Sunday, March 22, 2020

अग्निपथ कविता/Agneepath Poem /हरिवंश राय बच्चन

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !

वृक्ष हों भले खड़े,

हों घने, हों बड़े,

एक पत्र छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !



तू न थकेगा कभी!

तू न थमेगा कभी!

तू न मुड़ेगा कभी! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !



यह महान दृश्य है

चल रहा मनुष्य है

अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ

अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !
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संदेश =
जीवन संघर्ष का ही नाम है। मनुष्य को  इस संघर्ष से घबराकर कभी थमना नहीं चाहिए, आगे बढ़ते रहना चाहिए।