Wednesday, January 25, 2023

जंगल जातकम - काशीनाथ सिंह/पर्यावरण चिंतन

 

 

जंगल जातकम

- काशीनाथ सिंह

 

जंगल!

 

सब जानते हैं कि आदमी का जंगल से आदिम और जन्म का रिश्ता है और वह उसे बेहद प्यार करता है।

 

लेकिन जब मैं जंगल कहूँ तो उसका मतलब है - सिर्फ जंगल। यह अपने आप में समुद्र और पहाड़ की तरह काफी डरावना, खूबसूरत और आकर्षक शब्द है। लेकिन इसका मतलब है छोटे-बड़े हर तरह के पेड़ों और झाड़ियों की घनी बस्ती। इसका मतलब है अँधेरी और खूँखार हरियाली का एका। इसका मतलब है जड़ों के नीचे की अपनी धरती, सिर के ऊपर का अपना आकाश, चारों तरफ की अपनी हवा...

 

यह एक इसी तरह के जंगल की कहानी है जो पुरखों के जमाने से चली आ रही है।

 

Wednesday, January 11, 2023

चंद्रदेव से मेरी बातें /बंग महिला(आख्यायिका ) 

 https://padho-seekho.blogspot.com/2019/04/ugcnetjrf-2019-hindi.html

 चंद्रदेव से मेरी बातें

-बंग महिला(आख्यायिका ) 

हिन्दी साहित्य में नारी आधुनिकता का शंखनाद करनेवाली बंग महिला (राजेन्द्र बाला घोष) हिन्दी-नवजागरण की पहली छापामार लेखिका थीं। 

- बंगमहिला उर्फ  राजेंद्र बाला घोष
भगवान चन्द्रदेव! आपके कमलवत् कोमल चरणों में इस दासी का अनेक बार प्रणाम। आज मैं आपसे दो चार बातें करने की इच्छा रखती हूँ। देखो, सुनी अनसुनी-सी मत कर जाना। अपने बड़प्पन की ओर ध्यान देना। अच्छा, कहती हूँ, सुनों!

मैं सुनती हूँ, आप इस आकाश मंडल में चिरकाल से वास करते हैं। क्या यह बात सत्य हैं? यदि सत्य है, तो मैं अनुमान करती हूँ कि इस सृष्टि के साथ ही साथ अवश्य आपकी भी सृष्टि हुई होगी। तब तो आप ढेर दिन के पुराने, बूढ़े कहे जा सकते हैं। यह क्यों? क्या आपका डिपार्टमेण्ट (महकमे) में ट्रांसफ़र (बदली) होने का नियम नहीं हैं? क्या आपकी ‘गवरमेण्ट’ पेंशन भी नहीं देती? बड़े खेद की बात हैं? यदि आप हमारी न्यायशीलता ‘गवर्नमेण्ट’ के किसी विभाग में सर्विस (नौकरी) करते होते तो अब तक आपकी बहुत कुछ पदोन्नति हो गई होती। और ऐसी ‘पोस्ट’ पर रहकर भारत के कितने ही सुरम्य नगर, पर्वत, जंगल और झाड़ियों में भ्रमण करते। अंत में इस वृद्ध अवस्था में पेंशन प्राप्त कर काशी जैसे पुनीत और शान्ति-धाम में बैठकर हरी नाम स्मरण करके अपना परलोक बनाते। यह हमारी बड़ी भारी भूल हुई। भगवान चंद्रदेव! क्षमा कीजिए, आप तो अमर है; आपको मृत्यु कहाँ? तब परलोक बनाना कैसा? ओ हो! देवता भी अपनी जाति के कैसे पक्षपाती होते हैं। देखो न ‘चंद्रदेव’ को अमृत देकर उन्होंने अमर कर दिया – तब यदि मनुष्य होकर अंग्रेज अपने जातिवालों का पक्षपात करें तो आश्चर्य ही क्या है? अच्छा, यदि आपको अंग्रेज जाति की सेवा करना स्वीकार हो तो, एक ‘एप्लिकेशन’ (निवेदन पत्र ) हमारे आधुनिक भारत प्रभु लार्ड कर्जन के पास भेज देवें। आशा है कि आपको आदरपूर्वक अवश्य आह्वान करेंगे। क्योंकि आप अधम भारतवासियों के भांति कृष्णांग तो हैं ही नहीं, जो आपको अच्छी नौकरी देने में उनकी गौरांग जाति कुपित हो उठेगी। और फिर, आप तो एक सुयोग्य, कार्यदक्ष, परिश्रमी, बहुदर्शी, कार्यकुशल और सरल स्वभाव महात्मा हैं। मैं विश्वास करती हूँ, कि जब लार्ड कर्ज़न हमारे भारत के स्थायी भाग्य विधाता बनकर आवेंगे, तब आपको किसी कमीशन का मेम्बर नहीं तो किसी मिशन में भरती करके वे अवश्य ही भेज देवेंगे क्योंकि उनको कमिशन और मिशन, दोनों ही, अत्यंत प्रिय हैं। आपके चंद्रलोक में जो रीति और नीति सृष्टि के आदि काल में प्रचलित थे वे ही सब अब भी हैं। पर यहाँ तो इतना परिवर्तन हो गया है कि भूत और वर्तमान में आकाश पाताल का सा अंतर हो गया है। मैं अनुमान करती हूँ कि आपके नेत्रों की ज्योति भी कुछ अवश्य ही मंद पड़ गई होगी। क्योंकि आधुनिक भारत संतान लड़कपन से ही चश्मा धारण करने लगी है; इस कारण आप हमारे दीन, हीन, क्षीणप्रभ भारत को उतनी दूर से भलीभाँति न देख सकते होंगे। अतएव आपसे सादर कहती हूँ कि एक बार कृपाकर भारत को देख तो जाइए यद्यपि इस बात को जानती हूँ कि आपको इतना अवकाश कहाँ? पर आठवें दिन नहीं, तो महीने में एक दिन, अर्थात् अमावस्या को, तो आपको ‘हॉलिडे’ (छुट्ट ) अवश्य ही रहती है। यदि आप उस दिन चाहें तो भारत भ्रमण कर जा सकते हैं।

इस भ्रमण में आपको कितने ही नूतन दृश्य देखने को मिलेंगे जिसे सहसा देख कर आपकी बुद्धि जरूर चकरा जायेगी । यदि आपसे सारे हिन्दोस्तान का भ्रमण शीघ्रता के कारण न हो सके तो केवल राजधानी कलकत्ता को देख लेना तो अवश्य ही उचित है। वहाँ के कल कारखानों को देखकर आपको यह अवश्य ही कहना पड़ेगा कि यहाँ के कारीगर तो विश्वकर्मा के भी लड़कदादा निकले। यही क्यों, आपकी प्रिय सहयोगिनी दामिनों, जो मेघों पर आरोहण करके आनंद से अठखेलियां किया करती हैं वह बेचारी भी यहाँ मनुष्य के हाथों का खिलौना हो रही है। भगवान निशानाथ! जिस समय आप अपनी निर्मल चन्द्रिका को बटोर मेघमाला अथवा पर्वतों की ओट से सिन्धु के गोद में जा सकते हैं, उस समय यही नीरद – वासनी, विश्वमोहिनी, सौदामिनी, अपनी उज्ज्वल मूर्ति से आलोक प्रदान कर, रात को दिन बना देती है। आपके देवलोक में जितने देवता हैं उनके वाहन भी उतने हैं – किसी का गज, किसी का हंस, किसी का बैल किसी का चूहा इत्यादि । पर यहाँ तो सारा बोझ आपकी चपला और अग्निदेव के माथे मढ़ा गया है। क्या ब्राह्मण, क्या क्षत्रिय, क्या वैश्य, क्या शूद्र, क्या चाण्डाल, सभी के रथों का वाहन वही हो रही है। हमारे श्वेतांग महाप्रभु गण को, जहाँ पर कुछ कठिनाई का सामना आ पड़ा, झट उन्होंने ‘इलेक्ट्रिसिटी’ (बिजली) को ला पटका। बस कठिन से कठिन कार्य सहज में सम्पादन कर लेते हैं। और हमारे यहाँ के उच्च शिक्षा प्राप्त युवक काठ के पुतलों की भाँति मुँह ताकते रह जाते हैं। जिस व्योमवासिनी विद्युत देवी को स्पर्श तक करने का किसी व्यक्ति का साहस नहीं हो सकता, वही आज पराये घर में आश्रिता नारियों की भाँति ऐसे दबाव में पड़ी है, कि वह चूं तक नहीं कर सकती क्या करें? बेचारी के भाग्य में विधाता ने दासी-वृत्ति ही लिखा था। हरिपदोद्भवा त्रैलोक्यपावनी सुरसरी के भी खोटे दिन आये हैं, वह भी अब स्थान-स्थान में बन्धनग्रस्त हो रही है। उसके वक्षस्थल पर जहाँ तहाँ मोटे वृहदाकार खम्भ गाड़ दिए गए हैं।

कलकत्ता आदि को देखकर आपके देवराज सुरेन्द्र भी कहेंगे कि हमारी अमरावती तो इसके आगे निरी फीकी सी जान पड़ती है। वहाँ ईडन गार्डन तो पारिजात परिशोभित नन्दन कानन को भी मात दे रहा है। वहाँ के विश्वविद्यालय के विश्वश्रेष्ठ पंडितों की विश्वव्यापिनी विद्या को देखकर वीणापाणि सरस्वती देवी भी कहने लग जाएगी, कि निःसंदेह इन विद्या दिग्गजों की विद्या चमत्कारिणी हैं। वहीं के फोर्ट विलियम के फौजी सामान को देखकर, आपके देव सेनापति कार्तिकेय बाबू के भी छक्के छूट जायेंगे क्योंकि देव सेनापति महाशय देखने में खास बंगाली बाबू से जँचते हैं। और उनका वाहन भी एक सुन्दर मयूर है। बस इससे, उनके वीरत्व का भी परिचय खूब मिलता है। वहाँ के मिंट (टकसाल) को देखकर सिंधुतनया आपकी प्रिय सहोदरा कमला देवी तथा कुबेर भी अकचका जायेंगे। भगवान चंद्र देव! इन्हीं सब विश्वम्योत्पादक अपूर्व दृश्यों का अवलोकन करने के हेतु आपको सादर निमंत्रित तथा सविनय आहूत करती हूँ। सम्भव है कि यहाँ आने से आपको अनेक लाभ भी हों आप जो अनादी काल से निज उज्ज्वल वपु में कलंक की कालिमा लेपन करके कलंकी शशांक, शशधर, शाशालांछन आदि उपाधि-मालाओं से भूषित हो रहे हैं। सिन्धु तनय होने पर भी जिस कालिमा को आप आज तक नहीं धो सके हैं, वहीं आजन्म-कलंक शायद यहाँ के विज्ञानविद पण्डितों की चेष्टा से छूट जाए। जब बम्बई में स्वर्गीय महारानी विक्टोरिया देवी की प्रतिमूर्ति से काला दाग छुड़ाने में प्रोफेसर गज्जर महाशय फलीभूत हुए हैं, तब क्या आपके मुख की कालिमा छुड़ाने में वे फलीभूत न होंगे ।

शायद आप पर यह बात भी अभी तक विदित नहीं हुई कि आप और आपके स्वामी सूर्य भगवान पर जब हमारे भूमण्डल की छाया पड़ती हैं, तभी आप लोगों पर ग्रहण लगता है। पर आप का तो अब तक, वही पुराना विश्वास बना हुआ है कि जब कुटिल ग्रह राहु आपको निगल जाता है तभी ग्रहण होता है। पर ऐसा थोथा विश्वास करना आप लोगों की भारी भूल है। अत: हे देव! मैं विनय करती हूँ कि आप अपने हृदय से इस भ्रम को जड़ से उखाड़ कर फेंक दें ।

अब भारत में न तो आपके, और न आपके स्वामी भुवनभास्कर सूर्य महाशय के ही वंशधरों का साम्राज्य है और न अब भारत की वह शस्यश्यामला स्वर्ण प्रसूतामूर्ति ही है। अब तो आप लोगों के अज्ञात, एक अन्य द्वीपवासी परम शक्तिमान गौरांग महाप्रभु इस सुविशाल भारत-वर्ष का राज्य वैभव भोग रहे हैं। अब तक मैंने जिन बातों का वर्णन आपसे स्थूल रूप में किया वह सब इन्हीं विद्या विशारद गौरांग प्रभुओं के कृपा कटाक्ष का परिणाम है। यों तो यहाँ प्रति वर्ष पदवी दान के समय कितने ही राज्य विहीन राजाओं की सृष्टि हुआ करती है, पर आपके वंशधारों में जो दो चार राजा महाराजा नाम-मात्र के हैं भी, वे काठ के पुतलों की भांति हैं। जैसे उन्हें उनके रक्षक नचाते हैं, वैसे ही वे नाचते हैं। वे इतनी भी जानकारी नहीं रखते कि उनके राज्य में क्या हो रहा है-उनकी प्रजा दुखी है,या सुखी ?

यदि आप कभी भारत -भ्रमण करने को आयें तो अपने ‘ फैमिलीडॉक्टर धन्वन्तरि महाशय को और देवताओं के ‘चीफ जस्टिस ‘चित्रगुप्तजी’ को साथ अवश्य लेते आएं। आशा है कि धन्वन्तरि महाशय यहाँ के डाक्टरों के सन्निकट चिकित्सा सम्बन्धी बहुत कुछ शिक्षा का लाभ कर सकेंगे। यदि प्लेग महाराज (ईश्वर न करे ) आपके चन्द्रलोक या देवलोक में घुस पड़े तो, वहाँ से उनको निकालना कुछ सहज बात न होगी। यहीं जब चिकित्सा शास्त्र के बड़े-बड़े पारदर्शी उन पर विजय नहीं पा सकते, तब वहाँ आपके ‘देवलोक’ में जड़ी-बूटियों के प्रयोग से क्या होगा? यहाँ के ‘इण्डियन पीनल कोड’ की धाराओं को देखकर चित्रगुप्तजी महाराज अपने यहाँ की दण्डविधि (कानून ) को बहुत कुछ सुधार सकते है। और यदि बोझ न हो तो यहाँ से वे दो चार ‘टाइप राइटर’ भी खरीद ले जाए। जब प्लेग महाराज के अपार अनुग्रह से उनके ऑफिस में कार्य की अधिकता होवे, तब उससे उनकी ‘राइटर्स बिल्डिंग’ के राइटर्स के काम में बहुत ही सुविधा और सहायता पहुँचेगी। वे लोग दो दिन का काम दो घण्टे में कर डालेंगे ।

अच्छा, अब मैं आपसे विदा होती हूँ। मैंने तो आपसे इतनी बातें कही, पर खेद है, आपने उनके अनुकूल या प्रतिकूल एक बात का भी उत्तर न दिया। परन्तु आपके इस मौनावलम्बन को मैं स्वीकार का सूचक समझती हूँ। अच्छा, तो मेरी प्रार्थना को कबूल करके एक दफा यहां आइएगा जरूर।

–[सरस्वती पत्रिका में प्रकाशन वर्ष - 1904]

Monday, January 2, 2023

2023 Board exams Date sheet CBSE class 10 & 12

 सीबीएसई की Class 10 और 12 की बोर्ड परीक्षा की समय -सारणी 2023 Board exams Date sheet CBSE class 10 & 12 download/ issued by board on 29 Dec.2022

ज़िंदगी और जोंक/लेखक : अमरकांत


(Audio only ) पूरी कहानी यहाँ पढ़ें :-

अमरकांत जी का पुराना नाम 'श्री राम वर्मा ' था। 

 प्रेमचंद परंपरा के कहानीकार हैं। वे आलोचनात्मक यथार्थवादी और मानवीय संवेदनाओं के लेखक हैं। आधुनिक काल के प्रगतिशील कथाकारों में उनका विशेष  नाम है। 'डिप्टी कलेक्टरी ' के लिए उन्हें पुरस्कार मिला  था। इस से उन्हें प्रसिद्धि भी मिली।

ज़िंदगी और जोंक
लेखक : अमरकांत

मुहल्ले में जिस दिन उसका आगमन हुआ, सवेरे तरकारी लाने के लिए बाज़ार जाते समय मैंने उसको देखा था। शिवनाथ बाबू के घर के सामने, सड़क की दूसरी ओर स्थित खँडहर में, नीम के पेड़ के नीचे, एक दुबला-पतला काला आदमी, गंदी लुंगी में लिपटा चित्त पड़ा था, जैसे रात में आसमान से टपककर बेहोश हो गया हो अथवा दक्षिण भारत का भूला-भटका साधु निश्चिन्त स्थान पाकर चुपचाप नाक से हवा खींच-खींचकर प्राणायाम कर रहा हो।

फिर मैंने शायद एक-दो बार और भी उसको कठपुतले की भाँति डोल-डोलकर सड़क को पार करते या मुहल्ले के एक-दो मकानों के सामने चक्कर लगाते या बैठकर हाँफते हुए देखा। इसके अलावा मैं उसके बारे में उस समय तक कुछ नहीं जानता था।

रात के लगभग दस बजे खाने के बाद बाहर आकर लेटा था। चैत का महीना, हवा तेज़ चल रही थी। चारों ओर घुप अँधियारा। प्रारंभिक झपकियाँ ले ही रहा था कि 'मारो-मारो' का हल्ला सुनकर चौंक पड़ा। यह शोरगुल बढ़ता गया। मैं तत्काल उठ बैठा। शायद आवाज़ शिवनाथ बाबू के मकान की ओर से आ रही थी। जल्दी से पाँव चप्पल में डाल उधर को चल पड़ा।

मेरा अनुमान ठीक था। शिवनाथ बाबू के मकान के सामने ही भीड़ लगी थी। मुहल्ले के दूसरे लोग भी शोरगुल सुनकर अपने घरों से भागे चले आ रहे थे। मैंने भीतर घुसकर देखा और कुछ चकित रह गया। खँडहर का वही भिखमंगा था। शिवनाथ बाबू का लड़का रघुवीर उस भिखमंगे की दोनों बाँहों को पीछे से पकड़े हुए था और दो-तीन व्यक्ति आँख मूँद तथा उछल-कूदकर बेतहाशा पीट रहे थे। शिवनाथ बाबू तथा अन्य लोग उसे भयजन्य क्रोध से आँखें फाड़-फाड़कर घूर रहे थे।

भिखमंगा नाटा था। गाल पिचके हुए, आँखें धँसी हुर्इ और छाती की हड्डियाँ साफ़ बाँस की खपचियों की तरह दिखार्इ दे रही थीं। पेट नाँद की तरह फूला हुआ। मार पड़ने पर वह बेतहाशा चिल्ला रहा था, मैं बरई हूँ, बरई हूँ बरई हूँ...

साला छँटा हुआ चोर है, साहब! शिवनाथ बाबू मेरे पास सरक आए थे, पर यह हमारा-आपका दोष है कि आदमी नहीं पहचानते। ग़रीबों को देखकर हमारा-आपका दिल पसीज जाता है और मौक़ा-बे-मौक़ा खुद्दी-चुन्नी, साग-सत्तू दे ही दिया जाता है। आपने तो इसको देखा ही होगा, मालूम होता था महीनों से खाना नहीं मिला है, पर कौन जानता था कि साला ऐसा निकलेगा। हरामी का पिल्ला...! फिर भिखमंगे की ओर मुड़कर गरज पड़े- बता साले, साड़ी कहाँ रखी है? नहीं वह मार पड़ेगी कि नानी याद आ जाएगी।