वायु को संस्कृत में 'प्राण' कहते हैं ।
1. अल्पप्राण –
कम हवा से उच्चरित ध्वनि ‘अल्पप्राण’ कही जाती है ।
- प्रत्येक वर्ग का पहला , तीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्पप्राण है ।
- सभी स्वर अल्पप्राण हैं ।
- क, च, ट, त, प । ग, ज, ड, द, ब, ।
2. महाप्राण –
अधिक हवा से उत्पन्न ध्वनि ‘महाप्राण’ कही जाती है ।
- प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण महाप्राण है ।
- ख, छ, ठ, थ, फ ।घ, झ, ढ, ध, भ ।
- इसमें विसर्ग की तरह ‘ह’ की ध्वनि सुनाई पड़ती है ।
- सभी ऊष्म वर्ण महाप्राण हैं ।
3. अनुनासिक [अल्पप्राण]
स्पर्श वर्णों में प्रत्येक वर्ग का अंतिम यानी पाँचवाँ वर्ण नासिका से बोला जाता है , ये अनुनासिक कहलाते हैं।
ङ, ञ, ण, न, म
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