Saturday, February 29, 2020

Raj Class 12 Hindi Sarayu /Mandakini

सरयू 
हिंदी /१२/राजस्थान शिक्षा बोर्ड )
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गद्य खंड
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१.गुल्ली -डंडा Gulli danda  https://youtu.be/CdzjpOxsgcQ
२.मिठाईवाला https://www.youtube.com/watch?v=9I1eMEvXwUk
३.भारतीय संस्कृति 
४.शिरीष के फूल 
https://youtu.be/vXsC98C1uGE
५.पाजेब 
https://youtu.be/jAQrpUOx71g
६.आलोपी /व्याख्या सहित 
Part 1 : https://youtu.be/cy_vfNOTtXI
Part 2: https://youtu.be/O1J5MniqjLE
७.सेव और देव 
https://youtu.be/BmTLPUub25o
८.भक्ति आन्दोलन और ...
९.संस्कारों और शास्त्रों ....
१०.भारत भी महाशक्ति बन सकता है

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मन्दाकिनी 
हिंदी /१२/राजस्थान शिक्षा बोर्ड )
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1.हिंदी गद्य का विकास 
2.राष्ट्र का स्वरूप 
3.निर्वासित https://youtu.be/VJS2--lk6Fc
4.हमारी पुण्यभूमि और उसका गौरवमयी अतीत 
5.डॉ.रामकुमार वर्मा से बातचीत 
6.सुभाषचंद्र बोस (जीवनी)
7.सुभद्रा :व्याख्या सहित पाठ : https://youtu.be/6Bzq10WRhaU
(प्रश्नोत्तर विडियो ):
https://youtu.be/ZTB3w7UxDnA
8.जगदीश चंद्र बोस (आत्मकथा )
9.भोर का तारा (प्रश्नोत्तर और सार)
https://youtu.be/C191rNTWaeA
10.गेहूँ बनाम गुलाब 
11.यात्रा: एक पावन तीर्थ की 
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RBSE Class 12 Hindi Piyush Pravaah/Srijna

Anivary Hindi  syllabus for RPSC

सृजन 

पद्य 
१.संतवाणी  Q Ans
  1.  कबीरदास के दोहे व्याख्या सहित
  2. तुलसीदासव्याख्या सहित
  3. राजिया रा सोरठा (कृपाराम खिड़िया)
२.भ्रमरगीत से पद -सूरदास Part 1 ,// Part 2 //,Part 3
३.नीति के दोहे : रहीम
४. बिहारी सतसई से कुछ पद :बिहारी
५.वीररस के कवित्त : भूषण
६.उषा  ,// Question Answers
७.आत्मपरिचय Part 1 ,Part 2 
८.कविता के बहाने ,//बात सीधी  थी पर , //Question -Answers
९. मेरा नया बचपन //Summary //https://youtu.be/_nFxjBGbFcc
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गद्य 
१०.भय : रामचन्द्र शुक्ल
११. बाज़ार दर्शन , One line Questions- answers
१२.मजदूरी और प्रेम
१३.सफल प्रजातंत्रवाद  के लिए ..आंबेडकर
१४.ठेले पर हिमालय
१५.तौलिये
१६.ममता/ PART 2 /,PART 1
१७.मैं और मैं : कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर
Book: Srijan Rajasthan Board 
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पीयूष  प्रवाह Piyush Pravaah

1.उसने कहा था -पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी 
२.सत्य के प्रयोग -गांधी जी
३.गौरा -महादेवी वर्मा
४.मानस का हंस -अमृतलाल नागर
५.कुछ ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण -सेठ गोविन्ददास
६.राजस्थान के गौरव 

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Samvaad Setu 



Prativedan Lekhan प्रतिवेदन लेखन With Samples/

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प्रतिवेदन

 

प्रतिवेदन का सामान्य अर्थ:   

भूत अथवा वर्तमान की विशेष घटना, प्रसंग या विषय के प्रमुख कार्यो के क्रमबद्ध और संक्षिप्त विवरण को 'प्रतिवेदन' कहते हैं। | प्रतिवेदन  किसी संस्था, आयोजन या कार्यक्रम की तथ्यात्मक जानकारी है | 

 वह लिखित सामग्री, जो किसी घटना, कार्य-योजना, समारोह आदि के बारे में प्रत्यक्ष देखकर या छानबीन करके तैयार की गई हो, प्रतिवेदन या रिपोर्ट कहलाती है। 

English word for प्रतिवेदन   is Report.

प्रतिवेदन के तीन प्रकार हैं-
(1) व्यक्तिगत प्रतिवेदन
(2) संगठनात्मक प्रतिवेदन
(3) विवरणात्मक प्रतिवेदन



प्रतिवेदन/रिपोर्ट के गुण:

  • तथ्यों की जानकारी स्पष्ट, सटीक, प्रामाणिक होनि चाहिए  |
  • संस्था/ विभाग के  नाम का उल्लेख हो |
  • अध्यक्ष आदि पदाधिकारियों के नाम |
  • आयोजन-स्थल, दिनांक, दिन तथा समय
  • भाषा आलंकारिक या साहित्यिक न हो कर सूचनात्मक होनी चाहिए |
  • सूचनाएँ अन्यपुरुष शैली में दी जाती हैं | मैं या हम का प्रयोग नहीं होता |
  • संक्षिप्तता और क्रमिकता रिपोर्ट के गुण हैं |
  • प्रतिवेदक या रिपोर्टर के हस्ताक्षर |

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स्ववृत्त लेखन/नौकरी हेतु आवदेन /Bio data writing in Hindi



स्ववृत्त लेखन/नौकरी हेतु आवदेन /Bio data writing in Hindi

Ashudh vakyon ka shodhan /अशुद्ध वाक्यों का शोधन

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बहुब्रीहि  समास Bahubrihi Samas/ Hindi Vyakaran

Dwigu samaas द्विगु समास उदाहरण सहित

ANDHER NAGARI NATAK/ Bhartendu Harishchandra

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पूरा नाटक पढ़ने के लिए इस पोस्ट पर जाएँ :

https://padho-seekho.blogspot.com/2021/09/blog-post.html

Wednesday, February 19, 2020

Akka Mahadevi Vachans' Explanation /Aaroh NCERT Class 11 Hindi

Aalo Aandhari/आलो -आँधारि  Summary /Vitan 1 NCERT



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इस पाठ से घरेलू नौकरों के घरों में काम करने वालों के जीवन की निम्नलिखित जटिलताओं का पता चलता है –
  1. इन लोगों को आर्थिक सुरक्षा नहीं मिलती।
  2.  इन्हें गंदे व सस्ते मकान किराए पर मिलते हैं क्योंकि ये अधिक किराया नहीं दे सकते। 
  3. इनका शारीरिक शोषण भी किया जाता है। 
  4. इनके काम के घंटे भी अधिक होते हैं। 
  5. अन्य समस्याएँ ==आर्थिक तंगी के कारण इनके बच्चे अशिक्षित रह जाते हैं। 
  6. चिकित्सा सुविधा व खाने के अभाव में ये अशिक्षित रहते हैं। 
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 आलो-आँधारि रचना बेबी की व्यक्तिगत समस्याओं के साथ-साथ कई सामाजिक मुद्दों को समेटे है। किंही दो मुख्य समस्याओं पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
कुछ समस्याएँ निम्नलिखित हैं –
(क) परित्यक्ता स्त्री के साथ व्यवहार – यह पुस्तक एक परित्यक्ता स्त्री की कहानी कहती है। बेबी किराए के मकान में रहकर घरेलू नौकरानी का कार्य करके अपना जीवन निर्वाह कर रही है। समाज का दृष्टिकोण उसके प्रति स्वस्थ । नहीं है। स्वयं औरतें ही उस पर ताना मारती हैं। हर व्यक्ति उस पर अपना अधिकार समझता है तथा उसका शोषण करना चाहता है। उसे सदा संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। सहायता के नाम पर उसका मजाक उड़ाया जाता है।

(ख) स्वच्छता का अभाव – संसाधनों के अभाव में घरेलू नौकर गंदी बस्तियों में रहते हैं। शौचालय की सुविधा न होना, पानी की जमाव, कूड़े के ढेर आदि के कारण बीमारियाँ फैलती हैं। सरकार भी इन्हें उपेक्षित करती हैं।
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Sunday, February 2, 2020

भरत महिमा व्याख्या और प्रश्न उत्तर कक्षा 11 उत्तर प्रदेश बोर्ड


 प्रश्न-निम्नलिखित पद्यांशों के आधार पर उनसे सम्बन्धित दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

भरत-महिमा


 [संकेत-इस शीर्षक के शेष सभी पद्यांशों के लिए प्रश्न (i) में दिया संदर्भ उत्तर में लिखना है।]
प्रश्न 1:
भायप भगति भरत आचरनू । कहत सुनत दुख दूषन हरनू ।।
जो किछु कहब थोर सखि सोई । राम बंधु अस काहे न होई ।।
हम सब सानुज भरतहिं देखें । भइन्हें धन्य जुबती जन लेखें ।।
सुनि गुनि देखि दसा पर्छिताहीं । कैकइ जननि जोगु सुतु नाहीं ।।
कोउ कह दूषनु रानिहि नहिन । बिधि सबु कीन्ह हमहिं जो दाहिन ।।
कहँ हम लोक बेद बिधि हीनी ।. लघु तिय कुल करतूति मलीनी ।।
बसहिं कुदेस कुगाँव कुबामा । कहँ यह दरसु पुन्य परिनामा ।।
अस अनंदु अचिरिजु प्रति ग्रामा । जनु मरुभूमि कलपतरु जामा ।।
तेहि बासर बसि प्रातहीं, चले सुमिरि रघुनाथ ।
राम दूरस की लालसा, भरत सरिस सब साथ ॥


(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए ।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) भरत किसे मनाने के लिए पैदल ही फलाहार करते हुए जा रहे हैं?
(iv) किसके आचरण का वर्णन करने और सुनने से दुःख दूर हो जाते हैं।
(v) भरत को देखकर कैसा आश्चर्य और आनन्द गाँव-गाँव में हो रहा है?
 

उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद्य भक्तप्रवर गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘श्रीरामचरितमानस’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘भरत-महिमा’ शीर्षक काव्यांश से लिया गया  है।



(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – उस दिन वहीं ठहरकर दूसरे दिन प्रातःकाल ही रघुनाथ जी का स्मरण करके भरत जी चले। साथ के सभी लोगों को भी भरत जी के समान ही श्रीराम जी के दर्शन की लालसा लगी हुई है। इसीलिए सभी लोग शीघ्रातिशीघ्र श्रीराम के समीप पहुँचना चाहते हैं।
(iii) भरत राम को मनाकर अयोध्या वापस लौटा लाने के लिए पैदल ही फलाहार करते हुए चित्रकूट जा रहे
(iv) भरत के प्रेम, भक्ति भ्रात-स्नेह का सुन्दर वर्णन करने और सुनने से दु:ख दूर हो जाते हैं।
(v) भरत को देखकर ऐसा आश्चर्य गाँव-गाँव में हो रही है मानो मरुभूमि में कल्पतरु उग आया हो।

प्रश्न 2:
तिमिरु तरुन तरनिहिं मकु गिलई । गगनु मगन मकु मेघहिं मिलई ॥
गोपद जल बूड़हिं घटजोनी । सहज छमा बरु छाड़े छोनी ।।
मसक फूक मकु मेरु उड़ाई। होइ न नृपमद् भरतहिं पाई ।।

लखन तुम्हार सपथ पितु आना । सुचि सुबंधु नहिं भरत समाना ।।
सगुनु खीरु अवगुन जलु ताता । मिलई रचइ परपंचु बिधाता ।।
भरतु हंस रबिबंस तड़ागा। जनमि कीन्ह गुन दोष बिभागा ।।
गहि गुन पय तजि अवगुन बारी । निज जस जगत कीन्हि उजियारी ।।
कहत भरत गुन सीलु सुभाऊ । पेम पयोधि मगन रघुराऊ ।।

सुनि रघुबर बानी बिबुध, देखि भरत पर हेतु।
सकल संराहत राम सो, प्रभु को कृपानिकेतु ॥

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) श्रीराम लक्ष्मण से उनकी और पिता की सौगन्ध खाकर क्या कहते हैं?
(iv) सूर्यवंशरूपी तालाब में हंसरूप में किसने जन्म लिया है?
(v) श्रीराम की वाणी सुनकर तथा भरत जी पर उनका प्रेम देखकर देवतागण उनकी कैसी सराहना करने लगे?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – श्रीराम लक्ष्मण को समझाते हुए कहते हैं कि अन्धकार चाहे तरुण (मध्याह्न के) सूर्य को निगल जाए, आकाश चाहे बादलों में समाकर मिल जाए, गौ के खुर जितने जल में चाहे अगस्त्य जी डूब जाएँ, पृथ्वी चाहे अपमी स्वाभाविक सहनशीलता को छोड़ दे और मच्छर की फेंक से सुमेरु पर्वत उड़ जाए, परन्तु हे भाई! भरत को राजपाट  का मद  कभी नहीं हो सकता या राजा होने का घमंड नहीं हो सकता ।
(iii) गुरु वशिष्ठ के आगमन का समाचार सुनकर श्रीराम उनके दर्शन के लिए वेग के साथ चल पड़े।
(iv) राम का सखा जानकर वशिष्ठ जी ने निषादराज को जबरदस्ती गले से लगा लिया।
(v) श्रीराम की सराहना करते हुए देवतागण कहने लगे कि श्रीरघुनाथ जी का हृदय भक्ति और सुन्दर मंगलों का मूल है।

कवितावली

 [संकेत-इस शीर्षक के शेष सभी पद्यांशों के लिए प्रश्न (i) का संदर्भ ही उत्तर में  लिखना है।]

लंका-दहन

प्रश्न 1:
बालधी बिसाल बिकराल ज्वाल-जाल मानौं,
लंक लीलिबे को काल रसना पसारी है ।
कैधौं ब्योमबीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,

बीररस बीर तरवारि सी उघारी है ।।
तुलसी सुरेस चाप, कैधौं दामिनी कलाप,
कैंधौं चली मेरु तें कृसानु-सरि भारी है ।
देखे जातुधान जातुधानीः अकुलानी कहैं,
“कानन उजायौ अब नगर प्रजारी है ।।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) किसे देखकर लगता है मानो लंका को निगलने के लिए काल ने अपनी जील्ला फैलाई है।
(iv) हनुमान जी के विकराल रूप को देखकर निशाचर और निशाचरियाँ व्याकुल होकर क्या कहती
(v) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस रस में मुखरित हुई हैं।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद कवि शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘कवितावली’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘लंका-दहन’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।



(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि हनुमान जी की विशाल पूँछ से अग्नि की भयंकर लपटें उठ रही थीं। अग्नि की उन लपटों को देखकर ऐसा प्रतीत होता था, मानो लंका
को निगलने के लिए स्वयं काल अर्थात् मृत्यु के देवता ने अपनी जिह्वा फैला दी हो। ऐसा प्रतीत होता था जैसे आकाश-मार्ग में अनेकानेक पुच्छल तारे भरे हुए हों।
(iii) हनुमान जी की विशाल पूँछ से निकलती हुई भयंकर लपटों को देखकर लगता है मानो लंका को निगलने के लिए काल ने अपनी जिह्वा फैलाई है।
(iv) हनुमान जी के विकराल रूप को देखकर निशाचर और निशाचरियाँ व्याकुल होकर कहती हैं कि इस वानर ने अशोक वाटिका को उजाड़ा था, अब नगर जला रहा है; अब भगवान ही हमारा रक्षक है।
(v) प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘भयानक रस’ में मुखरित हुई हैं।

प्रश्न 2:
लपट कराल ज्वाल-जाल-माल दहूँ दिसि,
अकुलाने पहिचाने कौन काहि रे ?
पानी को ललात, बिललात, जरे’ गात जाते,
परे पाइमाल जात, “भ्रात! तू निबाहि रे” ।।
प्रिया तू पराहि, नाथ नाथ तू पराहि बाप
बाप! तू पराहि, पूत पूत, तू पराहि रे” ।
तुलसी बिलोकि लोग ब्याकुल बिहाल कहैं,
“लेहि दससीस अब बीस चख चाहि रे’ ।।


(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए ।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) किस कारण कोई किसी को नहीं पहचान रहा है?
(iv) चारों ओर भयंकर आग और धुएँ से परेशान लोग रावण से क्या कहते हैं?
(v) ‘पानी को ललात, बिललात, जरे गात जाता’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – लंकानिवासी राजा रावण को कोसते हुए कह रहे हैं कि हे दस मुखों वाले रावण! अब तुम अपने सभी मुखों से लंकानगरी के विनाश का यह स्वाद स्वयं चखकर देखो। इस विनाश को अपनी बीस आँखों से भलीभाँति देखो और अपने मस्तिष्क से विचार करो कि तुम्हारे द्वारा बलपूर्वक किसी दूसरे की स्त्री का हरण करके कितना अनुचित कार्य किया गया है। अब तो तुम्हारी आँखें अवश्य ही खुल जानी चाहिए, क्योंकि तुमने उसके पक्ष के एक सामान्य से वानर के द्वारा की गयी विनाश-लीला का दृश्य अपनी बीस आँखों से स्वयं देख लिया है।
(iii) दसों दिशाओं में विशाल अग्नि-समूह की भयंकर लपटें तथा धुएँ के कारण कोई किसी को नहीं पहचान रही है।
(iv) चारों ओर आग और धुएँ से परेशान लोग रावण से कहते हैं कि हे रावण! अब अपनी करतूत का फल बीसों आँखों से देख ले।
(v) अनुप्रास अलंकार।

गीतावली

प्रश्न 1:
मेरो सब पुरुषारथ थाको ।
बिपति-बँटावन बंधु-बाहु बिनु करौं भरोसो काको ?
सुनु सुग्रीव साँचेहूँ मोपर फेर्यो बदन बिधाता ।।
ऐसे समय समर-संकट हौं तज्यो लखन सो भ्राता ।।
गिरि कानन जैहैं साखामृग, हौं पुनि अनुज सँघाती ।

हैं कहा बिभीषन की गति, रही सोच भरि छाती ।।
तुलसी सुनि प्रभु-बचन भालु कपि सकल बिकल हिय हारे ।
जामवंत हनुमंत बोलि तब औसर जानि प्रचारे ।।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए ।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) किस कारण विलाप करते हुए श्रीराम अपना पुरुषार्थ थका हुआ बताते हैं?
(iv) हनुमान जी को सुषेण वैद्य को लाने की सलाह किसने दी?
(v) ‘बिपति-बँटावन बंधु-बाहु बिनु करौं भरोसो काको?” पंक्ति में कौन-सा अलंकार होगा?
उत्तर:
(i) यह पद तुलसीदास जी द्वारा विरचित ‘गीतावली’ नामक रचना से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीतावली’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – श्रीराम कहते हैं कि मेरे हृदय में यही सोच भरा हुआ है कि विभीषण की क्या हालत होगी? जिस विभीषण को शरण देकर मैंने उसे लंका का राजा बनाने का निश्चय किया था, मेरी वह प्रतिज्ञा कैसे पूरी होगी?
(iii) लक्ष्मण श्रीराम की दायीं भुजा के समान थे किन्तु उनके शक्ति लगने के कारण श्रीराम विलाप करते हुए अपना पुरुषार्थ थका हुआ बताते हैं।
(iv) हनुमान जी को सुषेण वैद्य को लाने की सलाह जामवंत ने दी।
(v) अनुप्रास अलंकार।

दोहावली

प्रश्न 1:
हरो चरहिं तापहिं बरत, फरे पसारहिं हाथ ।
तुलसी स्वारथ मीत सब, परमारथ रघुनाथ ॥

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) पशु-पक्षी कैसे वृक्षों को चरते हैं?
(iv) संसार के लोग कैसा व्यवहार करते हैं?
(v) तुलसीदास ने किसे परमार्थ का साथी बताया है।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘दोहावली’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है। इसके रचयिता भक्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी हैं।


(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – तुलसीदास जी कहते हैं कि संसार में सभी मित्र और सम्बन्धी स्वार्थ के कारण ही सम्बन्ध रखते हैं। जिस दिन हम उनके स्वार्थ की पूर्ति में असमर्थ हो जाते हैं, उसी दिन सभी व्यक्ति हमें त्यागने में देर नहीं लगाते। इसी प्रसंग में तुलसीदास ने कहा है कि श्रीराम की भक्ति ही परमार्थ का सबसे बड़ा साधन है और श्रीराम ही बिना किसी स्वार्थ के हमारा हित-साधन करते हैं।
(iii) पशु-पक्षी हरे वृक्षों को चरते हैं।
(iv) संसार के लोग स्वार्थपूर्ण व्यवहार करते हैं।
(v) तुलसीदास जी ने श्रीरघुनाथ जी को एकमात्र परमार्थ का साथी बताया है।

प्रश्न 2:
बरषत हरषत लोग सब, करषत लखै न कोइ ।
तुलसी प्रजा-सुभाग ते, भूप भानु सो होइ ।।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) राजा को किसके समान होना चाहिए?
(iv) सूर्य के द्वारा किसका कर्षण(खींचा) किया जाता है?
(v) ‘भूप भानु सो होइ’ पद्यांश में कौन-सा अलंकार होगा?

उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – प्रायः राजा अपने सुख और वैभव के लिए जनता से कर प्राप्त करते हैं। प्रजा अपने परिश्रम की गाढ़ी कमाई राजा के चरणों में अर्पित कर देती है, किन्तु वही प्रजा सौभाग्यशाली होती है, जिसे सूर्य जैसा राजा मिल जाए। जिस प्रकार सूर्य सौ-गुना जल बरसाने के लिए ही धरती से जल ग्रहण : करता है, उसी प्रकार से प्रजा को और अधिक सुखी करने के लिए ही श्रेष्ठ राजा उससे कर वसूल करता है।
(iii) राजा को सूर्य के समान अर्थात् प्रजापालक होना चाहिए।
(iv) सूर्य द्वारा पृथ्वी से जल का कर्षण किया जाता है।
(v) उपमा अलंकार।

विनय-पत्रिका


प्रश्न 1:
कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगी।
श्रीरघुनाथ-कृपालु-कृपा ते संत सुभाव गहौंगो ।
जथालाभ संतोष सदा काहू सों कछु न चहौंगो ।
परहित-निरत निरंतर मन क्रम बचन नेम निबहौंगो ।
परुष बचन अतिदुसह स्रवन सुनि तेहि पावक न दहौंगो ।
बिगत मान सम सीतल मन, पर-गुन, नहिं दोष कहौंगो ।।
परिहरि देहजनित चिंता, दु:ख सुख समबुद्धि सहौंगो ।
तुलसिदास प्रभु यहि पथ रहि अबिचल हरि भक्ति लहौंगो ।।


(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए ।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) तुलसीदास जी कैसा स्वभाव ग्रहण करना चाहते हैं?
(iv) तुलसीदास जी कैसे वचन सुनने के बाद भी क्रोध की आग में नहीं जलना चाहते?
(v) ‘संतोष’ शब्द का संधि-विच्छेद कीजिए।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद भक्त कवि तुलसीदास द्वारा विरचित ‘विनय-पत्रिका’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘विनय-पत्रिका’ शीर्षक से उद्धृत है।


(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – तुलसीदास जी कहते हैं कि क्या कभी वह दिन आएगा, जब मैं सन्तों की तरह जीवन जीने लगूंगा? क्या तुलसीदास इस मार्ग पर चलकर कभी अटल भगवद्भक्ति प्राप्त कर सकेंगे; अर्थात् क्या कभी हरि-भक्ति प्राप्ति का मेरा मनोरथ पूरा होगा?


(iii) तुलसीदास जी रघुनाथ जी की कृपा से संत स्वभाव ग्रहण करना चाहते हैं।
(iv) तुलसीदास जी कठोर वचन सुनने के बाद भी क्रोध की आग में नहीं जलना चाहते।
(v) संतोष’ शब्द का संधि-विच्छेद है–सम् + तोष।

प्रश्न 2:
अब लौं नसानी अब न नसैहौं ।
राम कृपा भवनिसा सिरानी जागे फिर न डसैहौं ।।

पायो नाम चारु चिंतामनि, उर-कर तें न खसैहौं ।
स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी चित कंचनहिं कसैहौं ।
परबस जानि हँस्यौ इन इंद्रिन, निज बस है न हँसैहौं ।
मन मधुकर पन करि तुलसी रघुपति पद-कमल बसैहौं ।।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) तुलसीदास जी अब अपने जीवन को किसमें नष्ट नहीं करना चाहते?
(iv) तुलसीदास रामनामरूपी चिन्तामणि को कहाँ बसाना चाहते हैं?
(v) तुलसीदास का कब तक इन्द्रियों ने उपहास किया?
उत्तर:
(i) रेखांकित अंश की व्याख्या – तुलसीदास जी कहते हैं कि मैंने अब तक अपनी आयु को व्यर्थ के कार्यों में ही नष्ट किया है, परन्तु अब मैं अपनी आयु को इस प्रकार नष्ट नहीं होने दूँगा । उनके कहने का भाव यह है। कि अब उनके अज्ञानान्धकार की राज्ञि समाप्त हो चुकी है और उन्हें सद्ज्ञान प्राप्त हो चुका है; अत: अब वे मोह-माया में लिप्त होने के स्थान पर ईश्वर की भक्ति में ही अपना समय व्यतीत करेंगे और ईश्वर से साक्षात्कार करेंगे। श्रीराम जी की कृपा से संसार रूपी रात्रि बीत चुकी है; अर्थात् मेरी सांसारिक प्रवृत्तियाँ दूर हो गयी हैं; अतः अब जागने पर अर्थात् विरक्ति उत्पन्न होने पर मैं फिर कभी बिछौना न बिछाऊँगा; अर्थात् सांसारिक मोह-माया में नहीं उलझूँगा ।
(iii) तुलसीदास जी अब अपना जीवन विषयवासनाओं में नष्ट नहीं करना चाहते।
(iv) तुलसीदास जी रामनामरूपी चिन्तामणि को अपने हृदय में बसाना चाहते हैं।
(v) तुलसीदास जी का मन जब तक विषयवासनाओं का गुलाम रहा तब तक इन्द्रियों ने उनका उपहास किया।

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