Friday, July 19, 2019

कथा-पटकथा। Abhivyakti madhyam lesson Class 11 /NCERT/katha - patkatha

 कथा-पटकथा

कथा का अर्थ है- 'कहानी'
 पट का अर्थ है 'पर्दा'।
पटकथा अर्थात ऐसी कथा जो पर्दे पर दिखाई जाए।

  • फिल्मों या धारावाहिकों आदि का मूल आधार यह पटकथा ही होती है।
  • निर्देशक, अभिनेता, तकनीशियन, सहायकों आदि को अपने-अपने विभागों की सभी सूचनाएं व जानकारी पटकथा से ही मिलती है।
  • पटकथा किसी उपन्यास, कहानी, ऐतिहासिक पात्र, घटना आदि पर आधारित होती है।
  • नाटक की भांति पटकथा में पात्र चरित्र-चित्रण, नायक-प्रतिनायक, घटनास्थल, दृश्य, कहानी का क्रमिक-विकास आदि सब कुछ होता है।
  • द्वंद, टकराहट और फिर समाधान यह सब पटकथा के आवश्यक तत्व या अंग होते हैं।
  • पटकथा लेखक इन्हीं तत्वों को आधार बनाकर पटकथा की रचना करता है।
  • दृश्य पटकथा की मूल इकाई होता है। एक  स्थान पर एक ही समय में चल रहे कार्य व्यापार के आधार पर दृश्य की तरह की जाती है। स्थान, समय व  कार्य व्यापार आदि इन तीनों में से किसी एक के बदल जाने पर दृश्य बदल जाता है।

============== पटकथा और नाटक में अंतर==========

  • नाटक और पटकथा के कुछ तत्व समान होते हैं, किंतु पटकथा और नाटक में कुछ मूल अंतर भी होते हैं।
  • नाटक और पटकथा दोनों में दृश्य योजना होती है। किन्तु नाटक के दृश्य पटकथा के दृश्यों से लंबे होते हैं। इसी प्रकार नाटक में सीमित स्थान होता है जबकि फिल्म या टीवी सीरियल की पटकथा में कोई सीमा नहीं होती। प्रत्येक दृश्य किसी नए स्थान पर घटित हो सकता है।
  • दोनों दृश्यों में एक मूलभूत अंतर है कि नाटक एक सजीव कला माध्यम है इसमें  अभिनेता अपने जीवंत दर्शकों के सामने अपनी कला का प्रदर्शन करता है। जबकि  सिनेमा या टी वी में पूर्व रिकॉर्डेड छवियों या ध्वनियाँ होती हैं।
  •  नाटक को सीमित अवधि के दौरान ही मंचित किया जाता है, जबकि फिल्म का समय 2 दिन से 2 वर्ष तक भी हो सकता है।
  • नाटक के कार्य व्यापार व दृश्यों की संख्या और चरित्रों की संख्या सीमित होती है।  
  • सिनेमा टीवी में फ्लैशबैक या फ्लैश फॉरवर्ड अर्थात अतीत व आने वाले समय की कल्पना आदि को तकनीक के माध्यम से दिखाकर घटनाक्रम को किसी भी रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • नाटक में एक ही समय एक ही काल खंड की घटनाओं को प्रस्तुत किया जाता है। जबकि फिल्म या टीवी में एक ही समय में अलग-अलग स्थानों पर क्या घटित हो रहा है, को एक साथ दिखाया जा सकता है।
  • नाटक और पटकथा के अंतर को विभिन्न कहानियों को फिल्माने की प्रक्रिया से और भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

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फ़्लैशबैक तकनीक वह होती है जिसमें अतीत में घटी हुई किसी घटना को दिखाया जाता है। फ़्लैश फ़ॉरवर्ड वह तकनीक है जिसमें भविष्य में होनी वाली किसी घटना को पहले दिखा देते हैं। पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ की कहानी ‘गलता लोहा’ में मोहन जब घर से हँसुवे की धार लगवाने के लिए शिल्पकार टोले की ओर जाने लगता है तो वह फ़्लैशबैक में चला जाता है और उसे याद आ जाती है स्कूल में प्रार्थना करना। इसी कहानी में मोहन का लखनऊ पहुंचकर मुहल्ले में सब के लिए घरेलू नौकर जैसा काम करना।
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पटकथा लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  •     प्रत्येक दृश्य के साथ होने वाली घटना के समय का संकेत भी दिया जाना चाहिए।
  •     पात्रों की गतिविधियों के संकेत भी प्रत्येक दृश्य के प्रारंभ में देने चाहिए। जैसे-रजनी चपरासी को घूर रही है, चपरासी मज़े से स्टूल पर बैठा है। साहब मेज़ पर पेपरवेट घुमा रहा है। फिर घड़ी देखता है।
  •     किसी भी दृश्य का बँटवारा करते समय यह ध्यान रखा जाए कि किन आधारों पर  दृश्य का बँटवारा किया जा रहा है ।
  •     प्रत्येक दृश्य के साथ होने की सूचना देनी चाहिए।
  •     प्रत्येक दृश्य के साथ उस दृश्य के घटनास्थल का उल्लेख अवश्य करना चाहिए; जैसे-कमरा, बरामदा, पार्क, बस स्टैंड, हवाई अड्डा, सड़क आदि।
  •     पात्रों के संवाद बोलने के ढंग के निर्देश भी दिए जाने चाहिए; जैसे-रजनी (अपने में ही भुनभुनाते हुए)।
  •     प्रत्येक दृश्य के अंत में डिज़ॉल्व, फ़ेड आउट, कटटू जैसी जानकारी वश्य देनी चाहिए। इससे निर्देशक, एडीटर  को बहुत सहायता मिलती है।

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