Sunday, March 22, 2020

नए इलाके में – Naye Ilake Me by Arun Kamal



नए इलाके में – Naye Ilake Me
इन नए बसते इलाकों में

जहाँ रोज़ बन रहे हैं नए-नए मकान

मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ



धोखा दे जाते हैं पुराने निशान

खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़

खोजता हूँ ढ़हा हुआ घर

और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ

मुड़ना था मुझे

फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का

घर था एकमंज़िला



और मैं हर बार एक घर पीछे

चल देता हूँ

या दो घर आगे ठकमकाता



यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है

रोज़ कुछ घट रहा है

यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं



एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया

जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ

जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ

अब यही है उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ

और पूछो – क्या यही है वो घर?



समय बहुत कम है तुम्हारे पास

आ चला पानी ढ़हा आ रहा अकास

शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।

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