Wednesday, May 15, 2019

रसखान के पद अर्थ सहित




धूरि भरे अति शोभित श्याम जू,
तैसि बनी सिर सुन्दर चोटी
खेलत खात फिरै अँगना,
पग पैजनिया कटि पीरि कछौटी
[कृष्ण धूल भरे आंगन में खेलते- खाते हुए फिर रहे हैं,उनके सर पर सुन्दर चोटी बनी है और पाँव में घुँघरू बज रहे हैं ,कमर  में  पीली कछौटी ( अंगवस्त्र )पहन हुआ है ]

वा छवि को रसखान बिलोकत,
वारत काम कलानिधि कोटी
[रसखान कहते हें कि कृष्ण के इस रूप को देख कर करोड़ों कामदेव और करोड़ो चंद्रमा वारे जा सकते हैं।]
काग के भाग बड़े सजनी,
हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी"
[श्री कृष्ण के हाथ में माखन रोटी है जिसे कौआ आकर  ले जाता है
वे उस कौवे के भाग्य पर ईर्ष्या करते हैं जो साक्षात् हरि अर्थात  भगवान  के हाथ से रोटी छीनकर ले भागा है ।
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सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तू पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥

जिनकी महिमा शेषनाग, गणेश, महेश, सूर्य, और इंद्र लगातार गाते रहते हैंIवेदों ने जिन्हें अनादि, अनंत, अखंड, अछेद और अभेद बताया हैIनारद, शुकदेव और व्यास ने जिन्हे पहचान कर संसार को पार कर लिया; उन्हीं भगवान कृष्ण को अहीर की  लड़कियाँ कटोरे भर छाछ पर नचाती हैं।
इस पद में निगुर्ण और सगुण, ज्ञान और प्रेम का  संगम देखने को मिलता है ।

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मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥

रसखान  कहते हैं यदि मनुष्य बनूँ तो गोकुलगाँव के ग्वालों के बीच रहूँ , यदि पशु बनूँ तो नंद की गायों के बीच रहकर घास चरा करूँ , पत्थर बनूँ तो उसी पहाड़ का बनूँ जिसे इंद्र के कोप से बचने के लिये कृष्ण ने छत्र की तरह उठा लिया था और अगर पक्षी बनूँ तो कालिंदी (यमुना) के किनारे कदम्ब की डालों पर बसेरा करूँ ।

उनका  तात्पर्य है कि वे हर जनम में हर रूप में कृष्ण के समीप रहना चाहते हैं I
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