Friday, October 20, 2017

L-10-Vaakh-ललद्यद के वाख Class 9 A / Easy Explanation With Ques/Ans (2020)

ललद्यद के वाख Class 9 A / Easy Explanation With Ques/Ans (2020)
L-10-Vaakh-


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  •  ‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है? 
  • उत्तर: जीवन की नाव को खींचने के लिए किये जा रहे प्रयासों को रस्सी की संज्ञा दी गई है। यह रस्सी कच्चे धागे की बनी है अर्थात बहुत ही कमजोर है और कभी भी टूट सकती है।
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  •  कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?

    उत्तर: कवयित्री के प्रयास ऐसे  हैं जैसे कोई मिट्टी के कच्चे सकोरे में पानी भरने का प्रयास  कर रहा हो। ऐसे में पानी जगह से जगह से रिसने लगता है और सकोरा पूरा  भर नहीं पाता है। कवयित्री को लगता है कि इसी तरह भक्त के प्रयास निरर्थक साबित हो रहे हैं।
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     कवयित्री को ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?
    उत्तर: यहाँ पर भगवान से मिलने की इच्छा को 'घर जाने की चाह' बताया गया है।
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    बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?
    उत्तर: बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवयित्री  ने इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने का सुझाव दिया है। इसका मतलब है कि यदि आप सच्चे अर्थों  में भगवान को पाना चाहते हैं तो आपको लोभ और लालच से मोहभंग करना होगा।
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  •  ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?

    उत्तर:  कवयित्री का मानना है कि जो मनुष्य मंदिर-मस्जिद या विभिन्न देवी देवताओं में उलझा रहता है उसे ज्ञान नहीं मिल पाता है। जिसने आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया वही सच्चा ज्ञानी है।
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    ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?

    उत्तर: आई सीधी राह से, गई न सीधी राह्।
    सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह। 
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  • रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
    जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार्।
    पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
    जी में उठती रह रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे॥
    खा खाकर कुछ पाएगा नहीं,
    न खाकर बनेगा अहंकारी।
    सम खा तभी होगा समभावी,
    खुलेगी साँकल बंद द्वार की।
    आई सीधी राह से, गई न सीधी राह्।
    सुषुम सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।
    जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
    माझी को दूँ, क्या उतराई।
    थल थल में बसता है शिव ही,
    भेद न कर क्या हिंदू मुसलमां।
    ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
    वही है साहिब से पहचान॥
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