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Friday, November 15, 2019
Thursday, November 14, 2019
कबीर के दोहों का अर्थ
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पाय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
अर्थ :कबीरदास जी कहते हैं कि यदि गुरु और भगवान उनके सामने खड़े हों तब पहले वे गुरु के चरणों में सिर झुकाएँगे क्योंकि उन्होंने ही ईश्वर के बारे में ज्ञान दिया है।
व्याख्या : कबीर कहते हैं कि बिना गुरू के ज्ञान का मिलना असम्भव है। जब तक गुरू की कृपा प्राप्त नहीं होती तब तक मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता रहता है ,उसे अज्ञान के अन्धकार से बाहर लाने वाले,ईश्वर से उसका परिचय कराने और मोक्ष का मार्ग दिखाने वाले गुरू ही हैं। बिना गुरू के सत्य एवं असत्य की पहचान नहीं होती । अतः गुरू की शरण में जाना चाहिए वही सच्ची राह दिखाएँगे।
(to be completed)....
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
अर्थ :कबीरदास जी कहते हैं कि यदि गुरु और भगवान उनके सामने खड़े हों तब पहले वे गुरु के चरणों में सिर झुकाएँगे क्योंकि उन्होंने ही ईश्वर के बारे में ज्ञान दिया है।
व्याख्या : कबीर कहते हैं कि बिना गुरू के ज्ञान का मिलना असम्भव है। जब तक गुरू की कृपा प्राप्त नहीं होती तब तक मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता रहता है ,उसे अज्ञान के अन्धकार से बाहर लाने वाले,ईश्वर से उसका परिचय कराने और मोक्ष का मार्ग दिखाने वाले गुरू ही हैं। बिना गुरू के सत्य एवं असत्य की पहचान नहीं होती । अतः गुरू की शरण में जाना चाहिए वही सच्ची राह दिखाएँगे।
(to be completed)....
Tuesday, November 12, 2019
पानी में चंदा और चाँद पर आदमी - जयप्रकाश भारती /Class 10 Hindi
पानी में चंदा और चाँद पर आदमी - जयप्रकाश भारती
दुनिया के सभी भागों में स्त्री - पुरुष और बच्चे रेडियो से कान सटाए बैठे थे , जिनके पास टेलीविज़न थे, वे उसके पर्दे पर आँखें गड़ाए थे। मानवता के सम्पूर्ण इतिहास की सर्वाधिक रोमांचक घटना के एक - एक क्षण के वे भागीदार बन रहे थे--- उत्सुकता और कुतूहल के कारण अपने अस्तित्व से ही बिल्कुल बेखबर हो गए थे। युग - युग से किस देश और जाति ने चन्द्रमा तक पहुँचने के सपने नहीं सँजोए--- आज इस धरा के ही दो मानव उन सपनों को सच कर दिखाने के लिए कृत-संकल्प थे।
सोमवार २१ जुलाई , १९६९ को बहुत सवेरे ईगल नामक चन्द्रयान नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन को लेकर चन्द्रतल पर उतर गया। चन्द्रयान धूल उड़ाता हुआ चन्द्रमा के जलविहीन 'शान्ति सागर' में उतरा। भारतीय समय के अनुसार एक बजकर सैंतालिस मिनट पर किसी अन्य ग्रह पर मानव पहली बार पहुँचा। असीम अन्तरिक्ष को चीरते हुए पृथ्वी से चार लाख किलोमीटर दूर चन्द्रमा पर पहुँचने में मानव को 102 घंटे 45 मिनट और 42 सेकेण्ड समय लगा।
अपोलो - ११ को कप केनेडी से बुधवार, १६ जुलाई , १९६९ को छोड़ा गया था। इसमें तीन यात्री थे--- कमांडर नील आर्मस्ट्रांग , माइकल कालिन्स और एडविन एल्ड्रिन। चन्द्रमा की कक्षा में चन्द्रयान मूल यान कोलम्बिया से अलग हो गया और फिर चन्द्रतल पर उतर गया। उस समय माइकल कालिन्स मूल यान में ९६ किलोमीटर की ऊँचाई पर निरन्तर चन्द्रमा की परिक्रमा कर रहे थे।
नील आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रतल से पृथ्वी वर्णन करते हुए कहा कि यह बहुत बड़ी, चमकीली और सुन्दर (बिग, ब्राइट एन्ड ब्यूटीफुल) दिखाई दे रही है। एल्ड्रिन ने भावविभोर होकर कहा--- सुन्दर दृश्य है , सबकुछ सुन्दर है। उसने कहा कि जहाँ हम उतरे हैं, उससे कुछ ही दूरी पर हमने बैंगनी रंग की चट्टान देखी है। चन्द्रमा की मिट्टी और चट्टानें सूर्य की रोशनी में चमक रही हैं। यही एक भव्य एकान्त स्थान है।
चन्द्रयान ठीक स्थिति में है, यह निरीक्षण करके, कुछ खा-पीकर और सुस्ता लेने के बाद नील आर्मस्ट्रांग चन्द्रयान से बाहर निकले। चन्द्रयान की सीढ़ियों से धीरे - धीरे वह नीचे उतरे। उन्होंने अपना बायाँ पाँव चन्द्रतल पर रखा, जबकि दायाँ पाँव चन्द्रयान पर ही रखा। इस बीच आर्मस्ट्रांग दोनों हाथ से चन्द्रयान को अच्छी तरह पकड़े रहे। उन्हें यह तय कर लेना था कि वैज्ञानिक चन्द्रतल को जैसा समझते रहे हैं, वह उससे एकदम भिन्न तो नहीं है। आश्वस्त होने के बाद वह यान के आस-पास ही कुछ कदम चले। चन्द्रतल पर पाँव रखते हुए उन्होंने कहा, यद्यपि यह मानव छोटा-सा कदम है, लेकिन मानवता के लिए यह बहुत ऊँची छलाँग है।
अभी तक एल्ड्रिन भले ही भीतर बैठा हो, लेकिन वह निष्क्रिय नहीं था। उसने मूवी कैमरे से आर्मस्ट्रांग के चित्र लेने शुरू कर दिए थे। बीस मिनट बाद ही एडविन एल्ड्रिन भी चन्द्रयान से बाहर निकले। उन्होंने भी चन्द्रतल पर चलकर देखा। तब तक आर्मस्ट्रांग चन्द्रधूल का एक तात्कालिक नमूना जेब में रख चुके थे। अब उन्होंने टेलीविज़न कैमरे को त्रिपाद पर जमा दिया।
अरबों डॉलर खर्च करके मानव चन्द्रतल पर पहुँचा था, उसे अपने सीमित समय में एक - एक क्षण का उपयोग करना था। दोनों चन्द्र - विजेताओं को चन्द्रमा की चट्टानों तथा मिट्टी के नमूने लेने थे। कई तरह के उपकरण भी वहाँ स्थापित करने थे, जो बाद में भी पृथ्वी पर वैज्ञानिक जानकारी भेजते रह सकें।
इन चन्द्र - विजेताओं ने चन्द्रतल पर भूकम्पमापी यंत्र स्थापित किया और लेसर परावर्त्तक रखा। इन्होंने एक धातु - फलक, जिस पर तीनों यात्रियों और अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के हस्ताक्षर थे, वहाँ रखा। धातु - फलक पर खुदे शब्दों को आर्मस्ट्रांग ने जोर से पढ़ा --- " जुलाई १९६९ में पृथ्वी ग्रह के मानव चन्द्रमा के इस स्थान पर उतरे। हम यहाँ सारी मानव जाति के लिए शान्ति की कामना लेकर आए। "
दोनों चन्द्र-यात्रियों ने अमेरिकी ध्वज चन्द्रतल पर फहरा दिया। वायु न होने के कारण इस ध्वज को इस तरह बनाया गया था कि स्प्रिंग की सहायता से यह फैला हुआ ही रहे। विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों के सन्देशों की माइक्रो फिल्म भी उन्होंने चन्द्रतल पर छोड़ दी। दो रूसी अन्तरिक्ष यात्रियों ( यूरी गागरिन और एम. के. मोरोव ) को मरणोपरान्त दिए पदक और तीन अमेरिकी अन्तरिक्ष यात्रियों ( ग्रिसम, व्हाइट और शैफी ) को दिए गए पदकों की अनुकृतियाँ वहाँ रखीं।
अपने व्यस्त कार्यक्रम को पूरा करने में चन्द्र - यात्रियों को थकान हो जानी स्वाभाविक थी, लेकिन फिर भी वे बड़े प्रसन्न थे। आरम्भ में वे बड़ी सावधानी के साथ एक - एक कदम रख रहे थे, लेकिन बाद में वे कंगारूओं की तरह उछल - उछलकर चलते देखे गए।
मानव को चन्द्रमा पर उतारने का यह सर्वप्रथम प्रयास होते हुए भी असाधारण रूप से सफल रहा यद्यपि हर क्षण, हर पग पर खतरे थे। चन्द्रतल पर मानव के पाँव के निशान, उसके द्वारा वैज्ञानिक तथा तकनिकी क्षेत्र में की गई असाधारण प्रगति के प्रतीक हैं। जिस क्षण डगमग - डगमग करते मानव के पग उस धूल - धूसरित अनछुई सतह पर पड़े तो मानो वह हज़ारों - लाखों साल से पालित - पोषित सैकड़ों अन्धविश्वासों तथा कपोल - कल्पनाओं पर पद - प्रहार ही हुआ। कवियों की कल्पना के सलोने चाँद को वैज्ञानिक ने बदसूरत और जीवनहीन करार दे दिया---भला अब चन्द्रमुखी कहलाना किसे रुचिकर लगेगा।
हमारे देश में ही नहीं, संसार की प्रत्येक जाति ने अपनी भाषा में चन्द्रमा के बारे में कहानियाँ गढ़ी हैं और कवियों ने कविताएँ रची हैं। किसी ने उसे रजनीपति माना तो किसी ने उसे रात्रि की देवी कहकर पुकारा। किसी विरहिणी ने उसे अपना दूत बनाया तो किसी ने उसके पीलेपन से क्षुब्ध होकर उसे बूढ़ा और बीमार ही समझ लिया। बालक श्रीराम चन्द्रमा को खिलौना समझकर उसके लिए मचलते हैं तो सूर के श्रीकृष्ण भी उसके लिए हठ करते हैं। बालक को शान्त करने के लिए एक ही उपाय था---चन्द्रमा की छवि को पानी में दिखा देना। लेकिन मानव की प्रगति का चक्र कितना घूम गया है। इस लम्बी विकास - यात्रा को श्रीमती महादेवी वर्मा ने एक ही वाक्य में बाँध दिया है --- " पहले पानी में चंदा को उतारा जाता था और आज चाँद पर मानव पहुँच गया है। "
मानव मन सदा से ही अज्ञात के रहस्यों को खोलने और जानने - समझने को उत्सुक रहा है। जहाँ तक वह नहीं पहुँच सकता था वहाँ वह कल्पना के पंखों पर उड़कर पहुँचा। उसकी अनगढ़ और अविश्वसनीय कथाएँ उसे सत्य के निकट पहुँचाने में प्रेरणा - शक्ति का काम करती रहीं।
अन्तरिक्ष युग का सूत्रपात ४ अक्टूबर, 1956 को हुआ था जब सोवियत संघ ने अपना पहला स्पुतनिक छोड़ा। प्रथम अन्तरिक्ष यात्री बनने का गौरव यूरी गागरिन को प्राप्त हुआ। अन्तरिक्ष युग के आरम्भ के ठीक ११ वर्ष ९ मास १७ दिन बाद चन्द्रतल पर मानव उतर गया।
दिसम्बर १९६८ में पहली बार अपोलो - ८ के तीनों अन्तरिक्ष - यात्री चन्द्रमा के पड़ोस तक पहुँचे थे। बीच की अवधि में रूस और अमेरिका दोनों ही देशों ने अनेक अन्तरिक्ष यान छोड़े। इनमें कुछ स - मानव यान थे और कुछ मानव - रहित। इसे मानव का साहस कहें या दुस्साहस कि उसने अन्तरिक्ष में पहुँचकर यान से बाहर निकल अनन्त अन्तरिक्ष में विचरण भी शुरू कर दिया। अन्तरिक्ष में परिक्रमा करते दो यानों को जोड़ने और एक यान से दूसरे यान में यात्रियों के चले जाने के चमत्कारी करतब भी किए गए। अपोलो - ११ द्वारा चन्द्रविजय से पूर्व मानो अपोलो - १० के द्वारा नाटक का पूर्वाभिनय ही किया गया था। इसके तीन यात्री अन्तरिक्ष यान को चन्द्रमा की कक्षा में ले गए थे। एक यात्री मूल यान को कक्षा में घुमाता रहा था और अन्य दो यात्री चन्द्रयान में बैठकर उसे चन्द्रमा से केवल ९ मील की दूरी तक ले गए थे। इन्होंने चन्द्र - विजेताओं के उतरने के सम्भावित स्थल का अध्ययन किया और अनेक चित्र खींचे थे। चन्द्रयान को मूल यान से जोड़ा और फिर सकुशल पृथ्वी पर लौट आए।
मानव को चन्द्रतल तक ले जाने और लौटा लानेवाले यान के बारे में भला कौन नहीं जानना चाहेगा। अपोलो - यान - सैटर्न - ५ राकेट से प्रक्षेपित किया जाता है। वह विश्व का सबसे शक्तिशाली वाहन है। अन्तरिक्ष यान के तीन भाग होते हैं या इन्हें तीन माड्यूल कह सकते हैं।
कमांड माड्यूल का निर्माण इस दृष्टि से किया जाता है कि वापसी के समय पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करते समय तीव्र ताप और दबावों को सहन कर सके। नियन्त्रण कक्ष, शयनागार, भोजनकक्ष और प्रयोगशाला---इन सब का मिला - जुला रूप ही यह माड्यूल होता है। प्रक्षेपण के समय यदि कोई दुर्घटना हो जाये, तो यात्री अपने बचाव के लिए इसे शेष यान से पृथक् कर सकते हैं। पुन: प्रवेश के लिए बने कमांड कैप्सूल का वजन ५५०० किलोग्राम था। इसमें लगभग साढ़े पाँच घन मीटर खाली स्थान था, जहाँ कि तीनों यात्री अपने सामान्य कार्य सम्पन्न कर सकें। इस स्थान को हम औसत दर्जे की कार जितना मान सकते हैं। कैप्सूल जब तैयार होता है, उस समय इसमें पाँच विद्युत् बैटरियाँ होती हैं और १२ राकेट इंजन जुड़े होते हैं। तीन आदमियों के लिए चौदह दिन की खाद्य सामग्री और पानी के भण्डार एवं मल के निष्कासन की व्यवस्था रहती है। इसमें पैराशूट भी रहते हैं। यात्रियों को बिना चोट पहुँचाए, यह कड़ी - से - कड़ी जमीन पर उतर सकता है।
अन्तरिक्ष यान का दूसरा भाग होता है सर्विस माड्यूल--- यह औसत आकर के ट्रक जितना होता है। इसमें दस लाख किलोमीटर की यात्रा करने के लिए पर्याप्त ईंधन था और १४ दिन तक तीन यात्रियों के साँस लेने लायक प्राण - वायु की व्यवस्था थी। यान को चन्द्र कक्षा में स्थापित करने के लिए उसकी गति कम करनी पड़ती है और सर्विस माड्यूल के शक्तिशाली राकेट मोटर दाग कर ही ऐसा किया जाता है।
चन्द्रयान यानी अपोलो - ११ का ईगल अन्तरिक्ष यान का एक भाग होते हुए भी अपने में पूर्ण था। इसमें दो खंड थे--- अवरोह भाग और आरोह भाग। अवरोह भाग में ८२०० किलो प्राणोदक था, जिससे ४५०० किलो प्रघात के इंजन को चलाया जा सके। चालकों के साँस लेने के लिए ऑक्सीजन गैस, पीने का पानी और चन्द्रतल पर यान को ठंडा रखने की व्यवस्था की गई थी। चन्द्रयान की सभी टाँगें समतल पर टिकनी आवश्यक नहीं, यह आड़ा - तिरछा भी खड़ा हो सकता है। अवरोही भाग में चार रेडियो रिसीवर, ट्रान्समीटर, बैटरियाँ, मूलयान से और पृथ्वी से संचार - व्यवस्था कायम रखने के लिए सात एरियर लगे थे। ईगल के दोनों भाग किसी भी समय अलग किए जा सकते थे। चन्द्रतल से वापसी के समय चन्द्रयान का नीचे का भाग प्रक्षेपण यन्त्र का काम देता है और उसे चन्द्रतल पर ही छोड़ दिया गया।
नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन ने चन्द्रतल पर २१ घंटे ३६ मिनट बिताए। चन्द्रतल पर इन दो यात्रियों ने पाँवों के ऐसे निशान छोड़े कि जैसे किसी हल चलाए खेत में पड़ जाते हैं। उन्होंने लाखों डालर का सामान भी वहीं छोड़ दिया।
दोनों चन्द्र - विजेताओं ने ऊपरी भाग में उड़ान भरकर चन्द्रकक्ष में परिक्रमा करते हुए मूलयान से अपने यान को जोड़ा। फिर वे दोनों यात्री अपने साथी माइकल कालिन्स से आ मिले। अब चन्द्रयान को अलग कर दिया गया और उसे कक्ष में ही छोड़ दिया गया। इंजन दाग कर यात्री वापसी के लिए पृथ्वी के मार्ग पर बढ़ चले। ये यात्री प्रशान्त महासागर में उतरे।
इन यात्रियों को सीधे चन्द्र प्रयोगशाला में ले जाया गया। कई सप्ताह किसी से मिलने - जुलने नहीं दिया गया। उनके अनुभव रिकार्ड किए गए। वैज्ञानिकों को यह भी जाँच करनी थी कि ये यात्री ऐसे कीटाणु तो अपने साथ नहीं ले आए, जो मानव जाति के लिए घातक हों। इन यात्रियों द्वारा लाई गई धूल और चन्द्र - चट्टानों के नमूनों को अनुसंधान और प्रयोग करने के लिए विभिन्न देशों के विशेषज्ञों को सौंप दिया गया।
अपोलो - ११ की सफलता के पश्चात् अमेरिका ने अपोलो - १२ में भी तीन यात्रियों को चन्द्रतल पर खोज करने के लिए भेजा। इसके बाद अपोलो - १३ की यात्रा दुर्घटनावश बीच में ही स्थगित करनी पड़ी।
अभी चन्द्रमा के लिए अनेक उड़ानें होंगी। दूसरे ग्रहों के लिए मानव - रहित यान छोड़े जा रहे हैं। अन्तरिक्ष में परिक्रमा करनेवाला स्टेशन स्थापित करने की दिशा में तेजी से प्रयत्न किए जा रहे हैं। ऐसा स्टेशन बन जाने पर ब्रह्माण्ड के रहस्यों की पर्तें खोजने में काफी सहायता मिलेगी।
यह पृथ्वी मानव के लिए पालने के समान है। वह हमेशा - हमेशा के लिए इसकी परिधि में बँधा हुआ नहीं रह सकता। अज्ञात की खोज में वह कहाँ तक पहुँचेगा, कौन कह सकता है ?
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दुनिया के सभी भागों में स्त्री - पुरुष और बच्चे रेडियो से कान सटाए बैठे थे , जिनके पास टेलीविज़न थे, वे उसके पर्दे पर आँखें गड़ाए थे। मानवता के सम्पूर्ण इतिहास की सर्वाधिक रोमांचक घटना के एक - एक क्षण के वे भागीदार बन रहे थे--- उत्सुकता और कुतूहल के कारण अपने अस्तित्व से ही बिल्कुल बेखबर हो गए थे। युग - युग से किस देश और जाति ने चन्द्रमा तक पहुँचने के सपने नहीं सँजोए--- आज इस धरा के ही दो मानव उन सपनों को सच कर दिखाने के लिए कृत-संकल्प थे।
सोमवार २१ जुलाई , १९६९ को बहुत सवेरे ईगल नामक चन्द्रयान नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन को लेकर चन्द्रतल पर उतर गया। चन्द्रयान धूल उड़ाता हुआ चन्द्रमा के जलविहीन 'शान्ति सागर' में उतरा। भारतीय समय के अनुसार एक बजकर सैंतालिस मिनट पर किसी अन्य ग्रह पर मानव पहली बार पहुँचा। असीम अन्तरिक्ष को चीरते हुए पृथ्वी से चार लाख किलोमीटर दूर चन्द्रमा पर पहुँचने में मानव को 102 घंटे 45 मिनट और 42 सेकेण्ड समय लगा।
अपोलो - ११ को कप केनेडी से बुधवार, १६ जुलाई , १९६९ को छोड़ा गया था। इसमें तीन यात्री थे--- कमांडर नील आर्मस्ट्रांग , माइकल कालिन्स और एडविन एल्ड्रिन। चन्द्रमा की कक्षा में चन्द्रयान मूल यान कोलम्बिया से अलग हो गया और फिर चन्द्रतल पर उतर गया। उस समय माइकल कालिन्स मूल यान में ९६ किलोमीटर की ऊँचाई पर निरन्तर चन्द्रमा की परिक्रमा कर रहे थे।
नील आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रतल से पृथ्वी वर्णन करते हुए कहा कि यह बहुत बड़ी, चमकीली और सुन्दर (बिग, ब्राइट एन्ड ब्यूटीफुल) दिखाई दे रही है। एल्ड्रिन ने भावविभोर होकर कहा--- सुन्दर दृश्य है , सबकुछ सुन्दर है। उसने कहा कि जहाँ हम उतरे हैं, उससे कुछ ही दूरी पर हमने बैंगनी रंग की चट्टान देखी है। चन्द्रमा की मिट्टी और चट्टानें सूर्य की रोशनी में चमक रही हैं। यही एक भव्य एकान्त स्थान है।
चन्द्रयान ठीक स्थिति में है, यह निरीक्षण करके, कुछ खा-पीकर और सुस्ता लेने के बाद नील आर्मस्ट्रांग चन्द्रयान से बाहर निकले। चन्द्रयान की सीढ़ियों से धीरे - धीरे वह नीचे उतरे। उन्होंने अपना बायाँ पाँव चन्द्रतल पर रखा, जबकि दायाँ पाँव चन्द्रयान पर ही रखा। इस बीच आर्मस्ट्रांग दोनों हाथ से चन्द्रयान को अच्छी तरह पकड़े रहे। उन्हें यह तय कर लेना था कि वैज्ञानिक चन्द्रतल को जैसा समझते रहे हैं, वह उससे एकदम भिन्न तो नहीं है। आश्वस्त होने के बाद वह यान के आस-पास ही कुछ कदम चले। चन्द्रतल पर पाँव रखते हुए उन्होंने कहा, यद्यपि यह मानव छोटा-सा कदम है, लेकिन मानवता के लिए यह बहुत ऊँची छलाँग है।
अभी तक एल्ड्रिन भले ही भीतर बैठा हो, लेकिन वह निष्क्रिय नहीं था। उसने मूवी कैमरे से आर्मस्ट्रांग के चित्र लेने शुरू कर दिए थे। बीस मिनट बाद ही एडविन एल्ड्रिन भी चन्द्रयान से बाहर निकले। उन्होंने भी चन्द्रतल पर चलकर देखा। तब तक आर्मस्ट्रांग चन्द्रधूल का एक तात्कालिक नमूना जेब में रख चुके थे। अब उन्होंने टेलीविज़न कैमरे को त्रिपाद पर जमा दिया।
अरबों डॉलर खर्च करके मानव चन्द्रतल पर पहुँचा था, उसे अपने सीमित समय में एक - एक क्षण का उपयोग करना था। दोनों चन्द्र - विजेताओं को चन्द्रमा की चट्टानों तथा मिट्टी के नमूने लेने थे। कई तरह के उपकरण भी वहाँ स्थापित करने थे, जो बाद में भी पृथ्वी पर वैज्ञानिक जानकारी भेजते रह सकें।
इन चन्द्र - विजेताओं ने चन्द्रतल पर भूकम्पमापी यंत्र स्थापित किया और लेसर परावर्त्तक रखा। इन्होंने एक धातु - फलक, जिस पर तीनों यात्रियों और अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के हस्ताक्षर थे, वहाँ रखा। धातु - फलक पर खुदे शब्दों को आर्मस्ट्रांग ने जोर से पढ़ा --- " जुलाई १९६९ में पृथ्वी ग्रह के मानव चन्द्रमा के इस स्थान पर उतरे। हम यहाँ सारी मानव जाति के लिए शान्ति की कामना लेकर आए। "
दोनों चन्द्र-यात्रियों ने अमेरिकी ध्वज चन्द्रतल पर फहरा दिया। वायु न होने के कारण इस ध्वज को इस तरह बनाया गया था कि स्प्रिंग की सहायता से यह फैला हुआ ही रहे। विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों के सन्देशों की माइक्रो फिल्म भी उन्होंने चन्द्रतल पर छोड़ दी। दो रूसी अन्तरिक्ष यात्रियों ( यूरी गागरिन और एम. के. मोरोव ) को मरणोपरान्त दिए पदक और तीन अमेरिकी अन्तरिक्ष यात्रियों ( ग्रिसम, व्हाइट और शैफी ) को दिए गए पदकों की अनुकृतियाँ वहाँ रखीं।
अपने व्यस्त कार्यक्रम को पूरा करने में चन्द्र - यात्रियों को थकान हो जानी स्वाभाविक थी, लेकिन फिर भी वे बड़े प्रसन्न थे। आरम्भ में वे बड़ी सावधानी के साथ एक - एक कदम रख रहे थे, लेकिन बाद में वे कंगारूओं की तरह उछल - उछलकर चलते देखे गए।
मानव को चन्द्रमा पर उतारने का यह सर्वप्रथम प्रयास होते हुए भी असाधारण रूप से सफल रहा यद्यपि हर क्षण, हर पग पर खतरे थे। चन्द्रतल पर मानव के पाँव के निशान, उसके द्वारा वैज्ञानिक तथा तकनिकी क्षेत्र में की गई असाधारण प्रगति के प्रतीक हैं। जिस क्षण डगमग - डगमग करते मानव के पग उस धूल - धूसरित अनछुई सतह पर पड़े तो मानो वह हज़ारों - लाखों साल से पालित - पोषित सैकड़ों अन्धविश्वासों तथा कपोल - कल्पनाओं पर पद - प्रहार ही हुआ। कवियों की कल्पना के सलोने चाँद को वैज्ञानिक ने बदसूरत और जीवनहीन करार दे दिया---भला अब चन्द्रमुखी कहलाना किसे रुचिकर लगेगा।
हमारे देश में ही नहीं, संसार की प्रत्येक जाति ने अपनी भाषा में चन्द्रमा के बारे में कहानियाँ गढ़ी हैं और कवियों ने कविताएँ रची हैं। किसी ने उसे रजनीपति माना तो किसी ने उसे रात्रि की देवी कहकर पुकारा। किसी विरहिणी ने उसे अपना दूत बनाया तो किसी ने उसके पीलेपन से क्षुब्ध होकर उसे बूढ़ा और बीमार ही समझ लिया। बालक श्रीराम चन्द्रमा को खिलौना समझकर उसके लिए मचलते हैं तो सूर के श्रीकृष्ण भी उसके लिए हठ करते हैं। बालक को शान्त करने के लिए एक ही उपाय था---चन्द्रमा की छवि को पानी में दिखा देना। लेकिन मानव की प्रगति का चक्र कितना घूम गया है। इस लम्बी विकास - यात्रा को श्रीमती महादेवी वर्मा ने एक ही वाक्य में बाँध दिया है --- " पहले पानी में चंदा को उतारा जाता था और आज चाँद पर मानव पहुँच गया है। "
मानव मन सदा से ही अज्ञात के रहस्यों को खोलने और जानने - समझने को उत्सुक रहा है। जहाँ तक वह नहीं पहुँच सकता था वहाँ वह कल्पना के पंखों पर उड़कर पहुँचा। उसकी अनगढ़ और अविश्वसनीय कथाएँ उसे सत्य के निकट पहुँचाने में प्रेरणा - शक्ति का काम करती रहीं।
अन्तरिक्ष युग का सूत्रपात ४ अक्टूबर, 1956 को हुआ था जब सोवियत संघ ने अपना पहला स्पुतनिक छोड़ा। प्रथम अन्तरिक्ष यात्री बनने का गौरव यूरी गागरिन को प्राप्त हुआ। अन्तरिक्ष युग के आरम्भ के ठीक ११ वर्ष ९ मास १७ दिन बाद चन्द्रतल पर मानव उतर गया।
दिसम्बर १९६८ में पहली बार अपोलो - ८ के तीनों अन्तरिक्ष - यात्री चन्द्रमा के पड़ोस तक पहुँचे थे। बीच की अवधि में रूस और अमेरिका दोनों ही देशों ने अनेक अन्तरिक्ष यान छोड़े। इनमें कुछ स - मानव यान थे और कुछ मानव - रहित। इसे मानव का साहस कहें या दुस्साहस कि उसने अन्तरिक्ष में पहुँचकर यान से बाहर निकल अनन्त अन्तरिक्ष में विचरण भी शुरू कर दिया। अन्तरिक्ष में परिक्रमा करते दो यानों को जोड़ने और एक यान से दूसरे यान में यात्रियों के चले जाने के चमत्कारी करतब भी किए गए। अपोलो - ११ द्वारा चन्द्रविजय से पूर्व मानो अपोलो - १० के द्वारा नाटक का पूर्वाभिनय ही किया गया था। इसके तीन यात्री अन्तरिक्ष यान को चन्द्रमा की कक्षा में ले गए थे। एक यात्री मूल यान को कक्षा में घुमाता रहा था और अन्य दो यात्री चन्द्रयान में बैठकर उसे चन्द्रमा से केवल ९ मील की दूरी तक ले गए थे। इन्होंने चन्द्र - विजेताओं के उतरने के सम्भावित स्थल का अध्ययन किया और अनेक चित्र खींचे थे। चन्द्रयान को मूल यान से जोड़ा और फिर सकुशल पृथ्वी पर लौट आए।
मानव को चन्द्रतल तक ले जाने और लौटा लानेवाले यान के बारे में भला कौन नहीं जानना चाहेगा। अपोलो - यान - सैटर्न - ५ राकेट से प्रक्षेपित किया जाता है। वह विश्व का सबसे शक्तिशाली वाहन है। अन्तरिक्ष यान के तीन भाग होते हैं या इन्हें तीन माड्यूल कह सकते हैं।
कमांड माड्यूल का निर्माण इस दृष्टि से किया जाता है कि वापसी के समय पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करते समय तीव्र ताप और दबावों को सहन कर सके। नियन्त्रण कक्ष, शयनागार, भोजनकक्ष और प्रयोगशाला---इन सब का मिला - जुला रूप ही यह माड्यूल होता है। प्रक्षेपण के समय यदि कोई दुर्घटना हो जाये, तो यात्री अपने बचाव के लिए इसे शेष यान से पृथक् कर सकते हैं। पुन: प्रवेश के लिए बने कमांड कैप्सूल का वजन ५५०० किलोग्राम था। इसमें लगभग साढ़े पाँच घन मीटर खाली स्थान था, जहाँ कि तीनों यात्री अपने सामान्य कार्य सम्पन्न कर सकें। इस स्थान को हम औसत दर्जे की कार जितना मान सकते हैं। कैप्सूल जब तैयार होता है, उस समय इसमें पाँच विद्युत् बैटरियाँ होती हैं और १२ राकेट इंजन जुड़े होते हैं। तीन आदमियों के लिए चौदह दिन की खाद्य सामग्री और पानी के भण्डार एवं मल के निष्कासन की व्यवस्था रहती है। इसमें पैराशूट भी रहते हैं। यात्रियों को बिना चोट पहुँचाए, यह कड़ी - से - कड़ी जमीन पर उतर सकता है।
अन्तरिक्ष यान का दूसरा भाग होता है सर्विस माड्यूल--- यह औसत आकर के ट्रक जितना होता है। इसमें दस लाख किलोमीटर की यात्रा करने के लिए पर्याप्त ईंधन था और १४ दिन तक तीन यात्रियों के साँस लेने लायक प्राण - वायु की व्यवस्था थी। यान को चन्द्र कक्षा में स्थापित करने के लिए उसकी गति कम करनी पड़ती है और सर्विस माड्यूल के शक्तिशाली राकेट मोटर दाग कर ही ऐसा किया जाता है।
चन्द्रयान यानी अपोलो - ११ का ईगल अन्तरिक्ष यान का एक भाग होते हुए भी अपने में पूर्ण था। इसमें दो खंड थे--- अवरोह भाग और आरोह भाग। अवरोह भाग में ८२०० किलो प्राणोदक था, जिससे ४५०० किलो प्रघात के इंजन को चलाया जा सके। चालकों के साँस लेने के लिए ऑक्सीजन गैस, पीने का पानी और चन्द्रतल पर यान को ठंडा रखने की व्यवस्था की गई थी। चन्द्रयान की सभी टाँगें समतल पर टिकनी आवश्यक नहीं, यह आड़ा - तिरछा भी खड़ा हो सकता है। अवरोही भाग में चार रेडियो रिसीवर, ट्रान्समीटर, बैटरियाँ, मूलयान से और पृथ्वी से संचार - व्यवस्था कायम रखने के लिए सात एरियर लगे थे। ईगल के दोनों भाग किसी भी समय अलग किए जा सकते थे। चन्द्रतल से वापसी के समय चन्द्रयान का नीचे का भाग प्रक्षेपण यन्त्र का काम देता है और उसे चन्द्रतल पर ही छोड़ दिया गया।
नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन ने चन्द्रतल पर २१ घंटे ३६ मिनट बिताए। चन्द्रतल पर इन दो यात्रियों ने पाँवों के ऐसे निशान छोड़े कि जैसे किसी हल चलाए खेत में पड़ जाते हैं। उन्होंने लाखों डालर का सामान भी वहीं छोड़ दिया।
दोनों चन्द्र - विजेताओं ने ऊपरी भाग में उड़ान भरकर चन्द्रकक्ष में परिक्रमा करते हुए मूलयान से अपने यान को जोड़ा। फिर वे दोनों यात्री अपने साथी माइकल कालिन्स से आ मिले। अब चन्द्रयान को अलग कर दिया गया और उसे कक्ष में ही छोड़ दिया गया। इंजन दाग कर यात्री वापसी के लिए पृथ्वी के मार्ग पर बढ़ चले। ये यात्री प्रशान्त महासागर में उतरे।
इन यात्रियों को सीधे चन्द्र प्रयोगशाला में ले जाया गया। कई सप्ताह किसी से मिलने - जुलने नहीं दिया गया। उनके अनुभव रिकार्ड किए गए। वैज्ञानिकों को यह भी जाँच करनी थी कि ये यात्री ऐसे कीटाणु तो अपने साथ नहीं ले आए, जो मानव जाति के लिए घातक हों। इन यात्रियों द्वारा लाई गई धूल और चन्द्र - चट्टानों के नमूनों को अनुसंधान और प्रयोग करने के लिए विभिन्न देशों के विशेषज्ञों को सौंप दिया गया।
अपोलो - ११ की सफलता के पश्चात् अमेरिका ने अपोलो - १२ में भी तीन यात्रियों को चन्द्रतल पर खोज करने के लिए भेजा। इसके बाद अपोलो - १३ की यात्रा दुर्घटनावश बीच में ही स्थगित करनी पड़ी।
अभी चन्द्रमा के लिए अनेक उड़ानें होंगी। दूसरे ग्रहों के लिए मानव - रहित यान छोड़े जा रहे हैं। अन्तरिक्ष में परिक्रमा करनेवाला स्टेशन स्थापित करने की दिशा में तेजी से प्रयत्न किए जा रहे हैं। ऐसा स्टेशन बन जाने पर ब्रह्माण्ड के रहस्यों की पर्तें खोजने में काफी सहायता मिलेगी।
यह पृथ्वी मानव के लिए पालने के समान है। वह हमेशा - हमेशा के लिए इसकी परिधि में बँधा हुआ नहीं रह सकता। अज्ञात की खोज में वह कहाँ तक पहुँचेगा, कौन कह सकता है ?
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Monday, November 4, 2019
Sunday, November 3, 2019
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