Sunday, November 12, 2017

Megh Aaye मेघ आए Iव्याख्या Q. Ans IAlpana Verma



सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
मेघ आये
मेघ आये बड़े बन ठन के संवर के
आगे-आगे नाचती गाती बयार चली
दरवाजे खिड़कियाँ खुलने लगीं गली गली
पाहुन ज्यो आये हों गाँव में शहर के
मेघ आये बड़े बन ठन के संवर के

पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बांकी चितवन उठा, नदी ठिठकी घूंघट सरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के।

बूढ़े पीपल ने बढ़कर आगे जुहार की
बरस बाद सुधि लीन्ही’ –
बोली अकुलाई लता ओट हो किवाड़ की
हरसाया ताल लाये पानी परात भर के
मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के।

क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी
क्षमा करो गांठ खुल गई अब भरम की
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढ़रके
मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के।
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