समास
समास – Samaas https://youtu.be/ebckDmh4urg
- Avyayibhav https://youtu.be/vPVuccFuPbY
- Tatpurush https://youtu.be/MgWjIKJficU
- karmdharay https://youtu.be/y5gwxtajc8w
- Bahubrihi https://youtu.be/zFfZkCcMCZI
- Dwigu https://youtu.be/KdLBUVj9aHw
- Dwandw https://youtu.be/PLNYQnCk1AI
All Samaas in one Short Video : https://youtu.be/ebckDmh4urg
समास का अर्थ है—संक्षिप्त करना।
लाभ +*वाक्यों को सुनने और पढ़ने में समय का बचाव
*बोलना ,पढ़ना , लिखना अधिक सुविधाजनक
समस्तपद – समास युक्त पद को समस्तपद कहते हैं।
पूर्वपद – समास के विग्रह में प्रथम पद को पूर्वपद कहते हैं।
उतरपद – समास के विग्रह में दूसरे पद को उतरपद कहते हैं।
संधि व समास के अंतर
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संधि =
- इसमें वर्णो का मेल होता है ।इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है।
- संधि को तोड़ना संधि-विच्छेद कहलाता है।
समास =
- इस में शब्दों का मेल होता है।
- समास को तोड़ना समास-विग्रह कहलाता है।
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हिंदी व्याकरण में समास के 4 भेद हैं –
1) अव्ययीभाव समास –
- पहला पद प्रधान होता है।
- पहला पद या पूरा पद अव्यय होता है।[ आमरण,प्रतिदिन ,प्रत्येक
- यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयुक्त हो, वहाँ भी अव्ययीभाव समास होता है। [घर-घर,हाथों-हाथ,साफ-साफ ]
- संस्कृत के उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभव समास होते हैं [यथाशक्ति,यथाशीघ्र ,यथाक्रम ]
[(वे शब्द जो लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार नहीं बदलते, उन्हें अव्यय कहते हैं)
2) तत्पुरुष समास –
तत्पुरुष समास में दोनों पदों के बीच आने वाली विभक्तियों का लोप होता है।
(i) तत्पुरुष समास में पहला [पूर्वपद] गौण, दूसरा पद (उत्तर पद ) प्रधान होता है अर्थात् विभक्ति का लिंग, वचन दूसरे पद के अनुसार होता है।
(ii) इसका विग्रह करने पर कर्ता व सम्बोधन की विभक्तियों (ने, हे, ओ, अरे) के अतिरिक्त
किसी भी कारक की विभक्ति प्रयुक्त होती है तथा विभक्तियों के अनुसार ही इसके उपभेद होते
हैं।अर्थात विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है।
जैसे –
(क) कर्म तत्पुरुष (को)
वन-गमन = वन को गमन
जेब कतरा = जेब को कतरने वाला
(ख) करण तत्पुरुष (से/के द्वारा)
हस्त-लिखित = हस्त से लिखित
रत्न जडि़त = रत्नों से जडि़त
(ग) सम्प्रदान तत्पुरुष (के लिए)
हवन-सामग्री = हवन के लिए सामग्री
विद्यालय = विद्या के लिए आलय
गुरु-दक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
(घ) अपादान तत्पुरुष (से पृथक्)
ऋण-मुक्त = ऋण से मुक्त
देश-निकाला = देश से निकाला
(च) सम्बन्ध तत्पुरुष (का, के, की)
राजमाता = राजा की माता
अमचूर =आम का चूर्ण
(छ) अधिकरण तत्पुरुष (में, पे, पर)
वनवास = वन में वास
जीवदया = जीवों पर दया
--------------तत्पुरुष समास के कुछ अन्य उपभेद
नञ् तत्पुरुष
“नहीं” अर्थ वाले “नञ्”का जब दूसरे शब्द के साथ समास हो जाता है
इस समास का पहला पद 'नञ्'. (अर्थात् नकारात्मक) होता है। अर्थात् जो निषेधार्थ प्रकट करे, नञ समास कहलाता है ।
/
पूर्वपद न या अन लगाकर नञ् तत्पुरुष समास बनता है
[अब हिंदी में इन पूर्वपदों को उपसर्ग मान कर समास पदों से अलग उपसर्गों से बनने वाले शब्द मान लिए गए हैं ]
जैसे-
अजर – न जर
अनंत-न अंत,
अभाव-न भाव,
निडर -न डर
,अनिष्ट-न इष्ट
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नञ् तत्पुरुष
“नहीं” अर्थ वाले “नञ्”का जब दूसरे शब्द के साथ समास हो जाता है
इस समास का पहला पद 'नञ्'. (अर्थात् नकारात्मक) होता है। अर्थात् जो निषेधार्थ प्रकट करे, नञ समास कहलाता है ।
/
पूर्वपद न या अन लगाकर नञ् तत्पुरुष समास बनता है
[अब हिंदी में इन पूर्वपदों को उपसर्ग मान कर समास पदों से अलग उपसर्गों से बनने वाले शब्द मान लिए गए हैं ]
जैसे-
अजर – न जर
अनंत-न अंत,
अभाव-न भाव,
निडर -न डर
,अनिष्ट-न इष्ट
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उपपद तत्पुरुष समास – ऐसा समास जिनका उत्तरपद भाषा में स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर प्रत्यय के रूप में ही प्रयोग में लाया जाता है
कृतघ्न , जलद , .......
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लुप्तपद तत्पुरुष समास – जब किसी समास में कोई कारक चिह्न अकेला लुप्त न होकर पूरे पद सहित लुप्त हो और तब उसका सामासिक पद बने तो वह लुप्तपद तत्पुरुष समास कहलाता है ;
जैसे -ऊँटगाड़ी – ऊँट से चलने वाली गाड़ी
a) कर्मधारय समास –
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है।
या -
कर्मधारय समास में पूर्वपद विशेषण /उपमान और उतरपद विशेष्य /उपमेय होता है।
उपमेय -उपमान का क्रम उल्ट कर उपमान- उपमेय भी हो सकता है।
- विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच में 'के समान' , 'है जो' , 'रूपी' में से किसी एक शब्द का प्रयोग होता है ।
कमलनयन = कमल के समान नयन
चरणकमल - कमल के समान / कमल रूपी चरण
चरणकमल - कमल के समान / कमल रूपी चरण
आम्रवृक्ष-आम्र है जो वृक्ष
b) द्विगु समास –
पहला पद संख्यावाची विशेषण और दूसरा पद विशेष्य होता है।
समूहवाची समास
3) द्वंद्व समास
दोनों पद समान रूप से प्रधान
दोनों पदों के बीच योजक चिह्न (-) होता है।
4) बहुव्रीहि समास –
- बहुव्रीहि समास दो या दो से अधिक पदों का होता है.
- -इसमें तीसरा पद प्रधान होता है जिसकी ओर दोनों पद इशारा कर रहे हो।
- -विग्रह करने पर नया शब्द निकलता है पहला पद विशेषण नहीं होता है विग्रह करने पर समूह का बोध भी नहीं होता है.
- नीलकण्ठ - नीला है कण्ठ जिसका अर्थात् 'शिव'।
- त्रिलोचन – तीन लोचन हैं जिसके अर्थात् शिव
- विषधर – विष धारण किया है जिसने अर्थात् शिव
- मुरलीधर – मुरली को धारण किया है जिसने अर्थात् श्रीकृष्ण.
- दशानन –दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
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कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर
कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। जैसे -
बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञादि का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है।
जैसे -
- विषधर – विष धारण किया है जिसने अर्थात् शिव
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****कई व्याकरण की पुस्तकें इस तरह से भेद बताती हैं=
समास के छः भेद हैं:
अव्ययीभाव
तत्पुरुष
द्विगु
द्वन्द्व
बहुव्रीहि
कर्मधारय
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