Monday, March 30, 2020

अजन्ता -भगवतशरण उपाध्याय

 अजन्ता

जिन्दगी को मौत के पंजों से मुक्त कर उसे अमर बनाने के लिए आदमी ने पहाड़ काटा है। किस तरह इन्सान के खूबियों की कहानी सदियों बाद आनेवाली पीढ़ियों तक पहुँचायी जाय, इसके लिए आदमी ने कितने ही उपाय सोचे और किये। उसने चट्टानों पर अपने सन्देश खोदे, ताड़ों-से ऊँचे धातुओं-से चिकने पत्थर के खम्भे खड़े किये, ताँबे और पीतल के पत्तरों पर अक्षरों के मोती बिखेरे और उसके जीवन-मरण की कहानी सदियों के उतार पर सरक़ती चली आयी, चली आ रही है, जो आज हमारी अमानत-विरासत बन गयी है।



इन्हीं उपायों में एक उपाय पहाड़ काटना भी रहा है। सारे प्राचीन सभ्य देशों में पहाड़ काटकर मन्दिर बनाये गये  हैं और उनकी दीवारों पर एक से एक अभिराम चित्र लिखे गये हैं।

आज से कोई सवा दो हजार साल पहले से ही हमारे देश में पहाड़ काटकर मन्दिर बनाने की परिपाटी चल पड़ी थी। अजन्ता की गुफाएँ पहाड़ काटकर बनायी जानेवाली देश की सबसे प्राचीन गुफाओं में से हैं, जैसे एलोरा और एलीफैंटा की सबसे पिछले काल की देश की गुफाओं या गुफा-मन्दिरों में सबसे विख्यात अजन्ता के हैं, जिनकी दीवारों और छतों पर लिखे चित्र दुनिया के लिए नमूने बन गये हैं। चीन के तुन-हुआंग और लंका के सिमिरिया की पहाडी दीवारों पर उसी के नमूने के चित्र नकल कर लिए गये थे और जब अजन्ता के चित्रों ने विदेशों को इस प्रकार अपने प्रभाव से निहाल किया, तब भला अपने देश के नगर-देहात उनके प्रभाव से कैसे निहाल न होते? वाघ और सित्तनवसल की गुफाएँ उसी अजन्ता की परम्परा में हैं, जिनकी दीवारों पर जैसे प्रेम और दया की एक दुनिया ही सिरज गयी है।

और जैसे संगसाजों [शिल्पी, पत्थरों पर चित्र कुरेदने वाले।]ने उन गुफाओं पर रौनक बरसायी है, चितेरे जैसे रंग और रेखा में दर्द और दया की कहानी लिखते गये हैं, कलावन्त [कलाकार]छेनी से मूरतें उभारते-कोरते गये हैं, वैसे ही अजन्ता पर कुदरत का नूर बरस पड़ा है, प्रकृति भी वहाँ थिरक उठी है। बम्बई (अब मुम्बई) के सूबे में बम्बई और हैदराबाद के बीच, विन्ध्याचल के पूरब-पश्चिम दौड़ती पर्वतमालाओं से निचौंधे पहाड़ों का एक सिलसिला उत्तर से दक्खिन चला गया है, जिसे सह्याद्रि कहते हैं। अजन्ता के गुहा मन्दिर उसी पहाड़ी जंजीर को सनाथ करते हैं।


अजन्ता गाँव से थोड़ी ही दूर पर पहाड़ों के पैरों में साँप-सी लोटती बाधुर नदी कमान-सी मुड़ गयी है। वहीं पर्वत का सिलसिला एकाएक अर्द्धचन्द्राकार हो गया है, कोई दो-सौ पचास फुट ऊँचा हरे वनों के बीच मंच पर मंच की तरह उठते पहाड़ों का यह सिलसिला हमारे पुरखों को भा गया है और उन्होंने उसे खोदकर भवनों-महलों से भर दिया। सोचिये जरा ठोस पहाड़ की चट्टानी छाती और कमजोर इन्सान का उन्होंने मेल जो किया, तो पर्वत का हिया दरकता चला गया और वहाँ एक-से-एक बरामदे, हाल और मन्दिर बनते चले गये।

पहले पहाड़ काटकर उसे खोखला कर दिया गया, फिर उसमें सुन्दर भवन बना लिए गये, जहाँ खम्भों पर उभारी मूरते विहँस उठीं। भीतर की समूची दीवारें और छतें रगड़ कर चिकनी कर ली गयीं और तब उनकी जमीन पर चित्रों की एक दुनिया ही बसा दी गयी। पहले पलस्तर लगाकर आचार्यों ने उन पर लहराती रेखाओं में चित्रों की काया सिरज दी, फिर उनके चेले कलावन्तों ने उनमें रंग भरकर प्राण फूंक दिये। फिर तो दीवारें उमग उठीं, पहाड़ पुलकित हो उठे।

कितना जीवन बरस पड़ा है इन दीवारों पर; जैसे फसाने अजायब का भण्डार खुल पड़ा हो। कहानी से कहानी टकराती चली गयी है। बन्दरों की कहानी, हाथियों की कहानी, हिरनों की कहानी। कहानी क्रूरता और भय की, दया और त्याग की। जहाँ बेरहमी है, वहीं दया का भी समुद्र उमड़ पड़ा है। जहाँ पाप है, वहीं क्षमा का सोता फूट पड़ा है। राजा और कंगले, विलासी और भिक्षु, नर और नारी, मनुष्य और पशु सभी कलाकारों के हाथों सिरजते चले गये हैं। हैवान की हैवानी को इन्सान की इन्सानियत से कैसे जीता जा सकता है, कोई अजन्ता में जाकर देखे। बुद्ध का जीवन हजार धाराओं में होकर बहता है। जन्म से लेकर निर्वाण तक उनके जीवन की प्रधान घटनाएँ कुछ ऐसे लिख दी गयी हैं कि आँखें अटक जाती हैं, हटने का नाम नहीं लेतीं।

यह हाथ में कमल लिये बुद्ध खड़े हैं, जैसे छवि छलकी पड़ती है, उभरे नयनों की जोत पसरती जा रही है। और यह यशोधरा है, वैसे ही कमल नाल धारण किये त्रिभंग में खड़ी। और यह दृश्य है महाभिनिष्क्रमण का—यशोधरा और राहुल निद्रा में खोये, गौतम दृढ़ निश्चय पर धड़कते हिया को सँभालते। और यह नन्द है, अपनी पत्नी सुन्दरी का भेजा, द्वार पर आये बिना भिक्षा के लौटे भाई बुद्ध को लौटाने जो आया था और जिसे भिक्षु बन जाना पड़ा था। बार-बार वह भागने को होता है, बार-बार पकड़कर संघ में लौटा लिया जाता है। उधर फिर वह यशोधरा है बालक राहुल के साथ। बुद्ध आये हैं, पर बजाय पति की तरह आने के भिखारी की तरह आये हैं और भिक्षापात्र देहली में चढ़ा देते हैं, यशोधरा क्या दे, जब उसका स्वामी भिखारी बनकर आया है? क्या न दे डाले? पर है ही क्या अब उसके पास, उसकी मुकुटमणि सिद्धार्थ के खो जाने के बाद? सोना-चाँदी, मणि-मानिक, हीरा-मोती तो उस त्यागी जगत्राता के लिए मिट्टी के मोल नहीं। पर हाँ, है कुछ उसके पास—उसका बचा एकमात्र लाल-उसका राहुल। और उसे ही वह अपने सरबस की तरह बुद्ध को दे डालती है।

और उधर वह बन्दरों का चित्र है, कितना सजीव कितना गतिमान। उधर सरोवर में जल-विहार करता वह गजराज कमल-दण्ड तोड़-तोड़कर हथिनियों को दे रहा है। वहाँ महलों में वह प्यालों के दौर चल रहे हैं, उधर वह रानी अपनी जीवन-यात्रा समाप्त कर रही है, उसका दम टूटा जा रहा है। खाने-खिलाने, बसने-बसाने, नाचने-गाने, कहने-सुनने, वन-नगर, ऊँच-नीच, धनी-गरीब के जितने नजारे हो सकते हैं, सब आदमी अजन्ता की गुफाओं की इन दीवारों पर देख सकता है।

बुद्ध के इस जन्म की घटनाएँ तो इन चित्रित कथाओं में हैं ही, उनके पिछले जन्मों की कथाओं का भी इसमें चित्रण हआ है। पिछले जन्म की ये कथाएँ 'जातक' कहलाती हैं। उनकी संख्या 555 है और इनका संग्रह 'जातक' नाम से प्रसिद्ध है, जिनका बौद्धों में बड़ा मान है। इन्हीं जातक कथाओं में से अनेक अजन्ता के चित्रों में विस्तार के साथ लिख दी गयी हैं। इन पिछले जन्मों में बुद्ध ने गज, कपि, मृग आदि के रूप में विविध योनियों में जन्म लिया था और संसार के कल्याण के लिए दया और त्याग का आदर्श स्थापित करते वे बलिदान हो गये थे। उन स्थितियों में किस प्रकार पशुओं तक ने मानवोचित व्यवहार किया था, किस प्रकार औचित्य का पालन किया था, यह सब उन चित्रों में असाधारण खूबी से दर्शाया गया है। और उन्हीं को दर्शाते समय चितेरों ने अपनी जानकारी की गाँठ खोल दी है। जिससे नगरों और गाँवों, महलों और झोंपड़ियों, समुद्रों और पनघटों का संसार अजन्ता के उस पहाड़ी जंगल में उतर पड़ा है। और वह चित्रकारी इस खूबी से सम्पन्न हुई है कि देखते ही बनता है। जुलूस-के-जुलूस हाथी, घोड़े, दूसरे जानवर जैसे सहसा जीवित होकर अपने-अपने समझाये हुए काम जादूगर के इशारे पर सँभालने लग जाते हैं।

इन गुफाओं का निर्माण ईसा से करीब दो सौ साल पहले ही शुरू हो गया था और वे सातवीं सदी तक बनकर तैयार भी हो चकी थीं। एक-दो गुफाओं में करीब दो हजार साल पुराने चित्र भी सुरक्षित हैं। पर अधिकतर चित्र भारतीय इतिहास के सुनहरे युग गुप्तकाल (पाँचवीं सदी) और चालुक्य काल (सातवीं सदी) के बीच बने अजन्ता संसार की चित्रकलाओं में अपना अद्वितीय स्थान रखता है। इतने प्राचीनकाल के इतने सजीव, इतने गतिमान, इतने बहुसंख्यक कथाप्राण चित्र कहीं नहीं बने। अजन्ता के चित्रों ने देश-विदेश सर्वत्र की चित्रकला को प्रभावित किया। उसका प्रभाव पूर्व के देशों की कला पर तो पड़ा ही, मध्य-पश्चिमी एशिया भी उसके कल्याणकर प्रभाव से वंचित न रह सका।
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अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।

Wednesday, March 25, 2020

Listen Hindi Stories..

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घर में बोर हो रहे हैं तो कहानियाँ सुनिए ....

Sunday, March 22, 2020

Ek Phool Ki Chah - एक फूल की चाह/ कविता / सियारामशरण गुप्त

Ek Phool Ki Chah - एक फूल की चाह

स्क्रोल बॉक्स में पढ़िये -

उद्वेलित कर अश्रु-राशियाँ,

हृदय-चिताएँ धधकाकर,

महा महामारी प्रचंड हो

फैल रही थी इधर-उधर।

क्षीण-कंठ मृतवत्साओं का

करुण रुदन दुर्दांत नितांत,

भरे हुए था निज कृश रव में

हाहाकार अपार अशांत।


खुशबू रचते हैं हाथ- Khusbu Rachte Hai Haath/Arun Kamal

खुशबू रचते हैं हाथ- Khusbu Rachte Hai Haath
कई गलियों के बीच

कई नालों के पार

कूड़े-करकट

के ढ़ेरों के बाद

बदबू से फटते जाते इस

टोले के अंदर

खुशबू रचते हैं हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ।



उभरी नसोंवाले हाथ

घिसे नाखूनोंवाले हाथ

पीपल के पत्ते-से नए-नए हाथ

जूही की डाल-से खुशबूदार हाथ

गंदे कटे-पिटे हाथ

ज़ख्म से फटे हुए हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ।



यहीं इस गली में बनती हैं

मुल्क की मशहूर अगरबत्तियाँ

इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग

बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी

अगरबत्तियाँ

दुनिया की सारी गंदगी के बीच

दुनिया की सारी खुशबू

रचते रहते हैं हाथ



खुशबू रचते हैं हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ।
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नए इलाके में – Naye Ilake Me by Arun Kamal



नए इलाके में – Naye Ilake Me
इन नए बसते इलाकों में

जहाँ रोज़ बन रहे हैं नए-नए मकान

मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ



धोखा दे जाते हैं पुराने निशान

खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़

खोजता हूँ ढ़हा हुआ घर

और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ

मुड़ना था मुझे

फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का

घर था एकमंज़िला



और मैं हर बार एक घर पीछे

चल देता हूँ

या दो घर आगे ठकमकाता



यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है

रोज़ कुछ घट रहा है

यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं



एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया

जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ

जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ

अब यही है उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ

और पूछो – क्या यही है वो घर?



समय बहुत कम है तुम्हारे पास

आ चला पानी ढ़हा आ रहा अकास

शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।

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अग्निपथ कविता/Agneepath Poem /हरिवंश राय बच्चन

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !

वृक्ष हों भले खड़े,

हों घने, हों बड़े,

एक पत्र छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !



तू न थकेगा कभी!

तू न थमेगा कभी!

तू न मुड़ेगा कभी! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !



यह महान दृश्य है

चल रहा मनुष्य है

अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !
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संदेश =
जीवन संघर्ष का ही नाम है। मनुष्य को  इस संघर्ष से घबराकर कभी थमना नहीं चाहिए, आगे बढ़ते रहना चाहिए।

गीत अगीत – Geet Ageet Poem रामधारी सिंह दिनकर

गीत अगीत – Geet Ageet Poem
रामधारी सिंह दिनकर की कविता

गीत, अगीत, कौन सुन्दर है ?



(1)

गाकर गीत विरह के तटिनी

वेगवती बहती जाती है,

दिल हलका कर लेने को

उपलों से कुछ कहती जाती है।

तट पर एक गुलाब सोचता,

“देते स्वर यदि मुझे विधाता,

अपने पतझर के सपनों का

मैं भी जग को गीत सुनाता।“



गा-गाकर बह रही निर्झरी,

पाटल मूक खड़ा तट पर है।

गीत, अगीत, कौन सुंदर है?



(2)

बैठा शुक उस घनी डाल पर

जो खोंते को छाया देती।

पंख फुला नीचे खोंते में

शुकी बैठ अंडे है सेती।

गाता शुक जब किरण वसंती

छूती अंग पर्ण से छनकर।

किंतु, शुकी के गीत उमड़कर

रह जाते सनेह में सनकर।



गूँज रहा शुक का स्वर वन में,

फूला मग्न शुकी का पर है।

गीत, अगीत, कौन सुंदर है?



(3)

दो प्रेमी हैं यहाँ, एक जब

बड़े साँझ आल्हा गाता है,

पहला स्वर उसकी राधा को

घर से यहीं खींच लाता है।

चोरी-चोरी खड़ी नीम की

छाया में छिपकर सुनती है,

‘हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की

बिधना’, यों मन में गुनती है।



वह गाता, पर किसी वेग से

फूल रहा इसका अंतर है।

गीत, अगीत कौन सुंदर है?

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Aadmi Nama Class 9 Sparsh Hindi – आदमी नामा

(1)

दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी

और मुफ़लिश-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी

ज़रदार बेनवा है सो है वो भी आदमी

निअमत जो खा रहा है सो है वो भी आदमी

टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी



(2)

मसज़िद भी आदमी ने बनाई है यां मियाँ

बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्वाँ

पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज यां

और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ

जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी



(3)

यां आदमी पै जान को वारे है आदमी

और आदमी पै तेग को मारे है आदमी

पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी

चिल्ला के आदमी को पुकारे है आदमी

और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी



(4)

अशराफ़ और कमीने से ले शाह ता वज़ीर

ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपज़ीर

यां आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर

अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नज़ीर

और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी

गिल्लू -महादेवी वर्मा /व्याख्या सहित Gillu -Mahadevi Verma -Mera parivar

सुन्दरकाण्ड हिंदी अनुवाद 8/Sundarkand Hindi Translation Last Part

सुन्दरकाण्ड हिंदी अनुवाद 7 /Sundarkand Hindi Translation Part 7

सुन्दरकाण्ड हिंदी अनुवाद 6 /Sundarkand Hindi Translation Part 6

सुन्दरकाण्ड हिंदी अनुवाद 5 Sundarkand Hindi Translation Part 5

सुन्दरकाण्ड हिंदी अनुवाद 4 Sundarkand Hindi Translation Part 4

सुन्दरकाण्ड हिंदी अनुवाद 3 Sundarkand Hindi Translation Part 3

सुन्दरकाण्ड हिंदी अनुवाद 3 Sundarkand Hindi Translation Part 3

सुन्दरकाण्ड हिंदी अनुवाद 2 Sundarkand Hindi Translation Part 2

सुन्दरकाण्ड हिंदी अनुवाद 1 /Sundarkand Hindi Translation Part1

Sunday, March 15, 2020

बोर्ड परीक्षा में कैसे लिखें लेखक का संक्षिप्त परिचय Bhishm Sahni Class...

Gadyaansh ki saprasang vyakhya । कैसे लिखें 'संदर्भ ,प्रसंग ,व्याख्या (...

L10। कुटज।Kutaj।अंतरा 2 ।Reading only NCERT class 12

L 8।यथास्मै रोचते विश्वं ।Yathasmai Rochate VishwamIअंतरा 2 Reading only

L 7 ।जहाँ कोई वापसी नहीं।Jahan koi wapsi nahin।अंतरा 2 IReading only

L 6.3 लघुकथा :चार हाथ Sher,Char Hath,Pahchan SajhaIअंतरा 2 IReading only

L 6.2 लघुकथा :पहचान IReading only Sher,Char Hath,Pahchan SajhaIअंतरा 2 I

L 6.1लघुकथा :शेर Sher,Char Hath,Pahchan SajhaIअंतरा 2 IReading only

L 5 Iगांधी ,नेहरु .. Gandhi Nehru BY Bhishm Sahani Iअंतरा 2 IReading only

L-4 संवदिया I SamvadiyaIअंतरा 2 IReading only

L 9 -दूसरा देवदास Dusra Devdas-अंतरा 2- Reading only

सुमिरिनी के मनके IReading onlyIअंतरा 2I Sumirini Ke Manke

L-1 प्रेमघन की स्मृतिछाया Premghan ki smriti chhaya अंतरा 2 Reading



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सूरदास की झोंपड़ी -प्रेमचंद ।Antral NCERT। Premchand।Class 12 CBSE।surdas

Aarohan आरोहण -कहानी -Reading only /Antral

Reading -Biskohar ki maati -बिस्कोहर की माटी-Lesson 3-Antral 2-Class 12

Apna Malva/अपना मालवा /Class 12 Hindi /Audio

Class 12 Hindi Aechhik 2020 CBSE Exam Sample Q P

सब आँखों  के उजले आँसू/महादेवी वर्मा/कविता व्याख्या सहित Class 11 Antra ...

Thursday, March 12, 2020

Bhartiy Kalayen भारतीय कलाएँ

भारतीय कलाएँ /bhartiy Kalayen/ Indian Arts / Class 11 NCERT
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Miyan Naseeruddin/ मियाँ नसीरुद्दीन /Explanation /Class 11 Hindi


Miyan Naseeruddin|Explanation | Class 11|मियाँ नसीरुद्दीन | Aaroh NCERT |CBSE
Miyan Naseeruddin/ मियाँ नसीरुद्दीन /Explanation /Class 11 Hindi
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Namak Ka Daroga Class 11 Hindi NCERT Aaroh

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Question -Answers Download PDF
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भारतीय गायिकाओं में बेजोड लता मंगेशकर | Kumar Gandharv | |NCERT

भारतीय गायिकाओं में बेजोड लता मंगेशकर | Kumar Gandharv | |NCERT

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Wednesday, March 11, 2020

निर्मला पुतुल -आओ, मिलकर बचाएँ Explanation Class 11 Aaroh ncert आरोह

 आओ, मिलकर बचाएँ

-निर्मला पुतुल
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Class 11 Hindi Core Playlist


कविता 'आओ, मिलकर बचाएँ' में आदिवासी समाज के स्वरूप एवं समस्याओं पर लिखा  गया है।  

  आओ, मिलकर बचाएँ
अपनी बस्तियों को
नंगी होने से
शहर की आबो-हवा से बचाएं उसे
बचाएं डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती को
हडिया में
अपने चेहरे पर
संथाल परगना की माटी का रंग
भाषा में झारखंडीपन
ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन
भोलापन दिल का
अक्खड्प्न, जुझारूपन भी
भीतर की आग
धनुष की डोरी
तीर का नुकीलापन
कुल्हाड़ी की धार
जंगल की ताज़ा हवा
नदियों की निर्मलता
पहाड़ों का मौन
गीतों की धुन
मिट्टी का सौंधापन
फसलों की लह्लाहट
नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी भर एकांत
बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी-हरी घास
बूढों के लिए पहाड़ों की शांति
और इस अविश्वास-भरे दौर में
थोडा-स विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने

आओ, मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है,
अब भी हमारे पास!


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कविता का मूल स्वर है-प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आदिवासी समाज पर आया संकट।
मुख्य भाव :आज के इस अविश्वास भरे दौर में अभी भी आपसी विश्वास, उम्मीदें और सपनों  को सामूहिक प्रयासों से बचाया जा सकता है।
कवयित्री ने इस कविता में समाज में उन चीजों को बचाने की बात कही है जिनका होना स्वस्थ सामाजिक-प्राकृतिक परिवेश के लिए बहुत आवश्यक है।  आदिवासी समाज के परिवेश को बचाए रखना और शहरी प्रभाव से मुक्त रखना चाहती है। वह झारखंडी स्वरूप की रक्षा चाहती है। संथाली समाज के ठंडेपन को दूर करना और उनमें उत्साह का संचार करना कवयित्री का लक्ष्य है। वहाँ के प्राकृतिक वातावरण के प्रति भी अपनी चिंता जाहिर करती है। वहाँ का राग-रंग उसकी नस-नस में समाया है, अत: इसके लिए उपयुक्त वातावरण की आवश्यकता महसूस करती है। कवयित्री आशावादी है, अत: बचे हुए स्वरूप में भी वह बहुत देख लेती है।

प्रश्न -उत्तर
  • माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?
  • कवयित्री ने संथाल क्षेत्र के लोगों की मूल पहचान की ओर संकेत किया है।वह  अपनी संस्कृति को बचाने का प्रयास करती है।
  • =========
  • भाषी में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?
  • भाषी में झारखंडीपन से अभिप्राय अपनी स्थानीय भाषा को संभाले रखना है।  
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  • दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?
  •  दिल के भोलेपन' में सहजता, सच्चाई और ईमानदारी का है। 'अक्खड़पन और जूझारूपन शब्दों से आशय बस्ती के लोगों के दृढ़ निश्चय और संघर्षशीलता है।   
  • =====================
  • बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?
  •  आदिवासी बस्तियों  को शहरी अपसंस्कृति के प्रभाव से   एवं कृत्रिम दिनचर्या से बचाकर रखने की आवश्यकता है।
  • ===============
  • आप अपने शहर या बस्ती की किन चीज़ों को बचाना चाहेंगे?
  • आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें।

 

Monday, March 9, 2020

Thursday, March 5, 2020

वे आँखें कविता/ व्याख्या/Q Ans/Ve ankhen /Explanation /Class 11 Aaroh NCERT

Ghar ki Yaad/ /Poem Explanation/ Aaroh/ Class 11 घर की याद कविता

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=============================घर की याद कविता भाग २ ===
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=====आज पानी गिर रहा है,
बहुत पानी गिर रहा है,
रात भर गिरता रहा है,
प्राण मन घिरता रहा है,

अब सवेरा हो गया है,
कब सवेरा हो गया है,
ठीक से मैंने न जाना,
बहुत सोकर सिर्फ़ माना—

क्योंकि बादल की अँधेरी,
है अभी तक भी घनेरी,
अभी तक चुपचाप है सब,
रातवाली छाप है सब,

गिर रहा पानी झरा-झर,
हिल रहे पत्ते हरा-हर,
बह रही है हवा सर-सर,
काँपते हैं प्राण थर-थर,

बहुत पानी गिर रहा है,
घर नज़र में तिर रहा है,
घर कि मुझसे दूर है जो,
घर खुशी का पूर है जो,

घर कि घर में चार भाई,
मायके में बहिन आई,
बहिन आई बाप के घर,
हाय रे परिताप के घर!

आज का दिन दिन नहीं है,
क्योंकि इसका छिन नहीं है,
एक छिन सौ बरस है रे,
हाय कैसा तरस है रे,

घर कि घर में सब जुड़े है,
सब कि इतने कब जुड़े हैं,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें,

और माँ‍ बिन-पढ़ी मेरी,
दुःख में वह गढ़ी मेरी
माँ कि जिसकी गोद में सिर,
रख लिया तो दुख नहीं फिर,

माँ कि जिसकी स्नेह-धारा,
का यहाँ तक भी पसारा,
उसे लिखना नहीं आता,
जो कि उसका पत्र पाता।

और पानी गिर रहा है,
घर चतुर्दिक घिर रहा है,
पिताजी भोले बहादुर,
वज्र-भुज नवनीत-सा उर,

पिताजी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
जो अभी भी दौड़ जाएँ,
जो अभी भी खिलखिलाएँ,

मौत के आगे न हिचकें,
शेर के आगे न बिचकें,
बोल में बादल गरजता,
काम में झंझा लरजता,

आज गीता पाठ करके,
दंड दो सौ साठ करके,
खूब मुगदर हिला लेकर,
मूठ उनकी मिला लेकर,

जब कि नीचे आए होंगे,
नैन जल से छाए होंगे,
हाय, पानी गिर रहा है,
घर नज़र में तिर रहा है,

चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिने,
खेलते या खड़े होंगे,
नज़र उनको पड़े होंगे।

पिताजी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
रो पड़े होंगे बराबर,
पाँचवे का नाम लेकर,

पाँचवाँ हूँ मैं अभागा,
जिसे सोने पर सुहागा,
पिता जी कहते रहें है,
प्यार में बहते रहे हैं,

आज उनके स्वर्ण बेटे,
लगे होंगे उन्हें हेटे,
क्योंकि मैं उन पर सुहागा
बँधा बैठा हूँ अभागा,

और माँ ने कहा होगा,
दुःख कितना बहा होगा,
आँख में किसलिए पानी,
वहाँ अच्छा है भवानी,

वह तुम्हारा मन समझकर,
और अपनापन समझकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,

पाँव जो पीछे हटाता,
कोख को मेरी लजाता,
इस तरह होओ न कच्चे,
रो पड़ेंगे और बच्चे,

पिताजी ने कहा होगा,
हाय, कितना सहा होगा,
कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
धीर मैं खोता, कहाँ हूँ,

गिर रहा है आज पानी,
याद आता है भवानी,
उसे थी बरसात प्यारी,
रात-दिन की झड़ी-झारी,

खुले सिर नंगे बदन वह,
घूमता-फिरता मगन वह,
बड़े बाड़े में कि जाता,
बीज लौकी का लगाता,

तुझे बतलाता कि बेला
ने फलानी फूल झेला,
तू कि उसके साथ जाती,
आज इससे याद आती,

मैं न रोऊँगा,—कहा होगा,
और फिर पानी बहा होगा,
दृश्य उसके बाद का रे,
पाँचवें की याद का रे,

भाई पागल, बहिन पागल,
और अम्मा ठीक बादल,
और भौजी और सरला,
सहज पानी,सहज तरला,

शर्म से रो भी न पाएँ,
ख़ूब भीतर छटपटाएँ,
आज ऐसा कुछ हुआ होगा,
आज सबका मन चुआ होगा।

अभी पानी थम गया है,
मन निहायत नम गया है,
एक से बादल जमे हैं,
गगन-भर फैले रमे हैं,

ढेर है उनका, न फाँकें,
जो कि किरणें झुकें-झाँकें,
लग रहे हैं वे मुझे यों,
माँ कि आँगन लीप दे ज्यों,

गगन-आँगन की लुनाई,
दिशा के मन में समाई,
दश-दिशा चुपचाप है रे,
स्वस्थ मन की छाप है रे,

झाड़ आँखें बन्द करके,
साँस सुस्थिर मंद करके,
हिले बिन चुपके खड़े हैं,
क्षितिज पर जैसे जड़े हैं,

एक पंछी बोलता है,
घाव उर के खोलता है,
आदमी के उर बिचारे,
किसलिए इतनी तृषा रे,

तू ज़रा-सा दुःख कितना,
सह सकेगा क्या कि इतना,
और इस पर बस नहीं है,
बस बिना कुछ रस नहीं है,

हवा आई उड़ चला तू,
लहर आई मुड़ चला तू,
लगा झटका टूट बैठा,
गिरा नीचे फूट बैठा,

तू कि प्रिय से दूर होकर,
बह चला रे पूर होकर,
दुःख भर क्या पास तेरे,
अश्रु सिंचित हास तेरे !

पिताजी का वेश मुझको,
दे रहा है क्लेश मुझको,
देह एक पहाड़ जैसे,
मन की बड़ का झाड़ जैसे,

एक पत्ता टूट जाए,
बस कि धारा फूट जाए,
एक हल्की चोट लग ले,
दूध की नद्दी उमग ले,

एक टहनी कम न होले,
कम कहाँ कि ख़म न होले,
ध्यान कितना फ़िक्र कितनी,
डाल जितनी जड़ें उतनी !

इस तरह क हाल उनका,
इस तरह का ख़याल उनका,
हवा उनको धीर देना,
यह नहीं जी चीर देना,

हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवे को वे न तरसें,

मैं मज़े में हूँ सही है,
घर नहीं हूँ बस यही है,
किन्तु यह बस बड़ा बस है,
इसी बस से सब विरस है,

किन्तु उनसे यह न कहना,
उन्हें देते धीर रहना,
उन्हें कहना लिख रहा हूँ,
उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ,

काम करता हूँ कि कहना,
नाम करता हूँ कि कहना,
चाहते है लोग, कहना,
मत करो कुछ शोक कहना,

और कहना मस्त हूँ मैं,
कातने में व्यस्‍त हूँ मैं,
वज़न सत्तर सेर मेरा,
और भोजन ढेर मेरा,

कूदता हूँ, खेलता हूँ,
दुख डट कर झेलता हूँ,
और कहना मस्त हूँ मैं,
यों न कहना अस्त हूँ मैं,

हाय रे, ऐसा न कहना,
है कि जो वैसा न कहना,
कह न देना जागता हूँ,
आदमी से भागता हूँ,

कह न देना मौन हूँ मैं,
ख़ुद न समझूँ कौन हूँ मैं,
देखना कुछ बक न देना,
उन्हें कोई शक न देना,

हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसे,
पाँचवें को वे न तरसें ।
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Wednesday, March 4, 2020

निविदा क्या है /कैसे लिखें  Nivida


प्रारूप लेखन : निविदा / 
हिन्दी में निविदा कैसे लिखें/ Learn to write a tender in Hindi निविदा पत्र लेखन /

  निविदा का शाब्दिक अर्थ है, आवश्यक रकम लेकर वांछित वस्तुएँ जुटा देने या काम पूरा करने का लिखित वादा देना। निविदा को अंग्रेजी में Tender (टेण्डर) कहते हैं/
यह एक पत्र होता है जिसमें सामान के आपूर्तिकर्ता द्वारा निर्धारित समय में सामग्री की आपूर्ति हेतु क्रेता को न्यूनतम मूल्य बताये जाते हैं अर्थात् न्यूनतम दर पर समान की आपूर्ति के आश्वासन पत्र को निविदा पत्र कहा जाता हैI
यह पत्र आपूर्तिकर्ता द्वारा सम्भावित क्रेताओं के समक्ष स्वत: प्रस्तुत किए जाते हैंI