गंधमय मांस, रक्त, अस्थि आदि ।
- उद्दीपन (विभाव) : रक्त, मांस का सड़ना, उसमें कीड़े पड़ना, दुर्गन्ध आना, पशुओ का इन्हे नोचना खसोटना आदि।
- अनुभाव : नाक-भौं सिकोड़ना मुँह बनाना, थूकना, आँखें मींच लेना आदि।
- संचारी भाव : ग्लानि, आवेग, शंका, मोह, व्याधि, चिंता, वैवर्ण्य, जढ़ता आदि।
उदाहरण -
सिर पर बैठो काग, आँखि दोउ खात निकारत
खींचत जी भहिं स्यार, अतिहि आनन्द उर धारत
गिद्ध जाँघ कह खोदि-खोदि के मांस उचारत
स्वान आँगुरिन काटि-काटि के खान बिचारत
- स्थाई भाव : जुगुप्सा।
- आलंबन (विभाव) : मांस।
- उद्दीपन (विभाव) : गिद्ध का माँस नोचना ।
- अनुभाव : नाक-भौं सिकोड़ना , मुँह बनाना,आदि।
- संचारी भाव : ग्लानि, शंका, मोह, चिंता, आदि।
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छंद /Chhand
- छंद शब्द 'चद्' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'।
- छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है।
- पद्य का नियामक 'छंद शास्त्र' है।
- छन्द कविता या गीत में वर्णों की संख्या और स्थान से सम्बंधित नियमों को कहते हैं जिनसे काव्य में लय और रंजकता आती है।
- छोटी-बड़ी ध्वनियां, लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों में, मात्रा बताती हैं ।
- जब किसी काव्य रचना में ये एक व्यवस्था के साथ सामंजस्य प्राप्त करती हैं तब उसे एक शास्त्रीय नाम दे दिया जाता है ।
- लघु-गुरु मात्राओं के अनुसार वर्णों की यह व्यवस्था एक विशेष नाम वाला छन्द कहलाने लगती है, जैसे चौपाई, दोहा, आर्या, इन्द्र्वज्रा, गायत्री छन्द आदि ।
छंद की परिभाषा =
वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो तो उसे छंद कहते हैं।===========================
छंद के अंग:
कुल सात अंग होते हैं--------
- चरण/ पद/ पाद
- वर्ण और मात्रा
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संज्ञा / NOUN हिंदी व्याकरण
संज्ञा(noun)
जिस शब्द से किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान , अवस्था , गुण या भाव आदि के नाम का बोध होता है उसे संज्ञा(noun) कहते है।
उदाहरण : सचिन ,अमित ,नीरा /दिल्ली ,भारत/बचपन ,बुढ़ापा / सुंदरता ,मिठास /घृणा ,दया
संज्ञा के तीन भेद है :-
१) व्यक्तिवाचक संज्ञा (proper noun)
किसी विशेष वस्तु ,व्यक्ति,स्थान आदि का बोध करानेवाली संज्ञा को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते है।
उदाहरण :-
हिमालय ,नेपाल ,भारत ,दिल्ली ,उदयपुर,रामायण ,,गंगा ,यमुना ,सरस्वती
२) जातिवाचक संज्ञा (common noun)
किसी जाति , वर्ग या समूह का बोध करानेवाली संज्ञा को जातिवाचक संज्ञा कहते है।
उदाहरण :-पेड़ ,स्त्री ,सड़क ,पुरुष ,बालक ,बगीचा ,माता ,दोस्त, पर्वत ,नदी ,पुस्तक ,देश
[अंग्रेजी व्याकरण में द्रव्यवाचक और समुदायवाचक संज्ञाएँ भी होती है , लेकिन हिंदी व्याकरण में द्रव्यवाचक संज्ञा और समूहवाचक संज्ञा को जातिवाचक संज्ञा के अंतर्गत माना जाता है।]
अ) समूहवाचक संज्ञा (collective noun)
जिस संज्ञा शब्द से किसी भी समूह का बोध होता है ,उसे समूहवाचक संज्ञा कहते है।
उदाहरण :- सेना ,कक्षा ,मंडली ,सभा
आ) द्रव्यवाचक संज्ञा
जिस संज्ञा से किसी ठोस या तरल पदार्थ का बोध हो उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते है।
उदाहरण :- दूध ,चना ,पत्थर,सोना , ,पीतल ,घी ,फल
3) भाववाचक संज्ञा (abstract noun)
किसी के गुण ,दोष ,अवस्था आदि के बोध करानेवाली संज्ञा को भाववाचक संज्ञा कहते है।
उदाहरण :-
गुण – सादगी ,मिठास ईमानदारी ,मनुष्यता
दोष – ,गंदगी ,दुष्टता
भाव –क्षमा ,ममता ,दया ,अपनापन ,निजता
अवस्था – यौवन ,मृत्यु ,बुढ़ापा ,तरुणाई
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