*’निर्मला’ का प्रकाशन काल नवंबर 1925 से नवंबर 1926 तक ’चांद’ पत्रिका में क्रमशः रूप से मानते हैं व पुस्तक रूप में ’चांद’ प्रेस इलाहाबाद से 1927 में प्रकाशित।*
'निर्मला' दहेज तथा बेमेल विवाह की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है।
मुख्य पात्र
- बाबू उदयभानुलाल और उनकी पत्नी कल्याणी
- मुंशी तोताराम( पैंतीस वर्षीय वकील)
- निर्मला-मुंशी तोताराम की पत्नी(उम्र पंद्रह वर्ष )
- मन्साराम- मुंशी तोताराम का बड़ा बेटा
- रुक्मिणी- मुंशी तोताराम की बहन
- जियाराम, सियाराम- मुंशी तोताराम के छोटे बेटे
- कृष्णा : निर्मला की छोटी बहन
- सुधा : डॉक्टर सिन्हा की पत्नी
- डॉक्टर सिन्हा : मनसाराम का इलाज करने वाले डॉक्टर
सार :
बाबू उदयभानुलाल पेशे से वकील, चार बच्चे हैं ,दो बेटी (निर्मला और कृष्णा) और दो बेटे हैं ।
वे अपनी पंद्रह वर्षीय पुत्री निर्मला का विवाह बाबू भालचन्द्र के ज्येष्ठ पुत्र भुवनमोहन से पक्का करते हैं, परंतु जब अकस्मात् परिस्थितियों-वश बाबू उदयभानुलाल की मृत्यु हो जाती है, तब
निर्मला का विवाह इस परिवार से टूट जाता है।
परिवार पर आर्थिक संकट आ जाने के कारण परिवार के सदस्य पहले ही साथ छोड़कर जा चुके थे अतः पर्याप्त दहेज न होने के कारण निर्मला का विवाह अन्त में वकील साहब से करना तय हो जाता है जिनकी पिछली बीवी का स्वर्गवास हो गया है और उनसे उनके तीन बच्चे है। बड़ा लड़का मंशाराम, उससे छोटा जियाराम एवं सबसे छोटा सियाराम। दहेज आदि की वकील साहब द्वारा कोई मांग नहीं की जाती है। परिवार में वकील साहब व उनके तीन बच्चों के अलावा उनकी विधवा बहन रूकमिणी रहती है।
मुंशी तोताराम निर्मला को खुश रखने के लिये हर संभव प्रयास करते थे परन्तु जो व्यक्ति बाप की उम्र का हो उसके साथ मेल कैसे हो सकता है अतः निर्मला मुंशी जी से कटी-कटी रहती थी।
निर्मला मंशाराम से अंग्रेज़ी पढ़ती थी, परन्तु मुंशी जी का यूं मंशाराम से अंग्रेज़ी पढ़ना व साथ में उठना बैठना पंसद न आता, वह उन दोनों को संदेह की दृष्टि से देखने लगते हैं। इसी शक की वजह से तोताराम मंशाराम को हॉस्टल में डाल देते हैं।
हाॅस्टल में डाले जाने का कारण मंशाराम समझ जाता है तो उसे बड़ी ग्लानि होती है व खाना पीना छोड़ देता है अन्त में तबीयत ख़राब होने के कारण उसकी मृत्यु हो जाती है।
तोताराम का मंझला पुत्र जियाराम इस घटना के लिये निर्मला को ज़िम्मेदार ठहराता है इस कारण एक रात वह निर्मला के सारे गहने चोरी कर दोस्तों के साथ मिलकर सभी गहने बाज़ार में बेच देता है। चोरी का भेद खुल जाने के डर से वह आत्महत्या कर लेता है।
सबसे छोटा पुत्र सियाराम घर से भागकर साधु बन जाता है। इन सब घटनाओं से निर्मला अत्यधिक परेशान व व्यथित रहने लगती है। तोताराम भी सियाराम को ढूंढने के लिये घर से चले जाते है।
अन्त में ज़िन्दगी से जूझते हुये निर्मला भी मृत्यु को प्राप्त होती है। रुक्मिणी को भी अपनी गलती का अहसास होता है ।
जब घर से निर्मला की लाश निकाली जाती है और उसका 'अंतिम संस्कार कौन करेगा' का प्रश्न उठ रहा होता है तभी तोताराम घर लौटकर आ जाते है।
यहीं उपन्यास का अंत हो जाता है ।
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गौण कथा
डॉक्टर सिन्हा एवं उनकी पत्नी सुधा।
डॉक्टर सिन्हा ने तोताराम के पुत्र मंशाराम की चिकित्सा की थी इस कारण मुंशी जी के घर पर उनका आना जाना लगा रहा था। इसी दौरान निर्मला डाॅ. सिन्हा की पत्नी सुधा के सम्पर्क में आती है।
एक दिन सुधा एवं निर्मला के बीच हुई बातचीत के दौरान सुधा को पता चलता है कि उसके पति डा. सिन्हा वही व्यक्ति है जिनसे निर्मला का पहले विवाह तय हुआ था। परन्तु डा. सिन्हा ने निर्मला के परिवार से दहेज न मिल पाने की आशा से विवाह नहीं किया था।
सुधा की अनुपस्थिति में एक दिन डॉक्टर सिन्हा निर्मला से बुरा व्यवहार करते हैं जिसका पता सुधा को चल जाता है ,आत्मग्लानि से वे विष खाकर आत्महत्या कर लेते हैं।
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