१.कुन्दन को रंग फीको लागै, झलकै अति अंगन चारु गुराई।
आँखिन में अलसानि चितौन में मंजु बिलासन की सरसाई।।
को बिन मोल बिकात नहीं मतिराम लहै मुसकानि मिठाई।
ज्यों ज्यों निहारिए नेरे है नैनहि, त्यों त्यों खरी निकरै सी निकाई।।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक .....के पाठ ‘प्रेम और सौन्दर्य’ के 'मतिराम के छन्द’ शीर्षक से लिया गया है। इसके कवि मतिराम हैं।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद में कवि ने नायिका के सौन्दर्य का वर्णन किया है।
व्याख्या :
कवि कहता है कि नायिका के अंग-अंग में झलकने वाले सौन्दर्य के आगे स्वर्ण (सोने) की छवि भी फीकी लगती है। उसके नेत्र अलसाए हुए हैं और उसकी चितवन में मधुर विलास का सौन्दर्य है। कवि मतिराम कहते हैं कि उसकी मुसकान इतनी मीठी है कि देखने वाला ऐसा कौन है जो 'बिना मोल नहीं बिक जाता 'है अर्थ यह है कि जो उसके सौन्दर्य को देखता है वही उसपर मोहित हो जाता है। जैसे-जैसे पास जाकर उसके नेत्रों(आँखों ) को निहारो वैसे-वैसे ही उसकी सुन्दरता और अधिक बढ़ती जाती है।
विशेष :
- पद में प्रयुक्त भाषा 'ब्रजभाषा' है।
- ' कुन्दन को रंग फीकौ लगै' में व्यतिरेक अलंकार है।
- अति अंगन, 'आँखिन अलसान' ,ज्यों-ज्यों, त्यों-त्यों में अनुप्रास अलंकार है।
- 'बिन मोल बिकात’ में लोकोक्ति का प्रयोग है।
- संयोग शृंगार रस है और गुण माधुर्य है .
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