Tuesday, July 30, 2019

त्रिलोचन - चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती Aaroh 1 NCERT

चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती
 -त्रिलोचन 
Aaroh 1 NCERT
सार :-

‘चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती ’ कविता धरती संग्रह में संकलित है।

 यह कविता  पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त करती है।

इसमें ‘अक्षरों’ के लिए ‘काले-काले’ विशेषण का प्रयोग किया गया है जो एक ओर शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्विरोधों को उजागर करता है तो दूसरी ओर उस दारुण यथार्थ से भी हमारा परिचय कराता है जहाँ आर्थिक मजबूरियों के चलते घर टूटते हैं।

 काव्य नायिका चंपा  के मन में  भविष्य को लेकरअनजान खतरा है। वह कहती है ‘कलकत्ते पर बजर गिरे।” कलकत्ते पर वज़ गिरने की कामना, जीवन के खुरदरे यथार्थ के प्रति चंपा के संघर्ष और जीवन को प्रकट करती है।
चंपा गाँव की अनपढ़ बालिका है। उसे अक्षर ज्ञान नहीं है।
जब कवि पढ़ने लगता है तब वह वहाँ आकर चुपचाप खड़ी-खड़ी सुनती रहती है। वह  सुंदर ग्वाले की एक लड़की है ,गाएँ-भैसें चराने का काम करती है। वह अच्छी व चंचल है।
जब कवि  पढ़ता है तो चुपचाप पास खड़ी होकर आश्चर्य से सुनती है।
कभी वह कवि की कलम चुरा लेती है तो कभी कागज। इससे कवि परेशान हो जाता है।
चंपा कहती है कि दिन भर कागज लिखते रहना क्या अच्छा है? कवि हँस देता है।
एक दिन कवि ने चंपा से पढ़ने-लिखने के लिए कहा। उन्होंने इसे गाँधी बाबा की इच्छा बताया। चंपा ने कहा कि गाँधी जी को बहुत अच्छे बताते हो, फिर वे पढ़ाई की बात कैसे कहेंगे? कवि ने कहा कि पढ़ना अच्छा है। लेकिन वह कहती है कि नहीं पढ़ेगी।

 कवि समझाता है कि शादी के बाद तुम ससुराल जाओगी। तुम्हारा पति कलकत्ता काम के लिए जाएगा। अगर तुम नहीं पढ़ी तो उसके पत्र कैसे पढ़ोगी या अपना संदेशा कैसे दोगी? इस पर चंपा ने कहा कि तुम पढ़े-लिखे झूठे हो। वह शादी नहीं करेगी। यदि शादी करेगी तो अपने पति को कभी कलकत्ता नहीं जाने देगी। कलकत्ते पर बजर गिरे।” अर्थात कलकत्ता पर भारी विपत्ति आ जाए, ऐसी कामना वह करती है।

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