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किसी भी शीर्षक की सार्थकता 'उसका विषय वस्तु से सम्बंधित होना' होती है। इस पाठ में महान और मशहूर शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ के जीवन के बारे में बताया गया है जिससे पता चलता है कि शहनाई वादन के प्रति उनका समर्पण अतुलनीय है ।वे दुआ में भी सच्चे सुर ही माँगा करते थे ,संगीत उनकी इबादत थी । इस दुनिया रूपी नौबतखाने के शोर में भी उन्होंने अपनी संगीत साधना रूपी इबादत{पूजा} को अंत तक नहीं छोड़ा ,इसलिए इस पाठ का यह शीर्षक सार्थक है ।