विशेष लेखन
समाचार पत्रों ,टीवी या रेडियो के लिए सामान्य समाचारों के अलावा खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा या मनोरंजन आदि विभिन्न क्षेत्रों और विषयों संबंधित घटनाएँ, समस्याएँ आदि से संबंधित लेखन विशेष लेखन कहलाता है।
इस प्रकार के लेखन की भाषा और शैली अन्य सामान्य समाचारों की भाषा-शैली से अलग होती है।
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- विशेष लेखन के महत्वपूर्ण क्षेत्र ---
खेल, कारोबार, सिनेमा, मनोरंजन, फैशन, स्वास्थ्य विज्ञान, पर्यावरण, शिक्षा, जीवनशैली, रहन-सहन जैसे क्षेत्र विशेष लेखन हेतु महत्वपूर्ण हैं।
- जिन रिपोर्टरों द्वारा विशेषीकृत रिपोर्टिग की जाती है, उन्हें विशेष संवाददाता कहते हैं।
- वह पत्रकारिता, जो किसी घटना की तह में जाकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और पाठकों को उसका महत्त्व बताए, विशेषीकृत पत्रकारिता कहलाती है।
- कारोबार एवं व्यापार क्षेत्र से जुड़ी पाँच शब्दावली -मुद्रा-स्फीति
तेजड़िए
बिकवाली
निवेशक
व्यापार घाटा
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प्रश्न:
डेस्क से आप क्या समझते हैं? अथवा डेस्क किसे कहते हैं?
उत्तर –
समाचार-पत्रों, टीवी, रेडियो चैनलों में विशेष लेखन के लिए अलग डेस्क होता है, जिन पर समाचारों का संपादन करके छपने योग्य बनाया जाता है।
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प्रश्न :
पत्रकारिता में ‘बीट’ शब्द का क्या अर्थ है?
अथवा
मीडिया की भाषा में ‘बीट’ किसे कहते हैं?
उत्तर –
समाचार कई प्रकार के होते हैं; जैसे-राजनीति, अपराध, खेल, आर्थिक, फ़िल्म तथा कृषि संबंधी समाचार आदि। संवाददाताओं के बीच काम का बँटवारा उनके ज्ञान एवं रुचि के आधार पर किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे ही बीट कहते हैं।
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विशेष लेखन के किन्हीं पाँच क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर –
खेल
अर्थ-व्यापार
विज्ञान प्रौद्योगिकी
कृषि
पर्यावरण
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प्रश्न :
बीट रिपोर्टर की रिपोर्ट कब विश्वसनीय मानी जाती है?
उत्तर –
बीट रिपोर्टर को अपने बीट (क्षेत्र) की प्रत्येक छोटी-बड़ी जानकारी एकत्र करके कई स्रोतों द्वारा उसकी पुष्टि करके विशेषज्ञता हासिल करना चाहिए। तब उसकी खबर विश्वसनीय मानी जाती है।
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विशेष लेखन क्यों किया जाता है?
उत्तर –
विशेष लेखन इसलिए किया जाता है, क्योंकि
- इससे समाचार-पत्रों में विविधता आती है और उनका कलेवर व्यापक होता है।
- पाठकों की रुचियों को ध्यान में रखते हुए उन्हें निरंतर विषय विशेष संबंधित ताज़ा जानकारी देने के लिए विशेष लेखन किया जाता है।
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बीट रिपोर्टिग और विशेषीकृत रिपोर्टिग में अंतर
बीट रिपोर्टिग और विशेषीकृत रिपोर्टिग के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतर यह है कि अपनी बीट की रिपोर्टिग के लिए संवाददाता में उस क्षेत्र के बारे में जानकारी और दिलचस्पी का होना पर्याप्त है। इसके अलावा एक बीट रिपोर्टर को आमतौर पर अपनी बीट से जुड़ी सामान्य खबरें ही लिखनी होती हैं। लेकिन विशेषीकृत रिपोर्टिग का तात्पर्य यह है कि आप सामान्य खबरों से आगे बढ़कर उस विशेष क्षेत्र या विषय से जुड़ी घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं का बारीकी से विश्लेषण करें और पाठकों के लिए उसका अर्थ स्पष्ट करने की कोशिश करें।
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विशेष लेखन की भाषा और शैली
विशेष लेखन का संबंध जिन विषयों और क्षेत्रों से है, उनमें से अधिकांश क्षेत्र तकनीकी रूप से जटिल हैं और उनसे जुड़ी घटनाओं तथा मुद्दों को समझना आम पाठकों के लिए कठिन होता है। इसलिए इन क्षेत्रों में विशेष लेखन की जरूरत पड़ती है, जिससे पाठकों को समझने में मुश्किल न हो। विशेष लेखन की भाषा और शैली कई मामलों में सामान्य लेखन से अलग होती है। उनके बीच सबसे बुनियादी फ़र्क यह होता है कि हर क्षेत्र-विशेष की अपनी विशेष तकनीकी शब्दावली होती है जो उस विषय पर लिखते हुए आपके लेखन में आती है।
जैसे कारोबार पर विशेष लेखन करते हुए आपको उसमें इस्तेमाल होने वाली शब्दावली से परिचित होना चाहिए। दूसरे, अगर आप उस शब्दावली से परिचित हैं तो आपके सामने चुनौती यह होती है कि आप अपने पाठक को भी उस शब्दावली से इस तरह परिचित कराना चाहिए ताकि उसे आपकी रिपोर्ट को समझने में कोई दिक्कत न हो।
उदाहरणार्थ-‘सोने में भारी उछाल’, ‘चाँदी लुढ़की’ या ‘आवक बढ़ने से लाल मिर्च की कड़वाहट घटी’ या ‘शेयर बाजार ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़े, सेंसेक्स आसमान पर’ आदि के अलावा खेलों में भी ‘भारत ने पाकिस्तान को चार विकेट से पीटा’, ‘चैंपियंस कप में मलेशिया ने जर्मनी के आगे घुटने टेके’ आदि शीर्षक सहज ही ध्यान खींचते हैं।
विशेष लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं होती। लेकिन अगर हम अपने बीट से जुड़ा कोई समाचार लिख रहे हैं तो उसकी शैली उलटा पिरामिड शैली ही होगी। लेकिन अगर आप समाचार फीचर लिख रहे हैं तो उसकी शैली कथात्मक हो सकती है। इसी तरह अगर आप लेख या टिप्पणी लिख रहे हों तो इसकी शुरुआत भी फ़ीचर की तरह हो सकती है। जैसे हम किसी केस स्टडी से उसकी शुरुआत कर सकते हैं, उसे किसी खबर से जोड़कर यानी न्यूजपेग के जरिये भी शुरू किया जा सकता है। इसमें पुराने संदभों को आज के संदर्भ से जोड़कर पेश करने की भी संभावना होती है।
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