Thursday, April 27, 2017

आलोपी पाठ के प्रश्न उत्तर और व्याख्या

  Aalopi Q Answers

आलोपी पाठ के प्रश्न उत्तर

1.
किसी भिखारी के प्रति सामान्य प्रतिक्रिया होती है –
(क) क्रोध
(ख) उपेक्षा
(ग) करुणा
(घ) श्रद्धा
उत्तर:
(क) क्रोध

प्रश्न 2.
‘अंधी आँखों को आकाश की ओर उठाकर अपने पुरुषार्थ की दोहाई देने वाले अलोपी को ऐसे परंपरा के न्यायालय में प्राणदण्ड के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिल सकता था।’ लेखिका ऐसा क्यों मानती हैं?
(क) क्योंकि अलोपी के नेत्र नहीं थे और पुरुष होकर भी वह कुछ नहीं कर सकता था।
(ख) वह नेत्र न होने के बावजूद कार्य करना चाहता था।
(ग) उसने अंधी आँखों को आकाश की ओर उठाकर अपनी असमर्थता प्रकट की थी।
(घ) वह जीवन से निराश होकर उनके पास आया था।
उत्तर:
(ख) वह नेत्र न होने के बावजूद कार्य करना चाहता था।



प्रश्न 1.
अलोपी के चक्षु के अभाव की पूर्ति किसने की?
उत्तर:
अलोपी के चक्षु के अभाव की पूर्ति उसकी रसना ने की।

प्रश्न 2.
‘अलोपी देवी कदाचित उस सूम के समान थी जो अपने दानी होने की ख्याति के लिए दान करता है। इस पंक्तियों द्वारा दानदाता की किस मनोभावना पर व्यंग्य किया गया है?
उत्तर:
इन पंक्तियों द्वारा दानदाता की यश पाने की लिप्सा पर व्यंग्य किया गया है।

प्रश्न 3.
‘तुम कौन-सा काम कर सकते हो?’ पूछने पर अलोपी ने अपने लिए किस कार्य का प्रस्ताव रखा?
उत्तर:
अलोपी ने कहा कि महादेवी तथा उनके छात्रावास की बालिकाओं के लिए ताजा और सस्ती सब्जियाँ लाया करेगा।


प्रश्न 1.
भिखारी को स्वर सुनकर लेखिका की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर:
महादेवी ने द्वार पर किसी का स्वर सुना। पहले सोचा कि वह न उठें। आने वाले को असमय आने का दण्ड मिलना चाहिए। फिर उसने सोचा कि कोई भिखारी आया होगा। उसको लौटा देना उनकी अशिष्टता होगी। अतः भिखारी का आवश्यकता से अधिक अपनी शिष्टता की रक्षा के लिए वह काम छेड़कर उठी और द्वार पर जाकर उसे पुकारा।

प्रश्न 2.
‘हम सहज भाव से अपनी उलझी कहानी नहीं कह सकते।’ दीन-हीन वर्ग और सम्पन्न वर्ग की जीवन कथा का अन्तर स्पष्ट करते हुए लेखिका के क्या विचार हैं?
उत्तर:
‘दीनहीन वर्ग का जीवन खुली किताब है। उसमें दुराव-छिपाव तथा दोहरापन नहीं है। सम्पन्न वर्ग के जीवन में बाहर कुछ तो भीतर कुछ और है। इसकी शालीनता केवल प्रदर्शन के लिए है। दीनहीन वर्ग इसी कारण अपनी जीवन कथा बिना व्यवधान के कह सकता है किन्तु सम्पन्न वर्ग के लिए ऐसा करना आसान काम नहीं है।’

प्रश्न 3.
‘आज के पुरुष का पुरुषार्थ विलाप है।’ लेखिका ने किस आशय से ऐसा कहा है?
उत्तर:
लेखिका ने अनुभव किया है कि आज पुरुष कर्तव्यनिष्ठ तथा परिश्रमी नहीं है। वे श्रमपूर्ण कठोर जीवन न बिताकर अपनी निराशा और अभावों की शिकायतें करते रहते हैं। वे हर समय अपने दुर्भाग्य का रोना रोते रहते हैं। आधुनिक पुरुष की ऐसी अवस्था देखकर महादेवी ने रोने-पीटने को उनका पुरुषार्थ बताया है।

प्रश्न 4.
‘गिरा अनयन नयन बिनु बानी’ लेखिका इन शब्दों को किस सन्दर्भ में ठीक मानती है?
उत्तर:
महादेवी ने नेत्रहीन अलोपी को छात्रावास में ताजा सब्जी लाने का काम सौंपा था। अलोपी नेत्रहीन था किन्तु उसको वाणी का वैभव प्राप्त था। वह बालक रग्घू के मार्गदर्शन में नित्य छात्रावास आता था। ये दोनों छात्रावास में विनोद के केन्द्र बन गए थे। धीरेधीरे अलोपी सबका प्रिय बन गया।

प्रश्न 5.
लेखिका को यह विश्वास क्यों है कि अलोपी बिना भटके अपने गन्तव्य तक पहुँच जाएगा?
उत्तर:
अलोपी वैशाख की एक दोपहर को अचानक महादेवी के पास आया था। उसने अपने ताऊ से महादेवी छात्रावास की चर्चा सुनी थी और काम की तलाश में बिना किसी के मार्गदर्शन के यहाँ आने में सफल हुआ था। अतः महादेवी को विश्वास है कि वह बिना भटके अपने गन्तव्य तक पहुँच गया।
 

 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नेत्रहीन अलोपी न प्रकृति के रौद्र रूप से भयभीत होता था और न उसके सौन्दर्य से बहकता था। प्रत्येक स्थिति में दृढ़ता वे धैर्य से काम में संलग्न अलोपी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
अलोपी नेत्रहीन है। उसको प्रकृति का नै भयानक रूप दिखाई देता है। न उसका सुन्दर आकर्षक रूप ही वह देख पाता है। वर्षा ऋतु में, बर्फ के तूफान जैसी बरसात, कड़कड़ाती बिजली तथा गरजते बादलों में भी उँगलियों से फिसलती लाठी को कसकर पकड़े हुए तथा सिर पर सब्जियों से भरी डलिया उठाए हुए वह महादेवी के घर पर आप पहुँचता था। शीतकाल में जब तेज सर्दी होती, ठिठुराने वाली ठंडी हवा बहती तो पतला कुर्ता पहने हुए रग्घू के दाँत बजने लगते थे और वह मिरगी के रोगी की तरह हिलता-काँपता हुआ चलता था किन्तु अलोपी अपने दाँतों को कसकर बंद कर लेता था। सर्दी के कारण उसके नाखून नीले हो जाते थे तथा पैरों की उँगलियाँ ऐंठ जाती थीं, वह दृढ़ता के साथ अपने पैरों को भूमि पर रखता था। तेज गर्मी पीस-पीस कर उसकी धूल को उड़ा देना चाहती है।

लू ऐसी चलती थी तो रग्घू उस पर अपने पैर जल्दी-जल्दी रखता और उठाता था। परन्तु अलोपी अपनी आँखें मूंदकर अपना प्रत्येक कदम तपती धरती पर इस प्रकार रखता था जैसे उसके हृदय का ताप नापे रहा हो। वसंत हो या होली, दशहरा हो या दीवाली अलोपी अपना काम बिना किसी व्यवधान से परिश्रमपूर्वक करता था। दृढ़ता, कर्तव्यपरायणता तथा श्रमशीलता अलोपी के चरित्रगत गुण थे। वह किसी भी अवस्था में अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होता था। एक बार हिन्दू-मुस्लिम दंगों के समय सुनसान मार्ग में अपनी जान जोखिम में डालकर अलोपी ने महादेवी के घर सब्जियाँ पहुँचाई थीं और अपने इस दुस्साहस के लिए उनकी डाँट भी खाई थी।

प्रश्न 2.
अलोपी देवी की दिव्यता प्रमाणित करने के लिए अलोपी ने क्या किया?
उत्तर:
एक बार महादेवी जी ज्वर से पीड़ित र्थी। वह अपने कमरे में ही आराम कर रही थीं। सामान्य अवस्था में वह बाहर बरामदे में बैठकर काम करती थीं और अलोपी से दो-एक बात भी करती थीं। अपने नित्य के नियम के अनुसार अलोपी बरामदे की दिशा में नमस्कार करता था। कई दिनों तक महादेवी से कोई बात न होने पर उसने सोचा कि वह नाराज हो गई हैं। जब उसको पता चला कि महादेवी बीमार हैं तो वह चिन्तित हो उठा।

एक दिन महादेवी को संदेश मिला कि अलोपी उनको देखना चाहता है। अलोपी आया और टटोलकर दरवाजे के पास ही बैठ गया। उसने बाँहों से अपनी गीली आँखें पोंछी और अपनी पिछोरी की गाँठ खोलकर एक पुड़िया निकाली। उसने अत्यन्त संकोच के साथ बताया कि वह स्वयं जाकर अलोपी देवी की विभूति लाया है। इसकी एक चुटकी जीभ पर रखने तथा एक चुटकी माथे पर लगाने से सभी रोग-दोष दूर हो जाते हैं। अलोपी विभूति देकर महादेवी को बताना चाहता था कि अलोपी देवी में दिव्य शक्ति है और उनकी विभूति सभी रोगों को दूर कर सकती है। किन्तु महादेवी की दृष्टि में अलोपी का कर्तव्य के प्रति वज्र के समान दृढ़ता तथा उसका मोम के समान कोमल हृदय ही अलोपी देवी की दिव्यता को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त प्रश्न 3.
‘अंधे का दुःख गूंगा होकर आया था। अतः सांत्वना देने वाले उसके हृदय तक पहुँचने का मार्ग ही न पा सकते थे।’ पंक्तियों का क्या आशय है?
उत्तर:
अलोपी ने शादी की। उसकी माँ इस शादी के पक्ष में नहीं थी। अत: वह अलग रहने लगी और पत्नी ने घर सँभाल लिया। अलोपी का यह सुन्दर संसार छ: महीने तक ही रह सका। एक दिन उसकी पत्नी उसको धोखा देकर उसकी सब जमा-पूँजी समेटकर गायब हो गई। अलोपी नेत्रहीन तो था किन्तु मूक नहीं था। वह खूब बातें करता था। उसके शरीर में नेत्रों की जो कमी थी वह उसकी रसना ने पूरी कर दी थी। इससे ज्ञानेन्द्रियों का संतुलन तो नहीं बन सकता था, किन्तु नेत्रों के अभाव को पूर्ति वह अपनी वाणी से कर लेता था।

पत्नी के विश्वासघात के कारण अलोपी दु:खी हो गया था। उसके हृदय पर गहरा आघात लगा था। अब वह पहले की तरह बोलता नहीं था, ज्यादातर चुप ही रहता था। अंधा तो वह था ही, अब पूँगा भी हो गया था। उसका दु:ख गुँगेपन के रूप में प्रगट हुआ था। जब कोई व्यक्ति उसको सांत्वना देना चाहता था तो अलोपी उसकी बातें चुपचाप सुनता रहता था। कोई प्रतिक्रिया प्रगट नहीं करता था। सांत्वना देने वाला यह नहीं समझ सकता था कि उसकी बातों का उसके मन पर क्या प्रभाव पड़ा। वास्तविकता यह थी कि उसकी बातें अलोपी के हृदय तक पहुँचती ही नहीं थीं। अत: सांत्वना देने का प्रयास असफल ही रहता था।

प्रश्न 4.
‘अपने अपराध से अनजान और अकारण दण्ड की कठोरता से अवाक बालक जैसे अलोपी के चारों ओर जो अंधेरी छाया घिर रही थी, उसने मुझे चिंतित कर दिया था।’ अलोपी में आए इस परिवर्तन का क्या कारण था?
उत्तर:
अलोपी ने महादेवी जी के यहाँ काम शुरू किया तो उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई थी। वह एक विधवा के सम्पर्क में आया और उसकी वाणी के आकर्षण में पड़कर उससे विवाह कर लिया । अलोपी की माँ उसके इस विवाह के विरुद्ध थी। उस स्त्री के दो पति पहले ही मर चुके थे तथा वह बहुत चालाक थी। उसकी आँखों में उसकी चालाकी दिखाई देती थी। किन्तु अलोपी ने तो उसकी केवल वाणी ही सुनी थी। उसको देख तो वह सकता ही नहीं था। अपनी बात मान्य होते न देखकर उसकी माँ अलग रहने लगी। अलोपी की पत्नी को उसकी कमाई की चिन्ता रहती थी तथा वह हमेशा पैसों की ही बातें करती थी।

वह अलोपी से पूछती थी कि वह अपने गहने जमीन में कहाँ दबाकर रखे? शायद इसी बहाने वह अलोपी की गढ़ी हुई कमाई के बारे में जानना चाहती थी। इस तरह छ: महीने बीते। उसकी पत्नी एक दिन उसका सारा धन समेटकर गायब हो गई। अलोपी जमीन में खुदे गड्ढों को देखकर उसकी प्रतीक्षा करता रहा। फिर सब कुछ उसकी समझ में आ गया। अलोपी की पत्नी उसको छोड़ गई थी। अलोपी यह नहीं समझ पा रहा था कि उसका अपराध क्या था? उसको ऐसा कठोर दण्ड क्यों मिला, यह भी उसकी समझ से बाहर था। फलत: वह मूक हो गया था। अब वह प्राय: चुप ही रहता था। अलोपी में आए इस परिवर्तन को देखकर महादेवी चिन्तित थीं। उनके अलोपी के साथ किसी अनहोनी की आशंका होने लगी थी।

प्रश्न 5.
संस्मरण में से चित्रमयी भाषा के प्रयोग के अंश संकलित कीजिए।
उत्तर:
‘अलोपी’ महादेवी वर्मा द्वारा रचित संस्मरण है। इसमें महादेवी जी के छात्रावास में तरकारी पहुँचाने वाले अलोपी का भव्य चित्रण हुआ है। महादेवी जी ने अलोपी का सजीव चित्र उपस्थित किया है।’अलोपी’ शीर्षक संस्मरण में प्रयुक्त चित्रमयी भाषा के कुछ अंश निम्नलिखित हैं –

    वैशाख नए गायंक के समान अपनी अग्निवीणा पर एक से एक लम्बा आलाप लेकर संसार को विस्मित कर देना चाहता था। मेरा छोटा घर गर्मी की दृष्टि से कुम्हार का देहाती आवाँ बन रहा था और हवा से खुलते-बन्द होते खिड़की-दरवाजों के कोलाहल के कारण आधुनिक कारखाने की भ्रांति उत्पन्न करता था।
    धूल के रंग के कपड़े और धूल भरे पैर तो थे ही उस पर उसके छोटे-छोटे बालों, चपटे-से माथे, शिथिल पलकों की विरले वरूनियों, बिखरी-सी भौंहों, सूखे पतले ओठों और कुछ ऊपर उठी हुई ठुड्डी पर राह की गर्द की एक परत इस तरह जम गई थी कि वह आधे सूखे क्ले-मॉडल के अतिरिक्त और कुछ लगता ही न था।
    मूसलाधार वृष्टि जब बर्फ के तूफान की भ्रांति उत्पन्न करती, बिजली जब लपटों के फब्बारे जैसी लगती और बादलों के गर्जन में पर्वतों के बोलने का आभास मिलता।
    मझोले कद की सुगठित शरीर वाली प्रौढ़ा देखने में साधारण-सी लगी पर उसके कंठ में ऐसा लोच और स्वर में ऐसा आत्मीयता भरा निमंत्रण था, जो किसी को भी आकर्षित किए बिना नहीं रहता और कुछ विशेष चमकदार आँखों में चालाकी के साथ-साथ ऐसी कठोरता झलक जाती थी।
    उसका कुछ भरा हुआ-सा कंकाल कुरते से सज गया, सिर पर जब तब साफा सुशोभित होने लगा और ऊँची धोती कुछ नीचे सरक आई।
    इसी प्रकार कुछ अन्य अंश भी हैं।

प्रश्न 6.
पाठ में आए निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) इस वर्ग को जीवन खुली …………… उसे और अधिक उलझाने लगता है।
(ख) इस बार की घटना अपनी क्षुद्रता ………… अलोपी देवी की विभूति लाया है।
उत्तर:
गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या पूर्व में दी जा चुकी है। देखें – “महत्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ” शीर्षक अंश

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
महादेवी जी ने गर्मी को शांत करने के लिए किस वस्तु को उल्लेख नहीं किया है?
(क) बर्फ
(ख) खस
(ग) बिजली का पंखा
(घ) एयर कंडीशनर
उत्तर:
(घ) एयर कंडीशनर

प्रश्न 2.
मनुष्य की शिष्टता की परीक्षा होती है –
(क) किसी भिखारी के घर के दरवाजे पर आने पर
(ख) किसी धनवान मित्र के आने पर
(ग) किसी धनी रिश्तेदार के आने पर
(घ) किसी नेता अथवा मंत्री के घर आने पर
उत्तर:
(क) किसी भिखारी के घर के दरवाजे पर आने पर

प्रश्न 3.
“तीसरा पहर थके यात्री के समान मानो ठहर-ठहर कर बढ़ा चला आ रहा था।” कथन की भाषा है –
(क) गद्यात्मकं
(ख) काव्यात्मक
(ग) विनोदपूर्ण
(घ) व्यंग्यात्मक।
उत्तर:
(ख) काव्यात्मक

प्रश्न 4.
“ऐसे आश्चर्य से मेरा साक्षात्कार नहीं हुआ था”- महादेवी को क्या देखकर आश्चर्य हुआ?
(क) माता के साथ पैसों के लिए झगड़ते किशोर
(ख) निर्धन पिता की सम्पत्ति छीनने वाले पुरुषार्थी युवक
(ग) जन्म से अन्धा होने पर भी काम के लिए लगनशील अलोपी
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) जन्म से अन्धा होने पर भी काम के लिए लगनशील अलोपी

प्रश्न 5.
अलोपी देवी के द्वार पर किसको याचक बनकर उपस्थित होना पड़ा?
(क) अलोपी
(ख) अलोपी का पिता
(ग) अलोपी की माता
(घ) रग्घू
उत्तर:
(ख) अलोपी का पिता
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘अलोपी’ पाठ किस गद्य-विधा की रचना है।
उत्तर:
‘अलोपी’ पाठ ‘संस्मरण’ गद्य-विधा की रचना है।

प्रश्न 2.
अलोपी कौन था?
उत्तर:
अलोपी अपने पिता का नेत्रहीन पुत्र था।

प्रश्न 3.
अलोपी को अलोपी नाम से क्यों पुकारा जाता था?
उत्तर:
अलोपी का जन्म अलोपी देवी के वरदान के कारण हुआ था। अत: उसका नाम अलोपी रखा गया था।

प्रश्न 4.
अलोपी महादेवी जी के पास क्यों आया था?
उत्तर:
अलोपी महादेवी जी के पास काम की तलाश में आया था।

प्रश्न 5.
अलोपी के चरित्र का प्रमुख गुण क्या था?
उत्तर:
अलोपी के चरित्र का प्रमुख गुण कर्तव्य पर दृढ़ रहना तथा कठोर श्रम करना था।

प्रश्न 6.
किसी भिखारी के द्वार पर आने और कुछ माँगने पर मनुष्य के किस गुण की परीक्षा होती है?
उत्तर:
किसी भिखारी के द्वार पर आने और कुछ माँगने पर मनुष्य के शिष्ट व्यवहार की परीक्षा होती है।
रश्न 7.
महादेवी को धूल से सना अलोपी कैसा लगा?
उत्तर:
धूल से सना अलोपी महादेवी को आधे सूखे क्ले मॉडल की तरह लगा।

प्रश्न 8.
“पर जब से अप्रसन्न होने की सीमा के पार पहुँच चुकी हूँ’- कहने से महादेवी का क्या आशय है?
उत्तर:
महादेवी ने अपने क्रोध पर नियंत्रण कर लिया है। अब वह क्रोधित नहीं होती।

प्रश्न 9.
जो भक्तिन के विवेक को रुचे वह मुझे स्वीकृत हो”- महादेवी ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर:
महादेवी का भोजन भक्तिन बनाती थी। वह जो सब्जी बनाती थी, वही महादेवी खा लेती थी।

प्रश्न 10.
“एक बार जब अपनी लम्बी अकर्मण्यता पर लज्जित हमारे हिंदू-मुस्लिम भाई वीरता की प्रतियोगिता में भाग ले रहे थे”- में महादेवी का संकेत किस ओर है?
उत्तर:
“एक बार जब …… भाग ले रहे थे”- में महादेवी का संकेत हिन्दू-मुसलमानों के बीच होने वाले हिंसक दंगों की ओर है।

प्रश्न 11.
महादेवी भक्तिन से क्या सुनकर विस्मित हुई?
उत्तर:
भक्तिन ने बताया कि अलोपी विवाह कर रहा है। यह सुनकर महादेवी विस्मित हुई।

प्रश्न 12.
‘अलोपी इस ढहते हुए स्वर्ग में छः महीने रह सका’-कहने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘अलोपी इस ढहते हुए स्वर्ग में छ: महीने रह सका’- कहने का तात्पर्य है कि अलोपी का वैवाहिक जीवन छ: महीने तक ही चल सका। उसके बाद उसकी पत्नी उसे छोड़कर चली गई।

प्रश्न 13.
अपने विवाह से पूर्व अलोपी कैसा था तथा विवाह के बाद कैसा हो गया था?
उत्तर:
अपने विवाह से पूर्व अलोपी उत्साह और आत्मविश्वास से भरा था। विवाह के बाद उसके ये गुण नष्ट हो गए थे।

प्रश्न 14.
अलोपी द्वारा विवाह करना क्या आपकी दृष्टि में उसकी भूल थी?
उत्तर:
मैं इसको भूल नहीं मानता क्योंकि मानव प्रकृति के कारण ही अलोपी उस स्त्री के प्रति आकर्षित हुआ था।

प्रश्न 15.
अलोपी के जीवन तथा मृत्यु के बारे में महादेवी का क्या कहना है?
उत्तर:
महादेवी अलोपी के जीवन को नियति का व्यंग्य तथा मृत्यु को संसार के छल का परिणाम मानती हैं।

प्रश्न 16.
महादेवी के मन में अलोपी के प्रति कौन-सा भाव है?
उत्तर:
महादेवी के मन में अलोपी के प्रति ममता भाव है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 18 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अलोपी कौन है? महादेवी के साथ उसका परिचय किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
अलोपी एक नेत्रहीन तेईस वर्षीय युवक है। उसके पिता जीवित नहीं हैं। माँ फेरी लगाकर सब्जी बेचती है। अपने ताऊ से उसने महादेवी के विद्यापीठ का नाम सुना है, उसे यह अच्छा नहीं लगता कि बूढ़ी माँ मेहनत करे और वह घर पर बैठा रहे। अंत: काम की तलाश में वह महादेवी के पास आया है।

प्रश्न 2.
पाठ (अलोपी) के आरम्भ में महादेवी ने गर्मी की ऋतु तथा अपने घर के बारे में क्या बताया है?
उत्तर:
‘अलोपी’ शीर्षक संस्मरण के आरम्भ में महादेवी ने बताया है कि जब अलोपी उनके पास आया तब वैशाख का महीना था तथा गर्मी बहुत तेज थी। महादेवी का छोटा-सा घर देहात के किसी कुम्हार के आवाँ के समान गरम था। तेज हवा चल रही थी। इस कारण मकान की खिड़की और दरवाजे बार-बार टकरा रहे थे और उनसे तेज आवाज उठ रही थी। इससे मकान किसी कारखाने का भ्रम पैदा कर रहा था।

प्रश्न 3.
“बचपन से बड़ी होने तक माँ न जाने कितनी व्याख्या-उपव्याख्याओं के साथ इस व्यवहार को समझाती हैं….” उपर्युक्त में उल्लिखित व्यवहार सूत्र क्या है? बताओ?
उत्तर:
महादेवी की माँ ने उनको समझाया है कि मनुष्य को अतिथि के साथ शिष्टता का व्यवहार करना चाहिए। जब घर पर कोई अतिथि आता है, तब हमारे शिष्टतापूर्ण व्यवहार की परीक्षा नहीं होती। हम अतिथि से प्रभावित होने के कारण उसके साथ शिष्टता का व्यवहार करने की सावधानी बरतते हैं। किन्तु जब द्वार पर कोई भिखारी आता है और हमारी दया की याचना के लिए हाथ फैलाता है, तो उसके साथ हम जो व्यवहार करते हैं उसी से पता चलता है कि हम शिष्ट और सुसंस्कृत हैं या नहीं ? तभी हमारे शिष्टाचार की परीक्षा होती है।

प्रश्न 4.
किसी की पुकार सुनकर महादेवी जब द्वार पर पहुँचीं तो उन्होंने क्या देखा?
उत्तर:
किसी की पुकार सुनकर महादेवी जब द्वार पर पहुँचीं तो उन्होंने दो व्यक्तियों को नीम की छाया की ओर जाते देखा। उन्होंने उनको बुलाया। वे महादेवी के पास लौटे। उनमें एक 6-7 वर्ष का बालक था। उसने अपने हड्डियों के ढाँचे जैसे शरीर को लम्बे फटे हुए कुर्ते से ढक रखा था। दूसरा एक कंकाल जैसा युवक था जिसने मैली बंडी तथा ऊँची धोती पहने रखी थी। लाठी का एक छोर थामे बालके आगे चल रहा था तथा उसके दूसरे छोर के सहारे युवक पीछे टटोल-टटोल कर पैर आगे बढ़ा रहा था।

प्रश्न 5.
“उस शरीर की निर्जीव मूर्तिमत्ता की भ्रांति और भी गहरी हो जाती थी”- कथन किसके विषय में है तथा ऐसा कहने का क्या कारण है?
उत्तर:
यह कथन अलोपी के बारे में है। वैशाख की गर्म दोपहरी में जब वह महादेवी से मिलने आया था तो उसके शरीर पर धूल की परतें जमी हुई र्थी। उसके कपड़े भी धूल के रंग में रंगे हुए थे। वह आधे सूखे क्ले मॉडल सा लग रहा था। उसकी आँखें छोटी-छोटी थीं। वे कच्चे काँच की मटमैली गोलियों के समान चमकहीन थीं। उसको देखकर भ्रम होता था कि वह एक सजीव मनुष्य न होकर कोई निर्जीव मूर्ति था।

प्रश्न 6.
“इस प्रकार पाँच ज्ञानेन्द्रियों में चाहे ज्ञान का उचित विभाजन न हो सका, पर उसके परिणाम स्वरूप संतुलन नहीं बिगड़ा”- का तात्पर्य क्या है?
उत्तर:
आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, जो अलग-अलग विषयों का ज्ञान कराती हैं। अलोपी अंधा था। अत: देखकर किसी वस्तु के बारे में नहीं जान सकता था। वह लाचार था। उसकी आँखों की कमी उसकी जिवा ने पूरी कर दी थी। इस तरह ज्ञान का पाँचों इन्द्रियों में उचित विभाजन तो नहीं हो सका था किन्तु कुल मिलाकर ज्ञान की मात्रा संतुलित ही बनी रही।

प्रश्न 7.
“अलोपी देवी कदाचित उस उदार सूम के समान थीं जो अपने दानी होने की ख्याति के लिए दान करता है, याचक की आवश्यकता पूर्ति के लिए नहीं?” अलोपी देवी की तुलना किसी उदार कंजूस से करने का क्या कारण है?
उत्तर:
अलोपी का जन्म अलोपी देवी के वरदानस्वरूप हुआ था किन्तु वह नेत्रहीन था। देवी ने याचक अलोपी के पिता को एक पूर्ण स्वस्थ पुत्र भी नहीं दिया था। इससे देवी उदार तो प्रतीत होती है किन्तु वह कंजूस भी है। अत: याचक को मुँहमाँगा वरदान नहीं देती। इसी कारण लेखिका ने उसकी तुलना उदार कंजूस दानी मनुष्य से की है।

प्रश्न 8.
‘अंधी आँखों को आकाश की ओर उठाकर अपने पुरुषार्थ की दोहाई देने वाले अलोपी को ऐसी परम्परा के न्यायालय में प्राण-दण्ड के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिल सकता था।” क्या आप मानते हैं कि इन पंक्तियों में महादेवी अलोपी के दुःखद अंत का संकेत दे रही हैं?
उत्तर:
अलोपी पुरुषार्थी था किन्तु इस संसार में परिश्रम से भागने तथा दूसरों के श्रम पर जीने की ही परम्परा है। अलोपी ने अपने कठिन परिश्रम से धन कमाया था किन्तु उसकी चालाक और धोखेबाज पत्नी ने वह सब उससे छीन लिया और उसे धोखा दिया। इससे आहत अलोपी का निधन हो गया। पराक्रमी अलोपी को दुनिया ने जीने नहीं दिया। | कहानी तथा नाटकों के पूर्व में ही उसके अन्त के सूचक बिन्दु बीज होते हैं। उपर्युक्त पंक्तियाँ भी इस संस्मरण के नायक अलोपी के जीवन के अन्त की पूर्व सूचना दे रही हैं।

प्रश्न 9.
“प्रस्ताव अभूतपूर्व था”- महादेवी के समक्ष अलोपी ने क्या प्रस्ताव रखा था तथा वह अभूतपूर्व क्यों था?
उत्तर:
अलोपी अन्धा होते हुई भी कार्य करना चाहता था। उसने महादेवी वर्मा से उसके विद्यालय तथा घर के लिए ताजी सस्ती सब्जी लाने के लिए प्रस्ताव रखा था।

प्रश्न 10.
“अपने दुर्बल कंधों पर कर्तव्य का गुरु-भार लादकर कौन लौटे तथा क्यों?
उत्तर:
तुम यहाँ क्या काम कर सकते हो ? पूछने पर अलोपी ने महादेवी के समक्ष उनके तथा छात्रावास की बालिकाओं के लिए देहात से ताजा और सस्ती सब्जियाँ लाने का प्रस्ताव रखा। महादेवी उसकी नेत्रहीनता के कारण शंकित थीं किन्तु अलोपी ने रग्घू की सहायता से काम सफल होने का विश्वास दिलाया। महादेवी ने अलोपी का निवेदन स्वीकार कर लिया और शारीरिक रूप से दुर्बल एक युवक तथा उसके बालक साथी को कर्तव्यपालन का भारी दायित्व सौंप दिया।

प्रश्न 11.
अलोपी द्वारा महादेवी की पसंद पूछने पर उनके सामने क्या कठिनाई उत्पन्न हुई?
उत्तर:
अलोपी ने जानना चाहा कि महादेवी को कौन-सी सब्जियाँ पसंद हैं। इस प्रश्न ने महादेवी के सामने संकट पैदा कर दिया। कुछ सब्जियाँ तो डाक्टरों ने महादेवी के लिए वर्जितं बता रखी थीं। वैसे भी उनको खिचड़ी, दलिया, फल, दही आदि पर कुछ दिन बिताने होते थे। शेष दिन वह वही सब्जी खा लेती थीं जो भक्तिने अपने विवेक के अनुसार बनाती थी। इस तरह अपनी पसंद के अनुसार खाने का प्रश्न ही नहीं था।

प्रश्न 12.
अलोपी तथा रग्घू के साथ छात्रावास में कैसा व्यवहार होता था?
उत्तर:
अलोपी तथा रग्घू महादेवी के घर तथा छात्रावास को सब्जियाँ पहुँचाते थे। अलोपी नेत्रहीन था तथा रग्घू छोटा बालक था। वे छात्रावास को सब्जियाँ लेकर जाते थे तो प्रारम्भ में वहाँ के लोगों के विनोद का केन्द्र बन जाते थे। धीरे-धीरे छात्रावास की बालिकाएँ तथा कर्मचारी अलोपी की बातें सुनकर उससे प्रभावित हुए। अब अलोपी सभी की प्रिय बन गया थे। वह घंटों वहाँ बैठकर महाराजिन, बारी आदि से बातें करता था। बालिकायें उसके चारों ओर चिड़ियों की तरह चहकती रहती थीं।

प्रश्न.13.
”मैं अपने ढपोरशेखी न्याय का महत्व समझ गई और तब मेरा मन अपने ऊपर ही खीज उठा”- ढपोरशंखी न्याय से महादेवी का क्या आशय है?
उत्तर:
अलोपी छात्रावास की बालिकाओं को नि:शुल्क फल देता था। स्कूल के फल विक्रेता ने महादेवी से शिकायत की इससे उसको हानि होती है। महादेवी ने अलोपी से ऐसा न करने को कहा तो उसने उनके सामने अपनी लम्बी सफाई रखी। महादेवी ने अलोपी को छात्राओं को नि:शुल्क फल न देने को कहा था। उत्तर में अलोपी की पूरी बात सुनकर महादेवी ने उसको रोकना उचित न समझा और अलोपी फल वितरण करता रहा। ढपोरशंख देने के लिए कहता है परन्तु देता भी नहीं। महादेवी ने अलोपी से कहा कि वह छात्राओं को मुफ्त फल न दे किन्तु उसे रोका नहीं। यही महादेवी का ढपोरशंखी न्याय है।

प्रश्न 14.
प्रकृति के स्वरूप का अलोपी पर क्या प्रभाव पड़ता था?
उत्तर:
प्रकृति के दो रूप हैं- एक सुन्दर तथा दूसरा रौद्र। सुन्दर रूप दर्शक को आकर्षित करता है तो रौद्र रूप उसको भयभीत करता है। अलोपी नेत्रहीन था। वह प्रकृति के किसी भी रूप को देखने में असमर्थ था। जब वह प्रकृति के रूप को देख ही नहीं सकता था तो उसके सुन्दर अथवा रौद्र होने का प्रभाव भी उस पर पड़ना संभव नहीं था। अलोपी पर प्रकृति के स्वरूप का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।

प्रश्न 15.
“वसंत हो या होली, दशहरा हो या दीवाली, अलोपी के नियम में कोई व्यतिक्रम नहीं देखा गया।” अलोपी का क्या नियम था? लिखिए।
उत्तर:
अलोपी को महादेवी तथा छात्रावास की छात्राओं के लिए नित्य ताजा और सस्ती सब्जियाँ लाने की जिम्मेदारी दी गई थी। अलोपी कर्तव्यपरायण था। वह नित्य सब्ज़ियाँ पहुँचाने का काम पूरा करता था। गर्मी, सर्दी, बरसात आदि ऋतुओं तथा होली, दीवाली, दशहरा इत्यादि त्यौहारों के कारण भी उसका काम प्रभावित नहीं होता था। नित्य समय से ताजी और सस्ती सब्जियाँ देहात से लाकर महादेवी के यहाँ पहुँचाना अलोपी का नियम था।

प्रश्न 16.
“तुम हृदय के भी अंधे हो,”- महादेवी ने यह किससे कहा तथा क्यों?’अलोपी’ पाठ के आधार लिखिए।
उत्तर:
एक बार प्रयाग में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे। अलोपी ने पहले से दूनी बड़ी सब्जियों से भरी डलिया उठाई और रग्घू को लेकर सूनी गलियों में होकर महादेवी के यहाँ जा पहुँचा। उसके इस दुस्साहस को देखकर महादेवी को क्रोध आ गया और उन्होंने अलोपी से कहा – तुम आँखों के ही नहीं हृदये के भी अंधे हो। कहने का कारण यह था कि अलोपी ने उस समय अपने जीवन के लिए संभावित संकट की भी उपेक्षा की थी। यह उसकी विचारहीनता थी।

प्रश्न 17.
हिंसक दंगों में अपनी जान जोखिम में डालकर तरकारी पहुँचाने के पीछे अलोपी ने क्या कारण बताकर महादेवी को संतुष्ट किया?
उत्तर:
एक बार प्रयाग में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे। अलोपी ने अपने जीवन की चिन्ता न करते हुए रग्घू को साथ लेकर महादेवी के यहाँ तरकारी पहुँचाई। यह देखकर महादेवी को क्रोध आ गया। उस समय अलोपी चुपचाप वहाँ से चला गया। छात्रावास से लौटकर महादेवी को शांत देखकर उसने रुक-रुक कर बताया कि मेट्रन ने उससे कहा था कि भंडारघर में अचार समाप्त हो गए हैं तथा बढ़ियों में फफँद लग गई है। केवल दाल से रोटी नहीं खाई जा सकती। अत: वह देहात से दो दिन के लिए सब्जियाँ ले आया है। उस अंधे को कोई क्यों मारेगा ? किन्तु यदि महादेवी की आज्ञा नहीं है तो वह घर से बाहर कदम भी नहीं रखेगी। दो दिन बाद तो यह झगड़ा समाप्त हो ही जायेगा। यह सब कहकर उसने महादेवी को संतुष्ट किया।

प्रश्न 18.
“एक बार की घटना अपनी क्षुद्रता में भी मेरे लिए बहुत गुरु है।” महादेवी किस छोटी घटना को अपने लिए महत्त्वपूर्ण बता रही हैं? तथा इसका कारण क्या है?
उत्तर:
महादेवी ज्वर से पीड़ित थी। यह पता चलने पर अलोपी स्वयं जाकर अलोपी देवी की विभूति लाया। उसने महादेवी से कहा कि उसको जीभ पर रखने तथा माथे पर लगाने से सभी रोग दूर हो जाते हैं। यह घटना बहुत मामूली थी किन्तु इसमें महादेवी के प्रति अलोपी का आदर, प्रेम तथा सहानुभूति के भाव भरे हुए थे। इससे उसके हृदय की उच्च भावुकता प्रकट हो रही थी। छोटी होने पर भी यह घटना महादेवी के लिए महत्त्वपूर्ण तथा स्मरणीय है।

प्रश्न 19.
महादेवी को ज्वर-मुक्त करने के लिए अलोपी अलोपी देवी की विभूति लाया तो महादेवी क्या कहना चाहती थी? किन्तु वह चुप क्यों रही?
उत्तर:
महादेवी को ज्वर से पीड़ित जानकर अलोपी स्वयं जाकर अलोपी देवी को विभूति लाया। उसने बताया कि उसको चाटने तथा माथे पर मलने से रोग दूर हो जायगा। महादेवी कहना चाहती थी कि जब देवी अलोपी को ही अन्धता से मुक्ति न दे सकीं तो उनका ही क्या भला कर पायेंगी। किन्तु वह चुप रही। अलोपी देवी की दिव्यता का ध्यान आने पर वह कुछ नहीं बोली।

प्रश्न 20.
महादेवी के यहाँ तरकारियाँ बेचने से अलोपी की सँभली हुई आर्थिक दशा का क्या प्रमाण मिलता है? ‘अलोपी’ संस्मरण के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
अलोपी तीन साल से महादेवी के यहाँ सब्ज़ियाँ पहुँचा रहा था। सत्तर रुपये मासिक से ज्यादा की सब्जियाँ आती थीं। इससे अलोपी की आर्थिक स्थिति सुधर गई थी। वह कुर्ता तथा धोती पहनने लगा था तथा कभी-कभी सिर पर साफा भी बाँध लेता था। रग्घू ने बताया था कि अलोपी की माँ उसके कमाए रुपयों को जमीन में गाढ़कर रखने लगी थी।

प्रश्न 21.
अलोपी के अँधेरे जीवन के उपसंहार का विधाता ने क्या प्रबन्ध किया था? संस्मरण के अनुसार लिखिए।
उत्तर:
अलोपी नेत्रहीन था। उसको जीवन अंधकारपूर्ण था। उसके जीवन का अन्त भी अन्धकारपूर्ण ही होना था। विधाता ने इसका प्रबन्ध कर दिया था। एक विधवा स्त्री अलोपी के सम्पर्क में आई । उसके कंठ स्वर से प्रभावित अलोपी ने उससे शादी कर ली। उसकी कठोर छलपूर्ण आँखों को देख नहीं पाया। वह उसका सब कुछ चुराकर उसे छोड़कर भाग गई। इस विश्वासघात ने अलोपी को बाहर-भीतर से तोड़ दिया। वह जीवित न रह सका।

प्रश्न 22.
“तब भक्तिन ने उसी प्रसन्न मुद्रा में मेरी ओर देखा, जिससे भीष्म ने रथ का पहिया ले दौड़ने वाले कृष्ण को देखा होगा।” भीष्म और कृष्ण की इस कथा के बारे में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
महाभारत का युद्ध चल रहा था। श्रीकृष्ण की प्रतिज्ञा थी कि वह स्वयं शस्त्र नहीं उठायेंगे। भीष्म कौरवों के साथ थे और कृष्ण पाण्डवों के। भीष्म श्रीकृष्ण के भक्त थे। उनकी प्रतिज्ञा का मान रखने के लिए श्रीकृष्ण एक रथ का पहिया उठाकर उनकी ओर दौड़ पड़े तो भीष्म की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। अलोपी शादी कर रहा है, यह सुनकर महादेवी ने जब आश्चर्य से ‘क्या’ कहा तो भक्तिन को महादेवी द्वारा अपनी उपेक्षा करने की आदत टूटते देखकर वैसी ही प्रसन्नता हुई।

प्रश्न 23.
“अलोपी इस ढहते हुए स्वर्ग में छः महीने रह सका”- इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अलोपी ने शादी तो कर ली किन्तु उसका वैवाहिक जीवन छ: माह तक ही चल सका। उसकी पत्नी ने उसका संग्रहीत धन समेटा और उसको धोखा देकर वहाँ से भाग गई। जमीन में खुदे गड्ढों को टटोलकर अलोपी कुछ दिन तक उसके लौटने की प्रतीक्षा करता रहा परन्तु सत्य को जानकर अन्त में वह टूट गया।

प्रश्न 24.
अलोपी ने अपना पैसा चुराकर भागने वाली पत्नी की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी? आपकी दृष्टि में क्या यह उचित था?
उत्तर:
अलोपी की पत्नी उसका रुपया चुराकर भाग गई थी। लोगों ने सलाह दी कि वह पुलिस को सूचना दे। अलोपी ने ऐसा करने से मना कर दिया। उसने निराशा किन्तु शांति के साथ कहा- अपनी स्त्री की हुलिया लिखाकर उसको पकड़कर बुलवाना नीचता का काम है। यह अलोपी की उदारता हो सकती है किन्तु इससे अपराधी को प्रश्रय मिलता है। मेरी दृष्टि से यह उचित नहीं था।

प्रश्न 25.
“यह सत्य होने पर भी कल्पना जैसा जान पड़ता है – ” इस कथन में कौन-से सत्य को उल्लेख है जो कल्पना जैसा जान पड़ता है?
उत्तर:
अलोपी साहसी, पराक्रमी तथा कठोर परिश्रमी था। वह सब्जियों से भरी-भरी डलिया सिर पर उठाकर संतुलन बनाकर चल लेता था। जब उसकी पत्नी उसको धोखा देकर चली गई तो अलोपी को गहरा आघात लगा। उसके सब साहस, सम्पूर्ण विश्वास तथा समस्त आत्मविश्वास को संसार का एक विश्वासघात निगल गया था। यह सत्य बात है किन्तु कल्पना के समान लगती है।

प्रश्न 26
महादेवी के यहाँ अलोपी अन्तिम बार कब आया? उसके वहाँ आने पर जो दशा थी, उसका अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पत्नी के विश्वासघात से यद्यपि अलोपी आहत हुआ कि किन्तु कुछ दिन बाद वह काम पर आने लगा था। दशहरे के अवकाश के कारण महादेवी घर पर ही थीं। तब अलोपी अन्तिम बार उनके पास आया था। तरकारियाँ देकर वह शाम तक मेस में बैठा रहा। कभी वह ममता के साथ तराजू को छूता था। कभी पूसी की पीठ को स्नेह से सहलाता था, कभी छोटी बालिकाओं को चिढ़ाता था। उसने महादेवी की पालतू कुतिया की मुरझुरे तथा हिरनी सोना को मूली के पत्ते के खिलाये। शाम होने पर उसने महादेवी के बरामदे को नमस्कार किया और चला गया। वह फिर कभी नहीं लौटा।

प्रश्न 27.
महादेवी ने अलोपी को भुलाने का प्रयास किया किन्तु क्या वह ऐसा करने में सफल हुई? यदि नहीं तो इसका क्या कारण था?
उत्तर:
रग्घू से अलोपी के चले जाने का समाचार महादेवी को मिला। महादेवी ने अलोपी को भुलाने का प्रयास किया किन्तु उनको इसमें सफलता नहीं मिली। आज भी जब वह द्वार की ओर देखती हैं तो वहाँ उनको एक छाया मूर्ति दिखाई देती है। धीरे-धीरे उसका मुख, मुख पर दो धुंधली आँखें तथा आँसू की लकीरों वाले गाल उनको स्पष्ट दिखाई देते हैं। महादेवी अपनी आँखें मलकर देखती हैं। महादेवी को अलोपी के प्रति गहरी ममता उनको उसे भूलने नहीं देती।

प्रश्न 28.
‘अलोपी’ संस्मरण की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
‘अलोपी’ एक रेखाचित्रनुमा संस्मरण है। इसमें अलोपी के सुख-दु:ख तथा गुणों का सजीव चित्रण हुआ है। महादेवी ने संकेतात्मक साहित्यिक भाषा में अलोपी का सफल चित्र अंकित किया है। महादेवी की कल्पना का संगे पाकर अलोपी का चित्र सजीव हो उठा है।’ अलोपी’ महादेवी की एक श्रेष्ठ तथा प्रभावशाली संस्मरणात्मक रचना है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 18 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अलोपीदीन कौन था? महादेवी के साथ उसकी पहली भेंट का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अलोपी एक परिश्रमी तथा कर्तव्यनिष्ठ युवक था। वह नेत्रहीन था। उसकी आयु तेईस वर्ष की थी। उसको जन्म अलोपी देवी के वरदान के फलस्वरूप हुआ था। अत: उसके माता-पिता ने उसका नाम अलोपीदीन रखा था। उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी। उसकी वृद्धा फेरी माँ लगाकर सब्जियाँ बेचती थी। अंधे अलोपी को यह अच्छा नहीं लगता था कि जवान होकर वह घर में बैठा रहे और बूढ़ी माँ मेहनत करे। उसके ताऊ भी शाक-सब्जियों का काम करते थे। उनसे एक दिन उसने महादेवी के विद्यापीठ के बारे में सुना। अलोपी ने वहाँ सब्जियाँ पहुँचाने का काम शुरू करने का विचार किया। वैशाख की भीषण गर्मी थी। बालक रग्घू को साथ लेकर उसकी लाठी का पिछला हिस्सा पकड़कर तपती दोपहरी में वह महादेवी के घर पहुँचा और उनको पुकारा।

महादेवी द्वार पर आईं और उनको अपने पास बुलाया। अलोपी ने उनको नमस्कार किया, अलोपी के कपड़े धूल के रंग के तथा पैरों में धूल लिपटी थी। उसके छोटे-छोटे बाल, चपटा माथा, थकी हुई पलकों की बेगरी बरौनियाँ, बिखरी-सी भौंहें, पतले होंठ और ऊपर उठी ठुड्डी पर धूल की परत जमी थी। उसकी आँखें मटमैली काँच की गोलियों की तरह चमकहीन थी। वह आधे सूखे क्ले मॉडल तथा निर्जीव मूर्ति जैसा प्रतीत होता था। महादेवी ने उसको ध्यानपूर्वक देखा फिर उससे पूछा कि वह क्या काम कर सकता है। वह पहले से सोचकर आया था। उसने कहा कि वह महादेवी तथा छात्रावास की बालिकाओं के लिए देहात से ताजा सब्जी लाएगा। महादेवी ने उसको इसकी अनुमति दे दी।

प्रश्न 2.
‘ऐसे आश्चर्य से मेरा कभी साक्षात् नहीं हुआ था।’ महादेवी को अलोपी में क्या अपूर्व आश्चर्यजनक लगा? स्पष्ट करके लिखिए।
उत्तर:
अलोपी नेत्रहीन युवक था। उसने महादेवी को भरोसा दिलाया कि वह रग्घू की सहायता से उनके यहाँ ताजा तरकारियाँ पहुँचाने का काम सफलता के साथ कर सकेगा। उसकी दृढ़ता, आत्मविश्वास तथा श्रम के प्रति लगन देखकर महादेवी को विस्मय हुआ। आजकल अनेक किशोर सुख की चीजें पाने के लिए अपनी बूढ़ी माताओं से झगड़ते हैं जो बुढ़ापे में भी काम करती हैं। ऐसे असंख्य युवक हैं जो अपने निर्धन पिता का सब कुछ छीनने तथा भीख माँगने में भी संकोच नहीं करते। छोटे बच्चों का लालन-पालन छोड़कर दिनभर परिश्रम करके धन कमाने वाली अपनी पत्नी से पैसे छीनकर शाम को सिनेमा देखने वाले पुरुषों की भी कमी नहीं है।

आज के पुरुष अपनी निराशा और असमर्थता का रोना रोते रहते हैं। उनका पुरुषार्थ तथा पराक्रम उनके रोने में ही प्रकट होता है। वह असमर्थ हैं, यही बताने में वे अपना पुरुषत्व समझते हैं। ऐसे युवकों और पुरुषों के संसार में एक अलोपी भी है, जो अंधा होते हुए भी काम करना और अपनी माँ को आराम देना चाहता है। वह अपने अंधेपन की उपेक्षा करके उसे चुनौती दे रहा है कि वह मेहनत करेगा
और अपना कर्तव्य पूरा करेगा। अलोपी का यह दृढ़ निश्चय महादेवी को आश्चर्य में डालने वाला था। ऐसे आश्चर्यजनक युवक से उनका परिचय पहले कभी नहीं हुआ था।

प्रश्न 3.
“कहना व्यर्थ है कि अलोपी को अपने सिद्धान्त में कोई परिवर्तन नहीं करना पड़ा।” अलोपी का क्या सिद्धान्त था? उसको परिवर्तन क्यों नहीं करना पड़ा?
उत्तर:
अलोपी छात्रावास की बालिकाओं तथा महादेवी के लिए सब्जियाँ लाता था। छात्रावास में वह सभी का प्रिय था। महाराजिन, बारी आदि से वह बातें करता रहता था। बालिकाएँ उसके आसपास चिड़ियों की तरह चहकती रहती थीं। कुछ दिन से वह उनके लिए अमरूद, बेर, जामुन आदि फल लाता था तथा उनको मुफ्त में ही बाँटता रहता था। महादेवी से विद्यापीठ के फल वाले ने शिकायत की कि इस तरह फल बाँटने से उसके व्यापार को हानि पहुँचती है। उन्होंने बालिकाओं से पूछा। फल बाँटने की बात सच थी। महादेवी ने उसको उचित-अनुचित समझाया। अलोपी ने महादेवी से कहा कि वह स्कूल के समय में नहीं आता।

फिर फल वाले को हानि कैसे हो सकती है? बालिकाओं से वह पैसे नहीं लेता। उसने बताया कि उसकी एक चचेरी बहन थी, जो अब संसार में नहीं है। इन बालिकाओं के स्वर में उसको उसकी आवाज सुनाई देती है। वह गरीब है। यदि कुछ फल उनको दे देता है, तो उसको संतुष्टि मिलती है। उनको बेचकर पैसे कमाने की बात वह सोच भी नहीं सकता। देहात में किसी को भेंट में कुछ देने के बदले पैसे नहीं लिए जाते। शहरों में ऐसे देना अच्छा नहीं माना जाता, यह वह नहीं जानता। विद्यापीठ के छात्रावास की छात्राओं को बिना मूल्य फल भेंट करने से अलोपी को आत्मसंतोष मिलता था। यही उसका सिद्धान्त था। महादेवी उसकी बातें सुनकर चुप रहीं। अलोपी को भी अपना सिद्धान्त नहीं बदलना पड़ा। वह पहले की तरह छात्राओं को फल वितरण का काम करता रहा।

प्रश्न 4.
“एक बार की घटना अपनी क्षुद्रता में भी मेरे लिए बहुत गुरु है।” ‘अलोपी’ शीर्षक संस्मरण के आधार पर घटना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एक बार महादेवी को बुखार आ रहा था। वह बाहर बरामदे में बैठकर अपना काम नहीं कर रही थीं और अपने कमरे में ही आराम कर रही थीं। अलोपी जब आता था तो वह उससे कुछ बातें करती थीं। अलोपी को भ्रम हुआ कि वह नाराज हैं, तभी तो उससे कुछ भी पूछती नहीं हैं। जब उसको उनकी बीमारी का पता चला तो वह अत्यन्त चिन्तित हो उठा। एक दिन उसने उनसे मिलने की अनुमति माँगी।

अलोपी महादेवी से मिलने आया और टटोलकर जमीन पर दरवाजे के पास ही बैठ गया। उसने अपनी आँखों को बाँहों से पोंछा तथा अपनी पिछोरी के छोर में बँधी गाँठ खोलकर एक पुड़िया निकाली। उसे महादेवी को देते हुए उसने बताया कि वह स्वयं जाकर अलोपी देवी की विभूति लाया है। इसकी एक चुटकी जीभ पर रखने तथा एक चुटकी माथे पर मलने से सभी रोग-दोष दूर हो जाते हैं। महादेवी कहती हैं कि यह घटना बहुत छोटी है। किन्तु उनके लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। इस छोटी-सी घटना से नेत्रहीन अलोपी का महादेवी के प्रति सम्मान, चिन्ता और सहानुभूति का भाव प्रकट होता है। अलोपी महादेवी को रोग मुक्त देखना चाहता था। उनके प्रति उसके मन में गहरा श्रद्धा भाव था। यह श्रद्धा की घटना इस कारण महादेवी के लिए बहुत गुरु है तथा वह इसको भुला नहीं सकी हैं।

प्रश्न 5.
“अलोपी के सब साहस, सम्पूर्ण उत्साह और समस्त आत्मविश्वास को संसार का एक विश्वासघात निगल गया है।” अलोपी के साथ हुए उस विश्वासघात का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
अलोपी नेत्रहीन था, किन्तु नेत्रहीनता उसके पुरुषार्थ में बाधक नहीं थी। वह साहसी था तथा उसका मन उत्साह से भरपूर था। उसमें आत्मविश्वास की भी कोई कमी नहीं थी। वह अपना कर्तव्य-पालन करने में कभी पीछे नहीं रहता था तथा इसमें कोई बाधा उसको रोक नहीं पाती थी। भयंकर मूसलाधार वर्षा, हड्डियों को पाने वाला शीत तथा धरती को जलाने वाली तप्त गर्मी उसकी कर्तव्यपरायणता में बाधक नहीं थे। वह परिश्रमी था। सब्जियों से भरी भारी डलिया सिर पर उठाकर रग्घू की लाठी का छोर पकड़कर वह दृढ़ता से कर्तव्यपथ पर अडिग पद बढ़ाता था।

उसकी आमदनी बढ़ी तो उसकी माँ उसकी बचत को जमीन में गाढ़कर रखने लगी। तभी अपने दो पूर्व पत्नियों को स्वर्ग का रास्ता दिखा चुकी एक प्रौढ़ा काछिन से उसका सम्पर्क हुआ। उसके मधुर और आकर्षक कंठ स्वर से प्रभावित होकर अलोपी ने अपनी माँ की मर्जी के विरुद्ध उससे विवाह कर लिया। उसकी पत्नी की रुचि उसकी कमाई में ही ज्यादा थी। इस प्रकार छ: महीने बीत गए। एक दिन उसकी वह पत्नी उसका सब माल-असबाब समेटकर घर से गायब हो गई। पहले तो अलोपी को इस घटना पर विश्वास ही नहीं हुआ। वह जमीन में खुदे गड्ढों को टटोलकर देखता और उसके लौटने की प्रतीक्षा करता रहा। पड़ोसियों ने उसे इस बारे में पुलिस को सूचना देने की सलाह दी किन्तु उसने ऐसा करना उचित न समझा। इस विश्वासघात ने अलोपी को तोड़कर रख दिया। उसके मन में अब पहले जैसा साहस, उत्साह तथा आत्मविश्वास नहीं बचा था। वह चलता था तो लड़खड़ा जाता था तथा उसके सिर से डलिया गिरने को होती थी। वह इस घटना के लिए स्वयं को कभी क्षमा नहीं कर सका और बिना रग्घू को साथ लिए अकेला ही किसी अज्ञात लोक की महायात्रा पर चला गया।

प्रश्न 6.
‘‘नियति के व्यंग्य से जीवन और संसार के छल से मृत्यु पाने वाले अलोपी की जीवन-यात्रा की सार्थकता पर एक बड़ा प्रश्न चिह्न अंकित करता हुआ यह संस्मरण आत्मा के सौन्दर्य की व्याख्या अवश्य करता है।” इस कथन पर विचारपूर्ण टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अलोपी के पिता ने अलोपी देवी से संतान-सुख की याचना की थी। देवी के वरदान के फलस्वरूप ही अलोपी का जन्म हुआ था। अलोपी का दुर्भाग्य था कि देवी की कृपा से उसके पिता को एक सम्पूर्ण बालक प्राप्त न हो सका। उसका अंधतापूर्ण जीवन नियति का एक कठोर व्यंग्य था। अलोपी आत्मविश्वास से भरा हुआ पराक्रमी युवक था। उसने अपने अंधेपन को चुनौती दी थी और कठोर श्रम के मार्ग से सफलता के लक्ष्य को पा लिया था। कुछ पैसा पास आने पर उसने विवाह किया। सोचा था सुखी जीवन बिताएगा किन्तु धोखेबाज पत्नी उसका सब कुछ लेकर गायब हो गई। इस विश्वासघात ने अलोपी को हिला दिया और उसकी मृत्यु का मार्ग प्रशस्त कर दिया। संसार के छल ने उसकी जान ले ली

अलोपी को जन्म से मृत्यु तक की जीवन यात्रा में क्या प्राप्त हुआ? जन्म के साथ ही अन्धेपन की पीड़ा तथा पराक्रम और पुरुषार्थ के बाद भी धोखा। ये दोनों बातें उसकी जीवन यात्रा के सार्थक होने में संदेह पैदा करती हैं। इस संस्मरण का एक महत्वपूर्ण पहलू अलोपी की सुन्दर आत्मा का चित्रण है। भले ही हम कहें अलोपी की जीवन-यात्रा सफल नहीं थी। उसे अपने जीवन से वह नहीं मिला जो मिलना चाहिए था, किन्तु इस अभाव ने अलोपी में आत्मा के सुन्दरता को प्रभावित नहीं किया था। वह एक उत्साही, पराक्रमी तथा आत्मविश्वास से भरा हुआ युवक था। वह बड़ों का आदर करता था। उसे अपनी माँ से प्रेम था। वह महादेवी से स्नेह तथा सहानुभूति रखता था। छोटे तथा समवयस्कों के प्रति उसने स्नेह और लगाव था। ऐसे ही ‘अलोपी’ शीर्षक संस्मरण में अलोपी के श्रेष्ठ चरित्र का चित्रण हुआ है।

प्रश्न 7.
‘अलोपी’ संस्मरण के नायक अलोपी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
‘अलोपी’ महादेवी वर्मा द्वारा रचित एक आकर्षक संस्मरण है। इसमें ‘अलोपी’ नामक नेत्रहीन युवक को भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी गई है। अलोपी चारित्रिक गुणों का भण्डार है। उसके चरित्र के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं –

    नेत्रहीन किन्तु पराक्रमी – अलोपी नेत्रहीन है किन्तु पुरुषार्थ विहीन नहीं है। वह अपनी नेत्रहीनता की चुनौती को स्वीकार करके कर्म-क्षेत्र में कूद पड़ता है और साहस तथा आत्मविश्वास के साथ अपना कर्तव्य निभाता है। वह रग्घू के लाठी को दूसरे छोर से पकड़कर सिर पर सब्जियों से भरी डलिया उठाकर महादेवी के यहाँ प्रतिदिन पहुँचाता है।
    आत्मविश्वासी – अलोपी में गजब का आत्मविश्वास है। उसको लगता ही नहीं कि वह नेत्रहीन है तथा इस कारण काम नहीं कर सकता। वह महादेवी को संदेह दूर करने को कहता है कि रग्घू की सहायता और सहयोग से वह सब्जियाँ लाने का कठिन काम भी सफलतापूर्वक कर लेगा। महादेवी का हिसाब भी वह अपने कम पढ़े-लिखे ताऊ की सहायता से ठीक-ठाक रखेगा।
    सभी के प्रति आदर तथा सद्भाव – अलोपी बड़ों का आदर करता है। वह महादेवी का अत्यधिक सम्मान करता है। जिस बरामदे में बैठकर वह काम करती हैं उस ओर मुँह करके नित्य आते-जाते नमस्कार करता है। दंगों के समय अपनी जान जोखिम में डालकर आने पर महादेवी उसे डाँटती हैं तो वह कहता है कि “जब मेरी आज्ञा नहीं है, तब वह घर के बाहर पैर नहीं रख सकता तथा भक्तिन से सद्भाव रखता है। वह अपनी वृद्धा माँ के प्रति चिन्तित है। अपनी धोखेबाज पत्नी की शिकायत भी पुलिस में नहीं करता है।
    परिश्रमी – अलोपी कठोर परिश्रम करता है। काम करने से बचने के लिए वह अपनी नेत्रहीनता का बहाना नहीं बनाता। वह कर्तव्यनिष्ठ है तथा समय पर अपना काम पूरा करता है।
    विश्वासघात से आहत – पत्नी का विश्वासघात अलोपी को तोड़ देता है। इससे उसका शरीर तथा मन प्रभावित होते हैं। वह स्वयं को क्षमा नहीं कर पाता और एक दिन यह संसार छेड़ देता है।

प्रश्न 8.
‘संस्मरण’ गद्य-विधा का संक्षिप्त परिचय देते हुए महादेवी द्वारा लिखित संस्मरण ‘अलोपी’ की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
‘संस्मरण’ आधुनिक हिन्दी गद्य की एक विधा है। संस्मरण’ ‘स्मरण’ शब्द में ‘सम’ उपसर्ग लगाने से बना है। संस्मरण में कोई साहित्यकार अतीत पर अपनी स्मृतियों से सम्बन्धित कुछ कोमल अनुभूतियों को कल्पना के सहारे शब्दबद्ध करता है। महादेवी वर्मा हिन्दी की प्रसिद्ध संस्मरण लेखिका हैं। महादेवी का कहना है कि ‘संस्मरण में हम अपनी स्मृति के आधार पर समय की धूल पोंछकर अपने मनोजगत के निभृत कक्ष में स्मृतियों को बैठाकर उनके साथ जीवित रहते हैं और अपने आत्मीय सम्बन्धों को पुनः जीवित करते हैं। साहित्यकोष में कहा गया है –

‘संस्मरण में लेखक अपने समय के इतिहास को लिखना चाहता है। वह जो भी स्वयं देखता अथवा अनुभव करता है, उसी का वर्णन करता है। वह वास्तव में अपने चतुर्दिक जीवन का सृजन करता है, सम्पूर्ण भावना और जीवन के साथ।’ महादेवी वर्मा द्वारा लिखित संस्मरण हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। उनके द्वारा अपने सम्पर्क में आए मनुष्यों को ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपने संस्मरणों का विषय बनाया गया है। महादेवी द्वारा लिखित संस्मरण रेखाचित्र की विशेषताएँ लिए हुए हैं, अतः उनको संस्मरणात्मक रेखाचित्र कहा जाता है। ‘अलोपी’ महादेवी का महत्वपूर्ण संस्मरण है। उसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

    ‘अलोपी’ शीर्षक संस्मरण महादेवी जी के सम्पर्क में आए एक तेईस वर्षीय उत्साही, परिश्रमी तथा कर्तव्यनिष्ठ नेत्रहीन युवक की स्मृति में रचित हैं तथा उसको सजीव करने वाला है।
    ‘अलोपी’ महादेवी की एक भावपूर्ण रचना है। यह पाठकों के मन को भीतर तक प्रभावित करती और झकझोरती है।
    ‘अलोपी’ को भाषा कोमल, संकेतात्मक, वर्णित विषय के अनुरूप है। वह सम्बन्धित विषय की व्यंजना में पूर्णत: समर्थ है।
    ‘अलोपी’ एक उद्देश्यपूर्ण रचना है। आज के समाज में जहाँ युवक अपनी निराशा और असमर्थता की दिन-रात बातें करते हैं और परोपजीवी होकर रहना चाहते हैं, वहीं नेत्रहीन अलोपी श्रमशीलता और कर्तव्यपरायणता का डंका पीटता है।’अलोपी’ सफल जीवन जीने के लिए कर्तव्यनिष्ठ होने का संदेश देने वाली रचना है।

लेखिक – परिचय :

प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्य सेवाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय – हिन्दी की प्रसिद्ध कवयित्री और गद्य-लेखिका महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 में उत्तर प्रदेश फर्रुखाबाद के एक सुशिक्षित और संभ्रान्त परिवार में हुआ था। आपके पिता गोविन्द प्रसाद भागलपुर में प्रधानाचार्य थे। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर (म.प्र.) में हुई। अल्पायु में ही डा. स्वरूप नारायण वर्मा से आपका विवाह हो गया। सन् 1933 में आपने संस्कृत में एम.ए. किया। आप प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या नियुक्त हो गईं। सेवाकार्य के साथ ही साहित्य साधना भी चलती रही। महादेवी उतर प्रदेश विधान परिषद में सदस्या मनोनीत हुईं। भारत सरकार ने आपको पद्मश्री से अलंकृत किया। 19 सितम्बर, सन् 1987 में आपका देहावसान हो गया।

साहित्यिक परिचय – महादेवी जी ने विद्यार्थी काल से ही साहित्य रचना आरम्भ कर दी थी। आप आधुनिक हिन्दी कविता की छायावादी धारा के चार स्तम्भों में से एक हैं। आप एक सफल कवियत्री ही नहीं प्रसिद्ध गद्य लेखिका भी हैं। संस्मरण तथा रेखाचित्रों की रचना कर आपने हिन्दी गद्य को समृद्ध बनाया है। निबन्ध तथा समालोचना नामक गद्य-विद्याओं पर भी आपने लेखनी चलाई है। महादेवी जी की भाषा तत्सम शब्दावली यूक्त साहित्यक खड़ी बोली है। तत्समता के आधिक्य के कारण वह कहीं-कहीं दुरूह हो गई है। किन्तु उसमें माधुर्य तथा प्रवाह है। आपने वर्णनात्मक, भावात्मक, विचारात्मक, संस्मरणात्मक तथा व्यंग्य-विनोदात्मक शैलियों को अपनाया है।

    कृतियाँ – महादेवी वर्मा की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं
    संस्मरण और रेखाचित्र – ‘अतीत के चलचित्र,’ ‘स्मृति की रेखाएँ,’ पथ के साथी, मेरा परिवार इत्यादि।
    निबन्ध संग्रह – क्षणदा, श्रृंखला की कड़ियाँ, साहित्य की आस्था तथा अन्य निबन्ध आदि।
    समालोचना – हिन्दी का विवेचनात्मक गद्य।
    काव्य – नीहार, रश्मि, नीरजा, दीपशिखा, यामी, सांध्य गीत आदि। नीरजा पर सेक्सरिया पुरस्कार तथा यामा पर ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक आपको प्राप्त हो चुके हैं।
    सम्पादन – चाँद नामक मासिक पत्रिका।

पाठ-सार

प्रश्न 2.
‘अलोपी’ शीर्षक पाठ का सारांश लिखिए।
उत्तर:
परिचय – महादेवी हिन्दी गद्य की संस्मरण विधा की श्रेष्ठ लेखिका हैं। ‘अलोपी’ उनके द्वारा रचित मर्मस्पर्शी संस्मरण है। इसमें नेत्रहीन अलोपी की आत्मनिर्भरता तथा स्वाभिमान का चित्रण हुआ है। उसकी जीवन-गाथी एक दु:ख भरे काँपते हुए गीत के समान है।

अलोपी का आना – वैशाख की गर्मी थी। महादेवी अपने छोटे से घर में थी जो तप रहा था, तेज हवा चलने से खिड़की-दरवाजों की आवाजें आ रही थीं। महादेवी उत्तर-पुस्तिकाओं का मूल्यांकन कर रही थी। दिन का तीसरा पहर था कि बाहर से किसी की भिखारी जैसी पुकार सुनाई दी। नौकर-चाकर अपने कमरों में सो रहे थे। महादेवी उठना तो नहीं चाहती थी किन्तु अपनी माँ से प्राप्त अतिथि सत्कार की शिक्षा का स्मरण हो आया। माँ ने सिखाया था कि मनुष्य की शिष्टता की परीक्षा गण्यमान्य अतिथि के आने पर नहीं होती। किसी भिखारी द्वारा हाथ फैलाकर याचना करने पर होती है। अपनी शिष्टता का ख्याल कर महादेवी उठीं। महादेवी ने देखा पुकारने वाले दो व्यक्ति नीम की छाया की ओर बढ़ रहे थे। बुलाने पर वे पास आए। फटा हुआ कुर्ता पहने एक 6-7 वर्ष का हड्डियों के ढेर जैसा बालक था, वह लाठी का एक छोर पकड़े आगे आ रहा था। उसके पीछे लाठी के दूसरे छोर के सहारे एक नेत्रहीन व्यक्ति उसके पीछे आ रहा था। वह भी हड्डियों का ढाँचा मात्र था। उसने एक मैली बंडी तथा ऊँची धोती पहन रखी थी। उसने नमस्कार किया तो ऐसी लगा जैसे वह महादेवी को नहीं खजूर के पेड़ को नमस्कार कर रहा था।

आगन्तुक व्यक्ति – आने वाले के पैर, बाल, माथा, पलकें, भौंहें, होठ और ठुड्डी-सभी पर धूल की पर्त जमी थी। उसके कपड़े मैले थे। उसकी आँखों में रोशनी नहीं थी। वह मिट्टी की एक निर्जीव मूर्ति के समान लग रहा था। महादेवी उससे कुछ पूछने के बारे में सोच ही रही र्थी कि उसने अपनी बात कहना शुरू किया। महादेवी जान गई कि उसकी नेत्रहीनता की कमी उसकी वाचालता ने पूरी कर दी थी।

अलोपीदीन – उसका जन्म अलोपी देवी के वरदान के फलस्वरूप हुआ था। अत: उसका नाम अलोपीदीन रखा गया। अब अलोपीदीन तेईस वर्ष का है और उसके पिता स्वर्ग सिधार चुके हैं। माँ तरकारियाँ लेकर फेरी लगाती है। अलोपी को यह अच्छा नहीं लगता कि जवान पुत्र बैठा रहे और बूढ़ी माँ मर-मर कर कमाए। सब्जी-विक्रेता अपने ताऊ के यहाँ महादेवी के विद्यापीठ की चर्चा सुनकर वह काम की तलाश में यहाँ आया है। यह जानकर महादेवी को आश्चर्य हुआ क्योंकि युवा पुरुषों की अकर्मण्यता के उदाहरण तो बहुत मिलते हैं। मगर अलोपी जैसी कर्त्तव्यपरायणता कम ही दिखाई देती है। महादेवी के पूछने पर उसने बताया कि वह उनके तथा छात्रावास की छात्राओं के लिए देहात से ताजी और सस्ती सब्जी लाएगा और अपने फुफेरे भाई रग्घू की सहायता से सब काम ठीक-ठाक कर लेगा। महादेवी की अनुमति प्राप्त होने पर दूसरे दिन वह सब्जियों से भरी छाबड़ी लेकर उपस्थित हो गया।

सबका प्रिय – अलोपी जानना चाहता था कि महादेवी को क्या-क्या तरकारियाँ पसन्द हैं। किन्तु महादेवी ने वे सभी तरकारियाँ ले ल जो वह उनके लिए लाया था। उसने कहा कि पैसे वह महीना पूरा होने पर लेगा, हिसाब रखने की कठिनाई बताने पर उसने स्वयं यह जिम्मेदारी निभाने का विश्वास जताया। छात्रावास में उन दोनों को सब जगह आने-जाने की अनुमति प्राप्त थी। महाराजिन बरी आदि को वह शाक-सब्जियों के प्रकार और खेतों के बारे में बताता था। वह बच्चियों के लिए बेर, अमरूद आदि फल लाने लगा था। कालेज के फल वाले ने शिकायत की कि इससे उसको हानि होती है। पूछने पर अलोपी ने बताया कि वह कालेज के समय में नहीं आता। छत्राओं से पैसे न लेने पर उसने बताया कि उसे बच्चियों के स्वर में उसे अपनी आठ-नौ वर्ष की मृत चचेरी बहिन की आवाज सुनाई देती है। फिर वह ये फल दाम देकर नहीं खरीदता। अतः उसका काम पूर्ववत् जारी रहा।

कर्तव्यशीलता – वर्षा, सर्दी, गर्मी की भीषणता तथा दशहरा, होली, दीवाली के उल्लास अलोपी के काम में बाधक नहीं थे। वह सिर पर डलिया उठाये तरकारी लाने का काम नियमपूर्वक करता था। एक बार हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे। अलोपी पहले से दुगनी बड़ी डलिया में और रग्घू की पीठ पर लदी हुई बड़ी-सी गठरी में ढेर सारी सब्जियाँ लेकर सुनसान रास्ते से आ पहुँचा। उसके दुस्साहस से चकित होकर महादेवी ने उसको डाँटा परन्तु वह चुप रहा और छात्रावास को ओर चला गया। वहाँ से लौटा तो महादेवी का क्रोध शांत हो चुका था। तब उसने बताया कि मेट्रन से उसे पता चला था कि भंडारघर में अचार तक समाप्त हो गया था। बड़ियों में फंफूदी लग गई। थी। उसने सोचा उस अंधे को कोई क्यों सताएगा। अब दो दिन के लिए पर्याप्त सब्जी है। तब तक दंगे समाप्त हो ही जायेंगे। इसके बाद वह रुका नहीं। घर पर उसकी बूढ़ी माँ अकेली थी।

महादेवी के प्रति आदर – अलोपी महादेवी का बहुत आदर करता था। वह आते-जाते बरामदे को लक्ष्य कर नमस्कार करता था, चाहे महादेवी वहाँ बैठी हों अथवा नहीं। एक बार महादेवी बीमार थीं और कमरे में र्थी। अलोपी से कोई बात नहीं हुई तो उसने सोचा कि वह नाराज हैं। उनकी बीमारी की पता चलने पर आज्ञा लेकर वह आया। उसने अपने पिछौरे के छोर में बँधी एक पुड़िया उनको देकर बताया कि उसमें अलोपी देवी की भभूत है। इसको लगाने और खाने से सब रोग दूर हो जाते हैं। अपने प्रति उसकी उस सहानुभूति को महादेवी भुला नहीं सकती थीं।

अलोपी का घर बसाना – अलोपी तीन साल से महादेवी के लिए सब्जियाँ ला रहा था। उसकी आमदनी अच्छी थी। शरीर कुछ पुष्ट हो गया था। अब वह सिर पर साफा बाँधने लगा था। उसकी माँ उसकी कमाई गाढ़कर रखने लगी थी। एक दिन भक्तिन ने बताया कि अलोपी शादी कर रहा है। उसकी होने वाली पत्नी पहले ही दो पतियों को छोड़ चुकी है। उसकी माँ नहीं चाहती कि वह शादी करे। मगर शादी हुई। उसकी माँ अलग रहने लगी। रग्घू से पता चला कि अलोपी की पत्नी हर समय रुपयों की ही बातें करना पसंद करती है। इस तरह 6 महीने नहीं बीते, पता चला कि इसकी चालाक पत्नी इसका सब कुछ समेट कर भाग गई। जमीन में दबा उसका पैसा भी वह ले गई थी। पहले तो अलोपी को इस घटना का विश्वास ही नहीं हुआ किन्तु बाद में वह दु:ख के कारण बीमार हो गया। ऐसी धोखेबाज पत्नी की शिकायत पुलिस से करना भी उसको उचित न लगा।

अलोपी की कथा की अंत – ठीक होने पर अलोपी फिर काम पर आने लगा। अब उसमें पहले जैसी सजीवता नहीं बची थी। पत्नी के विश्वासघात ने उसके सब साहस, उत्साह और आत्मविश्वास को नष्ट कर दिया था। वह अंधा तो था ही अब पूँगा भी हो गया था। वह कम बोलने लगा था। घटना के बारे में पूछने पर वह लज्जित हो उठता था। अतः महादेवी ने उससे पूछताछ कर उसका कष्ट बढ़ाना उचित नहीं समझा। उसकी माँ ने उसे क्षमा कर दिया। किन्तु अलोपी स्वयं को क्षमा नहीं कर सका। उसकी इस अवस्था से महादेवी उसके प्रति चिन्तित हो उठी थीं। दशहरे के अवकाश के दिन अलोपी सब्जियाँ देकर शाम तक मैसे में ही बैठी रहा। फिर महादेवी के बरामदे की ओर नमस्कार करके चला गया। तीसरे दिन रो-रो कर रग्घू ने बताया कि उसका अंधा दादा किसी अज्ञात लोक की महायात्रा पर चला गया है। महादेवी ने रग्घू को किसी दूसरे काम पर लगा दिया और अलोपी को बुलाने का प्रयास किया किन्तु अलोपी की छाया अब भी उनके सामने प्रगट होती है। वह आँखें मलकर सोचती हैं कि भाग्य के व्यंग्य से जीवन तथा संसार के छल से मृत्यु पाने वाले अलोपी को क्या वह कभी भुला सकेंगी?

कठिन शब्दों के अर्थ

(पृष्ठ 102-103) परमाणु = कण। कड़ी = पंक्ति । करुण = दयापूर्ण। अग्निवीणा = सूर्य का बढ़ता हुआ ताप। घटना-शून्य = घटना रहित । आलाप = संगीत का स्वर, यहाँ तेज गर्मी। आवाँ = मिट्टी से बने बर्तनों को पकाने के लिए बना भट्टा। कोलाहल = शोर । भ्रांति = भ्रम। मुखर = प्रकट, स्पष्ट। विवेक = उचित-अनुचित का ज्ञान । खस = एक प्रकार की घास। टटिया = झौपड़ी नुमा छप्पर । कृत्रिम = बनावटी। उपचार = उपाय। अन्यान्यपरायण = अन्य के प्रति निष्ठावान। पहर = प्रहर, समय। सघन = गहरा। उलूक = उल्लू। असमय = अनुचित समय। तर्कहीनता = विवाद ने करना। व्यवहार-सूत्र = व्यवहार करने का सिद्धान्त। शिष्टता = शील, सद्व्यवहार । कण = छोटा अंश। निरुपाय = विवश होकर। मूर्तियाँ = व्यक्ति । याचना = माँगना । अपरिचाय बोधक संज्ञा = अनजान व्यक्ति को बुलाने के लिए प्रयुक्त शब्द । आमंत्रण = बुलावा । कौतूहल = जिज्ञासा । आवरण = पर्दा । बंडी = एक वस्त्र। अनुसरण करना = पीछे चलना। औंघाई हुई = उलटकर रखी हुई। मटकी = गगरी, घड़ा। प्रौढ़ = अधेड़। लक्ष्य = उद्देश्य। मूक = पूँगा ।

(पृष्ठ 104) शिथिल = थकी हुई । विरल = कम घनी। बरुनियाँ = पलकों के बाल। गर्द = धूल। क्ले मॉडल = चिकनी मिट्टी से बनी हुई मूर्ति । आलोक = प्रकाश। शून्य = सूनी । मूर्तिमत्ता की भ्रांति = मूर्ति होने का भ्रम । जटिल = कठिन। अन्तर्जगत = मन, भावनाएँ। कृत्रिम = बनावटी। बगुलापन = दिखावटीपन । तारतम्यहीन = क्रमहीन। अकथनीय = न कहने योग्य। झंकार = पूँज, तारों को छेड़ने से निकलने वाले स्वर। गुत्थी = उलझन । भूलभुलैया = भटकाव । दैन्य = दीनता । वाचालता = बातूनीपन । चक्षु = नेत्र, आँखें। रसना = जीभ । पाँच ज्ञानेन्द्रिय = आँख, कान, नाक, रसना और त्वचा पाँच शारीरिक अंग। परिमाण = मात्रा। कुलावतंस = कुलभूषण । वंशधर = पुत्र। याचक = भिखारी। सूम = कंजूस। ख्याति = यश। अखंडित = साबुत, बिना टूटी हुई। कृतघ्नता = उपकार न मानना। कृपणती = कंजूसी। पितृ ऋण चुकाना = पुत्र उत्पन्न करना। मूल = उधार लिए गए धन की राशि । तरकारी = सब्जी । फेरी लगाना = जगह-जगह सामान बेचना। तत्ववेत्ता = परम ज्ञानी । ताऊ = पिता का बड़ा भाई । चर्चा = बातें। साक्षात् = सामना । किशोर = बचपन तथा जवानी के बीच की अवस्था । पोर = पोटुआ । छलनी होना = अनेक छेद हो जाना, घायल होना। पौरुष = पुरुषार्थ, पराक्रम। दरिद्र = गरीब । कुण्ठित = अप्रभावी, भौंथरा। भिक्षावृत्ति = भीख माँगना। मूर्छित = बेहोश। उपार्जित = कमाए हुए। विलाप = रुदन, रोना। भाव-भंगिमा =भावनाओं का प्रदर्शन।

(पृष्ठ 105) मर्सिया = शोकगीत। स्यापा = विलाप, रोना। स्तुत्य = प्रशंसनीय। दोहाई देना = पुकारना, दया की याचना करना। प्रकृतिस्थ = सामान्य होना, बाहरी प्रभाव से मुक्त होना । जीवनव्यापी अंधेरापन = जन्म से ही अन्धा होना। अवकाश = अवसर, मौका। फुफेरा भाई = पिता की बहन का बेटा। गुरु भार = भारी बोझ । छाबड़ी = डलिया। अनुनय-विनय = निवेदन। पथ्य = सुपाच्य भोजन। विवेक को रुचे = अच्छा लगे। रुचि = पसंद । वीतराग = तटस्थ, विरक्त । विरक्ति = अनिच्छा। युगल मूर्ति = अलोपी और रग्घू दो व्यक्तियों की जोड़ी। विनोदात्मक कोलाहल = हास-परिहास की बातें । गिरा = वाणी। अनयन = नेत्ररहित । स्वच्छंदता = बन्धनों से मुक्ति । बारी = सफाई कर्मचारी। ज्ञातव्य = जानने योग्य बातें । दाम = कीमत।

(पृष्ठ 106) व्याख्यान = भाषण । पिछोरी = पीछे से ओढ़ने का वस्त्र। अनुरूप = अनुसार । घलुए में = सामान खरीदने पर बिना मूल्य प्राप्त अभिलषित वस्तु । मुख = सामने की ओर मुँह किए हुए। ढपोरशंखी = निष्फल । खीज = चिढ़ना। रौद = क्रोधपूर्ण, भयंकर। मूसलाधार वृष्टि = तेज बरसात । चिथड़े = फटे हुए कपडे। चूते = टपकते। खंड = टुकड़ा। अक्षम्य = क्षमा करने योग्य। व्यूह = घेरा। पक्षाघात = एक बीमारी । कपाट = किबाड़े। चीत्कार = चीख । भाड़ = अनाज भूनने के लिए बालू गरम करने की मिट्टी। दाने = अनाज। धीरता = धैर्य । व्यतिक्रम = परिवर्तन। अकर्मण्यता = हरामखोरी, काम न करना। वीरता की प्रतियोगिता = दंगे, झगड़े (व्यंग्य में प्रयुक्त) दुस्साहस = सीमा के बाहर, अनुचित हिम्मत। सजलता = नर्मी।

(पृष्ठ 107) मनोयोगपूर्वक = लगन के साथ। क्षुद्रता = छोटापन। गुरु = भारी। विभूति = भभूत, राख । दिव्यता = अलौकिकता। बज्र = कठोर । स्वर- समूह = आवाज। भरा हुआ सा = पुष्ट। जब-तब = कभी-कभी। माई = माता । उपसंहार = अंत।

(पृष्ठ 108) काछिन = तरकारी बेचने वाली। मझोला कद = मध्यम लम्बाई । आत्मीयता = अपनापन। कदाचित् = संभवतः। भेदिया = गुप्त बातें बताने वाला। गाड़े दिन = बुढ़ापा, कठिनाई का समय । पछेली और झुमके = आभूषण। युक्ति = उपाय। दीक्षित = प्रशिक्षित । हुलिया = शारीरिक लक्षण । विश्वासघात = धोखा। पूँगा = चुप । अवाक् = मूक। हठी = जिद्दी। अतीत = पुराना समय । मेस = छात्रावास । पूसी = बिल्ली।

(पृष्ठ 109) विनोद = हँसी। मुरमुरे = लाई । गन्तव्य = जाने का स्थान। स्मारक = याद दिलाने वाली चीजें, स्मृति। यवनिका = नाटक में मंच पर आगे पड़ने वाला पर्दा । देहली = दरवाजे के बीच का स्थान । पुंजीभूत = एकत्रित होकर विशेष रूप ग्रहण कराना। निष्प्रभ = निस्तेज। नियति = भाग्य । छल = धोखा।

महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ

1. वैशाख नए गायक के समान अपनी अग्निवीणा पर एक से एक लम्बा आलाप लेकर संसार को विस्मित कर देना चाहता था। मेरा छोटा घर गर्मी की दृष्टि से कुम्हार का देहाती आवाँ बन रहा था और हवा से खुलते, बंद होते खिड़की-दरवाजों के कोलाहल के कारण आधुनिक कारखाने की भ्रांति उत्पन्न करता था। मैं इस मुखर ज्वाला के उपयुक्त ही काम कर रही थी अर्थात् उत्तर-पुस्तकों में अंधाधुंध भरे ज्ञाने-अज्ञान की राशि को विवेक में तपा-तपाकर ज्ञान-कणों का मूल्य निश्चित कर रही थी। (पृष्ठ 103)

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘अलोपी’ शीर्षक संस्मरण से उद्धृत है। इसकी लेखिका श्रीमती महादेवी वर्मा हैं।
प्रसंग – अलोपीदेवी की कृपा से जन्म लेने वाले अलोपी को कहानी बड़ी करुण है। वह जन्मांध था किन्तु अत्यन्त परिश्रमी था। वह महादेवी का अत्यन्त आदर करता था। एक दिन जब तेज गर्मी पड़ रही तब काम तलाश में अलोपी महादेवी पास आया था।

व्याख्या – महादेवी जी कहती हैं कि वैशाख का महीना था और तेज गर्मी पड़ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वैशाख एक गायक हो, जो अग्निरूपी वीणा बजाकर एक लम्बा आलापो खींच रहा हो और पूरे संसार को चकित कर रहा हो । महादेवी का मकान छोटा था। ताप की अधिकता के कारण वह किसी कुम्हार द्वारा निर्मित कच्ची मिट्टी के बर्तनों को पकाने के लिए तैयार किए गए ग्रामीण आवों के समान लग रहा था। उस समय हवा तेज चल रही थी। इस कारण खिड़की-दरवाजे बार-बार खुल और बंद हो रहे थे। उनके आपस में टकराने से उत्पन्न शोर के कारण महादेवी का घर किसी आधुनिक कारखाने का भ्रम पैदा कर रहा था। उस समय पड़ने वाली गर्मी के अनुरूप ही महादेवी जी काम कर रही थीं। वह छात्राओं की उत्तर-पुस्तिकाओं का मूल्यांकन कर रही थीं। इनमें परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर छात्राओं ने लिखे थे।

विशेष –

    वैशाख की तेज गर्मी थी, सभी सो रहे थे किन्तु महादेवी छात्राओं की उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन कर रही थीं।
    महादेवी ने वैशाख के महीने को किसी नवीन गायक के रूप में प्रस्तुत किया है।
    भाषा संस्कृतनिष्ठ, तत्समता युक्त, मधुर तथा विषयानुकूल है।
    शैली वर्णनात्मक है तथा उसमें काव्य जैसी मधुरता है।

2. सोचा न उहूँ। पुकारने वाले को असमय आने का दंड सहना चाहिए, परंतु भिखारी के संबंध में मेरे संस्कार कुछ ऐसी ही तर्कहीनता तक पहुँच चुके हैं, जहाँ से अंधविश्वास की सीमा-रेखा दूर नहीं रह जाती। बचपन से बड़े होने तक माँ न जाने कितनी व्याख्या-उपव्याख्याओं के साथ इस व्यवहार-सूत्र को समझाती रही है कि हमारी शिष्टता की परीक्षा तब नहीं हो सकती, जब कोई बड़ा अतिथि हमें अपनी कृपा का दान देने घर में आता है, वरन् उस समय होती है, जब कोई भूला-भटका द्वार पर खड़ा होकर हमारी दयी के कण के लिए हाथ फैला देता है। (पृष्ठ 103)

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘अलोपी’ शीर्षक संस्मरण से लिया गया है। इसकी रचना श्रीमती महादेवी वर्मा ने की है।
प्रसंग – वैशाख की तेज गर्मी को तीसरा प्रहर था। महादेवी छात्राओं की उत्तर-पुस्तिकाओं का मूल्यांकन कर रही थीं। नौकर-चाकर सो रहे थे। तभी बाहर किसी का कंठ स्वर सुनाई दिया। महादेवी के काम में बाधा हुई और वह कुछ झल्ला उठीं।

व्याख्या – महादेवी बता रही हैं कि पहले तो उन्होंने सोचा कि वह नहीं उठे। पुकारने वाला गलत समय पर आया है। उसको इसका दण्ड मिलना ही चाहिए। फिर उन्होंने सोचा कि कोई जरूरतमंद भिखारी होगा जो पुकार रहा होगा। भिखारी के बारे में उनके संस्कारों में अंधविश्वास की ही प्रबलता है। यहाँ किसी प्रकार का तर्क प्रभावी नहीं होता। उनकी माँ ने महादेवी के बचपन से बड़े होने तक भिखारियों के साथ व्यवहार की नीति तरह-तरह से समझाई है। उसका प्रभाव उनके संस्कारों पर पड़ा है। उनकी माँ ने सिखाया है कि घर पर जब कोई अतिथि आता है और वह समाज में माननीय-आदरणीय होता है तो हम उसके साथ विनम्रता से पेश आते हैं और उसका सत्कार करके स्वयं को गौरवान्वित समझते हैं। इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि हम सभ्य और सुसंस्कृत हैं। किन्तु जब कोई भिखारी हमारे घर के द्वार पर आकर हाथ फैलाता है और कुछ माँगता है तथा हम उसके साथ यदि शिष्टता का व्यवहार करते हैं, तभी सिद्ध होता है कि हम शालीन और शिष्ट हैं। अतः वह उठीं और द्वार पर जाकर पुकारने वाले को देखा।

विशेष-

    अतिथि, विशेषतः वह समाज के दीन-दुर्बल वर्ग का अथवा कोई भिखारी हो, महादेवी के द्वार पर असम्मानित नहीं रहता। इस बारे में वह कुछ हद तक अंधविश्वासी है।
    भीषण गर्मी में अथवा काम छोड़कर महादेवी ने देखा कि बाहर कौन पुकार रहा है।
    भाषा शुद्ध तत्सम शब्दावली युक्त, साहित्यिक तथा मधुर है।
    शैली वर्णनात्मक तथा चित्रात्मक है।

3. धूल के रंग के कपड़े और धूल भरे पैर तो थे ही, उस पर उसके छोटे-छोटे बालों, चपटे-से माथे, शिथिल पलकों की विरल बरुनियों, बिखरी-सी भौंहों, सूखे, पतले ओठों और कुछ ऊपर उठी हुई ठुड्डी पर राह की गर्द की एक परत इस तरह जम गई थी कि वह आधे सूखे क्ले मॉडल के अतिरिक्त और कुछ लगता ही न था। दृष्टि के आलोक से शून्य छोटी-छोटी आँखें कच्चे काँच की मैली गोलियों के समान चमकहीन थीं; जिनसे उस शरीर की निर्जीव मूर्तिमत्तों की भ्रांति और भी गहरी हो जाती है। (पृष्ठ 104)

साधारणतः आज के पुरुष का पुरुषार्थ विलाप है। जितने प्रकार से, जितनी भाव-भंगिमा के साथ; जितने स्वरों में वह अपने निराश जीवन का मर्सिया गा सके, अपनी असमर्थता का स्यापा कर सके उतना ही वह स्तुत्य है और उतना ही अधिक पुरुष नाम के उपयुक्त है। अंधी आँखों को आकाश की ओर उठाकर अपने पुरुषार्थ की दोहाई देने वाले अलोपी को ऐसी परंपरा के न्यायालय में प्राण-दण्ड के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिल सकता था। (पृष्ठ 104-105)

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘अलोपी’ शीर्षक संस्मरण से उद्धृत है। इसकी लेखिका श्रीमती महादेवी वर्मा हैं।

प्रसंग – नेत्रहीन अलोपी तेईस वर्ष का था। उसक पिता जीवित नहीं थे तथा माँ फेरी लगाकर तरकारी बेचती थी। उसको यह अच्छा नहीं लगता था कि जवान लड़का घर बैठा रहे और बूढ़ी माँ मेहनत करे। उसने अपने सब्जी विक्रेता ताऊ से महादेवी के विद्यालय के बारे में सुना तो काम पाने की लालसा में वहाँ आ पहुँचा।

व्याख्या – महादेवी जी कहती हैं कि उनके सामने ऐसा आश्चर्यजनक बाकया पहले कभी नहीं हुआ था। वह जानती हैं कि संसार में ऐसे अनेक किशोर हैं जो जीवन के बारे में अधिक नहीं जानते हैं। उनकी माताएँ सिलाई करके किसी प्रकार गृहस्थी चलाती हैं और वे स्वयं कुछ काम न करके उनसे झगड़ा करके सुख देने वाली चीजें प्राप्त करना चाहते हैं। ऐसे युवकों की संख्या भी समाज में कम नहीं है जो कुलवधुओं की तरह आँसू पीकर चुप रहते हैं और श्रम न करके अपने निर्धन पिता का सब कुछ छीनने अथवा भीख माँगने को ही अपना पराक्रम मानते हैं। ऐसे पुरुष भी समाज में कम नहीं हैं जो परिश्रम से दूर भागते हैं तथा अपनी इस हार में ही जीत के दर्शन करते हैं। उनकी पत्नियाँ छोटे बच्चों को छोड़कर कठोर परिश्रम करके धन कमाती हैं और वे शाम को उस पैसे से किसी सिनेमाघर में सिनेमा देखते हैं।

महादेवी कहती हैं कि सामान्यतया आज पुरुष कठोर श्रम करके अपने पुरुषार्थ को प्रकट नहीं करते। अपनी कठिनाइयों और परेशानियों को रोना रोना ही उनको पुरुषार्थ है। वह तरह-तरह की भाव मुद्राओं द्वारा अपनी निराशा को व्यक्त करते हैं। उनका निराशा को व्यंजित करने वाला यह शोकगीत और असमर्थता को प्रगट करने वाला यह रुदन ही उनका पुरुषार्थ है। अपनी निराशा और असमर्थता का रोना जो जितना अधिक रो सके, वही प्रशंसा का पात्र होता है और उसी को पुरुष माना जाता है। जिस न्यायालय में ऐसे अकर्मण्य युवकों को पुरस्कृत करने की परिपाटी चलती हो वहाँ अलोपी जैसे कर्मठ तथा परिश्रमी युवक प्राणदण्ड के ही अधिकारी हो सकते थे।

विशेष –

    नेत्रहीन अलोपी महादेवी से काम माँगने आया है। यह देखकर वह चकित हैं। उधर ऐसे असभ्य युवक हैं जो श्रम करने से डरते हैं और निर्धन वृद्ध माता-पिता से उनका उपार्जित छीनने में ही अपनी पुरुषार्थ समझते हैं। –
    नेत्रहीन अलोपी की साहस तथा श्रमशीलता की भावना महादेवी की दृष्टि में अत्यन्त प्रशंसनीय है।
    भाषा संस्कृतनिष्ठ, साहित्यिक तथा प्रवाहपूर्ण है।
    शैली व्यंग्यात्मक है। परोपजीवी युवकों पर व्यंग्य किया गया है।

6. ग्रीष्म में जब धूल ऐसी जान पड़ती, मानों कोई पृथ्वी को पीस-पीस कर उड़ाये दे रहा है और लू जलते हुए व्यक्ति की तरह चीत्कार करती हुई, इस कोने से उस कोने में दौड़ती फिरती, तब हाथ में आँखों पर ओट किए हुए रग्घू के जल्दी-जल्दी उठते हुए पैर मुझे भाड़ में नाचते हुए दानों का स्मरण दिलाते थे। पर अलोपी पलकें मूंदकर आँखों के अंधकार को भीतर ही । बंदी बनाता हुआ अपने हर पग को इतनी धीरता से जलती धरती पर रखता था, मानो उसके हृदय का ताप नापता हो। बसंत हो या होली, दशहरा हो या दीवाली, अलोपी के नियम में कोई व्यतिक्रम कभी नहीं देखा गया। (पृष्ठ 106)

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘अलोपी’ शीर्षक पाठ से अवतरित है। इसकी लेखिका महादेवी वर्मा हैं।

प्रसंग – अलोपी तेईस वर्ष का एक नेत्रहीन युवक है। वह महादेवी के लिए ताजा तरकारियाँ लाता है। जब से उसे यह काम मिला है, वह सर्दी, गर्मी, वर्षा की चिन्ता न करके निरन्तर इस कर्तव्य को पूरा कर रहा है। रग्घू नामक बालक के मार्गदर्शन में वह महादेवी जी की सेवा में तत्पर है।

व्याख्या – महादेवी कहती हैं कि जब गर्मी की ऋतु आती तो धूलभरी हवाएँ चलतीं । ऐसा लगता जैसे कोई पृथ्वी को पीसकर उसे हवा के साथ उड़ा रहा हो। उस समय गरम लुएँ धरती के एक कोने से दूसरे कोने तक साँय-साँय करती हुई इस प्रकार चलती जैसे कोई आग से जलती हुआ मनुष्य एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर दौड़ता रहता है। उस भीषण गर्मी में हाथ से अपनी आँखों की ओट करके रग्घू जल्दी-जल्दी अपने कदम उठाता। उसके पैरों को देखकर भाड़ की गरम बालू में उछलते हुए अन्न के दानों की याद आती थी। तपती जमीन पर पैरों को जलने से बचाने के लिए वह जल्दी-जल्दी उनको रखता-उठाता था। किन्तु अलोपी अपनी पलकें मूंद लेता और आँखों में छाए अन्धकार को आँखों के अन्दर ही बंद कर लेती थी। वह एक-एक कदम अत्यन्त धैर्य के साथ जलती हुई पृथ्वी पर रखता था तो ऐसा प्रतीत होता था कि वह पृथ्वी के हृदय के ताप को नाप रहा हो । वसन्त हो अथवा होली, दशहरा हो अथवा दीपावली अलोपी अपने काम में कभी रुकावट नहीं आने देता था। वह सदैव नियमपूर्वक महादेवी के विद्यालय तथा घर पर सब्जियाँ पहुँचाता था।

विशेष –

    अलोपी पराक्रमी तथा कर्तव्यपरायण था। वह अपना काम सदैव निर्बाध रूप से करता था।
    प्रस्तुत रचना एक संस्मरण है। महादेवी ने अनेक संस्मरण लिखे हैं। उनमें एक अलोपी भी है।
    भाषा साहित्यिक, संस्कृतनिष्ठ तथा भावानुरूप है।
    शैली वणर्नात्मक है। महादेवी का गद्य काव्य का माधुर्य लिए हुए है।

1. एक बार जब अपनी लम्बी अकर्मण्यता पर लज्जित हमारे हिंदू-मुस्लिम भाई वीरता की प्रतियोगिता में सक्रिय भाग ले रहे थे, तब अलोपी पहले से दुगनी बड़ी डलिया में न जाने क्या-क्या भरे और एक बड़ी गठरी रग्घू की पीठ पर भी लादे, सुनसान रास्ते से आ पहुँचा। उसके दुस्साहस ने मुझे विस्मित न करके क्रोधित कर दिया। ‘तुम हृदय के भी अंधे हो, ऐसी अँधेरी गलियों में प्राण देकर कुछ स्वर्ग नहीं पहुँच जाओगे’ आदि-आदि स्वागत-वचनों के उत्तर में अलोपी बैंगन-लौकी टटोलने लगा। मेरे आँगन में तरकारियों का टीला निर्मित कर, वह वैसे ही मूक-भाव से छात्रावास की ओर चल दिया। वहाँ से लौटकर जब वह सूखी आँखें पोंछता और ठिठकता-सा सामने आ खड़ा हुआ, तब मेरा क्रोध बरसकर मिट चुका था और मन में ममता की सजलता व्याप्त थी। (पृष्ठ 106)

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश महादेवी वर्मा कृत संस्मरण ‘अलोपी’ से उधृत है। यह संस्मरण हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित है।

प्रसंग – अलोपी महादेवी वर्मा के यहाँ तरकारियाँ पहुँचाया करता था। वह अत्यन्त समझदार तथा कर्तव्यनिष्ठ था वह अपने उत्तरदायित्व का सदा ध्यान रखता था। भीषण वर्षा, शीत और ग्रीष्म भी उसको महादेवी के घर सब्ज़ियाँ पहुँचाने से नहीं रोक पाते थे। एक बार हिन्दू-मुस्लिम दंगों में अपनी जान जोखिम में डालकर भी वह वहाँ जा पहुँचा था।

व्याख्या – महादेवी जी कहती हैं कि एक बार प्रयाग में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे। इससे बहुत समय से शांत शहर अशांत हो गया था। शायद वे दोनों इस तरह एक दूसरे से लड़-झगड़कर अपनी वीरता दिखा रहे थे तथा लम्बे समय की अकर्मण्यता का दाग धो रहे थे। ऐसे संकटपूर्ण भयानक समय में अलोपी एक पहले से दूनी बड़ी डलिया में बहुत सारी सब्जियाँ भरकर तथा एक बड़ी सब्जियों की गठरी रग्घू की पीठ पर लादकर सुनसान रास्ते से महादेवी जी के घर जा पहुँचा। उसने जान जोखिम में डाली थी। उसका दुस्साहस देखकर महादेवी जी को आश्चर्य के स्थान पर उस पर भारी क्रोध आया।

उन्होंने उसको डाँटते हुए कहा कि वह आँखों का ही नहीं मन का भी अंधा है। उन सुनसान गलियों में कोई उसे मार डालता तो उसको स्वर्ग न मिल जाता। महादेवी ने इस प्रकार के कठोर वचनों से उसका स्वागत किया तो वह चुप रहा और लौकी-बैंगन टटोलने लगा। फिर उसने उन सब्जियों का एक बड़ा-सा ढेर महादेवी के आँगन में बना दिया और चुपचाप छात्रावास की ओर चला गया। वहाँ से लौटकर वह महादेवी जी के पास आया और ठिठकता हुआ तथा अपनी सूखी आँखों को पोंछता हुआ उनके सामने आकर खड़ा हो गया। उस समय तक महादेवी का गुस्सा शांत हो चुका था और उनका हृदय ममता से भरकर सजल हो उठा था।

विशेष –

    अलोपी की कर्तव्यपरायणता तथा महादेवी के प्रति आदर-भाव इन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है। महादेवी जी के मन को सहज स्नेह भी इनमें प्रकट हुआ है।
    अलोपी ने प्राण संकट में डालकर महादेवी के यहाँ तरकारियाँ पहुँचाईं किन्तु महादेवी ने उसको डाँटा। अलोपी मौन बना रहा। नेत्रांध अलोपी महादेवी जी के मन में छिपे वात्सल्य को समझ गया था।
    भाषा तत्सम शब्दों से सुसज्जित, सरल तथा प्रवाहपूर्ण है।
    शैली वर्णनात्मक है। हमारे हिंदू-मुस्लिम भाई वीरता की प्रतियोगिता में भाग ले रहे थे, आदि-आदि स्वागत वचनों के उत्तर में इत्यादि में व्यंग्य है।

8. एक बार की घटना अपनी क्षुद्रता में भी मेरे लिए बहुत गुरु है। मैं ज्वर से पीड़ित थी। कई दिनों तक बरामदे को नमस्कार कर अलोपी ने रग्घू से कहा-जान पड़ता है इस बार गुरुजी बहुत गुस्सा हो गई हैं। पहले की तरह कुछ पूछती ही नहीं; पर जब उसे ज्ञात हुआ कि मैं बीमारी के कारण बाहर आ ही नहीं सकती, तब वह बहुत चिंतित हो उठा। दूसरे दिन संदेश मिला कि अलोपी मुझे देखने की आज्ञा चाहता है। उतने कष्ट के समय भी मुझे हँसी आए बिना न रह सकी। अंधा अलोपी असंख्य बार आज्ञा पाकर भी मुझे देखने में समर्थ कैसे हो सकता था। पर अलोपी भीतर आया और नमस्कार कर टटोलता-टटोलता देहली के पास बैठ गया। फिर अपनी धुंधली, शून्य आँखों की आर्दता बाँह से पोंछकर पिछौरी के एक छोर में लगी गाँठ खोलते हुए उसने अपराधी की मुद्रा से बताया कि वह स्वयं जाकर अलोपी देवी की विभूति लाया है। एक चुटकी जीभ पर रख ली जाय और एक माथे पर लगा ली जाय, तो सब रोग-दोष दूर हो जायगा। कहने की इच्छा हुई – जब देवी तुम्हारा ही पूरा न कर सकीं, तब मेरा क्या करेंगी; पर उनके वरदान की गंभीरता ने मुख से कुछ न निकलने दिया। अलोपी देवी की दिव्यता प्रमाणित करने के लिए अलोपीदीन का कर्तव्य में वज़ और ममता में मोम के समान हृदय ही पर्याप्त होना चाहिए। उसके निकट जिसका परिचय स्वर-समूह के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता; उस व्यक्ति के प्रति इतनी सहानुभूति भूलने की वस्तु नहीं। (पृष्ठ 107)

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘अलोपी’ शीर्षक संस्मरण से उद्धृत है। इसकी लेखिका श्रीमती महादेवी वर्मा हैं।
प्रसंग – एक बार महादेवी बीमार थीं। पता चलने पर अलोपी ने उनसे मिलने की अनुमति माँगी। वह उनके स्वस्थ होने के लिए अलोपी देवी की विभूति लेकर आया। इस प्रसंग को लेकर लेखिका ने अलोपी की सहानुभूति का उल्लेख किया है।

व्याख्या – महादेवी जी कहती हैं कि एक बार एक घटना हुई ‘वह यद्यपि छोटी है।’ किन्तु उसका महत्त्व उनके लिए बहुत अधिक है। उनको बुखार आ रहा था और वह अपने कमरे में विस्तर पर लेटी रहती थीं। बाहर बरामदे में बैठकर काम नहीं कर पाती थीं। कई दिनों तक अपनी आदत के अनुसार अलोपी बरामदे की दिशा में नमस्कार करता रहा। एक दिन उसने रग्घू से कहा कि गुरुजी (महादेवी) बहुत ज्यादा नाराज मालूम होती हैं। पहले की तरह उन्होंने कुछ पूछा ही नहीं है। किन्तु जब उसको पता चलता है कि वह बीमार हैं तथा बाहर बरामदे में नहीं आ सकतीं, तो उसको बहुत चिन्ता हुई। दूसरे दिन उनको अलोपी का संदेश मिला कि वह उनको देखने की अनुमति चाहता है। महादेवी उस समय बहुत कष्ट में थी किन्तु यह सुनकर उनको हँसी आ गई कि वह उनको देख कैसे सकता है।

क्योंकि वह तो नेत्रहीन है। परन्तु अलोपी अन्दर आया। उसने महादेवी को प्रणाम किया तथा टटोलकर देहली के पास ही बैठ गया। फिर उसने अपनी धुंधली और सूनी आँखों का गीलापन बाँहों से पोंछा और पिछौरे की गाँठ खोलकर एक पुड़िया निकाली। उसने बताया कि वह स्वयं अलोपी देवी के मंदिर में गया था और यह विभूति आपके लिए लाया है। इसकी एक चुटकी जीभ पर रखने तथा एक चुटकी माथे पर मलने से सभी रोग दूर हो जाते हैं। यह सब उसने इस तरह बताया जैसे वह कोई अपराध कर रहा है। महादेवी कहना चाहती र्थी कि जब देवी ने उसको ही स्वास्थ्यपूर्ण जीवन नहीं दिया और अंधा कर दिया तो वह महादेवी का क्या भला करेगी? परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ भी कहा नहीं। अलोपी अपने कर्तव्यपालन में वज्र के समान कठोर है तथा ममता में मोम की तरह कोमल है। इसके ये दो गुण ही अलोपी देवी की अलौकिकता को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त हैं। महादेवी के साथ उसका सम्बन्ध केवल मुँह से निकले स्वरों पर ही आधारित है। वह उनको उनकी भावना से ही पहचानता है। किन्तु उनके लिए उसके मन में गहरी सहानुभूति है। महादेवी यह बात कभी भी भूल नहीं सकती है।

विशेष –

    अलोपी महादेवी का आदर करता है। उनके लिए उनके मन में गहरी सहानुभूति है।
    महादेवी भी उसकी सहानुभूति को कभी भुला नहीं सकी हैं।
    भाषा तत्सम शब्दों से युक्त प्रवाहपूर्ण तथा सरल है।
    शैली वर्णनात्मक है।

9. अलोपी के अँधेरे जीवन का उपसंहार भी कम अंधकारमय न हो, इसका समुचित प्रबंध विधाता कर चुका था। एक दिन मेरे निकट बैठकर अपने-आप से संसार-चर्चा करती हुई भक्तिन ने सुनाया अलोपी घर बसा रहा है। मैं इतनी विस्मित हुई कि भक्तिन की कथाओं के प्रति सदा की उपेक्षा भूलकर ‘क्या’ कह उठी और तब भक्तिन ने उसी प्रसन्न मुद्रा में मेरी ओर देखा, जिससे भीष्म ने रथ का पहिया ले दौड़ने वाले कृष्ण को देखा होगा। पता चला, उसके कथन का प्रत्येक अक्षर बिना मिलावट का सत्य है। (पृष्ठ 107-108)

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित संस्मरण ‘अलोपी’ से उद्धृत है। यह हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित है।

प्रसंग – तीन साल से अलोपी महादेवी के यहाँ तरकारियाँ पहुँचा रहा था। उसकी आमदनी अच्छी होने लगी थी। वह कुर्ता पहनने तथा साफा भी बाँधने लगा था। वह एक विधवा काछिन की ओर आकर्षित हो चुका था और उससे शादी करना चाहता था।

व्याख्या – अलोपी नेत्रहीन था। उसके लिए जीवन में अँधेरा ही अँधेरा था। उसके इस अँधेरे से भरे जीवन का अन्त भी अंधकारपूर्ण ही हो विधाता ने इसका प्रबन्ध कर दिया था। भक्तिन महादेवी के पास आकर बैठती थी तथा दुनिया भर की बातें किया करती थी। महादेवी उनमें कोई रुचि नहीं लेती थी। एक दिन भक्तिन ने बताया कि अलोपी शादी कर रहा है। यह सुनकर महादेवी को अत्यन्त आश्चर्य हुआ। वह भक्तिन की बातों पर ध्यान नहीं देती थीं किन्तु उनके मुख से निकला-क्या। वह अपना उपेक्षा भाव भुला चुकी थीं। इस पर भक्तिन ने भी उनकी ओर प्रसन्नता के साथ देखा। वह महादेवी की उपेक्षा पर विजय पाकर प्रसन्न थी। जिस प्रकार महाभारत के युद्ध में शस्त्र न उठाने की अपनी प्रतिज्ञी को भुलाकर श्रीकृष्ण रथ का पहिया उठाकर भीष्म की ओर दौड़े थे और उनकी प्रतिज्ञा भंग कराकर भीष्म प्रसन्न हुए थे, उसी प्रकार महादेवी के द्वारा उत्सुकता करते हुए ‘क्या’ पूछने पर भक्तिन को भी प्रसन्नता हुई थी। बाद में पता चला कि भक्तिन ने जो बताया उसकी प्रत्येक बात सत्य थी।

विशेष –

    भक्तिन से यह अलोपी द्वारा शादी करने का समाचार सुनकर महादेवी भी उसको जानने के लिए उत्सुक हो उठीं।
    उधर भक्तिन प्रसन्न थी कि उसने अपनी बातों के प्रति महादेवी की उपेक्षा को नष्ट कर दिया था।
    भाषा सरल, सरस तथा प्रवाहपूर्ण है।
    शैली वर्णनात्मक है।
   

10. अंधे का दुःख पूँगा होकर आया था, अत: सांत्वना देने वाले उसके हृदय तक पहुँचने का मार्ग ही न पा सकते थे। मेरे बोलते ही वह लज्जा से इस तरह सिकुड़ जाता, मानों उसके चारों ओर ओले बरस रहे हों, इसी से विशेष कुछ कह-सुनकर उसका संकोचजनित कष्ट बढ़ाना जैसे उचित न समझा। पर अपने अपराध से अनजान और अकारण दंड की कठोरता से अवाक् बालक-जैसे अलोपी के चारों ओर जो अँधेरी छाया घिर रही थी, उसने मुझे चिंतित कर दिया था।

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘अलोपी’ शीर्षक संस्मरण से उद्धृत है। इसकी लेखिका महादेवी वर्मा हैं।

प्रसंग – अलोपी ने एक विधवा से शादी कर ली किन्तु उसकी पत्नी को उसमें नहीं उसके पैसे में रुचि थी। छ: महीने साथ रहने के बाद वह अलोपी की जमा-पूँजी समेटकर चुपचाप भाग गई । इस विश्वासघात से अलोपी का मन गहरे तक आहत हुआ।

व्याख्या – महादेवी कहती हैं कि अलोपी जन्मांध तो था ही, पत्नी के विश्वासघात के कारण पूँगा भी हो गया था। पहले वह बहुत बोलता था किन्तु अब उसने बोलना बंद कर दिया था। उसके मन में जो पीड़ा थी वह उसके मौन में प्रकट हो रही थी। उसको कोई सान्त्वना देता तब भी वह कुछ नहीं कहता था। अत: वह अपनी बातें उसके मन तक नहीं पहुँचा सकता था। महादेवी से संकोच करता था। अत: उससे कुछ पूछती तो वह लज्जित होकर बिल्कुल ही चुप हो जाता था। उससे अधिक पूछताछ करके महादेवी भी उसका दु:ख बढ़ाना नहीं चाहती थीं। अलोपी यह समझ नहीं पाया कि उसका अपराध क्या था तथा बिना कारण के उसको किस बात का दण्ड मिला था? अत: वह किसी बालक के समान अवाक् रह गया था। महादेवी को आभास हो रहा था कि उसके चारों ओर दुर्भाग्य की एक काली छाया घिर रही थी। इस कारण वह अलोपी के प्रति चिन्तित हो उठी थीं।

विशेष –

    अलोपी ने विवाह किया किन्तु पत्नी के विश्वासघात ने उसको तोड़ कर रख दिया।
    वह हताश तथा निराश हो गया। वाचाल अलोपी अब मूक हो गया था। निरपराध अलोपी अपने अज्ञात अपराध के लिए स्वयं को क्षमा नहीं कर पा रहा था।
    भाषा प्रवाहपूर्ण तथा सरल है।
    अलोपी के मन का विश्वासघातजनित पीड़ा का चित्रण हुआ है।
    शैली मनोविश्लेषणात्मक है।
    ‘अंधे का दु:ख पूँगा होकर आया था’. भावपूर्ण सूक्ति है।

11. बालक रग्घू के लिए दूसरे काम का प्रबंध कर मैंने अलोपी के शेष स्मारक पर विस्मृति की यवनिका डाल दी है; पर आज भी देहली की ओर देखते ही मेरी दृष्टि मानों एक छायामूर्ति में पूंजीभूत होने लगती है। फिर धीरे-धीरे उस छाया का मुख स्पष्ट हो चलता है। उसमें मुझे कच्चे काँच की गोलियों जैसी निष्प्रभ आँखें भी दिखाई पड़ती हैं और पिचके गालों पर सूखे आँसुओं की रेखा का आभास भी मिलने लगता है। तब मैं आँख मल-मल कर सोचती हूँ- नियति के व्यंग्य से जीवन और संसार के छल से मृत्यु पाने वाली अलोपी क्या मेरी ममता के लिए प्रेत होकर मँडराता रहेगा? (पृष्ठ 109)

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित संस्मरण ‘अलोपी’ से उद्धृत है। यह हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित है।

प्रसंग – पत्नी के विश्वासघात से आहत होकर अलोपी बालक रग्घू का सहारा लिए बिना ही किसी अज्ञात लोक की अनन्त यात्रा पर निकल गया। महादेवी उसमें हुए परिवर्तन को लेकर पहले ही आशंकित थी।

व्याख्या – महादेवी कहती हैं कि उन्होंने बालक रग्घू के लिए किसी काम का प्रबन्ध कर दिया, जिससे उसकी आजीविका चलती रहे। इसके पश्चात् उन्होंने अलोपी की स्मृति से मुक्ति पा ली किन्तु क्या वे इसमें सफल हो सक? वह कहती हैं कि आज भी जब वह दरवाजे की ओर देखती हैं तो जैसे एक परछाई वहाँ प्रकट होने लगती है। फिर धीरे-धीरे उस परछाई का चेहरा उनको साफ नजर आने लगता है। उस चेहरे में उनको कच्चे काँच की गोलियों के समान निस्तेज सी आँखें भी दिखाई देती हैं। उनको दिखाई देता है कि उसके पिचके हुए गालों पर होकर बहते हुए आँसू सूख गए हैं और उनकी रेखायें उसके गालों पर बन गई हैं। तब महादेवी बार-बार आँखों को मलती हैं और सोचती हैं कि भाग्य के व्यंग्य से जिसको जीवन मिला और संस्कार के धोखे से जिसको मृत्यु मिली, वह अलोपी क्या मरने के बाद भी उनकी ममता का आकांक्षी बनकर उनकी स्मृति में मँडराता रहेगा।

विशेष –

    अलोपी महादेवी का बहुत आदर करता था तथा महादेवी भी उसको बहुत स्नेह करती है।
    अलोपी की मृत्यु के बाद महादेवी ने उसको भुलाने का प्रयास किया किन्तु अलोपी उनकी स्मृति में सदा छाया रहा है।
    भाषा विषयानुरूप, सरल तथा प्रवाहपूर्ण है।
    शैली वर्णनात्मक है तथा उसमें काव्यात्मकता है।
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Saturday, April 8, 2017

हरिहर काका-Harihar Kaka -Lesson 1-Sanchayan-Hindi B- Class 10

प्रस्तुत है संचयन पुस्तक से लेखक मिथिलेश्वर जी द्वारा लिखा 'हरिहर काका ' पाठ का सार और
महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर सहित ---विडियो यहाँ देखें ->

हरिहर काका पाठ का सार

हिंदी छात्रों हेतु अल्पना वर्मा द्वारा तैयार किया गया.




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Saturday, April 1, 2017

अलंकार - भाग १ - Easy learning - Hindi Grammar


पाठ -अलंकार  -
इस भाग में शब्दालंकार के विषय में सरल भाषा में  जानकारी  दी गयी है ,
अनुप्रास,यमक,श्लेष और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार को उदहारण सहित समझाया गया है.
अतिरिक्त में ---फ़िल्मी गीतोंमें अलंकार प्रयोग के भी उदहारण दिए गए हैं !
पाठ समझने हेतु यह   विडियो देखें!

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Class 9 & 10-Main subjects syllabus for 2017-18

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