वीभत्स रस
घृणित वस्तुओं/दृश्य/ व्यक्ति को देखकर या उनके संबंध में सुनकर/सोच कर मन में उत्पन्न होने वाली घृणा ही वीभत्स रस उत्पन्न करती है / वीभत्स रस के लिए घृणा और जुगुप्सा का होना आवश्यक होता है।
वीभत्स रस के अवयव
उदाहरण -
सिर पर बैठो काग, आँखि दोउ खात निकारत
खींचत जी भहिं स्यार, अतिहि आनन्द उर धारत
गिद्ध जाँघ कह खोदि-खोदि के मांस उचारत
स्वान आँगुरिन काटि-काटि के खान बिचारत
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घृणित वस्तुओं/दृश्य/ व्यक्ति को देखकर या उनके संबंध में सुनकर/सोच कर मन में उत्पन्न होने वाली घृणा ही वीभत्स रस उत्पन्न करती है / वीभत्स रस के लिए घृणा और जुगुप्सा का होना आवश्यक होता है।
वीभत्स रस के अवयव
- स्थाई भाव : ग्लानि / जुगुप्सा।
- आलंबन (विभाव) : दुर्गंधमय मांस, रक्त, अस्थि आदि ।
- उद्दीपन (विभाव) : रक्त, मांस का सड़ना, उसमें कीड़े पड़ना, दुर्गन्ध आना, पशुओ का इन्हे नोचना खसोटना आदि।
- अनुभाव : नाक-भौं सिकोड़ना मुँह बनाना, थूकना, आँखें मींच लेना आदि।
- संचारी भाव : ग्लानि, आवेग, शंका, मोह, व्याधि, चिंता, वैवर्ण्य, जढ़ता आदि।
उदाहरण -
सिर पर बैठो काग, आँखि दोउ खात निकारत
खींचत जी भहिं स्यार, अतिहि आनन्द उर धारत
गिद्ध जाँघ कह खोदि-खोदि के मांस उचारत
स्वान आँगुरिन काटि-काटि के खान बिचारत
- स्थाई भाव : जुगुप्सा।
- आलंबन (विभाव) : मांस।
- उद्दीपन (विभाव) : गिद्ध का माँस नोचना ।
- अनुभाव : नाक-भौं सिकोड़ना , मुँह बनाना,आदि।
- संचारी भाव : ग्लानि, शंका, मोह, चिंता, आदि।
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