Friday, July 30, 2021

Term wise syllabus Class 11 & 12 CBSE students (2021-2022) updated JULY 2021

 


सी बी एस ई बोर्ड  कक्षा  11 & 12 के छात्रों के लिए पहले और दूसरे टर्म के पाठ्यक्रम के विषय में जानकारी यहाँ है -

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Term wise syllabus Class 9 & 10 CBSE students (2021-2022) updated JULY 2021

 


Term wise syllabus for CBSE students (2021-2022) updated JULY 2021

सी बी एस ई के कक्षा  9 & 10 छात्रों के लिए पहले और दूसरे टर्म के पाठ्यक्रम के विषय में जानकारी यहाँ है -

Class 9 & 10 pdf  Subject Mathematics

Download PDF Subject Science 

Download PDF term wise syllabus Social Science 

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Thursday, July 15, 2021

अनुस्वार ,अनुनासिक ,आगत स्वर

 अनुस्वार (ं) और अनुनासिक ध्वनियाँ  अलग-अलग हैं।

 

  •  अनुस्वार के उच्चारण में नाक से अधिक और मुँह से कम साँस निकलती है 
  •  अनुनासिक के उच्चारण में नाक से कम और मुँह से अधिक साँस निकलती है। 
  • अनुनासिक स्वर की विशेषता है, इसलिए इसका प्रयोग स्वरों पर 'चंद्रबिंदु' की तरह होता है। 
  • वहीं अनुस्वार व्यंजन ध्वनि है और इसका प्रयोग अनुस्वार प्रकट करने के लिए होता है। 
  • जहाँ तत्सम शब्दों के  साथ अनुस्वार का प्रयोग होता है वहीं उनके तद्भव रूपों में चंद्रबिंदु का। जैसे- दंत और दाँत

(नोट- मानक हिंदी में पंचमाक्षरों (ङ, ञ, ण, न, म) का प्रयोग अनुस्वार की तरह किया जाता हैं; 

जैसे- पञ्च- पंच, अण्डज- अंडज, पन्त- पंत, पम्प- पंप आदि।)

 

आगत स्वर 

‘ऑ’ (o) स्वर हिंदी का अपना नहीं है, यह अंग्रेजी की  स्वर ध्वनि है। 

अंग्रेजी और यूरोपीय भाषाओँ के संपर्क में आने के कारण उनके बहुत सारे शब्द हिंदी में आगत हुए।

 चूँकि इन आगत शब्दों की ‘o’ ध्वनि के लिए हिंदी में कोई ध्वनि नहीं थी इसलिए इस ध्वनि को आगत करना पढ़ा। इसका प्रयोग अंग्रेजी के आगत शब्दों में ही होता है। जैसे-  डॉक्टर ,कॉपी, कॉलेज, ऑफ़िसआदि। 

 अनुस्वार और विसर्ग ध्वनि में अंतर

‘अं’ को अनुस्वार और ‘अ:’ को विसर्ग कहा जाता है, ये हमेशा स्वर के बाद आते हैं। 

‘अं’ और ‘अ:’ व्यंजन के साथ क्रमश: अनुस्वार ( ं ) और विसर्ग ( : ) के रूप में जुड़ते हैं। 

इनकी गिनती  ही स्वरों में होती है  परंतु उच्चारण की दृष्टि से ये व्यंजन हैं। 

आचार्य किशोरीदास वाजपेयी इन्हें स्वर और व्यंजन दोनों नहीं मानते हैं। उनके अनुसार , “ये स्वर नहीं हैं और व्यंजनों की तरह ये स्वरों के पूर्व नहीं, पश्चात् आते हैं, इसलिए व्यंजन नहीं हैं। इसलिए इन दोनों ध्वनियों को ‘अयोगवाह’ कहते हैं।”

अयोगवाह उनके लिए प्रयुक्त होता है जो योग न होने पर भी साथ रहें।

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