कबीरदास
कबीर की भाषा -----
कबीर की भाषा में भोजपुरी, अवधी, ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, खड़ी बोली, उर्दू और फ़ारसी के शब्द घुल-मिल गए हैं।
अत: उनकी भाषा को 'सधुक्कड़ी' या 'पंचमेल खिचड़ी 'भी कहा जाता है।
साखी
संस्कृत के ‘ साक्षी', शब्द का विकृत रूप है ।इसका अर्थ होता है स्वयं देखा हुआ / कबीर दास की अधिकांश साखियाँ दोहों में लिखी गयी हैं ।
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागू पायँ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोबिंद दियौ बताय॥
कबीरदास जी ने गुरु का स्थान ईश्वर से श्रेष्ठ माना है। वे कहते है जब गुरु और गोविंद (भगवान) दोनों एक साथ खडे हों तब तो गुरु के चरणों मे शीश झुकाना उत्तम है क्योंकि गुरु ही हमको ईश्वर के बारे में ज्ञान प्रदान करते हैं ।उन्हीं की कृपा से ईश्वर का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
कबीरदास ने गुरु को गोविंद से ऊँचा स्थान क्यों दिया है ?
कबीर के अनुसार कौन परमात्मा से मिलने का रास्ता दिखाता है? ----> गुरु
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।
प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि॥
यहाँ पर ‘मैं’ और ‘हरि’ शब्द का प्रयोग क्रमशः अहंकार और परमात्मा के लिए किया है।
जब व्यक्ति में अहंकार होगा तब वह ईश्वर को पा नहीं सकता और जब उसे यह ज्ञान मिल जाता है तब मन से अहंकार रूपी अन्धकार दूर हो जाता है. मनुष्य के मन में प्रेम लाने के लिए आवश्यक है कि वह अपने अहंकार को दूर करे / जिस मन में प्रेम हो वहीँ ईश्वर होता है / अहंकार और ईश्वर एक साथ नहीं रह सकते .
मनुष्य के हृदय में "मैं" और "हरि" का वास एक साथ संभव क्यों नहीं है ?
काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय॥
"ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय" - पंक्ति में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
कबीरदास ने मुसलमानों के धार्मिक आडंबर पर व्यंग्य किया है।
पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली,पीस खाय संसार॥
इस दोहे द्वारा कवि ने मूर्ति-पूजा जैसे बाह्य आडंबर का विरोध किया है। कबीर मूर्ति पूजा के स्थान पर घर की चक्की को पूजने कहते है जिससे अन्न पीसकर खाते है।
पत्थर पूजने से यदि भगवान की प्राप्ति होती है, तो इसले लिए कबीर क्या करने को तैयार हैं और क्यों ?
सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बरनाय।
सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाय।।
यदि मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बना लूँ और संसार के सभी वृक्षों की कलम बनाकर , सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी ईश्वर के गुणों को लिखना संभव नहीं है !
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Please check the playlist of your book/Class for more lectures: https://www.youtube.com/user/alpanaverma208/playlists
कबीर की भाषा -----
कबीर की भाषा में भोजपुरी, अवधी, ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, खड़ी बोली, उर्दू और फ़ारसी के शब्द घुल-मिल गए हैं।
अत: उनकी भाषा को 'सधुक्कड़ी' या 'पंचमेल खिचड़ी 'भी कहा जाता है।
साखी
संस्कृत के ‘ साक्षी', शब्द का विकृत रूप है ।इसका अर्थ होता है स्वयं देखा हुआ / कबीर दास की अधिकांश साखियाँ दोहों में लिखी गयी हैं ।
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागू पायँ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोबिंद दियौ बताय॥
कबीरदास जी ने गुरु का स्थान ईश्वर से श्रेष्ठ माना है। वे कहते है जब गुरु और गोविंद (भगवान) दोनों एक साथ खडे हों तब तो गुरु के चरणों मे शीश झुकाना उत्तम है क्योंकि गुरु ही हमको ईश्वर के बारे में ज्ञान प्रदान करते हैं ।उन्हीं की कृपा से ईश्वर का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
कबीरदास ने गुरु को गोविंद से ऊँचा स्थान क्यों दिया है ?
कबीर के अनुसार कौन परमात्मा से मिलने का रास्ता दिखाता है? ----> गुरु
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।
प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि॥
यहाँ पर ‘मैं’ और ‘हरि’ शब्द का प्रयोग क्रमशः अहंकार और परमात्मा के लिए किया है।
जब व्यक्ति में अहंकार होगा तब वह ईश्वर को पा नहीं सकता और जब उसे यह ज्ञान मिल जाता है तब मन से अहंकार रूपी अन्धकार दूर हो जाता है. मनुष्य के मन में प्रेम लाने के लिए आवश्यक है कि वह अपने अहंकार को दूर करे / जिस मन में प्रेम हो वहीँ ईश्वर होता है / अहंकार और ईश्वर एक साथ नहीं रह सकते .
मनुष्य के हृदय में "मैं" और "हरि" का वास एक साथ संभव क्यों नहीं है ?
काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय॥
"ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय" - पंक्ति में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
कबीरदास ने मुसलमानों के धार्मिक आडंबर पर व्यंग्य किया है।
पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली,पीस खाय संसार॥
इस दोहे द्वारा कवि ने मूर्ति-पूजा जैसे बाह्य आडंबर का विरोध किया है। कबीर मूर्ति पूजा के स्थान पर घर की चक्की को पूजने कहते है जिससे अन्न पीसकर खाते है।
पत्थर पूजने से यदि भगवान की प्राप्ति होती है, तो इसले लिए कबीर क्या करने को तैयार हैं और क्यों ?
सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बरनाय।
सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाय।।
यदि मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बना लूँ और संसार के सभी वृक्षों की कलम बनाकर , सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी ईश्वर के गुणों को लिखना संभव नहीं है !
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