Thursday, April 7, 2022

क्या निराश हुआ जाए /पाठ व्याख्या सहित / Explanation /CBSE / ISC

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1 – लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है फिर भी वह निराश नहीं है। 

आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?

उत्तर – लेखक आशावादी दृष्टिकोण के हैं। उन्हें लगता है कि जब तक देश में कहीं न कहीं थोड़ी बहुत भी सचाई  और ईमानदारी है तब तक यह आशा रहेगी  कि हम  अपने सपनों का भारत अभी भी पा सकते हैं। यही कारण है कि लेखक धोखा खाने पर भी निराश नहीं होते हैं।

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2 दोषों का पर्दाफ़ाश करना कब बुरा रूप ले सकता है?

उत्तर – दोषों का पर्दाफ़ाश करना तब बुरा रूप ले लेता है जब किसी के आचरण के गलत पक्ष को बढ़ा-चढ़ा कर या तोड़-मरोड़ कर दिखाया जाता है ।

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प्र॰3 – आजकल के बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल ‘दोषों का पर्दाफ़ाश’ कर रहे हैं। 

इस प्रकार समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता पर तर्क सहित विचार लिखिए?

उत्तर – दोषों का पर्दाफ़ाश करना सही  है किन्तु जब मीडियाकर्मी किसी स्वार्थ वश अथवा चैनल और अखबार को प्रचारित करने के लिए 

समाचार को तोड़ मरोड़ कर  प्रस्तुत करते हैं तब यह पर्दाफ़ाश आम लोगों के लिए बुराई का रूप धारण कर लेता है।

 समाचार तभी सच्चे और अच्छे हो सकते हैं जब उनमें  सार्थकता हो और उसके हर पक्ष को सही रूप में प्रस्तुत किया जाए। 

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क्या निराश हुआ जाए’ शीर्षक निबंध के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – ‘क्या निराश हुआ जाए‘ शीर्षक निबंध हिंदी के सुप्रसिद्ध चिंतक, इतिहासकार व निबंधकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित है। इस  निबंध में आचार्य द्विवेदी ने आज के भारत और भारतवासियों की चिंतन-मनन शैली व आचार-विचार का मूल्यांकन किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि भौतिकवाद के प्रहार से आज हमारे सामाजिकों में कई प्रकार के संक्रमण आ चुके हैं, जो देश और मानवता के विरुद्ध पड़ते हैं। 

आज जीवन के उदात्त मूल्यों के प्रति आस्था डगमगाती दिखाई देती है परंतु इससे निराश होने की कोई बात नहीं है। उन्होंने तर्क दिया है कि सभी लोगों में, सब समय में निराशाजनक स्थितियाँ नहीं देखी जाती।आज भी मानवता, सेवा-भावना, ईमानदारी सच्चाई और आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति आस्था बनी हुई है। 

लेखक ने अपनी विचारधारा को पुष्ट करने के लिए अपने साथ जुड़ी बीती दो घटनाओं का वर्णन किया है। एक बार बरेली  स्टेशन पर टिकट लेते समय दस रुपए के नोट की बजाय वे सौ रुपए का नोट टिकट वाले को  देते हैं। थोड़ी देर बाद टिकट-खिड़की  पर बैठा वह क्लर्क बाबू प्रत्येक व्यक्ति का चेहरा परखते-पहचानते. हुए उनके पास आता है। वह अत्यंत विनम्रता से भूल के कारण अधिक दे दी गई धनराशि लौटा देता है।

 दूसरी घटना एक बस-यात्रा की है। एक बार लेखक बस द्वारा यात्रा कर रहा था। उसके साथ उसकी पत्नी तथा बच्चे भी थे। कोई पाँच मील की यात्रा तय करने के बाद बस एक सुनसान जगह पर रुक गई। सभी यात्री घबरा उठे। कंडक्टर एक साइकिल लेकर चलता बना। लोगों को संदेह हुआ क्योंकि दो दिन पहले भी इसी स्थान पर एक बस लूटी गई थी बच्चे पानी पानी चिल्ला रहे थे। कुछ नवयुवकों ने ड्राइवर को पकड़कर पीटने की योजना बनाई। ड्राइवर घबरा गया। लोगों ने उसे पकड़ लिया। उसने लेखक से आग्रह किया कि वह उसे बचाए लेखक स्वयं भी भयभीत था, परंतु उसने किसी प्रकार ड्राइवर को मारपीट से बचा लिया।लोगों ने ड्राइवर को मारा तो नहीं, पर बस से उतार कर एक जगह घेर कर रखा। उसी समय देखा कि एक खाली बस आ रही थी और उस पर हमारी बस का कंडक्टर सवार था। वह लेखक के बच्चों के लिए दूध और पानी भी लेकर आया था। यात्रियों ने ड्राइवर से क्षमा माँगी और आई हुई बस पर बैठकर बस अड्डे पर पहुंच गए।इस तरह लेखक ने बताया  है कि उनके जीवन में ऐसी असंख्य घटनाएँ घटी हैं जिनसे सिद्ध होता है कि लोगों में ईमान, सत्यनिष्ठा, परोपकार, दया, सहयोग आदि मूल्यों के प्रति अभी भी वैसी ही आस्था है जैसी हमारे इतिहास व परंपरा में पाई जाती थी। अत: निराश होने की आवश्यकता कदापि नहीं है। इस प्रकार यह शीर्षक सटीक तथा सार्थक है।

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Sunday, April 3, 2022

चित्त जहाँ भय-विहीन /व्याख्या / Chitt jahan Bhay vihin Poem Explanation

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चित्त जहाँ शून्य, शीश जहाँ उच्च है
ज्ञान जहाँ मुक्त है, जहाँ गृह –प्राचीरों ने
वसुधा को आठों पहर अपने आँगन में
छोटे-छोटे टुकडें बनाकर बंदी नहीं किया है

जहाँ वाक्य उच्छ्वसित होकर हृदय के झरने से फूटता
जहाँ अबाध स्रोत अजस्र सहस्र विधि चरितार्थता में
देश-देश और दिशा दिशा में प्रवाहित होता है

जहाँ तुच्छ आचार का फैला हुआ मरुस्थल
विचार के स्रोत पथ को सोखकर
पौरुष को विकर्ण नहीं करता
सर्व कर्म चिंता और आनन्दों के नेता
जहाँ तुम विराज रहे हो

हे पिता, अपने हाथ से निर्दय आघात करके
भारत को उसी स्वर्ग में जागृत करो !
(भवानी प्रसाद मिश्र)
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जहां चित्‍त भय से शून्‍य हो
जहां हम गर्व से माथा ऊंचा करके चल सकें
जहां ज्ञान मुक्‍त हो
जहां दिन रात विशाल वसुधा को खंडों में विभाजित कर
छोटे और छोटे आंगन न बनाए जाते हों

जहां हर वाक्‍य ह्रदय की गहराई से निकलता हो
जहां हर दिशा में कर्म के अजस्‍त्र नदी के स्रोत फूटते हों
और निरंतर अबाधित बहते हों
जहां विचारों की सरिता
तुच्‍छ आचारों की मरू भूमि में न खोती हो
जहां पुरूषार्थ सौ सौ टुकड़ों में बंटा हुआ न हो
जहां पर सभी कर्म, भावनाएं, आनंदानुभुतियाँ तुम्‍हारे अनुगत हों
हे पिता, अपने हाथों से निर्दयता पूर्ण प्रहार कर
उसी स्‍वातंत्र्य स्‍वर्ग में इस सोते हुए भारत को जगाओ.
(शिवमंगल सिंह "सुमन")

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संस्कृति है क्या / व्याख्या सहित /Sanskruti hai kya Lesson Explanation/ ...