Wednesday, June 2, 2021

चित्रलिखित और 'किंकर्तव्यविमूढ़' का अर्थ

Chitralekha - Ravi Varma Press, Karla, Lonavala and Raja Ravi Varma —  Google Arts & Culture आज एक शब्द के विषय में हुई बहस में भाग लेने का अवसर मिल -मेरा उत्तर इस प्रकार था-

पाठक इसमें कोई दोष पायें तो  कृपया टिप्पणी में लिख दें।
सबसे पहले  धन्यवाद जो आपने मुझे आमंत्रित किया । आप ही के बताए शब्द के विषय में बताती हूँ -
'किंकर्तव्यविमूढ़' संस्कृत का शब्द है।
इसे ऐसे देखें- : किम् (क्या ) +‎ कर्तव्य (कार्य ) +‎ विमूढ( दुविधा/असमंजस में पड़ना  ,बुद्धि का चकरा जाना )
सीधा अर्थ है -: क्या कर्तव्य हो इस बारे में विमूढ़ता।
अब भी  स्थिति कभी भी आ  सकती है । इस स्थिति में आपके हाव-भाव से ज्ञात होगा कि आप दुविधा/confusion में हैं। चेहरा 'blank'नहीं होगा।आँखें स्थिर /जड़ नहीं होंगी , दिमाग सुन्न नहीं होगा,आप रास्ता सोचेंगे और उसके बाद जिसके कारण ऐसा हुआ उसके लिए कोई प्रतिक्रिया आप देंगे ।
जब किसी कलम या कूँची आदि की सहायता से चित्र अंकित किया जाता है तब वह प्रक्रिया चित्र लेखन कहलाती है ।
इसे हम चित्र निर्माण नहीं कहते । चित्र बनाने की कूँची को 'चित्रलेखा' भी कहते हैं
'चित्रलिखी' या 'चित्रलिखित' का अर्थ है चित्र के समान अंकित दिखायी देना या चित्र के समान दिखायी  देना या हो जाना ।
जब किसी में कोई हाव भाव नहीं वह जड़ दिखायी देती है तो कह देते हैं वह 'चित्रलिखी' सी हो गई ।
या किसी दृश्य या घटना के बाद आश्चर्य से भी यह स्थिति हो जाती है और दुख की अधिकता से भी ।
 जैसे कौशल्या की स्थिति राम के वन गमन के समय हो गई थी ,पुत्र वियोगिनी माता का दुख  तुलसीदास जी ने इस प्रकार लिखा  'कबहुँ समुझि वनगमन राम को रहि चकि चित्रलिखी सी। तुलसीदास वह समय कहे तें लागति प्रीति सिखी सी।
एक लेखिका ने पर्वतीय स्थल के सौन्दर्य से प्रभावित होकर ऐसी स्थिति में स्वयं को पाया -
'चित्रलिखित-सी मैं 'माया' और 'छाया' के इस अनूठे खेल को भर-भर आँखों देखती जा रही थी। प्रकृति जैसे मुझे सयानी (समझदार, चतूर) बनाने के लिए रहस्यों का उद्घाटन करने पर तुली हुई थी।'
ऐसी स्थिति से बाहर लाने के लिए कोई उद्दीपन चाहिए ,वह कोई आवाज हो सकती है या कोई स्पर्श या कुछ भी जो आपको वापस चेतना में ला दे !
'अहिल्या पत्थर बन गयी थी।' हम यह सुनते आए हैं यह उनकी ऐसी ही स्थिति थी जिसमें वे अपनी चेतनता (होश)को खो चुकी थी ।यहाँ उनकी स्थिति कुछ समय के लिए नहीं थी इसलिए कवि ने उन्हें चित्रलिखी सी नहीं कहा , 'पत्थर' कहा।

चित्रलिखित -चित्र हो जाना । चित्र बन जाना(रूपक अलंकार ) ,चित्रलिखी सा /सी -चित्र के समान (उपमा अलंकार ) जैसे :आप मेरे लिए भगवान जैसे ही हो,(उपमा)आप मेरे भगवान(रूपक) हो !


आज विद्यालयों में चित्रलेखन प्रतियोगिता को  'ड्रॉइंग काम्पिटिशन' कहा जाता है ,'चित्र 'देखकर अपने विचार लिखना ' को 'चित्र लेखन' कह देते हैं जो गलत है, चित्र देखकर लेखन  'चित्र वर्णन' कहलाता है । और भी बहुत से शब्द हम खो रहे हैं ।  हिन्दी से 'हिंगलिश' होते जाने की यह दुखद स्थिति है । कुछ दिनों में हम 'विद्यालय' शब्द पर भी बहस करेंगे क्योंकि अब हम इसे 'स्कूल' ही जानते हैं। आशा है मैं अपने  सीमित ज्ञान के आधार पर आपकी बात का उत्तर दे सकी हूँ। आभार।