Sunday, June 5, 2022

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!

 आज के शब्द में पढ़ें : वसंत पंचमी और निराला की याद

 बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!

यह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव बंधु!

वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी सुनती थी, सहती थी,
देती थी सबके दाँव, बंधु! 

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सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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Friday, June 3, 2022

उद्यमी नर व्याख्या सहित कविता/Udyami Nar /ISC Hindi /Detailed Explana...




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===मनुष्य को कर्मरत रहने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं
श्रम की महत्ता बताई है । भाग्य और कर्म का विवाद पुराना है।
प्रकृति के भीतर जितनी भी धन संपदा छिपी हैं।

प्रकृति के भीतर  अनंत ऐश्वर्य छुपे हैं जिनका उपभोग करके प्रशवी पर रहने वाले सभी निवासी अपनी इच्छानुसार नुसार सुख पा सकते हैं ।स्वाभाविक रूप से /सहजता से सभी प्रकार से समान रूप से सुख पा सकते हैं ,वे चाहें तो इस प्रथिवी  को स्वरग बना सकते हैं ।

 ईश्वर ने सभी तत्त्वों को आवरण के नीचे छुपा दिया है जिन्हें जुझारू/कर्मवीर /मेहनती  मनुष्यों ने अपने परिश्रम और संघर्षों  से खोज निकाल है,
मनुष्य अपना भाग्य ब्रह्मा(भाग्य का विधाता ) से लिखवा कर नहीं लाया जो पाया वह अपने परिश्रम से पाया है।

प्रकृति कभी भाग्य के भरोसे रहें वाले के भाग्य के  बल पर डरकर नहीं झुकती। मेहनती जनों से
परिश्रम नर से ही प्रकृति ,वीर और उद्यमी मनुष्य अपने परि श्रम के बल
भाग्य को बदल सकता है।

Wednesday, June 1, 2022

Badal ko ghirte dekha hai/ Explanation /कवि नागार्जुन

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शब्दार्थ:
१. अमल-स्‍वच्‍छ
२. तुहिन- ओस
३. विसतंतु- कमल की नाल के भीतर स्‍थित कोमल रेशे या तंतु
४. विरहित- अलग
५. शैवाल- पानी के ऊपर उगने वाली घास, सेवार
६. अलख- जो दिखाई न दे
७. परिमल- सुगंध
८. किन्‍नर- स्‍वर्ग के गायक
९. धवल- श्‍वेत
१०. सुघड़- सुंदर
११. वेणी- चोटी
१२. त्रिपदी- तिपाई
१३. शोणित-रक्‍त
१४. कुंतल- बाल
१५. कुवलय- नील कमल



-   कवि का नाम नागार्जुन तथा कविता का नाम ‘बादल को घिरते देखा है’ है। कवि नागार्जुन आधुनिक काल की
    जनवादी काव्‍यधारा के प्रमुख कवि हैं।