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Friday, December 8, 2017
Devsena ka Geet देवसेना का गीत Class 12 Hindi
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देवसेना का गीत [प्रसाद जी के नाटक स्कंदगुप्त का अंश है।]
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आह ! वेदना मिली विदाई !
मैंने भ्रम-वश जीवन संचित,
मधुकरियो की भीख लुटाई।
छलछल थे संध्या के श्रमकण
आंसू - से गिरते थे प्रतिक्षण।
मेरी यात्रा पर लेती थी-
निरवता अनंत अंगड़ाई।
मित स्वप्न की मधुमाया में,
गहन - विपिन की तरु - छाया में,
पथिक उनींदी श्रुति में किसने-
यह विहाग की तान उठाई।
लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी,
रही बचाए फिरती कबकी।
मेरी आशा आह ! बावली,
तूने खो दी सकल कमाई।
चढ़कर मेरे जीवन - रथ पर,
प्रलय चल रहा अपने पथ पर।
मैंने निज दुर्बल पद - बल पर,
उससे हारी - होड़ लगाई।
लौटा लो यह अपनी थाती ,
मेरी करुणा हा - हा खाती।
विश्व ! न सँभलेगा यह मुझसे,
इससे मन की लाज गंवाई।
शब्दार्थ :
वेदना - पीड़ा। भ्रमवश - भ्रम के कारण। मधुकरियो - पके हुए अन्न। श्रमकण - मेहनत से उत्पन्न पसीना।
नीरवता - खामोशी। अनंत - अंतहीन।निज - अपना। प्रलय - आपदा। थाती - धरोहर /प्यार /अमानत। सतृष्ण - तृष्णा se युक्त।
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Saturday, December 2, 2017
L9 Aaroh -Firaq Gorakhpuri -ग़ज़ल - Video lecture by Alpana Verma
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Monday, November 27, 2017
Sunday, November 26, 2017
Q.Answers- Naubatkhane mein Ibadat नौबतखाने में इबादत -बिस्मिल्लाह खान शहनाई वादक
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Tuesday, November 21, 2017
L 17.Bachche Kaam par Ja rahe hain-Explanation with Q Ans
इस बात को विवरण की तरह लिखने का अर्थ है इसकी व्याख्या करते हुए कारणों को बताते हुए लिखना चाहिए कि बच्चे को काम पर क्यों जाना पड़रहा है ?
और इसे विवरण की तरह लिखा जाना भयानक हो सकता है क्योंकि जब हम इस बात की व्याख्या करेंगे और जानेंगे कि बच्चों की इस स्थिति का ज़िम्मेदार वह सत्ता वर्ग है जिसे जनता चुनकर नेता बनाती है ,वह समाज है जिसमें हम रहते हैं ,वह पूंजीवादी वर्ग है जो इन बच्चों का शोषण करने से कतराता नहीं है.इन कारणों को जानने के बाद यही भय उत्पन्न होगा कि इस तरह इन बच्चों का उद्धार कभी नहीं हो सकेगा क्योंकि जब शासक वर्ग ही इनकी उपेक्षा करेगा तब ये बच्चे इसी स्थिति में रहने को मजबूर होंगे ,साथ ही इनमें कुंठा पनपेगी जो समाज के लिए एक और भयानक बात होगी.
=====================Alpana Verma ===========
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============Question 1:
कविता की पहली दो पक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है उसे लिखकर व्यक्त कीजिए।
Answer:
कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने से हमारे मन में कुछ गरीब बच्चों की अत्यंत दयनीय स्थिति का चित्र उभरता है। आर्थिक स्थिति के खराब होने के कारण उनका बचपन खो गया है। अपनी तथा अपने परिवार की ज़िम्मेदारियों को उठाते ये दो हाथ निरंतर काम में लगे हुए हैं। इनकी आँखों में भी कुछ सपने हैं जिनको पूरा करने में ये असमर्थ हैं।
Question 2:
कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?’ कवि की दृष्टि में उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए?
Answer:
बच्चों की दुर्दशा के ज़िम्मेदार समाज के ही लोग हैं। समाज को जागरुक करने तथा इस समस्या के समाधान के लिए प्रयत्न करने पर विवश करने के लिए समाज के सामने इन प्रश्नों को पूछना उचित एवं न्यायोचित है।जब तक प्रश्न नहीं किया जाएगा तब तक लोगों का इस समस्या की ओर ध्यान नहीं जाएगा और कोई समाधान भी नहीं मिलेगा।
Question 3:
सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों हैं?
Answer:
सुविधा तथा मनोरंजन के उपकरणों से वंचित होने का एक मात्र कारण समाज में व्याप्त आर्थिक स्तर का वर्ग -भेद है। निम्नश्रेणी के बच्चों की आर्थिक स्थिति खराब है। अपने परिवार का पालन -पोषण करने के लिए वे कमाने का ज़रिया मात्र बनकर रह गए हैं। जहाँ जीविका के लिए आर्थिक तंगी हो वहाँ मनोरंजन के साधन तथा जीवन के अन्य सुख-सुविधाओं की कल्पना करना भी असंभव जान पड़ता है।
Question 4:
दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रहा/रही है, फिर भी किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं?
Answer:
ये बच्चे समाज में उपेक्षित हैं इसका एक कारण यह है कि आज का मनुष्य इतना आत्मकेन्द्रित हो चुका है कि उसके आस-पास की घटना की खबर भी उसे कभी-कभी ही लगती है। मनुष्य अपनी परेशानियों को सुलझाने में इतना व्यस्त है कि किसी और की परेशानी की तरफ़ देखने तक की फुर्सत नहीं है। दूसरा कारण यह कि लोगों को कम कीमत में अच्छे श्रमिक मिल जाते हैं। इसलिए इसके विरुद्ध कदम उठाकर वे स्वयं को इस सुख से वंचित नहीं करना चाहते हैं।
Question 5:
आपने अपने शहर में बच्चों को कब-कब और कहाँ-कहाँ काम करते हुए देखा है?
Answer:शहर में अक्सर बच्चे –
- शहरों में बने छोटे -छोटे कारखानों में चोरी- छुपे काम करते नज़र आते हैं ,
- दुकानों में काम करते नज़र आते हैं।
- होटल-ढ़ाबों में बरतन साफ़ करते नज़र आते हैं।
- दफ्तरों में चाय देते नज़र आते हैं।
- ऑटो-स्कूटर रिक्शा ,बस में भी काम करते हैं।
- घरों में भी कभी -कभी कम उम्र के बच्चे काम करते देखे गए हैं।
Question 6:
बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है?
Answer:
आज के बच्चे कल का भविष्य हैं। यदि समाज में बच्चों की प्रगति पर अंकुश लगा दिया जाए तो देश का भविष्य अंधकारपूर्ण होगा। हमारा देश एक प्रगतिशील देश है। बच्चे भी इस प्रगति का एक अभिन्न अंग हैं। सभी बच्चे एक समान हैं। उनको बचपन से वंचित करना समाज के लिए अमानवीय कर्म है। इसलिए यह हमारे समाज के लिए अभिशाप है।
Question 7:
काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर अपने-आप को रखकर देखिए। आपको जो महसूस होता है उसे लिखिए।
Answer:
काम पर जाते बच्चों के स्थान पर यदि हम स्वयं को रखेंगे तो हमें अपनी स्थिति अत्यंत कष्टदायक लगेगी। दूसरे बच्चों को खिलौने से खेलते तथा स्कूल जाते देख हमारे मन में तरह-तरह के प्रश्न उभर आएँगे। हम स्वयं को उनके समक्ष छोटा और हीन महसूस करेंगे।
Question 8:
आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए?
Answer:
हमारे विचार से बच्चों को काम पर नहीं भेजना चाहिए क्योंकि उनके छोटे से मस्तिष्क में इस घटना का दुखद प्रभाव पड़ सकता है, जो धीरे-धीरे बढ़कर विद्रोह का रुप धारण कर सकता है। इसी तरह के बच्चे आर्थिक अभाव तथा सामाजिक असमानता के कारण आगे चलकर आतंकवादी, चोरी जैसे गलत कामों को अंजाम दे सकते हैं। इससे समाज की हानि हो सकती है।
सबसे पहले तो समाज की यह कोशिश होनी चाहिए कि ऐसे बच्चों को अन्य सभी बच्चों की तरह पढ़ने-लिखने तथा समाज के साथ आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए या फिर उनकी मदद करने के लिए सरकार तथा समाज से सहायता की माँग करनी चाहिए।
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Monday, November 20, 2017
Sunday, November 19, 2017
Friday, November 17, 2017
Thursday, November 16, 2017
कार्नेलिया का गीत Arun yeh madhumay अरुण यह मधुमय देश Class 12 H...
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा॥
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा॥
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा॥
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा॥
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा॥
Tuesday, November 14, 2017
K5 .मैं क्यों लिखता हूँ?IMain kyun likhta hun With Q Ans Class 10
Meenakshi Doda asked _
meaning of "Bahari dabav Dabav nhi bhitri unmesh ka karan bn jata h" ???
AV answered : Jab mummy kahti hai padhayii karo..padhayi karo to wah bahari dawab hota hai..aap kitaab le kar baith jaate ho chahe dil hai ya nahi..just isliye ki mummy ne bila hai...lekin thodi der mei padhate padhte aapka dil padhayi mei lag jata hai aur aapke dil mei dil laga kar padhne ki ichchha hoti hai tab wah bahari dawab bhitri prerna ka kaam karne lagta hai...same thing ek writer par bhi lagoo ho sakti hai.
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Meenakshi Doda
yanii unmesh ka arth prerna hai?
AV answered : मीनाक्षी,उन्मेष का शाब्दिक अर्थ 'आँख खुलना 'या प्रकाश [उजाला] होता है लेकिन यहाँ प्रसंग के संदर्भ में भीतरी उन्मेष का अर्थ आन्तरिक समझ आना या भीतरी दृष्टि मिलना होगा ..'निमित्त का अर्थ होता है कारण... .'प्रेरणा' शब्द मैंने इस पंक्ति का भाव समझाने के लिए कहा है.बाहरी दबावों के कारण जब आपके मन में समझ आती है या बोध का उजाला फैलता है तो आप कुछ नया और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित होते हैं.
Sunday, November 12, 2017
Megh Aaye मेघ आए Iव्याख्या Q. Ans IAlpana Verma
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
मेघ आये
मेघ आये बड़े बन ठन के संवर के
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली
दरवाजे खिड़कियाँ खुलने लगीं गली गली
पाहुन ज्यो आये हों गाँव में शहर के
मेघ आये बड़े बन ठन के संवर के
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बांकी चितवन उठा, नदी ठिठकी घूंघट सरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के।
बूढ़े पीपल ने बढ़कर आगे जुहार की
बरस बाद सुधि लीन्ही’ –
बोली अकुलाई लता ओट हो किवाड़ की
हरसाया ताल लाये पानी परात भर के
मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के।
क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी
क्षमा करो गांठ खुल गई अब भरम की
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढ़रके
मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के।
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Friday, November 10, 2017
Thursday, November 9, 2017
Wednesday, November 8, 2017
‘र’ के विभिन्न रूप/ 'R' ke vibhinn Ruup
‘र’ के विभिन्न रूप
‘र’ एक व्यंजन वर्ण है।
उच्चारण की दृष्टि से यह लुंठित व्यंजन ध्वनि है।
हिंदी भाषा में ‘र’ के विभिन्न रूपों का प्रयोग होता है।
कहीं पर ‘र’ का प्रयोग स्वर रहित होता है तो कहीं पर स्वर सहित।
[जिसमें ‘अ’ की ध्वनि हो वह स्वर सहित
जिसमें ‘अ’ की ध्वनि न हो वह स्वर रहित]
‘र’ का सामान्य रूप
‘र’ रमन, दरवाजा, दीवार
‘र’ के सामान्य रूप का प्रयोग में ‘र’ शब्द के आरंभ में, मध्य में और अंत में आ सकता है।
‘र’ में सभी मात्राएँ लग सकती है सिवाय ‘ऋ’ और हलंत (्) के, जैसे -
र, रा, रि, री, रु, रू, रे, रै, रो, रौ
र+उ=रु (रुद्र, रुचि, पुरुष, गुरु, रुपया)
र+ऊ=रू (रूप, रूठना, अमरूद, डमरू, रूखा)
रेफ
यह रेफवाला ‘र’ कहलाता है। यह स्वर रहित ‘र’ है।
शब्दों में इसका प्रयोग होते समय इसके उच्चारण के बाद आने वाले वर्ण की अंतिम मात्रा के ऊपर लग जाता है, जैसे-
परव = पर्व
जुरमाना = जुर्माना
वरणन = वर्णन
कुछ ऐसे शब्द जिसमें ‘र’ के बाद का वर्ण भी स्वर रहित हो तो रेफ का प्रयोग उसके अगले वर्ण के सिर पर लगता है, जैसे-
व् + अ + र् + ण् + य् + अ = वर्ण्य
अ + र् + घ् + य् + अ = अर्घ्य
विशेष
- कुछ शब्द ऐसे भी हैं जिसमें दो रेफों का प्रयोग लगातार होता है, जैसे- धर्मार्थ, पूर्वार्ध, वर्षर्तु।
- रेफ का प्रयोग कभी भी किसी भी शब्द के पहले अक्षर में नहीं लग सकता।
- स्वर वर्ण ‘ई’ के सिर पर लगा चिह्न और रेफ का चिह्न एक समान होता है, प्रयोग के समय ध्यान दें।
- ‘र’ के ऊपर भी रेफ का प्रयोग हो सकता है, जैसे- खर्र-खर्र, अंतर्राष्ट्रीय इत्यादि।
नीचे-- पदेन
‘ यह ‘र’ का नीचे पदेन वाला रूप है।‘र’का यह रूप भी स्वर रहित है। यह ‘र’ का रूप अपने से पूर्व आए व्यंजन वर्ण में लगता है। पाई वाले व्यंजनों के बाद प्रयुक्त ‘र’ का यह रूप तिरछा होकर लगता है, जैसे- क्र, प्र, म्र इत्यादि।
जिन व्यंजनों में एक सीधी लकीर ऊपर से नीचे की ओर आती हैं उसे ही हम खड़ी पाई वाले व्यंजन कहते हैं, जैसे – क, ख, ग, च, म, प, य इत्यादि
पाई रहित व्यंजनों में नीचे पदेन का रूप ^ इस तरह का होता है, जैसे- राष्ट्र , ड्रम, पेट्रोल, ड्राइवर इत्यादि।
जिन व्यंजनों में एक सीधी लकीर ऊपर से नीचे की ओर बहुत थोड़ी मात्रा में आती हैं उसे ही हम पाई रहित वाले व्यंजन कहते हैं, जैसे – ट, ठ, द, ड, इत्यादि
‘द’ और ‘ह’ में जब नीचे पदेन का प्रयोग होता है तो ‘द् + र = द्र’ और ‘ह् + र = ह्र’ हो जाता है, जैसे- दरिद्र, रुद्र, ह्रद, ह्रास इत्यादि।
‘त’ और ‘श’ में जब नीचे पदेन का प्रयोग होता है तो ‘त् + र = त्र’ और ‘श् + र = श्र’ हो जाता है, जैसे – त्रिशूल, नेत्र, श्रमिक, अश्रु इत्यादि।
विशेष
- का प्रयोग केवल ‘ट’ और ‘ड’ व्यंजन वर्णों के साथ ही होता है। ‘ड्र’ से अधिकतर अंग्रेज़ी शब्दों का ही निर्माण होता है।
- कुछ शब्द ऐसे हैं जिनमें दो नीचे पदेन का प्रयोग एक ही शब्द में हो सकता है, जैसे- प्रक्रम, प्रकार्य इत्यादि
- कुछ शब्द ऐसे हैं जिनमें नीचे पदेन और रेफ का प्रयोग शब्द के एक ही वर्ण में हो सकता है, जैसे- आर्द्र, पुनर्प्रस्तुतिकरण इत्यादि ।
‘र’ और ‘ऋ’ में निहित अंतर
‘र’ और ‘ऋ’ में निहित अंतर को समझना आपके लिए फायदेमंद साबित होगा क्योंकि कभी-कभी कुछ छात्र ‘र’ और ‘ऋ’ से जुड़ी गलतियाँ कर बैठते हैं।
- ‘र’ व्यंजन वर्ण है और ‘ऋ’ स्वर वर्ण
- ‘र’ का रूप क्र,र्क, ट्र और ‘ऋ’ की मात्रा ‘ृ’ है, जैसे – ग्रह और गृह
- ‘ऋ’ का प्रयोग जिस किसी भी शब्द के साथ होता है, वह तत्सम (संस्कृत के शब्द) शब्द ही होता है।
- ‘ऋ’ का उच्चारण अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से होता है, कृष्णा शब्द का उच्चारण बिहार, दिल्ली में Krishna और ओडिशा, महाराष्ट्/Gujarat में Krushna होता है, अर्थात् भाषा चलन के अनुसार कहीं ‘रि’ और ‘रु’ हो जाता है।
Sunday, November 5, 2017
2018 Model Question paper discussion I Class 12 Hindi Core I हिंदी
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Model question paper Class 10 Hindi A 2018
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Model question paper Class 10 Hindi B 2018
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Model question paper Class 12 हिंदी ऐच्छिक 2018
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Model question paper Class 12 Hindi 2018
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Aalekh lआलेख कैसे लिखें ? आलेख और फीचर में अंतरl Class 11 और 12 Hindi
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- हिंदी आलेख एक गद्य लेखन विधा है।
- इसे वैचारिक गद्य रचना भी कह सकते हैं।
- ज्वलंत विषय, समस्याओं, अवसरों तथा चरित्र आदि पर आलेख लिखे जाते हैं।
- विषय वस्तु से संबंधित आंकड़े मिल सकें तो उन्हें आलेख में लिखें।
आलेख एक विषय पर तथ्यात्मक विश्लेषणात्मक अथवा विचारात्मक जानकारी होती है कल्पना का स्थान नहीं होता है।
आलेख में मुख्य रूप से दो अंग प्रयुक्त होते हैं -
- भूमिका
- विषय का प्रतिपादन
आलेख की भाषा -
- सरल ,रोचक और आकर्षक होनी चाहिए।
- वाक्य छोटे होने चाहिए ।
- एक परिच्छेद में एक भाव व्यक्त हो।
- आलेख का समाप्ति अंश निष्कर्षपरक होना चाहिए ।
आलेख और निबंध में अंतर :
आलेख निबंध का संक्षिप्त रूप होता है , आलेख और निबंध में यही अंतर होता है कि आलेख में निजी विचार होते हैं तथा निबंध में ऐसा नहीं होता ।
फीचर और आलेख में अंतर हेतु विडियो देखें .
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Wednesday, November 1, 2017
Monday, October 30, 2017
Friday, October 27, 2017
Thursday, October 26, 2017
Tuesday, October 24, 2017
15.Stri -Shiksha ke Virodhi kutarkon ka khandan-Lesson explained-स्त्री-...
Ans:पिंटू ,आपकी कक्षा[१०] के स्तर पर यही उत्तर दे सकती हूँ कि वेदांत को मानने वाले वेदान्तवादी होते हैं ,सरल शब्दों में ये उपनिषदों के ज्ञानी होते हैं[Highly intellectual ]। अद्वैत वेदान्तवादी ब्रह्म को प्रधान मानते हैं और जीव व् जगत को उससे अभिन्न मानते हैं जबकि द्वैत वेदान्तवादी मानते हैं कि जगत् और जीव ईश्वर से भिन्न हैं लेकिन ईश्वर द्वारा नियंत्रित हैं।
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रितिका बहुत अच्छा प्रश्न किया ,इसका उत्तर है: पुराने समय में विवाह के जो आठ प्रकार मान्य थे, उनमें से एक है गंधर्व विवाह ।परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के [अग्नि के केवल ३ फेरों में ] विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है।दुष्यंत ने शकुन्तला से 'गंधर्व विवाह' ही किया था ,वे उनसे वन में मिले थे :) आज के समय में जिसे हम 'लव मेरिज' कहते हैं ।ये विवाह भी लोकभावना के ही विरुद्ध होता था!
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13.Manviy karuna ki divy chamak -मानवीय करुणा की दिव्य चमक - Explanation...
Q.Mam, 'parimal' kya hota he ? Ye hindi ke ek model paper me aaya he ye ques.
Ans -
R.S.Chauhan, इलाहाबाद में 'परिमल' एक साहित्यिक संस्था थी ,फादर उस की गोष्ठी में सबसे बड़े माने जाते थे । वे उस संस्था में सबका पथ प्रदर्शन करते थे और सबके साथ पारिवारिक रिश्ता बनाकर रखते थे
L 1.Aatmparichay आत्मपरिचय व्याख्या सहित -Part 1- Class 12 Poem
Aatmparichay व्याख्या सहित -Part 1-
Class 12 Poem
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Monday, October 23, 2017
L 3 -Baat seedhi thi par-Poem बात सीधी थी पर-व्याख्या Class 12
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Baat seedhi thi par-Poem बात सीधी थी पर/ व्याख्या /आरोह भाग २ NCERT
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Sunday, October 22, 2017
Reedh ki haddi / रीढ़ की हड्डी/Ekaanki Summary-Hindi Q-Ans
Summary-Class 9 Hindi -kritika
प्रस्तुत एकांकी 'रीढ़ की हड्डी' श्री जगदीश चन्द्र माथुर द्वारा रचित है। यह एकांकी लड़की के विवाह की एक सामाजिक समस्या पर आधरित है।
पात्र परिचय. -
उमा : लड़की. रामस्वरूप : लड़की का पिता. प्रेमा : लड़की की माँ. शंकर : लड़का. गोपालप्रसाद : लड़के का बाप. रतन : नौकर.
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एकांकी का उद्देश्य
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हमारे समाज की विडंबनाओं को दिखाना इस एकांकी का मुख्य उद्देश्य है ।इसके अलावा औरतों की दशा को सुधारना व उनको उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कराना है। लड़कियों के विवाह में आने वाली समस्या को समाज के सामने लाना,स्त्री -शिक्षा के प्रति दोहरी मानसिकता रखने वालों को बेनकाब करना,
स्त्री को भी अपने विचार व्यक्त करने की आज़ादी देना। बेटियों के विवाह के समय माता-पिता की परेशानियों को बताना ।स्त्री को उसके व्यक्तित्व की रक्षा करने का संदेश भी यह एकांकी देता है
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रीढ़ की हड्डी के प्रश्न उत्तर
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1: रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद बात-बात पर “एक हमारा जमाना था ...” कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं। इस प्रकार की तुलना करना कहाँ तक तर्कसंगत है?
उत्तर: ऐसा अक्सर देखा जाता है कि एक विशेष उम्र के लोग अपने जमाने की खूबियों को याद करके नये जमाने को कोसते रहते हैं। उनकी बातें सुनना अच्छा लग सकता है लेकिन दो ज़माने की इस तरह से तुलना करना किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं है। क्योंकि समय बदलता रहता और समय के साथ परिस्थितियाँ भी बदलती हैं। हर जमाने के अपने मूल्य और जीवन जीने के अपने तरीके होते हैं । जिस तरह से तकनिकी बदलाव हुए हैं हम देखें तो आधुनिक जमाना बीते हुए जमाने की तुलना में प्रगतिशील ही है।
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2: रामस्वरूप का अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना और विवाह के लिए छिपाना, यह विरोधाभास उनकी किस विवशता को उजागर करता है?
उत्तर: रामस्वरूप की बेटी की उम्र विवाह लायक हो चुकी है। भारतीय परंपरा के हिसाब से उन्हें जल्दी से कोई योग्य वर देखकर अपनी बेटी का विवाह तय करना है। नाटक जिस समय और परिस्थितों को बता रहा है उसके अनुसार ,तत्कालीन समय में लड़कियों का अधिक पढ़ा- लिखा होना अच्छी बात नहीं मानी जाती थी।इस वजह से रामस्वरूप को अपनी बेटी के लिए योग्य वर तलाशने में कठिनाई हो रही थी ।वह विवश हो जाता है कि अपनी बेटी की उच्च शिक्षा को विवाह के लिए छिपा दे ।
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3: अपनी बेटी का रिश्ता तय करने के लिए रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं, वह उचित क्यों नहीं है?
उत्तर: हमारे समाज में विवाह हेतु ,जब बड़े बुजुर्गों द्वारा रिश्ते परंपरागत तरीके से तय किये जाते हैं तो वर पक्ष को कुछ अधिक ही अधिकार प्राप्त होते हैं। लड़के वाले हर तरीके से ठोक बजाकर लड़की को जाँचते परखते हैं। यह बात किसी भी स्वाभिमानी लड़की को नापसंद हो सकती है। उस पर , यह आशा की जाती है कि लड़के से कोई भी सवाल न पूछा जाये।जबकि हर व्यक्ति को इस बात का अधिकार होना चाहिए कि उसकी शादी ठीक होते वक्त उसकी बात भी सुनी जाये।अब येही बात महिलाओं के सम्मान और अधिकारों का हनन करती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि रामस्वरूप उमा से जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा कर रहे हैं, वह उचित नहीं है।
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4: गोपाल प्रसाद विवाह को ‘बिजनेस’ मानते हैं और रामस्वरूप अपनी बेटी की उच्च शिक्षा छिपाते हैं। क्या आप मानते हैं कि दोनों ही समान रूप से अपराधी हैं? अपने विचार लिखें।
उत्तर: गोपाल प्रसाद के लिए रिश्तों और व्यक्तियों का कोई महत्व नहीं है।इसलिए हम उनको अपराधी कहेंगे, रामस्वरूप भी एक अपराधी हैं क्योंकि वे समाज के दबाव में आकर एक पाप कर रहे हैं। गोपाल प्रसाद को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि उनके बेटे का वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा।वहीँ रामस्वरूप किसी तरह से अपनी बेटी की शादी कर देना चाहते हैं।
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5: “... आपके लाड़ले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नहीं ...” उमा इस कथन के माध्यम से शंकर की किन कमियों की ओर संकेत करना चाहती है?
उत्तर: शंकर पिटा के सामने किसी आज्ञाकारी बालक की तरह चुपचाप बैठा है। उसमें स्वाभिमान की सख्त कमी है।उसके लिए उसकी अपनी इच्छा का कोई मतलब नहीं है। यह बात उसके यह मान लेने से पता चलती है कि वह इस बात से आश्वस्त नहीं है कि उसकी पढ़ाई कब पूरी होगी। उसे अपनी होने वाली पत्नी के व्यक्तित्व को जानने में भी कोई रुचि नहीं है।इस स्वाभिमान को ही लड़के की रीढ़ की हड्डी कहा गया है .
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6: शंकर जैसे लड़के या उमा जैसी लड़की – समाज को कैसे व्यक्तित्व की जरूरत है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:शंकर अपने पिता की कमाई पर ऐश करना जानता है,उसके जैसे लड़के समाज पर बोझ सिद्ध होते हैं। जबकि उमा में आत्मसम्मान कूट-कूट कर भरा है। वह बाहरी दिखावे का विरोध करती है। आज इस समाज को उमा जैसी लड़की की बहुत जरूरत है।
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7: ‘रीढ़ की हड्डी’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस नाटक में दो मुख्य पात्र हैं; उमा और शंकर। दोनों का व्यक्तित्व एक- दूसरे के विपरीत हैं। एक ओर उमा स्वाभिमानी है तो दूसरी ओर शंकर पास स्वाभिमान की कमी है। यहाँ पर ‘रीढ़ की हड्डी’ उसी स्वाभिमान का सूचक है। इसलिए यह शीर्षक इस नाटक के लिए सटीक है।
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8: कथावस्तु के आधार पर आप किसे एकांकी का मुख्य पात्र मानते हैं और क्यों?
उत्तर: इस नाटक के ज्यादातर संवाद रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद के हैं लेकिन पूरा नाटक उमा पर केन्द्रित है।नाटक में शुरु की सारी तैयारी उमा की शादी तय करने के लिए होती दिखाई गयी है। नाटक का अंत उमा के मुखर विरोध से होता है। इसलिए हम कह सकते हैं किउमा ही इस नाटक की मुख्य पात्र है।
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9: एकांकी के आधार पर रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए।
उत्तर: रामस्वरूप आधुनिक खयाल के व्यक्ति हैं लेकिन वे जमाने से समझौता करने को भी तैयार रहते हैं। उनके द्वारा उमा की पढ़ाई को प्रोत्साहित करना उनके आधुनिक खयालों को दर्शाता है। लेकिन उमा की शादी के लिए कुछ समझौते करना समाज के सामने उनकी मजबूरी को दिखाता है। गोपाल प्रसाद बड़े धूर्त लगते हैं; क्योंकि वे शादी को भी व्यापार समझते हैं। वे उस पुरुष प्रधान समाज के प्रतिनिधि हैं जिसमें स्त्रियों के लिए कोई स्थान नहीं है।
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10: इस एकांकी का क्या उद्देश्य है? लिखिए।
उत्तर: इस एकांकी का उद्देश्य है -
१.समाज की विडंबनाओं को दिखाना। एक ओर समाज आगे बढ़ने की इच्छा रखता है तो दूसरी ओर समाज के रीती-रिवाजों की बेड़ियाँ उसे आगे नहीं बढ़ने दे रही हैं। लेकिन हम जानते हैं , हर काल में हर समाज में कुछ ऐसे बहादुर और स्वाभिमानी लोग आगे आते हैं जो पुरानी बेड़ियों को तोड़ने की कोशिश करते हैं और सफल भी होते हैं ।
२.औरतों की दशा को सुधारना व उनको उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कराना।
३. लड़कियों के विवाह में आने वाली समस्या को समाज के सामने लाना।
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11: समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने हेतु आप कौन-कौन से प्रयास कर सकते हैं?
उत्तर: समाज में महिलाओं को उचित गरिमा दिलाने हेतु कई प्रयास किये जा सकते हैं,जैसे - महिलाओं को शिक्षा के लिए प्रोत्साहन देना।कहते हैं यदि आप एक महिला को शिक्षित करते हैं तोआप उसके पूरे परिवार और समाज को शिक्षित करते हैं। इसके अलावा आज महिलाओं के प्रति पुरुषों का दृष्टिकोण बदलने की भी जरूरत है,जिसके लिए पुरुषों को शिक्षित करना और उन्हें समझाना होगा ।
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Friday, October 20, 2017
K4-Ehi thayyan jhulani herani ho rama-एही ठैयाँ झुलनी-Class 10 A
What is moral of story?
Sana Sana Hath Jodi -साना साना हाथ जोड़ी -Class 10 Kritika 3
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Mata ka Anchal -माता का अँचल-Class 10 Kritika NCERT
चन्द्र गहना से लौटती बेर Chandr Gahana se lautTi ber Explanation -Class 9 A
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देख आया चंद्र गहना
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।
एक बीते के बराबर
ये हरा ठिगना चना
बांधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का
सजकर खड़ा है।
पास ही मिलकर उगी है
बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली
नीले फूले फूल को सर पर चढ़ा कर
कह रही, जो छुए यह
दूँ हृदय का दान उसको।
और सरसों की न पूछो
हो गयी सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
देखता हूँ मैं, स्वयंवर हो रहा है
प्रकृति का अनुराग अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।
और पैरों के तले है एक पोखर
उठ रहीं इसमें लहरियाँ।
नील तल में जो उगी हैं घास भूरी
ले रही वो भी लहरियाँ।
एक चांदी का बड़ा सा गोल खम्भा
आँख को है चकमकाता।
है कई पत्थर किनारे
पी रहे चुप चाप पानी
प्यास जाने कब बुझेगी।
चुप खड़ा बगुला डुबाये टांग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान निद्रा त्यागता है,
चट दबा कर चोंच में
नीचे गले को डालता है।
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबाकर
दूर उड़ती है गगन में।
औ यहीं से
भूमि ऊंची है जहाँ से
रेल की पटरी गयी है
ट्रेन का टाइम नहीं है
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ
जाना नहीं है।
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊंची ऊंची पहाड़ियां
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर उधर रीवां के पेड़
कांटेदार कुरूप खड़े हैं।
सुन पड़ता है मीठा मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें।
सुन पड़ता है वनस्थली का हृदय चीरता
उठता गिरता सारस का स्वर
टिरटों टिरटों।
मन होता है
उड़ जाऊं मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची प्रेम कहानी सुन लूं
चुप्पे चुप्पे।
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L-13/Gram Shree/ग्राम श्री /Explanation /Class 9 A
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फैली खेतों में दूर तलक,
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिससे रवि की किरणें
चांदी की सी उजली जाली।
तिनके के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भूतल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक।
रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूं में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिनियाँ हैं शोभाशाली।
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कली, तीसी नीली।
रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हंस रहीं सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकी
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी।
फिरती है रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते ही फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली
झर रहे ढ़ाक, पीपल के दल
हो उठी कोकिला मतवाली।
महके कटहल, मुकुलित जामुन
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नीम्बू, दारिम
आलू, गोभी, बैगन, मूली।
पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं
पक गये सुनहरे मधुर बेर
अंवली से तरु की डाल जड़ी
लहलह पालक, महमह धनिया
लौकी औ सेम फलीं फैलीं।
मखमली टमाटर हुए लाल
मिरचों की बड़ी हरी थैली।
बालू के सांपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपट छाई
तट पर तरबूजों की खेती
अंगुली की कंघी से बगुले
कलगी संवारते हैं कोई
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती है सोई।
हंसमुख हरियाली हिम आतप
सुख से अलसाए से सोये,
भीगी अंधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोये।
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम
जिस पर नीलम नभ आच्छादन
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन।
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L-11-Raskhan ke savaiye -रसखान के सवैये Explanation -Class 9 / Q Ans
रसखान
Explanation of these सवैये are in the video.
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।
- ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है?
- कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं?
- आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है?
- कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन सा अलंकार है?
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं॥
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं॥
- एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार हैं?
- भाव स्पष्ट कीजिए:
- कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥
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काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए:
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।
उत्तर: 'मुरली मुरलीधर 'में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
' ब्रजभाषा ' का प्रयोग है।
इस एक पंक्ति से कवि ने बहुत बड़ी बात व्यक्त की है। गोपियाँ कृष्ण का रूप धरने को तैयार हैं लेकिन उनकी मुरली को अपने होठों से लगाने को तैयार नहीं हैं।क्योंकि वह मुरली सदैव कृष्ण के अधरों से लगी रहती है और गोपियों को वह अपनी सौतन की तरह लगती है ।
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टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै॥
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- सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर: सखी ने गोपी से कृष्ण का रूप धारण करने का आग्रह किया था। वे चाहती हैं कि गोपी मोर मुकुट पहनकर, गले में माला डालकर, पीले वस्त्र धारण कर और हाथ में लाठी लेकर पूरे दिन गायों और ग्वालों के साथ घूमने को तैयार हो जाये। इससे सखियों को हर समय कृष्ण के रूप के दर्शन होते रहेंगे।
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- गोपियाँ अपने आप को क्यों विवश पाती हैं?
उत्तर: कृष्ण की मुरली की धुन इतनी मोहक होती है कि उसे सुनने के बाद कोई भी अपना आपा खो देता है। गोपियाँ वह हर काम कर सकती हैं जिससे उनपर कृष्ण के पड़ने वाले प्रभाव को छुपा सकें। लेकिन उनका सारा प्रयास कृष्ण की मुरली की तान पर व्यर्थ हो जाता है। उसके बाद उनके तन मन की खुशी को छुपाना असंभव हो जाता है। इसलिए गोपियाँ अपने आप को विवश पाती हैं।
भाव स्पष्ट कीजिए:
- माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर: गोपियों को डर है और ब्रजवासी भी कह रहे हैं कि जब कृष्ण की मुरली बजेगी तो उसकी टेर सुनकर गोपियों के मुख की मुसकान सम्हाले नहीं सम्हलेगी। उस मुसकान से पता चल जाएगा कि वे कृष्ण के प्रेम में कितनी डूबी हुई हैं।
L-10-Vaakh-ललद्यद के वाख Class 9 A / Easy Explanation With Ques/Ans (2020)
L-10-Vaakh-
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- ‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?
- उत्तर: जीवन की नाव को खींचने के लिए किये जा रहे प्रयासों को रस्सी की संज्ञा दी गई है। यह रस्सी कच्चे धागे की बनी है अर्थात बहुत ही कमजोर है और कभी भी टूट सकती है।
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- कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?
उत्तर: कवयित्री के प्रयास ऐसे हैं जैसे कोई मिट्टी के कच्चे सकोरे में पानी भरने का प्रयास कर रहा हो। ऐसे में पानी जगह से जगह से रिसने लगता है और सकोरा पूरा भर नहीं पाता है। कवयित्री को लगता है कि इसी तरह भक्त के प्रयास निरर्थक साबित हो रहे हैं। - ==
कवयित्री को ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: यहाँ पर भगवान से मिलने की इच्छा को 'घर जाने की चाह' बताया गया है। - =================
बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर: बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवयित्री ने इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने का सुझाव दिया है। इसका मतलब है कि यदि आप सच्चे अर्थों में भगवान को पाना चाहते हैं तो आपको लोभ और लालच से मोहभंग करना होगा। - =============
‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर: कवयित्री का मानना है कि जो मनुष्य मंदिर-मस्जिद या विभिन्न देवी देवताओं में उलझा रहता है उसे ज्ञान नहीं मिल पाता है। जिसने आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया वही सच्चा ज्ञानी है।- ===============================
ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?
उत्तर: आई सीधी राह से, गई न सीधी राह्।
सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह। - ==============================
- रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार्।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे॥
खा खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की।
आई सीधी राह से, गई न सीधी राह्।
सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूँ, क्या उतराई।
थल थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिंदू मुसलमां।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान॥ - ==========================
L-9-Kabeer -Saakhiyan-साखियाँ Explanation -Class 9 A क्षितिज /प्रश्न उत्तर
= ============== मानसरोवर सुभग जल हंसा केलि कराहि
मुकताफल मुकता चुगै अब उड़ी अनत न जाही।
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साखी दोहा छंद
सहज और सरल सधुक्कड़ी भाषा है
केलि कराही में क वर्ण और मुकताफल मुकता' में म वर्ण की आवृति के कारण अनुप्रास अलंकार है /- पूरे दोहे में 'रूपक' अलंकार है।
प्रेमी ढ़ूँढ़त मैं फिरौ प्रेमी मिले न कोई
प्रेमी कौं प्रेमी मिले सब विष अमृत होई।
साखी दोहा छंद
सहज और सरल सधुक्कड़ी भाषा है
दूसरी पंक्ति में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है
(यह अलंकार क्या है ?अतिशयोक्ति अलंकार का एक भेद जिसमें वर्णन रूपक की तरह होता है परंतु केवल उपमान का उल्लेख करके उपमेय का स्वरूप उपस्थित किया जाता है।)
हस्ती चढ़िये ज्ञान कौं सहज दुलीचा डारी
स्वान रूप संसार है भूंकन दे झख मारि।
रूपक अलंकार
पखापखी के कारने सब जग रहा भुलान
निरपख होई के हरी भजै, सोई संत सुजान।
सोई संत सुजान' में अनुप्रास अलंकार
हिंदू मूया राम कही मुसलमान खुदाई
कहे कबीर सो जीवता जे दुहूँ के निकटि जाई।
काबा फिरि कासी भया रामहि भया रहीम
मोट चून मैदा भया रहा कबीरा जीम।
उँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होई
सुबरन कलस सुरा भरा, साधु निंदा सोई।
सबद
मोकों कहाँ ढ़ूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतहि मिलियो, पल भर की तालास में।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वांसो की स्वांस में।
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२. संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे।( सीबीएसई पाठ्यक्रम में नहीं है २०२१ )
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी॥
हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा।
जोग जुगति काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी॥
आँधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ॥
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प्रश्न -उत्तर
- ‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है?
- उत्तर: यहाँ पर ‘मानसरोवर’ से आशय यह संसार है जिसके मोह में आदमी बंधा रहता है और सांसारिक सुख को न छोड़ने के लोभ में वहाँ से निकलना ही नहीं चाहता है।
- कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
- उत्तर: भक्त को सच्चा प्रेमी कहा गया है। एक सच्चे प्रेमी की तरह एक भक्त भी बिना कुछ पाने की लालसा लिये अपने आराध्य की आराधना करता है। सच्चे प्रेमी की तरह अपने प्रेम में पूरी तरह समर्पित रहता है।
- तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार से ज्ञान को महत्व दिया है?
- उत्तर: कवि का मानना है कि ज्ञान मिलना बहुत ही कठिन होता है क्योंकि अक्सर लोग सही ज्ञान को पहचान ही नहीं पाते हैं। यहाँज्ञान को किसी दूर की कौड़ी की तरह बताया गया है।
- इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?
- उत्तर: सच्चा संत वही होता है जो पक्षपात से दूर होता है। वह निष्पक्ष होकर अपने काम में तल्लीन होता है।
- अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
- उत्तर: इन दोहों में कवि ने धर्म की संकीर्ण परिभाषा की ओर संकेत किया है। कवि का मानना है कि भले ही धर्म अलग-अलग हों लेकिन सबका लक्ष्य ईश्वर से मिलन' होता है ।
- किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
- उत्तर: किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से नहीं बल्कि उसके कर्मों से होती है। इतिहास में ऐसे कई उदाहरणहैं जिनमें किसी गरीब परिवार में जन्मे व्यक्ति ने अपने अच्छे कर्मों से अपना नाम किया है। दूसरी ओर ऐसे भी उदाहरण हैं जहाँ किसी राजपुत्र ने अपने गलत कर्मों की वजह से अपने राजवंश का नाश किया है।
- मनुष्य ईश्वर को कहाँ कहाँ ढ़ूँढ़ता फिरता है?
- उत्तर: मनुष्य ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, मजार, चर्च, गुरुद्वारा, मजार और तीर्थस्थानों में ढ़ूँढ़ता फिरता है।
- कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
- उत्तर: कबीर ने ईश्वर के प्राप्ति के कई प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है। कवि ने बताया है कि मंदिर, मस्जिद या तीर्थस्थलों पर जाने से कुछ नहीं मिलता। कवि ने यह भी बताया है कि बिना मतलब के आडंबरों या पूजा पाठ से कुछ भी हासिल नहीं होता।
- कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
- उत्तर: ज्ञान का आगमन उस क्षणिक अवसर की तरह होता है जो तेजी से आता है और उतनी ही तेजी से हमसे बहुत दूर चला जाता है। सामान्य हवा तो हमेशा हमारे चारों ओर व्याप्त रहती है। लेकिन आँधी तेजी से आती है और उतनी ही तेजी से चली जाती है। इसलिए कबीत ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से की है।
- ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- उत्तर: जब आँधी आती है,वह अपने साथ बहुत चीजों को उड़ा ले जाती है और कई चीजों को तहस नहस कर देती है। इसी तरह से जब ज्ञान की आँधी आती है तो वह हमारे अंदर कई बड़े परिवर्तन कर देती है।
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