अक्क महादेवी
1. हे भूख! मत मचल
इन्द्रियों का काम है अपने को तृप्त करना इन्द्रियों की तृप्ति के फेर में मानव जीवन भर भटकता रहता है। इन्द्रियाँ मानव को विषय-वासनाओं के जाल में उलझाकर लक्ष्य पथ से भटकाती रहती है। ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में तो इन्द्रियाँ सबसे बड़ी बाधक होती है यह साधक को संसार की मोह-माया में उलझाकर रखती है और ईश्वर भक्ति के मार्ग की ओर बढ़ने नहीं देती। अत: यह सरासर सत्य है की लक्ष्य प्राप्ति में इन्द्रियाँ बाधक होती है।
‘अपना घर’ से यहाँ आशय व्यक्तिगत मोह-माया में लिप्त जीवन से है। व्यक्ति इस घर के आकर्षण-जाल में उलझकर ईश्वर प्राप्ति के लक्ष्य में पीछे रह जाता है। कवयित्री ऐसे मोह-माया में लिपटे जीवन को छोड़ने की बात करती है क्योंकि यदि ईश्वर को पाना है तो व्यक्ति को इस जीवन का त्याग करना होगा। ईश्वर भक्ति में सबसे बड़ी बाधा यही होती है। अपने घर को छोड़कर ही ईश्वर के घर में कदम रखा जा सकता है।
2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर
पूरी तरह झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।
इस वचन में ईश्वर से सबकुछ छीन लेने की बात की गई है। कवयित्री चाहती है कि वह सांसारिक वस्तुओं से पूरी तरह खाली हो जाए। उसे खाने के लिए भीख तक न मिले। ऐसी परिस्थिति आने पर उसका अंहकार भाव नष्ट हो जाएगा और वह प्रभु भक्ति में समर्पित हो जाएगी।
1. हे भूख! मत मचल
इन्द्रियों का काम है अपने को तृप्त करना इन्द्रियों की तृप्ति के फेर में मानव जीवन भर भटकता रहता है। इन्द्रियाँ मानव को विषय-वासनाओं के जाल में उलझाकर लक्ष्य पथ से भटकाती रहती है। ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में तो इन्द्रियाँ सबसे बड़ी बाधक होती है यह साधक को संसार की मोह-माया में उलझाकर रखती है और ईश्वर भक्ति के मार्ग की ओर बढ़ने नहीं देती। अत: यह सरासर सत्य है की लक्ष्य प्राप्ति में इन्द्रियाँ बाधक होती है।
‘अपना घर’ से यहाँ आशय व्यक्तिगत मोह-माया में लिप्त जीवन से है। व्यक्ति इस घर के आकर्षण-जाल में उलझकर ईश्वर प्राप्ति के लक्ष्य में पीछे रह जाता है। कवयित्री ऐसे मोह-माया में लिपटे जीवन को छोड़ने की बात करती है क्योंकि यदि ईश्वर को पाना है तो व्यक्ति को इस जीवन का त्याग करना होगा। ईश्वर भक्ति में सबसे बड़ी बाधा यही होती है। अपने घर को छोड़कर ही ईश्वर के घर में कदम रखा जा सकता है।
2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर
पूरी तरह झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।
इस वचन में ईश्वर से सबकुछ छीन लेने की बात की गई है। कवयित्री चाहती है कि वह सांसारिक वस्तुओं से पूरी तरह खाली हो जाए। उसे खाने के लिए भीख तक न मिले। ऐसी परिस्थिति आने पर उसका अंहकार भाव नष्ट हो जाएगा और वह प्रभु भक्ति में समर्पित हो जाएगी।