- महाभोज मन्नू भंडारी द्वारा लिखा गया एक बहुत ही चर्चित हिंदी उपन्यास है।
- यह एक ओर तंत्र के शिकंजे की तो दूसरी ओर जन की नियति के द्वन्द की दारुण कथा है।
- कहें तो यह विद्रोह का राजनैतिक उपन्यास है ।
अपराध और राजनीति के गठजोड़ का यथार्थवादी चित्रण किया गया है। - महाभोज उपन्यास का ताना-बाना सरोहा नामक गाँव के इर्द-गिर्द बुना गया है।
- सरोहा गाँव उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में स्थित है, जहाँ विधान सभा की एक सीट के लिए चुनाव होने वाला है। कहानी बिसेसर उर्फ़ बिसू की मौत की घटना से प्रारंभ होती है।
- सरोहा गाँव की हरिजन बस्ती में आगजनी की घटना में दर्जनों व्यक्तियों की निर्मम हत्या हो चुकी थी।
- बिसू के पास इस हत्याकाण्ड के प्रमाण थे, जिन्हें वह दिल्ली जाकर सक्षम प्राधिकारियों को सौंपना और बस्ती के लोगों को न्याय दिलाना चाहता था। किंतु राजनीतिक षडयंत्र द्वारा बिसू को ही जेल में डाल कर इस प्रतिरोध को कुचल देने का प्रयास किया जाता है।
- बिसू की मौत के पश्चात उसका साथी बिंदेश्वरी उर्फ़ बिंदा इस प्रतिरोध को ज़िंदा रखता है।
- बिंदा को भी राजनीति और अपराध के चक्र में फँसाकर सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है। अंततः नौकरशाही वर्ग का ही एक चरित्र, पुलिस अधीक्षक सक्सेना, वंचितों के प्रतिरोध को जारी रखता है।
- राजनीति और नौकरशाही के सूत्रधारों ने सारे ताने-बाने को इस तरह उलझा दिया है कि वह जनता को फांसने और घोटने का जाल बनकर रह गया है.
- इस जाल की हर कड़ी महाभोज के दा साहब की उँगलियों के इशारों पर सिमटती और कहती है/ हर सूत्र के वे कुशल संचालक हैं. उनकी सरपरस्ती में राजनीति के खोटे सिक्के समाज चला रहे हैं...खरे सिक्के एक तरफ फेंक दिए गए हैं
- जातिगत समीकरण किस प्रकार भारतीय स्थानीय राजनीति का अनिवार्य अंग बन गये हैं, उपन्यास की केंद्रीय चिंता है। पिछड़ी और वंचित जाति के लोगों के साथ अत्याचार और प्रतिनिधि चरित्रों द्वारा उसका प्रतिरोध कथा को गति प्रदान करता है।उपन्यास में नैतिकता, अंतर्द्वंद्व, अंतर्विरोध से जूझते सत्ताधारी वर्ग, सत्ता प्रतिपक्ष, मीडिया और नौकरशाही वर्ग के अवसरवादी चरित्र पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की है।
मुख्य पात्र
- बिसेसर उर्फ़ बिसू (मुख्य पात्र)
- हीरा (बिसू के पिता)
- बिंदेश्वरी प्रसाद उर्फ़ बिंदा
- रुक्मा (बिंदा की पत्नी)
- दा साहब (मुख्यमंत्री, गृह मंत्रालय का प्रभार भी)
- सदाशिव अत्रे (सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष)
- जोरावर (स्थानीय बाहुबली और दा साहब का सहयोगी)
- सुकुल बाबू (सत्ता प्रतिपक्ष, पूर्व मुख्यमंत्री और सरोह गाँव की विधानसभा सीट के प्रत्याशी)
- लखनसिंह (सरोहा गाँव की सीट से सत्ताधारी पार्टी का प्रत्याशी, दा साहब का विश्वासपात्र)
- लोचनभैया (सत्ताधारी पार्टी के असंतुष्ट विधायकों के मुखिया)
- सक्सेना (पुलिस अधीक्षक)
- दत्ता बाबू (मशाल समाचार पत्र के संपादक)