Tuesday, April 30, 2019

Antra & Antral Bhag 1 (NCERT) Class 11 Hindi

कक्षा ११ अंतरा भाग १ / अंतराल भाग १ /अभिव्यक्ति के  विडियो पाठ 
Class 11  Antra 1 & Antral 1 (NCERT)
Hindi Lessons


  1. प्रेमचंद : ईदगाह Part 1: https://youtu.be/yP9UOOZHakw

                                               Part 2:https://youtu.be/n-NYw94gTw8
  1. अमरकांत दोपहर का भोजन  https://www.youtube.com/watch?v=pIekOvRy-pE
  2. हरिशंकर परसाई टोर्च बेचने  वाले 
  3. रांगेय राघव 
  4. सुधा अरोड़ा
  5. ओमप्रकाश वाल्मीकि
  6. गजानन माधव मुक्तिबोध
  7. पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'
  8. भारतेंदु हरिश्चंद्र
  9. कबीरदास
  10. सूरदास
  11. देव
  12. पद्यमाकर
  13. सुमित्रानंदन पंत
  14. महादेवी वर्मा
  15. नरेंद्र शर्मा
  16. नागार्जुन
  17. श्रीकांत वर्मा
  18. धूमिल

Dopahar ka bhojan दोपहर का भोजन -अमरकांत


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Idgaah /Premchand /Explanation /Part 2



ईदगाह (मुंशी प्रेमचंद की कहानी )

भाग २

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Idgaah /Munshi Premchand /Explanation Part 1



Part 1: https://youtu.be/yP9UOOZHakw
ईदगाह रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, 

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Sunday, April 28, 2019

Mehandi ke phool/मेहंदी के फूल /कहानी /लेखक यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र





Mehandi ke phool/मेहंदी के फूल  /कहानी /लेखक यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र

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पत्नी (कहानी ) |Patni | Jainendra Kumar |जैनेन्द्र कुमार





पत्नी (कहानी ) |Patni | Jainendra Kumar |
इस कहानी में लेखक चुपके से स्त्री के मन में गहरी पैठ बनाते हुए उसकी दमित आकांक्षाओं और क्षत-विक्षत सपनों को सतह पर लाते हैंI
यांत्रिक भाव से जीती सुनंदा.मन में उठती टीस और उसके अरमान सबका गला घोंटने को मजबूर ..कभी यूँ भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती है कि पति का जी दुखाने के लिए उसकी उपस्थिति का नोटिस न लेकर ’कठोरतापूर्वक शून्य को ही देखती रहती’ है......तो पति कालिंदीचरण में जागता है पुरुष का अहं भाव तो दूसरी और अपने मान की रक्षा की मूक मिन्नतें भी सुनन्दा से करता है! पढ़िए जैनेन्द्र कुमार की कालजयी रचना ...
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Video prepared and presented by Alpana Verma


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Saturday, April 27, 2019

हिंदी माध्यम से सिविल परीक्षा देने वाले विद्यार्थी देखें ..

हिंदी माध्यम से सिविल परीक्षा देने वाले विद्यार्थी अंग्रेजी माध्यम वालों से अपेक्षाकृत अधिक मेहनत करते हैं लेकिन सफल नहीं हो पाते...कोचिंग ज्वाइन करते हैं लेकिन तब भी सफलता नहीं मिलती...ऐसा क्यों होता है ? सिविल परीक्षा /संघ लोक सेवा आयोग ( UPSC) देने वाले विद्यार्थियों के लिए डॉ.के. सिद्दार्थ के सुझाव ,उनकी कुछ बातें सुनकर आपको ताव आ सकता है कि ऐसा उन्होंने क्यों कहा.....लेकिन बहुत ध्यान से विचार करिए ,उनके कहने में काफी हद तक सत्यता है और विडियो के आखिर में उन्होंने काफी सुझाव दिए हैं उनको नोट करें और अपनी तैयारी को बेहतर बनाएँI शुभकामनाएँ!
https://youtu.be/SEW-Rj-WVXk

Friday, April 26, 2019

The Book That Saved The Earth / Chapter10 /Class 10 Audio book



The play 'The Book That Saved The Earthby Claire Boiko is set in Mars in the 25th century. It is full of imagination. 

The characters like Think-Tank, Noodle, Oop , Omega etc. play as the Martian living beings, 

The story is set in the distant 25th Century where a historian is narrating a tale of past glories.
The play tells us in detail as to how the book successfully saved the earth from Martian invasion.

Bholi Chapter 9 Audio book

Chapter 8 The driver Audio book

Chapter7 The necklace Audio book

Chapter 5 Footprints without Feet Audio book

Chapter 4 - The question of trust Audio book

Chapter 3 - The midnight visitor Audio book



Chapter 3 - The midnight visitor  Audio book

Thursday, April 25, 2019

UGC/NET/JRF 2022 Hindi sahity Syllabus

UGC/NET -NTA   , Syllabus(Subject : Hindi) 2022
uploaded इकाई-VII   हिंदी कहानी 
इस प्लेलिस्ट में उपलब्ध विडियो पाठों को रखा गया है :
https://www.youtube.com/watch?v=1QmmdRRF8rI&list=PLLBGq3QUpyoFaDEbsdy-K7fj1ksSa0_ok&index=1

हिंदी कहानी
  1. राजेंद्र बाला घोष (बंग महिला)౼ चंद्रदेव से मेरी बातें  https://youtu.be/1QmmdRRF8rI
  2. दुलाईवाली [ बंग महिला)-https://youtu.be/c6J679fy1Aw
  3. माधव सप्रे ౼ एक टोकरी भर मिट्टी https://youtu.be/7TfveUTrMBE
  4. सुभद्रा कुमारी चौहान ౼ राही  https://youtu.be/jSS9BAUxH0M
  5. प्रेमचन्द  ईदगाह, Part 1: https://youtu.be/yP9UOOZHakw Part 2:https://youtu.be/n-NYw94gTw8
  6. दुनिया का सबसे अनमोल रतन  https://youtu.be/E41exG3MYyY
  7. राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह ౼ कानों में कंगना  https://youtu.be/po07s2eSN3M
  8. चंद्रधर शर्मा गुलेरी ౼ उसने कहा था   https://youtu.be/3twNYaNB1FA
  9. जयशंकर प्रसाद ౼ आकाशदीप https://youtu.be/TRfg15WcSKs
  10. जैनेंद्र ౼ अपना अपना भाग्य    https://youtu.be/jZHakhS17hg
  11. फणीश्वर नाथ रेणु  मारे गए गुलफ़ाम/तीसरी क़सम,
  12. लाल पान की बेगम  https://www.youtube.com/watch?v=53EGF5dcZ2I
  13. अज्ञेय ౼ गैंग्रीन /रोज़   https://youtu.be/mwstia4bJQM
  14. शेखर जोशी ౼ कोसी का घटवार   https://youtu.be/rdMf92-GnCU
  15. भीष्म साहनी ౼ अमृतसर आ गया है, https://youtu.be/GR0Br5E5EJ0
  16. चीफ की दावत -https://youtu.be/-Nbz-ksNRdc
  17. कृष्णा सोबती ౼ सिक्का बदल गया https://youtu.be/uyldptpJ-ns
  18. हरिशंकर परसाई ౼ इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर  https://youtu.be/8atdzcvDkdw
  19. ज्ञानरंजन ౼ पिता https://youtu.be/OqXaB8WyoeU
  20. कमलेश्वर ౼ राजा निरबंसिया  Part 1:https://youtu.be/p_7B5mIN5lQ                                                                          Part 2:https://youtu.be/RFC3YV_it_Q
  21. निर्मल वर्मा ౼ परिन्दे   (posted) Parindey PART 1: https://youtu.be/57GOnrc7jrs
 Parindey PART 2: https://youtu.be/JQpG1QbAf2c

 Parindey PART 3 :https://youtu.be/BbWZfjrgMqk

Parindey Charcha/Q-answers:https://youtu.be/P3kJ0Du0t3c

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UGC/NET -NTA

इकाई-V  हिन्दी कविता
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1.JaiShankar Prasad : Kamayani


2.Nirala ji : Saroj Smriti    Part 1     https://youtu.be/sURI2l73wY0                   
                      Part 2  https://youtu.be/QcrpFmDsybc
3.Agyey ji :
 Asadhy Veena Part 1 https://youtu.be/1jTjdoXYxvA              
Part 2  https://youtu.be/_PgkYjXRb7E
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4.Yeh deep akela  = https://youtu.be/jvBM4RvAzFg



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इकाई- X

UGC-NET परीक्षा देने वाले परीक्षार्थी अपनी परीक्षा सम्बन्धित जानकारी के लिए NTA की वेबसाइट पर देखें I
यह लिंक है जहाँ आप जान सकते हैं कि प्रश्न कैसे आएँगे और कम्प्यूटर पर परीक्षा कैसे देनी होगीI इसके साथ ही आप स्वमूल्यांकन हेतु mock test भी दे सकते हैं😊🌟 Good luck! : 
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============== Entire syllabus for 2022 Subject Hindi ========
 
 UGC NET Paper-I Syllabus 2022 In Hindi

इकाई- I: हिंदी भाषा और उसका विकास


हिंदी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: प्राचीन भारतीय आर्य भाषाएं, मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाएं- पाली, प्राकृत- शौरसेनी, अर्धमगधी, मागधी, अपभ्रंश और उनकी विशेषताएं, अपभ्रंश अवहठ और पुरानी हिंदी का संबंध, आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएं और उनका वर्गीकरण, हिंदी का भौगोलिक विस्तार: हिंदी की उपभाषाएं, पश्चिमी हिंदी, पूर्वी हिंदी, राजस्थानी, बिहारी तथा पहाड़ी वर्ग और उसकी बोलियां, खड़ीबोली, ब्रज और अवधी की विशेषताएं, हिंदी के विविध रूप: हिंदी, उर्दू, दक्खिनी, हिंदुस्तानी, हिन्दी का भाषिक स्वरूप: हिंदी की स्वनिम व्यवस्था- खंड्य और खंड्येतर, हिंदी ध्वनियों के वर्गीकरण का आधार, हिंदी शब्द-रचना- उपसर्ग, प्रत्यय, समास, हिंदी की रूप-रचना- लिंग, वचन और कारक व्यवस्था के संदर्भ में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया-रूप, हिंदी-वाक्य-रचना, हिंदी भाषा-प्रयोग के विविध रूप: बोली, मानक भाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा, संचार माध्यम और हिंदी, कंप्यूटर और हिंदी, हिंदी की संवैधानिक स्थिति, देवनागरी लिपि: विशेषताएं और मानकीकरण

इकाई- II: हिंदी साहित्य का इतिहास


हिंदी साहित्येतिहास दर्शन, हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की पद्धतियाँ, हिंदी साहित्य का काल-विभाजन और नामकरण, आदिकाल की विशेषताएं एवं साहित्यिक प्रवृत्तियां, रासो-साहित्य, आदिकालीन हिंदी का जैन साहित्य, सिद्ध और नाथ साहित्य, अमीर खुसरो की हिन्दी कविता, विद्यापति और उनकी पदावली तथा लौकिक साहित्य
भक्तिकाल
भक्ति-आंदोलन के उदय के सामाजिक-सांस्कृतिक कारण, भक्ति-आंदोलन का अखिल भारतीय स्वरूप और उसका अंतःप्रादेशिक वैशिष्ठ्य, भक्ति-काव्य की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, आलवार संत, भक्ति-काव्य के प्रमुख संप्रदाय और उनका वैचारिक आधार, निर्गुण-सगुण कवि और उनका काव्य
रीतिकाल

सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, रीतिककाल की प्रमुख प्रवृत्तियां (रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त), रीतिकाल के प्रमुख कवि और उनका काव्य
आधुनिक काल

हिंदी गद्य का उद्भव और विकास, भारतेंदु पूर्व इन हिंदी गद्य, 1857 की क्रांति और सांस्कृतिक पुनर्जागरण, भारतेंदु और उनका युग, पत्रकारिता का आरंभ और 19वीं शताब्दी की हिंदी पत्रकारिता, आधुनिकता की अवधारणा
द्विवेदी युग: महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनका युग, हिंदी नवजागरण और सरस्वती, राष्ट्रीय काव्य-धारा के प्रमुख कवि, स्वच्छंदतावाद और उनके प्रमुख कवि
छायावाद: छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषताएं, छायावाद के प्रमुख कवि
प्रगतिवाद की अवधारणा, प्रगतिवादी काव्य और उनके प्रमुख कवि, प्रयोगवाद और नई कविता, नई कविता के कवि
समकालीन कविता (वर्ष 2000 तक), समकालीन साहित्यिक पत्रकारिता
हिंदी साहित्य की गद्य विधाएं

हिंदी उपन्यास: भारतीय उपन्यास की अवधारणा, प्रेमचंद पूर्व उपन्यास, प्रेमचंद और उनका युग, प्रेमचंद के परवर्ती उपन्यासकार (वर्ष 2000 तक)
हिंदी कहानी हिंदी: कहानी का उद्भव और विकास, 20वीं सदी की हिंदी कहानी और प्रमुख कहानी-आन्दोलन एवं प्रमुख कहानीकार
हिंदी नाटक: हिंदी नाटक और रंगमंच, विकास के चरण, भारतेंदु युग, प्रसाद युग, प्रसादोत्तर युग, स्वातंत्र्योत्तर युग, साठोत्तर युग और नया नाटक, प्रमुख नाट्यकृतियां, प्रमुख नाटककार (वर्ष 2000 तक) हिंदी एकांकी: हिंदी रंगमंच और विकास के चरण, हिंदी का लोक रंगमंच, नुक्कड़ नाटक
हिंदी निबंध: हिंदी निबंध का उद्भव और विकास, हिंदी निबंध के प्रकार और प्रमुख निबंधकार
हिंदी आलोचना: हिंदी आलोचना का उद्भव और विकास, समकालीन हिंदी आलोचना एवं उसके विविध प्रकार, प्रमुख आलोचक
हिंदी की अन्य गद्य विधाएं: रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा-साहित्य, आत्मकथा, जीवनी और रिपोर्ताज, डायरी
हिंदी का प्रवासी साहित्य: अवधारणा एवं प्रमुख साहित्यकार

 इकाई- III: साहित्यशास्त्र


भारतीय काव्यशास्त्र- काव्य के लक्षण, काव्य हेतु और काव्य प्रयोजन, प्रमुख संप्रदाय और सिद्धांत– रस, अलंकार, रीति, ध्वनि, वक्रोक्ति और औचित्य, रस निष्पत्ति, साधारणीकरण, शब्दशक्ति, काव्यगुण, काव्य दोष
पश्चात काव्यशास्त्र- प्लेटो के काव्य सिद्धांत, अरस्तू: अनुकरण सिद्धांत, त्रासदी विवेचन, विरेचन सिद्धांत, वर्ड्सवर्थ का काव्य भाषा सिद्धांत, कॉलरिज: कल्पना और फैंटेसी, टी. एस. इलियट: निर्वैक्तिकता का सिद्धांत, परंपरा की अवधारणा, आई.ए. रिचर्ड्स: मूल्य सिद्धांत, संप्रेषण सिद्धांत तथा काव्य-भाषा सिद्धांत, रूसी रूपवाद, नई समीक्षा, मिथक, फ़न्तासी, कल्पना, प्रतीक, बिंब।

इकाई- IV: वैचारिक पृष्ठभूमि


भारतीय नवजागरण और स्वाधीनता आंदोलन की वैचारिक पृष्ठभूमि, हिंदी नवजागरण, खड़ीबोली आंदोलन, फोर्ट विलियम कॉलेज, भारतेंदु और हिंदी नवजागरण, महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण, गांधी दर्शन, अंबेडकर दर्शन, लोहिया दर्शन, मार्क्सवाद, मनोविश्लेषणवाद, अस्तित्ववाद, उत्तर आधुनिकतावाद, अस्मितामूलक विमर्श (दलित, स्त्री, आदिवासी एवं अल्पसंख्यक)


इकाई- V: हिंदी कविता


    पृथ्वीराज रासो- रेवा तट
    अमीर खुसरो- खुसरो की पहेलियां और मुकरियां
    विद्यापति की पदावली (सं. डॉ. नगेंद्र झा)- पद संख्या 1 से 25
    कबीर- (सं. हजारी प्रसाद द्विवेदी)- पद संख्या 160 से 209
    जायसी ग्रंथावली (सं. रामचंद्र शुक्ल) नागमती वियोग खंड
    सूरदास- भ्रमरगीत सार (सं.  रामचंद्र शुक्ल)- पद संख्या 21 से 70
    तुलसीदास- रामचरितमानस (उत्तरकांड)
    बिहारी सतसई (सं. जगन्नाथदास रत्नाकर)- दोहा संख्या 1 से 50
    घनानंद कवित्त (सं. विश्वनाथ मिश्र)- कवित्त संख्या 1 से 30
    मीरा (सं. विश्वनाथ त्रिपाठी)- प्रारंभ से 20 पद
    अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध- प्रियप्रवास
    मैथिलीशरण गुप्त- भारत भारती, साकेत (नवम् सर्ग)
    जयशंकर प्रसाद- आंसू, कामायनी (श्रद्धा, लज्जा और इड़ा सर्ग)
    निराला- जूही की कली, जागो फिर एक बार, सरोज स्मृति, राम की शक्ति पूजा, कुकुरमुत्ता, बांधो न नाव इस ठांव बंधु
    सुमित्रानंदन पंत- परिवर्तन, प्रथम रश्मि
    महादेवी वर्मा- बीन भी हूं मैं तुम्हारी रागिनी भी हूं, मैं नीर भरी दुख की बदली, फिर विकल हैं प्राण मेरे, यह मंदिर का दीप, द्रुत झरो जगत् के जीर्ण पत्र
    रामधारी सिंह दिनकर- उर्वशी (तृतीय अंक), रश्मिरथी
    नागार्जुन- कालिदास, बादल को घिरते देखा है, अकाल और उसके बाद, खुरदरे पैर, शासन की बंदूक़, मनुष्य हूं
    सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय- कलगी बाजरे की, यह दीप अकेला, हरी घास पर क्षण भर, असाध्यवीणा, कितनी नावों में कितनी बार
    भवानी प्रसाद मिश्र- गीतफ़रोश, सतपुड़ा के जंगल
    मुक्तिबोध- भूल ग़लती, ब्रह्मराक्षस, अंधेरे में
    धूमिल- नक्सलबाड़ी, मोचीराम, अकाल-दर्शन, रोटी और संसद

इकाई- VI: हिंदी उपन्यास


    पंडित गौरी दत्त- देवरानी जेठानी की कहानी -भाग 1 ,भाग 2 ,भाग  3
    लाला श्रीनिवास दास- परीक्षा गुरु
    प्रेमचंद- गोदान Part 1 : https://youtu.be/-EDZghrX7gg Part 2 : https://youtu.be/xKa3cRfcGO4
    अज्ञेय- शेखर एक जीवनी (भाग-1)
    हजारी प्रसाद द्विवेदी- बाणभट्ट की आत्मकथा
    फणीश्वर नाथ रेणु- मैला आंचल
    यशपाल- झूठा सच
    अमृतलाल नागर- मानस का हंस
    भीष्म साहनी- तमस
    श्रीलाल शुक्ल- राग दरबारी
    कृष्णा सोबती- जिंदगी नामा
    मन्नू भंडारी- आपका बंटी /उपन्यास का सार,,,, Part 1 https://youtu.be/EvFT1DcZNWI, Part 2 https://youtu.be/cuqAKSfO3PE Part 3 https://youtu.be/89BrU4P_xF8
    जगदीश चंद्र- धरती धन न अपना


इकाई- VII: हिंदी कहानी

    राजेंद्र बाला घोष (बंग महिला)- चंद्रदेव से मेरी बातें, दुलाईवाली
    माधव सप्रे- एक टोकरी भर मिट्टी
    सुभद्रा कुमारी चौहान- राही
    प्रेमचन्द- ईदगाह, दुनिया का अनमोल रतन
    राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह- कानों में कंगना
    चंद्रधर शर्मा गुलेरी- उसने कहा था
    जयशंकर प्रसाद- आकाशदीप
    जैनेंद्र- अपना अपना भाग्य
    फणीश्वर नाथ रेणु- तीसरी क़सम, लाल पान की बेगम
    अज्ञेय- गैंग्रीन
    शेखर जोशी- कोसी का घटवार
    भीष्म साहनी- अमृतसर आ गया है, चीफ की दावत
    कृष्णा सोबती- सिक्का बदल गया
    हरिशंकर परसाई- इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर
    ज्ञानरंजन- पिता
    कमलेश्वर- राजा निरबंसिया
    निर्मल वर्मा- परिन्दे



काई-VIII: हिंदी नाटक


    भारतेंदु- अंधेर नगरी, भारत दुर्दशा
    जयशंकर प्रसाद- चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी
    धर्मवीर भारती- अंधायुग
    लक्ष्मीनारायण लाल- सिंदूर की होली
    मोहन राकेश- आधे अधूरे, आषाढ़ का एक  दिन
    हबीब तनवीर-  आगरा बाज़ार
    सर्वेश्वर दयाल सक्सेना- बकरी
    शंकरशेष- एक और द्रोणाचार्य
    उपेंद्रनाथ अश्क- अंजू देवी
    मन्नू भंडारी- महाभोज

इकाई-IX: हिंदी निबंध


    भारतेंदु- दिल्ली दरबार दर्पण, भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है
    प्रताप नारायण मिश्र- शिवमूर्ति
    बालकृष्ण गुप्त- शिव शंभू के चिट्ठे
    रामचंद्र शुक्ल- कविता क्या है
    हजारी प्रसाद द्विवेदी- नाखून क्यों बढ़ते हैं
    विद्यानिवास मिश्र- मेरे राम का मुकुट भीग रहा है
    अध्यापक पूर्णसिंह- मज़दूरी और प्रेम
    कुबेरनाथ राय- उत्तराफाल्गुनी के आसपास
    विवेकी राय- उठ जाग मुसाफिर
    नामवर सिंह- संस्कृति और सौंदर्य

 इकाई- X: आत्मकथा, जीवनी तथा अन्य गद्य विधाएं


    रामवृक्ष बेनीपुरी- माटी की मूरतें
    महादेवी वर्मा- ठकुरी बाबा
    तुलसीराम- मुर्दहिया
    शिवरानी देवी- प्रेमचंद घर में
    मन्नू भंडारी- एक कहानी यह भी
    विष्णु प्रभाकर- आवारा मसीहा
    हरिवंश राय बच्चन- क्या भूलूं क्या याद करूं
    रमणिका गुप्ता- आपहुदरी
    हरिशंकर परसाई- भोलाराम का जीव
    कृष्ण चंदर- जामुन का पेड़
    दिनकर- संस्कृति के चार अध्याय
    मुक्तिबोध- एक साहित्यिक की डायरी
    राहुल सांकृत्यायन- मेरी तिब्बत यात्रा
    अज्ञेय- अरे यायावर रहेगा याद

The Thief's story/ Chapter 2 English/ Audio book/ Class 10





Read this story here http://ncert.nic.in/ncerts/l/jefp102.pdf
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A Triumph of Surgery /Chapter 1/Audio book/James Herriot



A Triumph of Surgery

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The subject of this story is a pet dog which is spoilt by its owner.


Tuesday, April 23, 2019

असाध्य वीणा |सरलार्थ |Asadhy Veena Poem|Part 2| MA Hindi





अज्ञेय जी कृत असाध्य वीणा (सरलार्थ  ) पार्ट 1 यहाँ है :- https://youtu.be/1jTjdoXYxvA

अंतिम पार्ट 2  https://youtu.be/_PgkYjXRb7E
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पूरी कविता यहाँ पढ़ें :



असाध्य वीणा 



आ गए प्रियंवद! केशकंबली! गुफा-गेह!

राजा ने आसन दिया। कहा :

'कृतकृत्य हुआ मैं तात! पधारे आप।

भरोसा है अब मुझ को

साध आज मेरे जीवन की पूरी होगी!'



लघु संकेत समझ राजा का

गण दौड़े। लाये असाध्य वीणा,

साधक के आगे रख उस को, हट गए।

सभी की उत्सुक आँखें

एक बार वीणा को लख, टिक गईं

प्रियंवद के चेहरे पर।



'यह वीणा उत्तराखंड के गिरि-प्रांतर से

-घने वनों में जहाँ तपस्या करते हैं व्रतचारी-

बहुत समय पहले आयी थी।

पूरा तो इतिहास न जान सके हम :

किंतु सुना है

वज्रकीर्ति ने मंत्रपूत जिस

अति प्राचीन किरीटी-तरु से इसे गढ़ा था-

उस के कानों में हिम-शिखर रहस्य कहा करते थे अपने,

कंधों पर बादल सोते थे,

उस की करि-शुंडों-सी डालें

हिम-वर्षा से पूरे वन-यूथों का कर लेती थीं परित्राण,

कोटर में भालू बसते थे,

केहरि उस के वल्कल से कंधे खुजलाने आते थे।

और-सुना है-जड़ उस की जा पहुँची थी पाताल-लोक,

उस की ग्रंथ-प्रवण शीतलता से फण टिका नाग वासुकि सोता था।

उसी किरीटी-तरु से वज्रकीर्ति ने

सारा जीवन इसे गढ़ा :

हठ-साधना यही थी उस साधक की-

वीणा पूरी हुई, साथ साधना, साथ ही जीवन-लीला।'



राजा रुके साँस लंबी ले कर फिर बोले :

'मेरे हार गए सब जाने-माने कलावंत,

सबकी विद्या हो गई अकारथ, दर्प चूर,

कोई ज्ञानी गुणी आज तक इसे न साध सका।

अब यह असाध्य वीणा ही ख्यात हो गई।

पर मेरा अब भी है विश्वास

कृच्छ्र-तप वज्रकीर्ति का व्यर्थ नहीं था।

वीणा बोलेगी अवश्य, पर तभी

इसे जब सच्चा-स्वरसिद्ध गोद में लेगा।

तात! प्रियंवद! लो, यह सम्मुख रही तुम्हारे

वज्रकीर्ति की वीणा,

यह मैं, यह रानी, भरी सभा यह :

सब उदग्र, पर्युत्सुक,

जन-मात्र प्रतीक्षमाण!'



केशकंबली गुफा-गेह ने खोला कंबल।

धरती पर चुप-चाप बिछाया।

वीणा उस पर रख, पलक मूँद कर, प्राण खींच

कर के प्रणाम,

अस्पर्श छुअन से छुए तार।

धीरे बोला : 'राजन्! पर मैं तो

कलावंत हूँ नहीं, शिष्य, साधक हूँ-

जीवन के अनकहे सत्य का साक्षी।

वज्रकीर्ति!

प्राचीन किरीटी-तरु!

अभिमंत्रित वीणा!



ध्यान-मात्र इन का तो गद्‍गद विह्वल कर देने वाला है!'



चुप हो गया प्रियंवद।

सभा भी मौन हो रही।



वाद्य उठा साधक ने गोद रख लिया।

धीरे-धीरे झुक उस पर, तारों पर मस्तक टेक दिया।

सभा चकित थी- अरे, प्रियंवद क्या सोता है?

केशकंबली अथवा हो कर पराभूत

झुक गया वाद्य पर?

वीणा सचमुच क्या है असाध्य?



पर उस स्पंदित सन्नाटे में

मौन प्रियंवद साध रहा था वीणा-

नहीं, स्वयं अपने को शोध रहा था।

सघन निविड़ में वह अपने को

सौंप रहा था उसी किरीटी-तरु को।

कौन प्रियंवद है कि दंभ कर

इस अभिमंत्रित कारुवाद्य के सम्मुख आवे?

कौन बजावे

यह वीणा जो स्वयं एक जीवन भर की साधना रही?

भूल गया था केशकंबली राज-सभा को :

कंबल पर अभिमंत्रित एक अकेलेपन में डूब गया था

जिस में साक्षी के आगे था

जीवित वही किरीटी-तरु

जिस की जड़ वासुकि के फण पर थी आधारित,

जिस के कंधों पर बादल सोते थे

और कान में जिस के हिमगिरि कहते थे अपने रहस्य।

संबोधित कर उस तरु को, करता था

नीरव एकालाप प्रियंवद।



'ओ विशाल तरु!

शत-सहस्त्र पल्लवन-पतझरों ने जिस का नित रूप सँवारा,

कितनी बरसातों कितने खद्योतों ने आरती उतारी,

दिन भौंरे कर गए गुंजरित,

रातों में झिल्ली ने

अनथक मंगल-गान सुनाये,

साँझ-सवेरे अनगिन

अनचीन्हे खग-कुल की मोद-भरी क्रीड़ा-काकलि

डाली-डाली को कँपा गई-

ओ दीर्घकाय!

ओ पूरे झारखंड के अग्रज,

तात, सखा, गुरु, आश्रय,

त्राता महच्छाय,

ओ व्याकुल मुखरित वन-ध्वनियों के

वृंदगान के मूर्त रूप,

मैं तुझे सुनूँ,

देखूँ, ध्याऊँ

अनिमेष, स्तब्ध, संयत, संयुत, निर्वाक् :

कहाँ साहस पाऊँ

छू सकूँ तुझे!

तेरी काया को छेद, बाँध कर रची गई वीणा को

किस स्पर्धा से

हाथ करें आघात

छीनने को तारों से

एक चोट में वह संचित संगीत जिसे रचने में

स्वयं न जाने कितनों के स्पंदित प्राण रच गए!



'नहीं, नहीं! वीणा यह मेरी गोद रखी है, रहे,

किंतु मैं ही तो

तेरी गोदी बैठा मोद-भरा बालक हूँ,

ओ तरु-तात! सँभाल मुझे,

मेरी हर किलक

पुलक में डूब जाय:

मैं सुनूँ,

गुनूँ, विस्मय से भर आँकूँ

तेरे अनुभव का एक-एक अंत:स्वर

तेरे दोलन की लोरी पर झूमूँ मैं तन्मय-

गा तू :

तेरी लय पर मेरी साँसें

भरें, पुरें, रीतें, विश्रांति पाएँ।



'गा तू!

यह वीणा रक्खी है : तेरा अंग-अपंग!

किंतु अंगी, तू अक्षत, आत्म-भरित,

रस-विद्

तू गा :

मेरे अँधियारे अंतस् में आलोक जगा

स्मृति का

श्रुति का-

तू गा, तू गा, तू गा, तू गा!



'हाँ, मुझे स्मरण है :

बदली-कौंध-पत्तियों पर वर्षा-बूँदों की पट-पट।

घनी रात में महुए का चुप-चाप टपकना।

चौंके खग-शावक की चिहुँक।

शिलाओं को दुलराते वन-झरने के

द्रुत लहरीले जल का कल-निनाद।

कुहरे में छन कर आती

पर्वती गाँव के उत्सव-ढोलक की थाप।

गड़रियों की अनमनी बाँसुरी।

कठफोड़े का ठेका। फुलसुँघनी की आतुर फुरकन :

ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल

कि झरते-झरते मानो

हरसिंगार का फूल बन गई।

भरे शरद् के ताल, लहरियों की सरसर-ध्वनि।

कूँजों का क्रेंकार। काँद लंबी टिट्टिभ की।

पंख-युक्त सायक-सी हंस-बलाका।

चीड़-वनों में गंध-अंध उन्मद पतंग की जहाँ-तहाँ टकराहट

जल-प्रपात का प्लुत एकस्वर।

झिल्ली-दादुर, कोकिल-चातक की झंकार पुकारों की यति में

संसृति की साँय साँय।



'हाँ, मुझे स्मरण है :

दूर पहाड़ों से काले मेघों की बाढ़

हाथियों का मानो चिंघाड़ रहा हो यूथ।

घरघराहट चढ़ती बहिया की।

रेतीले कगार का गिरना छप्-छड़ाप।

झंझा की फुफकार, तप्त,

पेड़ों का अररा कर टूट-टूट कर गिरना।

ओले की कर्री चपत।

जमे पाले से तनी कटारी-सी सूखी घासों की टूटन।

ऐंठी मिट्टी का स्निग्ध घाम में धीरे-धीरे रिसना।

हिम-तुषार के फाहे धरती के घावों को सहलाते चुप-चाप।

घाटियों में भरती

गिरती चट्टानों की गूँज-

काँपती मंद्र गूँज-अनुगूँज-साँस खोयी-सी, धीरे-धीरे नीरव।

'मुझे स्मरण है :

हरी तलहटी में, छोटे पेड़ों की ओट ताल पर

बँधे समय वन-पशुओं की नानाविध आतुर-तृप्त पुकारें :

गर्जन, घुर्घुर, चीख, भूँक, हुक्का, चिचियाहट।

कमल-कुमुद-पत्रों पर चोर-पैर द्रुत धावित

जल-पंछी की चाप

थाप दादुर की चकित छलाँगों की।

पंथी के घोड़े की टाप अधीर।

अचंचल धीर थाप भैंसों के भारी खुर की।



'मुझे स्मरण है :

उझक क्षितिज से

किरण भोर की पहली

जब तकती है ओस-बूँद को

उस क्षण की सहसा चौंकी-सी सिहरन।

और दुपहरी में जब

घास-फूल अनदेखे खिल जाते हैं

मौमाखियाँ असंख्य झूमती करती हैं गुंजार-

उस लंबे विलमे क्षण का तंद्रालस ठहराव।



और साँझ को

जब तारों की तरल कँपकँपी

स्पर्शहीन झरती है-

मानो नभ में तरल नयन ठिठकी

नि:संख्य सवत्सा युवती माताओं के आशीर्वाद-

उस संधि-निमिष की पुलकन लीयमान।



'मुझे स्मरण है :

और चित्र प्रत्येक

स्तब्ध, विजड़ित करता है मुझ को।

सुनता हूँ मैं

पर हर स्वर-कंपन लेता है मुझ को मुझ से सोख-

वायु-सा नाद-भरा मैं उड़ जाता हूँ...।

मुझे स्मरण है-

पर मुझ को मैं भूल गया हूँ :

सुनता हूँ मैं-

पर मैं मुझ से परे, शब्द में लीयमान।



'मैं नहीं, नहीं! मैं कहीं नहीं!

ओ रे तरु! ओ वन!

ओ स्वर-संभार!

नाद-मय संसृति!

ओ रस-प्लावन!

मुझे क्षमा कर-भूल अकिंचनता को मेरी-

मुझे ओट दे-ढँक ले-छा ले-

ओ शरण्य!

मेरे गूँगेपन को तेरे सोये स्वर-सागर का ज्वार डुबा ले!

आ, मुझे भुला,

तू उतर वीन के तारों में

अपने से गा

अपने को गा-

अपने खग-कुल को मुखरित कर

अपनी छाया में पले मृगों की चौकड़ियों को ताल बाँध,

अपने छायातप, वृष्टि-पवन, पल्लव-कुसुमन की लय पर

अपने जीवन-संचय को कर छंदयुक्त,

अपनी प्रज्ञा को वाणी दे!

तू गा, तू गा-

तू सन्निधि पा-तू खो

तू आ-तू हो-तू गा! तू गा!'



राजा जागे।

समाधिस्थ संगीतकार का हाथ उठा था-

काँपी थीं उँगलियाँ।

अलस अँगड़ाई ले कर मानो जाग उठी थी वीणा :

किलक उठे थे स्वर-शिशु।

नीरव पद रखता जालिक मायावी

सधे करों से धीरे धीरे धीरे

डाल रहा था जाल हेम-तारों का।



सहसा वीणा झनझना उठी-

संगीतकार की आँखों में ठंडी पिघली ज्वाला-सी झलक गई-

रोमांच एक बिजली-सा सब के तन में दौड़ गया।

अवतरित हुआ संगीत

स्वयंभू

जिस में सोता है अखंड

ब्रह्मा का मौन

अशेष प्रभामय।



डूब गए सब एक साथ।

सब अलग-अलग एकाकी पार तिरे।



राजा ने अलग सुना :

जय देवी यश:काय

वरमाल लिए

गाती थी मंगल-गीत,

दुंदुभी दूर कहीं बजती थी,

राज-मुकुट सहसा हलका हो आया था, मानो हो फूल सिरिस का

ईर्ष्या, महदाकांक्षा, द्वेष, चाटुता

सभी पुराने लुगड़े-से झर गए, निखर आया था जीवन-कांचन

धर्म-भाव से जिसे निछावर वह कर देगा।



रानी ने अलग सुना :

छँटती बदली में एक कौंध कह गई-

तुम्हारे ये मणि-माणक, कंठहार, पट-वस्त्र,

मेखला-किंकिणि-

सब अंधकार के कण हैं ये! आलोक एक है

प्यार अनन्य! उसी की

विद्युल्लता घेरती रहती है रस-भार मेघ को,

थिरक उसी की छाती पर उस में छिप कर सो जाती है

आश्वस्त, सहज विश्वास-भरी।

रानी

उस एक प्यार को साधेगी।



सब ने भी अलग-अलग संगीत सुना।

इस को

वह कृपा-वाक्य था प्रभुओं का।

उस को

आतंक-मुक्ति का आश्वासन!

इस को

वह भरी तिजोरी में सोने की खनक।

उसे

बटुली में बहुत दिनों के बाद अन्न की सोंधी खुदबुद।

किसी एक को नई वधू की सहमी-सी पायल-ध्वनि।

किसी दूसरे को शिशु की किलकारी।

एक किसी को जाल-फँसी मछली की तड़पन-

एक अपर को चहक मुक्त नभ में उड़ती चिड़िया की।

एक तीसरे को मंडी की ठेलमठेल, गाहकों की आस्पर्धा भरी बोलियाँ,

चौथे को मंदिर की ताल-युक्त घंटा-ध्वनि।

और पाँचवें को लोहे पर सधे हथौड़े की सम चोटें

और छठे को लंगर पर कसमसा रही नौका पर लहरों की

अविराम थपक।

बटिया पर चमरौधे की रुँधी चाप सातवें के लिए-

और आठवें को कुलिया की कटी मेंड़ से बहते जल की छुल-छुल।

इसे गमक नट्टिन की एड़ी के घुँघरू की।

उसे युद्ध का ढोल।





इसे संझा-गोधूली की लघु टुन-टुन-

उसे प्रलय का डमरु-नाद।

इस को जीवन की पहली अँगड़ाई

पर उस को महाजृंभ विकराल काल!

सब डूबे, तिरे, झिपे, जागे-

हो रहे वंशवद, स्तब्ध :

इयत्ता सब की अलग-अलग जागी,

संघीत हुई,

पा गई विलय।



वीणा फिर मूक हो गई।



साधु! साधु!!



राजा सिंहासन से उतरे-

रानी ने अर्पित की सतलड़ी माल,

जनता विह्वल कह उठी 'धन्य!

हे स्वरजित्! धन्य! धन्य!'



संगीतकार

वीणा को धीरे से नीचे रख, ढँक-मानो

गोदी में सोये शिशु को पालने डाल कर मुग्धा माँ

हट जाय, दीठ से दुलराती-

उठ खड़ा हुआ।

बढ़ते राजा का हाथ उठा करता आवर्जन,

बोला :

'श्रेय नहीं कुछ मेरा :

मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में-

वीणा के माध्यम से अपने को मैंने

सब कुछ को सौंप दिया था-

सुना आप ने जो वह मेरा नहीं,

न वीणा का था :

वह तो सब कुछ की तथता थी

महाशून्य

वह महामौन

अविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय

जो शब्दहीन

सब में गाता है।'



नमस्कार कर मुड़ा प्रियंवद केशकंबली।

ले कर कंबल गेह-गुफा को चला गया।

उठ गई सभा। सब अपने-अपने काम लगे।

युग पलट गया।



प्रिय पाठक! यों मेरी वाणी भी

मौन हुई।


Monday, April 22, 2019

कतकी पूनो [सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय']

कतकी पूनो
-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'

छिटक रही है चाँदनी, मदमाती उन्मादिनी
कलगी-मौर सजाव ले कास हुए हैं बावले
पकी ज्वार से निकल शशों की जोड़ी गई फलाँगती-
सन्नाटे में बाँक नदी की जगी चमक कर झाँकती!

कुहरा झीना और महीन, झर-झर पड़े अकासनीम
उजली-लालिम मालती गंध के डोरे डालती,
मन में दुबकी है हुलास ज्यों परछाईं हो चोर की-
तेरी बाट अगोरते ये आँखें हुईं चकोर की!
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Sunday, April 21, 2019

बावरा अहेरी - अज्ञेय जी

बावरा अहेरी

भोर का बावरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ
पर जब खींचता है जाल को
बाँध लेता है सभी को साथ :
छोटी-छोटी चिड़ियाँ, मँझोले परेवे, बड़े-बड़े-पंखी
डैनों वाले डील वाले डौल के बेडौल
उड़ने जहाज,
कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिखर से ले
तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल धुस्सों वाली उपयोग-सुंदरी
बेपनाह काया को :
गोधूली की धूल को, मोटरों के धुएँ को भी
पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि रूप-रेखा को
और दूर कचरा जलाने वाली कल की उद्दंड चिमनियों को, जो
धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को हरा देंगी!

बावरे अहेरी रे
कुछ भी अवध्य नहीं तुझे, सब आखेट है :
एक बस मेरे मन-विवर में दुबकी कलौंस को
दुबकी ही छोड़ कर क्या तू चला जाएगा?
ले, मैं खोल देता हूँ कपाट सारे
मेरे इस खँडर की शिरा-शिरा छेद दे आलोक की अनी से अपनी,
गढ़ सारा ढाह कर ढूह भर कर दे :
विफल दिनों की तू कलौंस पर माँज जा
मेरी आँखें आँज जा
कि तुझे देखूँ
देखूँ और मन में कृतज्ञता उमड़ आए
पहनूँ सिरोपे से ये कनक-तार तेरे-
बावरे अहेरी।
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Saturday, April 20, 2019

आकाश दीप [पूरी कहानी] Aakash deep /UGC NET 2019





बन्दी!'' ''क्या है? सोने दो।'' ''मुक्त होना चाहते हो?'' ''अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो।'' ''फिर अवसर न मिलेगा।'' ''बड़ा शीत है, कहीं से एक कम्बल डालकर कोई शीत से मुक्त करता।'' ''आँधी की सम्भावना है। यही अवसर है। आज मेरे बन्धन शिथिल हैं।''.......

Friday, April 19, 2019

निर्वासित- डॉ.सूर्यबाला/मंदाकिनी /कक्षा-१२




मंदाकिनी /कक्षा-१२ / पाठ-3  निर्वासित-

डॉ.सूर्यबाला

कथाकार सूर्यबाला का पहला कहानी-संग्रह 'एक इंद्रधनुष: जुबेदा के नाम'है.

जन्म =२५ अक्टूबर , ११४३ (वाराणसी)।

 शिक्षा : एमए., पी-एचडी., (काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी)।

समकालीन कथा साहित्य में सूर्यबाला का लेखन अपनी विशिष्ट भूमिका और महत्त्व रखता है।

 समाज, जीवन, परंपरा, आधुनिकता एवं उनसे जुड़ी समस्याओं को लेखिका  एक खुली, मुक्त और नितांत अपनी दृष्टि से देखने की कोशिश करती हैं।

 प्रकाशित कृतियाँ : 'मेरे संधि-पत्र', 'सुबह के इंतजार तक', 'अग्निपंखी', 'यामिनी-कथा', 'दीक्षांत' (उपन्यास);'एक इंद्रधनुष', 'दिशाहीन', 'थाली भर चाँद', 'मुंडेर पर', 'गृह-प्रवेश', 'साँझवाती', 'कात्यायनी संवाद', 'इक्कीस कहानियों', 'पांच लंबी कहानियाँ', 'सिस्टर! प्लीज आप जाना नहीं', 'मानुस-गंध' (कथा-संग्रह); 'अजगर करे न चाकरी', 'धृतराष्ट्र टाइम्स', 'देशसेवा के अखाड़े में' (हास्य-व्यंग्य); 'झगड़ा निपयरक दफ्तर' ( बालोपयोगी)।

टी.वी. धारावाहिकों के माध्यम से अनेक कहानियों, उपन्यासों तथा हास्य-व्यंग्यपरक रचनाओं का रूपांतर प्रस्तुत, जिनमें 'पलाश के फूल', 'न किन्नी न', 'सौदागर', 'एक इंद्रधनुष: जुबेदा के नाम', 'सबको पता है', 'रेस', 'निर्वासित' आदि प्रमुख हैं।



सम्मान : प्रियदर्शिनी पुरस्कार, घनश्याम दास सराफ़ पुरस्कार



 [१९७२ में पहली कहानी सारिका में प्रकाशित।]

संपर्क सूत्र : suryabala.lal@gmail.com


Thursday, April 18, 2019

हरी घास पर क्षण भर -सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'

हरी घास पर क्षण भर
--सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'

आओ बैठें
इसी ढाल की हरी घास पर।
माली-चौकीदारों का यह समय नहीं है,
और घास तो अधुनातन मानव-मन की भावना की तरह
सदा बिछी है-हरी, न्यौतती, कोई आ कर रौंदे।

आओ, बैठो।
तनिक और सट कर, कि हमारे बीच स्नेह-भर का व्यवधान रहे,
बस,
नहीं दरारें सभ्य शिष्ट जीवन की।

चाहे बोलो, चाहे धीरे-धीरे बोलो, स्वगत गुनगुनाओ,
चाहे चुप रह जाओ-
हो प्रकृतस्थ : तनो मत कटी-छँटी उस बाड़ सरीखी,
नमो, खुल खिलो, सहज मिलो
अंत:स्मित, अंत:संयत हरी घास-सी।

क्षण-भर भुला सकें हम
नगरी की बेचैन बुदकती गड्ड-मड्ड अकुलाहट-
और न मानें उसे पलायन;
क्षण-भर देख सकें आकाश, धरा, दूर्वा, मेघाली,
पौधे, लता दोलती, फूल, झरे पत्ते, तितली-भुनगे,
फुनगी पर पूँछ उठा कर इतराती छोटी-सी चिड़िया-
और न सहसा चोर कह उठे मन में-
प्रकृतिवाद है स्खलन
क्योंकि युग जनवादी है।

क्षण-भर हम न रहें रह कर भी :
सुनें गूँज भीतर के सूने सन्नाटे में
किसी दूर सागर की लोल लहर की
जिस की छाती की हम दोनों छोटी-सी सिहरन हैं-
जैसे सीपी सदा सुना करती है।

क्षण-भर लय हों-मैं भी, तुम भी,
और न सिमटें सोच कि हम ने
अपने से भी बड़ा किसी भी अपर को क्यों माना!

क्षण-भर अनायास हम याद करें :
तिरती नाव नदी में,
धूल-भरे पथ पर असाढ़ की भभक, झील में साथ तैरना,
हँसी अकारण खड़े महा-वट की छाया में,
वदन घाम से लाल, स्वेद से जमी अलक-लट,
चीड़ों का वन, साथ-साथ दुलकी चलते दो घोड़े,
गीली हवा नदी की, फूले नथुने, भर्रायी सीटी स्टीमर की,
खंडहर, ग्रथित अँगुलियाँ, बाँसे का मधु,
डाकिये के पैरों की चाँप
अधजानी बबूल की धूल मिली-सी गंध,
झरा रेशम शिरीष का, कविता के पद,
मसजिद के गुम्बद के पीछे सूर्य डूबता धीरे-धीरे,
झरने के चमकीले पत्थर, मोर-मोरनी, घुँघरू,
संथाली झूमुर का लंबा कसक-भरा आलाप,
रेल का आह की तरह धीरे-धीरे खिंचना, लहरें,
आँधी-पानी,
नदी किनारे की रेती पर बित्ते-भर की छाँह झाड़ की
अँगुल-अँगुल नाप-नाप कर तोड़े तिनकों का समूह,
लू,
मौन।

याद कर सकें अनायास : और न मानें
हम अतीत के शरणार्थी हैं;
स्मरण हमारा-जीवन के अनुभव का प्रत्यवलोकन-
हमें न हीन बनावे प्रत्यभिमुख होने के पाप-बोध से।
आओ बैठो : क्षण-भर :
यह क्षण हमें मिला है नहीं नगर-सेठों की फैयाज़ी से।
हमें मिला है यह अपने जीवन की निधि से ब्याज सरीखा।

आओ बैठो : क्षण-भर तुम्हें निहारूँ।
अपनी जानी एक-एक रेखा पहचानूँ
चेहरे की, आँखों की-अंतर्मन की
और-हमारी साझे की अनगिन स्मृतियों की :
तुम्हें निहारूँ,
झिझक न हो कि निरखना दबी वासना की विकृति है!

धीरे-धीरे
धुँधले में चेहरे की रेखाएँ मिट जाएँ-
केवल नेत्र जगें : उतनी ही धीरे
हरी घास की पत्ती-पत्ती भी मिट जावे लिपट झाड़ियों के पैरों में
और झाड़ियाँ भी घुल जावें क्षिति-रेखा के मसृण ध्वांत में;
केवल बना रहे विस्तार-हमारा बोध
मुक्ति का,
सीमाहीन खुलेपन का ही।

चलो, उठें अब,
अब तक हम थे बंधु सैर को आए-
(देखे हैं क्या कभी घास पर लोट-पोट होते सतभैये शोर मचाते?)

और रहे बैठे तो लोग कहेंगे
धुँधले में दुबके प्रेमी बैठे हैं।

-वह हम हों भी तो यह हरी घास ही जाने :
(जिस के खुले निमंत्रण के बल जग ने सदा उसे रौंदा है और वह नहीं बोली),
नहीं सुनें हम वह नगरी के नागरिकों से
जिन की भाषा में अतिशय चिकनाई है साबुन की
किंतु नहीं है करुणा

उठो, चलें, प्रिय।


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Wednesday, April 17, 2019

कितनी नावों में कितनी बार /सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'

कितनी नावों में कितनी बार
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--सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'


कितनी दूरियों से कितनी बार
कितनी डगमग नावों में बैठ कर
मैं तुम्हारी ओर आया हूँ
ओ मेरी छोटी-सी ज्योति!
कभी कुहासे में तुम्हें न देखता भी
पर कुहासे की ही छोटी-सी रुपहली झलमल में
पहचानता हुआ तुम्हारा ही प्रभा-मंडल।
कितनी बार मैं,
धीर, आश्वस्त, अक्लांत—
ओ मेरे अनबुझे सत्य! कितनी बार...

और कितनी बार कितने जगमग जहाज़
मुझे खींच कर ले गये हैं कितनी दूर
किन पराए देशों की बेदर्द हवाओं में
जहाँ नंगे अंधेरों को
और भी उघाड़ता रहता है
एक नंगा, तीखा, निर्मम प्रकाश—
जिसमें कोई प्रभा-मंडल नहीं बनते
केवल चौंधियाते हैं तथ्य, तथ्य—तथ्य—
सत्य नहीं, अंतहीन सच्चाइयाँ...
कितनी बार मुझे
खिन्न, विकल, संत्रस्त—
कितनी बार!
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Tuesday, April 16, 2019

कलगी बाजरे की -अज्ञेय जी की कविता

कलगी बाजरे की

हरी बिछली घास।
दोलती कलगी छरहरी बाजरे की।
अगर मैं तुमको ललाती साँझ के नभ की अकेली तारिका
अब नहीं कहता,
या शरद् के भोर की नीहार न्हायी कुँई।
टटकी कली चंपे की, वगैरह, तो
नहीं, कारण कि मेरा हृदय उथला या सूना है
या कि मेरा प्यार मैला है
बल्कि केवल यही : ये उपमान मैले हो गए हैं।
देवता इन प्रतीकों के कर गए हैं कूच।
कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है
मगर क्या तुम नहीं पहचान पाओगी :
तुम्हारे रूप के, तुम हो, निकट हो, इसी जादू के
निजी किस सहज गहरे बोध से, किस प्यार से मैं कह रहा हूँ-
अगर मैं यह कहूँ-
बिछली घास हो तुम
लहलहाती हवा में कलगी छरहरे बाजरे की?
आज हम शहरातियों को
पालतू मालंच पर सँवरी जुही के फूल-से
सृष्टि के विस्तार का, ऐश्वर्य का, औदार्य का
कहीं सच्चा, कहीं प्यारा एक प्रतीक
बिछली घास है
या शरद् की साँझ के सूने गगन की पीठिका पर दोलती
कलगी अकेली
बाजरे की।
और सचमुच, इन्हें जब-जब देखता हूँ
यह खुला वीरान संसृति का घना हो सिमट जाता है
और मैं एकांत होता हूँ समर्पित।
शब्द जादू हैं-
मगर क्या यह समर्पण कुछ नहीं है
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Monday, April 15, 2019

लाल पान की बेगम/पूरी कहानी/Laal paan ki bagum/ UGC NET 2019



लाल पान की बेगम /Laal paan ki bagum/पूरी कहानी
फणीश्वरनाथ 'रेणु'/कहानी और उसके महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा

इस मुहल्ले में लाल पान की बेगम बसती है! नहीं जानती, दोपहर-दिन और इस मुहल्ले में लाल पान की बेगम बसती है! नहीं जानती, दोपहर-दिन और चौपहर-रात बिजली की बत्ती भक्-भक् कर जलती है!' भक्-भक् बिजली-बत्ती की बात सुन कर न जाने क्यों सभी खिलखिला कर हँस पड़ी।
----------- स्त्री सशक्तिकरण की मिसाल प्रस्तुतु करती हुई कहानी -स्त्री अपनी जिंदगी को अपनी शर्तो पर जीना चाहती है। वह आत्मसम्मान चाहती है ...क्या बिरजू कीमं की लालसा पूरी हो सकी?

Thursday, April 11, 2019

कानों में कंगना / kano mein kangna/पूरी कहानी/Raja Radhikaraman Prasad



Check for more in the playlist

इस प्लेलिस्ट में  UGC/NET 2019 के लिए उपलब्ध हिंदी साहित्य के विडियो पाठों को रखा गया है
https://padho-seekho.blogspot.com/2019/04/ugcnetjrf-2019-hindi.html

Saturday, April 6, 2019

गैंग्रीन/रोज़ (अज्ञेय जी ) पूरी कहानी /Gangreen / Roz Story by Agyey





लेखक: सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" प्रस्तुति : अल्पना वर्मा
गैंग्रीन / रोज़ .....दोपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते हुए मुझे ऐसा जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाप की छाया मँडरा रही हो, उसके वातावरण में कुछ ऐसा अकथ्य, अस्पृश्य, किन्तु फिर भी बोझल और प्रकम्पमय और घना-सा फैल रहा था।
मेरी आहट सुनते ही मालती बाहर निकली। मुझे देखकर, पहचानकर उसकी मुरझायी हुई मुख-मुद्रा तनिक से मीठे विस्मय से जागी-सी और फिर पूर्ववत् हो गयी। उसने कहा, ‘‘आ जाओ!’’ और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये भीतर की ओर चली। मैं भी उसके पीछे हो लिया।
भीतर पहुँचकर मैंने पूछा, ‘वे यहाँ नहीं है?’’
‘‘अभी आये नहीं, दफ़्तर में हैं। थोड़ी देर में आ जाएँगे। कोई डेढ़-दो बजे आया करते हैं।’’
‘‘कब के गये हुए हैं?’’
‘‘सवेरे उठते ही चले जाते हैं।’’
‘‘मैं ‘हूँ’ कर पूछने को हुआ, ‘‘और तुम इतनी देर क्या करती हो?’’ पर फिर सोचा, ‘आते ही एकाएक प्रश्न ठीक नहीं हैं। मैं कमरे के चारों ओर देखने लगा।
मालती एक पंखा उठा लायी, और मुझे हवा करने लगी। मैंने आपत्ति करते हुए कहा, ‘‘नहीं, मुझे नहीं चाहिए।’’ पर वह नहीं मानी, बोली,‘‘वाह! चाहिए कैसे नहीं? इतनी धूप में तो आये हो। यहाँ तो।’’
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Video prepared and presented by Alpana Verma

Wednesday, April 3, 2019

दुलाईवाली -बंग महिला (पूरी कहानी )Dulayeewali -Bang Mahila

संख्यावाची शब्दों का मानक रूप (भाग 2)Numbers in Hindi





संख्यावाची शब्दों का मानक रूप (भाग 2)

 31 - 70  तक

Reference:हिंदी भाषा का आधुनिकीकरण एवं मानकीकरण

लेखक:त्रिभुवन नाथ शुक्ल, Published from vani prakashan

Video lesson  prepared and presented by Alpana Verma



भाग 2[ 31 - 70  तक]   https://youtu.be/wkv1EdH8Bts

Monday, April 1, 2019

पिता (कहानी )ज्ञानरंजन जी/Pita(the father) story by Gyanranjan



*लेखक की प्रतिनिधि कहानियों में से एक है,इस कहानी में गर्मी बेचैनी के प्रतीक के रूप में उभरी है। यह कहानी पिता -विरोधी कहानी नहीं है क्योंकि इस में पारिवारिक नींव के रूप में रक्षक पिता की भूमिका का भी उल्लेख किया है .
पिता-पुत्र के सम्बन्धों में द्वंद्व की सृष्टि पुत्र द्वारा पिता के लिए सुविधाएँ जुटाने के प्रयासों के प्रति पिता की उदासीनता और अरुचि से होती है और यहीं आकर कहानी की अंतर्वस्तु खुलती है ,दो पीढ़ियों के मध्य टकराव के साथ ही उन बीच के भावनात्मक लगाव को काहनी साथ ले कर चलती है यही इस कहानी की बड़ी विशेषता है ।

राही (पूरी कहानी ) सुभद्रा कुमारी चौहान /Rahi/ Subhdra Kumari Chauhan