Tuesday, May 14, 2019

हिंदी वर्णमाला Hindi Varnmala

किसी एक भाषा या अनेक भाषाओं को लिखने के लिए प्रयुक्त मानक प्रतीकों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं। 


**वर्णों के समुदाय को ही वर्णमाला कहते हैं। 

हिंदी भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है। 
इसी ध्वनि को ही वर्ण कहा जाता है।

हिन्दी वर्णमाला में 44 वर्ण हैं। 

उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी वर्णमाला के दो भेद किए गए हैं: 


(क) स्वर  (ख) व्यंजन (ग) अयोगवाह 


स्वर :- अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ  ॠ (११ स्वर )
ॠ को  कुछ विद्वान  हिंदी का स्वर नहीं मानते ,यह संस्कृत का स्वर है.
उसके स्थान पर आगत स्वर ऑ' को वर्णमाला में रखने की बात कही जाती है.

उत्पत्ति के अनुसार स्वरों  के दो भेद हैं--

१. मूल स्वर : जिन स्वरों उत्पत्ति अन्य स्वरों से नहीं होती हैं , वे मूल स्वर कहलाते हैं I
अथवा 
जो स्वर दूसरे स्वरों के मेल से ना बने हों , उन्हें मूल स्वर कहते हैं ।
हिंदी में तीन  मूल स्वर हैं :- अ , इ ,उ I
[ॠ संस्कृत का स्वर है  ] २. संधि स्वर :जिन स्वरों की रचना मूल स्वरों के संयोग से होती हैं, वे संधि स्वर कहलाते हैं ,ये संधि स्वर सात हैं -:

अ + अ = आ                        इ + इ = ई
उ +  उ = ऊ                         अ + इ = ए
अ + ए = ऐ                          अ + उ = ओ

अ + ओ = औ
***आ, ई, तथा ऊ दीर्घ सन्धि-स्वर हैं ।***
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जाति के अनुसार स्वरों के दो भेद हैं :-
१    सवर्ण या सजातीय – समान स्थान और प्रयत्न से उत्पन्न होने वाले स्वरों को सवर्ण या सजातीय स्वर कहते हैं । 
जैसे – अ, आ ; इ, ई ; उ, ऊ ।
२)   असवर्ण या विजातीय स्वर – जिन स्वरों के स्थान और प्रयत्न एक-से नही होते , वे असवर्ण या विजातीय स्वर कहलाते हैं ।
 जैसे – अ, ई ; अ, ऊ ; इ, ऊ ।
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मात्रा के संकेत चिह्न :
   अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ ,
          ा , ि‍ , ी , ु , ू , ृ , े , ै , ो , ौ ,

अ की  मात्रा नही होती , यह जब किसी व्यंजन के साथ मिलता है , तब व्यंजन का हल् चिह्न (्) लुप्त हो जाता है .  
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अं अः  (अयोगवाह (२)=स्वर-व्यंजन से अलग वर्ण  )
अं' अनुस्वार कहलाता है .
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व्यंजन :- 
जिन वर्णों  के उच्चारण में  स्वर की सहायता लेनी पड़ती हैं वे व्यंजन कहलाते हैं I

क ख ग घ ङ 
च छ ज झ ञ 
ट ठ ड ढ ण 
त थ द ध न
प फ ब भ म 
य र ल व 
श ष स ह (३३ व्यंजन )
(ड़, ढ़) 
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संयुक्त व्यंजन = क्ष, त्र,ज्ञ,ष (४)
क्ष’ संयुक्त अक्षर में क् और मूर्धन्य ष का योग है
त्र = त् + र ,        
ज् + ञ = ज्ञ 
  सब मिलाकर कुल वर्ण ११+३३+२+४=५२
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व्यंजन के भेद

१. स्पर्श व्यंजन
२. अंतस्थ व्यंजन

३. उष्म व्यंजन

१. स्पर्श व्यंजन - जिन वर्णों  का उच्चारण  करते समय जिह्वा मुख़ के विभिन्न भागों को [कण्ठ , तालू   , मूर्धा , दाँत  और ओष्ठ ] स्पर्श करती  है, इसलिए ये स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं  I

 इन्हें  वर्गीय व्यंजन भी कहा जाता है । 
 इन  पाँच वर्गों के वर्ण स्पर्श व्यंजन हैं (‘क्’ से ‘म्’ तक के वर्णों को स्पर्श व्यंजन कहते हैं ।) :-

क वर्ग, च वर्ग,ट वर्ग , त वर्ग , प वर्ग 

क)    क वर्ग – क, ख, ग, घ, ङ, कण्ठ 
ख)   च वर्ग – च, छ, ज, झ, ञ, तालु
ग)     ट वर्ग – ट, ठ, ड, ढ, ण, मूर्धा
घ)     त वर्ग – त, थ, द, ध, न, दन्त ('न' को छोड़कर ,)

ङ)     प वर्ग – प, फ, ब, भ, म, ओष्ठ    
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२. अंतस्थ व्यंजन :- इनका उच्चारण करते समय जिह्वा मुख के किसी भी भाग से स्पर्श नहीं करती Iइनका उच्चारण जीभ , तालु , दाँत , और ओठों के परस्पर सटाने से होता है ।
य् , र् , ल्  तथा  व् अंतस्थ व्यंजन हैं I


 इन चारों वर्णों को ‘अर्ध  स्वर’ भी कहा जाता है ।


३. उष्म व्यंजन :- इनका उच्चारण रगड़ या घर्षण से उत्पन्न ऊष्म वायु से होता है । या कहें ...>
   इनका उच्चारण करते समय एक प्रकार की उष्मा उत्पन्न होती हैI
ये ४ उष्म व्यंजन हैं --श  ष , स , ह  

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