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Saturday, June 27, 2020
खून का रिश्ता (कहानी ) भीष्म साहनी /Khoon ka rishta
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उद्देश्य
प्रत्येक कहानी के मूल में एक केन्द्रीय भाव होता है, जो कहानी को मौलिक आधार प्रदान करता है।
यही कहानी का उद्देश्य कहलाता है।
साहनी जी ने ‘खून का रिश्ता’ कहानी के माध्यम से दहेज उन्मूलन करने,
मानवता तथा भाईचारे की भावना को सुदृढ़ करने आदि पर जोर दिया है। व्यक्ति की वैचारिकता में उदारता,
ममत्व और समता भाव संचारित करना कहानी का मूल उद्देश्य है। इस कहानी में वीरजी की माँ द्वारा अपने
बेटे की खुशी के लिए समस्त आदर्शों का त्याग करना पाठकों को चकित करने वाला है।
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Karmnasha ki haar /कर्मनाशा की हार /Story narration (Audio)
Tuesday, June 23, 2020
विनय के पद |Vinay ke pad |Explanation |ICSE Class 10
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सूर के पद||Sur ke pad|Class 9 & 10 |Explanation & Q Ans/ICSE
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दो कलाकार। Do kalakaar।मन्नू भंडारी। Class 10 Hindi
===============Q Answers ++++++coming up!
भेड़ और भेड़िये Bhed aur Bhediye हरिशंकर परसाई/Explanation
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Q Answers
--------------------Coming up!
संदेह - जयशंकर प्रसाद Sandeh :Explanation
Q Answers
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Bade ghar ki beti।Explanation। बड़े घर की बेटी।प्रेमचन्द/प्रश्न उत्तर
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- नंबरदार – गाँव का भूस्वामी;
- मरम्मत – ठीक करना;
- निर्बल – बलहीन, कमज़ोर;
- वैद्यक ग्रंथ – चिकित्सा सम्बन्धी पुस्तक;
- निर्वाह – निभानेवाला;
- बहरी – बाज जैसा एक शिकारी पक्षी;
- शिकरे – बाज से छोटा एक शिकारी पक्षी;
- रीझ – प्रसन्न होना;
- टीमटाम – श्रृंगार, सजावट;
- भावज – भाई की पत्नी, भाभी;
- फिकायत – बचत करना;
- तिनक – चिढ़ना, गुस्सा होना;
- ढिठाई – दुस्साहस;
- उजड्ड – गवार, असभ्य;
- खड़ाऊँ – काठ की बनी खूटीदार पादुका;
- सुधि – ध्यान रहना;
- शऊर – तरीका, ढंग;
- दब्बू – दबकर रहनेवाला;
- हथकंडा – षड्यंत्र;
- घुड़का – डाँटना;
- मुगदर – व्यायाम के लिए लकड़ी की बनी मुंगरी;
- खरल – दवा कूटने के पत्थर की कँडी।
उत्तर:
‘बड़े घर की बेटी’ कहानी के लेखक मुंशी प्रेमचन्द हैं।
इस काहनी के माध्यम से लेखक ने स्पष्ट किया है कि किसी भी घर में पारिवारिक शांति और सामंजस्य बनाए रखने में घर की स्त्रियों की अहम् भूमिका होती है। घर की स्त्रियों अपनी समझदारी से टूटते और बिखरते परिवारों को भी जोड़ सकती है। साथ की लेखक ने संयुक्त परिवारों की उपयोगिता को भी इस कहानी के माध्यम से सिद्ध किया है।
आनंदी के पिता का नाम लिखिए।
उत्तर:
आनंदी के पिता का नाम भूपसिंह था।
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उत्तर:बेनी माधवसिंह के पिता ने गाँव में मन्दिर, पक्का तालाब आदि बनवाये थे।
उत्तर:
बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव के ज़मीनदार थे।
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उत्तर:
ठाकुर साहब के दो बेटे थे।
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बेनीमाधव सिंह अपनी आधी से अधिक संपत्ति किसे भेंट के रूप में दे चुके थे?
उत्तर:
बेनीमाधव सिंह अपनी आधी से अधिक संपत्ति वकीलों को भेंट कर चुके थे।
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ठाकुर साहब के बड़े बेटे का नाम क्या था?
उत्तर:
ठाकर साहब के बड़े बेटे का नाम श्रीकंठ सिंह था।
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श्रीकंठ कब घर आया करते थे?
उत्तर:
श्रीकंठ सिंह शनिवार को घर आया करते थे।
उत्तर:
लालबिहारी सिंह ने थाली उठाकर पलट दी।
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गौरीपुर गाँव के जमीनदार कौन थे?
उत्तर:
बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव के जमीनदार थे।
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किसकी आँखें लाल हो गयी थी?
उत्तर:
श्रीकंठ की आँखे लाल हो गयी थीं।
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बिगड़ता हुआ काम कौन बना लेती हैं?
उत्तर:
बड़े घर की बेटियाँ बिगड़ता हुआ काम बना लेती हैं।
उत्तर:
ठाकुर साहब के छोटे बेटे का नाम लाल बिहारी सिंह था।
उत्तर:
श्रीकंठ सिंह का ब्याह आनंदी के साथ हो गया।
उत्तर:
मुगदर की जोड़ी श्रीकंठ ने बनवा दी थी।
उत्तर:
बुद्धिमान लोग मूर्खों की बातों पर ध्यान नहीं देते।
उत्तर:
आनंदी स्वभाव से ही दयावती थी।
आनंदी ने अपने ससुराल में क्या रंग-ढंग देखा?
उत्तर:
आनंदी एक बड़े घर की बेटी थी। वह अपने घर में सभी सुख-सुविधाओं में पली थी। वे सारी सुख-सुविधाएँ यहाँ ससुराल में नहीं थीं। यहाँ न तो बाग-बगीचे थे, न मकान में खिड़की और जमीन पर फर्श। फिर भी आनंदी ने कुछ ही दिनों में अपने आपको इस घर के अनुकूल बना लिया।
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लालबिहारी आनंदी पर क्यों बिगड़ पड़ा?
उत्तर:
एक दिन लालबिहारी सिंह ने माँस पकाने के लिए कहा। आनंदी ने माँस पकाते समय हाँड़ी में जो घी था, वह सब डाल दिया। जब लालबिहारी ने दाल में घी डालने के लिए कहा, तो आनंदी ने कहा कि माँस पकाने में घी खत्म हो गया। इसी कारण लालबिहारी आनंदी पर बिगड़ गया।
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आनंदी बिगड़ता हुआ काम कैसे बना लेती है?
उत्तर:
श्रीकंठ सिंह के छोटे भाई लालबिहारी सिंह के अभद्र व्यवहार से आनंदी क्रोधित हो जाती है। गुस्से में उसने अपने पति से सारी शिकायतें कीं। झगड़ा इतना बढ़ गया कि घर टूटने तक पहुँच गया। तब बिखरते हुए घर को देखकर आनंदी शांत हो जाती है और लालबिहारी को घर छोड़कर जाने से रोक लेती है। इस प्रकार आनंदी बिगड़ते काम को बना लेती है।
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आनंदी का ब्याह श्रीकंठ सिंह के साथ कैसे हो गया?
उत्तर:
भूपसिंह अपनी चौथी लड़की आनंदी के लिए विवाह देख रहे थे। तभी एक दिन श्रीकंठ सिंह उनके पास नागरी-प्रचार का चंदे का रूपया माँगने आये। भूपसिंह उनके स्वभाव पर रीझ गए और धूमधाम से श्रीकंठ सिंह का आनंदी के साथ ब्याह हो गया।
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बेनी माधव ने आनंदी को बड़े घर की बेटी क्यों कहा?
आनंदी का देवर जब घर छोड़कर जाने लगा तो स्वयं आनंदी ने आगे बढ़कर अपने देवर को रोक लिया और अपने किए पर पश्चाताप करने लगी। आनंदी ने अपने अपमान को भूलकर दोनों भाइयों में सुलह करवा दी थी। अत: बिगड़े हुए काम को बना देने के कारण बेनी माधव ने आनंदी को बड़े घर की बेटी कहा
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इस कहानी से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर:
इस कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि यदि हम उदार हैं, दूसरों के प्रति सहृदय हैं तो बड़ी-से-बड़ी विपत्ति भी दूर हो जाती है। आज के संयुक्त परिवारों को टूटने से बचाने वाली यह कहानी शिक्षाप्रद है। इस कहानी की नायिका अपने देवर के अभद्र व्यवहार से बहुत दु:खी होती है पर देवर द्वारा सच्चे हृदय से माफी माँगने पर वह उसे क्षमा कर देती है तथा जब वह घर छोड़ने की बात कहता है तो अपनी सौगन्ध देकर तथा उसका हाथ पकड़कर रोक लेती है। ऐसा करके वह टूटते परिवार को बचा लेती है।
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किस घटना ने आनन्दी के हृदय को परिवर्तित कर दिया? विवरण सहित लिखिए।
उत्तर:
श्रीकंठ के मुख से यह बात सुनकर कि अब मैं लालबिहारी की सूरत नहीं देखना चाहता। लालबिहारी तिलमिला गया तथा कपड़े पहनकर आनन्दी के द्वार पर आकर बोला-“भाभी, भैया ने निश्चय किया है कि वह मेरे साथ इस घर में न रहेंगे। अब वह मेरा मुँह नहीं देखना चाहते, इसलिए अब मैं जाता हूँ। उन्हें फिर मुँह न दिखाऊँगा। मुझसे जो कुछ अपराध हुआ, उसे क्षमा करना।” लालबिहारी की इस बात से आनन्दी का हृदय परिवर्तित हो गया वह अपने कमरे से निकली और लालबिहारी का हाथ पकड़ लिया और कहा “तुम्हें मेरी सौगंध, अब एक पग भी आगे न बढ़ाना” बाद में श्रीकंठ का हृदय भी पिघल गया और दोनों भाई गले लगकर फूट-फूटकर रोए। इस प्रकार आनन्दी ने अपने उदार हृदय से टूटते हुए घर को बचा लिया।
निम्नलिखित शब्द-युग्मों से पुनरुक्त और विलोम शब्द युग्म छाँटकर लिखिए।
गरम-गरम, फूट-फूट, साथ-साथ, अच्छा-बुरा, सुख-दुख, दिन-रात।
उत्तर:
पुनरुक्त शब्द – गरम-गरम, फूट-फूट, साथ-साथ।
विलोम शब्द – अच्छा-बुरा, सुख-दुख, दिन-रात।
Mahayagy ka purskarl महायज्ञ का पुरस्कार l Q Ans /Sahity Sagar/ICSE
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लेखक परिचय
यशपाल
हिन्दी साहित्य के प्रेमचंदोत्तर युगीन कथाकार हैं।
जन्म 3 दिसम्बर, 1903 ई. में फ़िरोजपुर छावनी में हुआ था।
वे विद्यार्थी जीवन से ही क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े थे।
माँ श्रीमती प्रेमदेवी ,पिता हीरालाल।
विप्लव
रचनाएँ : ज्ञानदान ,अभिशप्त , तर्क का तूफ़ान
भस्मावृत चिनगारी ,वो दुनिया
फूलों का कुर्ता ,धर्मयुद्ध,उत्तराधिकारी ,
चित्र का शीर्षक ,बात-बात में बात ,देखा, सोचा, समझा ,
'गांधीवाद की शव-परीक्षा' ,दिव्या
मनुष्य के रूप,अमिता
झूठा-सच आदि ।
पुरस्कार: 'देव पुरस्कार' (1955), 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' (1970), 'मंगला प्रसाद पारितोषिक' (1971) तथा भारत सरकार के 'पद्म भूषण' की उपाधि ।
निधन - 26 दिसंबर, 1976 को हुआ ।
कहानी का उद्देश्य
कहानी महायज्ञ का पुरस्कार का उद्देश्य यह है कि अपनी इच्छाओं या मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए धन-दौलत लुटाकर किया गया यज्ञ, वास्तविक यज्ञ नहीं हो सकता बल्कि नि:स्वार्थ और निष्काम भाव से किया गया कर्म ही सच्चा महायज्ञ कहलाता है। स्वयं कष्ट सहकर दूसरों की सहायता करना ही मानव-धर्म है। इसी का उदाहरण एक गरीब सेठ इस कहानी में अपने आचरण द्वारा प्रस्तुत करता है ।
शीर्षक की सार्थकता
कहानी का शीर्षक 'महायज्ञ का पुरस्कार' इसके घटनाक्रम के अनुसार उचित है।
इस कहानी में एक गरीब सेठ अपना भोजन एक भूखे कुत्ते को दे देता है जिसे वह महायज्ञ नहीं मानता बल्कि मानवोचित कार्य कहता है।वह धन्ना सेठ से इस मानवीय कर्म के बदले में पैसे नहीं लेता।
अंत में ईश्वर की कृपा-दृष्टि से सेठ जी के द्वारा किए गए नि:स्वार्थ कर्म का फल उन्हें घर के तहखाने में मौजूद हीरे-जवाहरात के रूप में मिला। जोकि उनके महायज्ञ का पुरस्कार था । यही घटनाक्रम इस शीर्षक की सार्थकता सिद्ध करता है।
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शब्द =अर्थ
पौ फटना - सूर्योदय Sunrise
आद्योपांत - शुरू से अंत तक from beginning to the end
कोस - लगभग दो मील के बराबर नाप
तहखाना - ज़मीन के नीचे बना कमरा
प्रथा - रिवाज़ ritual/tradition
बेबस - विवश / Helpless
धर्मपरायण - धर्म का पालन करने वाला
विस्मित - हैरान Surprise
कृतज्ञता - उपकार मानना Obliged
उल्लसित - प्रसन्न Happy
विपदग्रस्त - मुसीबत में फँसे in trouble
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प्रश्न : उन दिनों क्या प्रथा प्रचलित थी?
उन दिनों एक कथा प्रचलित थी। यज्ञों के फल को खरीदा -बेचा जा सकता था। छोटा-बड़ा जैसा यज्ञ होता, उनके अनुसार मूल्य मिल जाता।
प्रश्न : गरीब सेठ की पत्नी /सेठानी ने एक यज्ञ बेचने का सुझाव क्यों दिया?
ऐसा सुझाव इसलिए दिया क्योंकि वे आर्थिक तंगी से परेशान थे और उन दिनों यज्ञों के फल को खरीदा -बेचा जा सकता था। छोटा-बड़ा जैसा यज्ञ होता, उनके अनुसार मूल्य मिल जाता।सम्पन्नता के समय उन्होंने बहुत से यज्ञ किये थे और उन्हें आशा थी कि उनको कुछ मदद मिल जायेगी ।
प्रश्न :भूखे कुत्ते को रोटियाँ खिलाने को सेठ ने महायज्ञ क्यों नहीं माना?
उत्तर : सेठ बहुत ही विनम्र, धर्मपरायण तथा उदार थे। स्वयं भूखे रहकर भी एक भूखे कुत्ते को अपनी चारों रोटियाँ खिला दीं। धन्ना सेठ की त्रिलोक-ज्ञाता पत्नी ने सेठ के इस कृत्य को महाज्ञय की संज्ञा दी, तो सेठ ने इसे केवल कर्त्तव्य-भावना का नाम दिया।क्योंकि गरीब होने पर भी उन्होंने अपने कर्त्तव्य को हमेशा सर्वोपरि माना और उसी के अनुरूप आचरण दिखाया था । सेठ का मानना था कि भूखे कुत्ते को रोटी खिलाना मानव का कर्त्तव्य है।
प्रश्न : कहानी के अनुसार महायज्ञ क्या था? इसके बदले में सेठ को क्या मिला?
उत्तर :कहानी के अनुसार लेखक मानते हैं कि अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए धन-दौलत लुटाकर किया गया यज्ञ, वास्तविक यज्ञ नहीं हो सकता बल्कि बिना किसी स्वार्थ या फल की चिंता करते हुए किया गया कार्य ही सच्चा महायज्ञ कहलाता है। स्वयं कष्ट सहकर दूसरों की सहायता करना ही मानव-धर्म है। सेठ ने खुद भूखे रहकर भूखे कुत्ते को रोटी खिलाई । उन्होंने अपने कर्म को मानवीय-कर्त्तव्य समझा और उसे धन्ना सेठ को नहीं बेचा।
बाद में ईश्वर की कृपा से सेठ को अपने घर में एक तहखाने में हीरे-जवाहरात मिले। यही सेठ के 'महायज्ञ का पुरस्कार' था।
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सेठ का चरित्र चित्रण /लेखक ने धनी सेठ की किन – किन विशेषताओं का वर्णन किया है
सेठजी कहानी के मुख्य पात्र हैं, वे अत्यंत विनम्र ,धर्म परायण और उदार प्रवृत्ति के हैं।
वे बहुत ही परोपकारी और त्यागी हैं ,मानवीय धर्म-कर्म को समझते हैं और उसका पालन करते हैं ।
वे निस्वार्थी हैं ।
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सेठ की पत्नी /सेठानी का चरित्र चित्रण
- वह एक पतिव्रता स्त्री है और सुख-दुख में पति का साथ देती है।
- वह मधुर बोलने वाली , धर्म-परायण, बुद्धिमति, समझदार और दूरदर्शी है।
- वह संतोषी और धैर्यवान भी है ।
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धन्ना सेठ की सेठानी के विषय में क्या अफवाहें फैली थी?
धन्ना सेठ की सेठानी को दिव्य शक्तियाँ प्राप्त थी, जिससे वे लोगों की बात जान लेती थी।
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Baat Athanni ki बात अठन्नी की Sahity Sagar (Audio)
अभी सच और झूठ का पता चल जाएगा। अब सारी बात हलवाई के सामने ही कहना।
(i) प्रस्तुत वाक्य का वक्ता कौन है ? श्रोता का परिचय दीजिए।
वक्ता बाबू जगतसिंह हैं। श्रोता रसीला इनके यहाँ नौकरी करता है। वह एक ईमानदार, सीधा व स्वामिभक्त नौकर था। वह सोचता था कि बाबू जी उस पर बहुत विश्वास करते हैं। अत: कम तनख्वाह होने पर भी किसी दूसरे के यहाँ जाकर नौकरी नहीं करना चाहता था। उसके बूढ़े पिता, पत्नी और तीन बच्चे गाँव में रहते थे। वह अपनी सारी तनख्वाह गाँव भेज दिया करता था
(ii) "अभी सच और झूठ का पता चल जाएगा" बाबू जी के इस कथन के
पीछे छिपे संदर्भ को स्पष्ट रूप में लिखिए।
बाबू जी ने रसीला से पाँच रुपए की मिठाई मँगवाई थी। रसीला बहुत ईमानदार था। उसने रमज़ान से कुछ रुपए उधार लिए थे जिसमें से केवल आठ आने देने बाकी थे। उस दिन रसीला साढ़े चार रुपए की मिठाई लाया और आठ आने रमज़ान को देकर अपना कर्ज़ चुका दिया। बाबू जी मिठाई देखते ही पहचान गए कि यह कम है और रसीला ने हेरा-फेरी की है। इसलिए वह हलवाई के पास जाकर सच व झूठ का पता लगाना चाहते थे।
(iii) बाबू जगतसिंह कौन थे ? उन्होंने रसीला से ऐसा क्या कहा जो उसके
चेहरे का रंग उड़ गया ? रसीला की प्रतिक्रिया भी लिखिए।
बाबू जगतसिंह इंजीनियर थे और रसीला उनके यहाँ काम करता था।
एक बार पाँच रुपए की मिठाई मँगवाने पर रसीला साढ़े चार रुपए की मिठाई लाया।
उसने आठ आने रमज़ान को दिए जो उसके कर्ज़ के बचे हुए थे।
बाबू जगतसिंह मिठाई देखते ही चौंक गए थे। उन्होंने जैसे ही रसीला से पूछा कि क्या यह
मिठाई पाँच रुपए की है ? रसीला के चेहरे का रंग उड़ गया। वह बहुत डर गया था।
उसने आखिर में सच कह दिया कि उससे गलती हो गई है।
(iv) रसीला के झूठ बोलने का पता चलने पर बाबू जगतसिंह ने रसीला के
साथ कैसा व्यवहार किया ? उनका व्यवहार आपको कैसा लगा ?
समझाकर लिखिए।
रसीला के झूठ बोलने पर बाबू जगतसिंह बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने उसके गाल पर तमाचा मारा।
हलवाई के पास चलने को कहा। रसीला के द्वारा गलती स्वीकार करने पर भी
जगतसिंह ने रसीला को माफ़ नहीं किया। वह उसे थाने ले गए, वहाँ सिपाही को पाँच रुपए देकर
रसीला से सच उगलवाने के लिए कहा। जगतसिंह ने सिपाही से यह भी कहा कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
बाबू जगतसिंह का अपने नौकर के प्रति ऐसा व्यवहार अत्यंत अनुचित है। वह उसकी पहली गलती है जिसे माफ़ किया जा सकता था। उसने मज़बूरी में आकर सिर्फ आठ आने की ही हेरा-फेरी की थी।
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"यह इंसाफ नहीं अंधेर है। सिर्फ़ एक अठन्नी की ही तो बात थी।" रात के समय जब हज़ार पाँच सौ के चोर नरम गद्दों पर मीठी नींद ले रहे थे तो अठन्नी का चोर जेल की तंग, अंधेरी कोठरी में पछता रहा है।
प्रश्न
(i) यह "इंसाफ नहीं अंधेर नगरी है।" यह कथन किसने कहा और वह कौन-सा कार्य करता है?
यह वाक्य रमजान ने कहा था। रमजान रसीला का मित्र था। वह शेख सलीमुद्दीन के यहाँ नौकरी करता था, वह चौकीदार था। शेख सलीमुद्दीन जिला मजिस्ट्रेट थे।
(ii) अठन्नी की चोरी किसने की थी और क्यों?
अठन्नी की चोरी रसीला ने की थी। उसने रमजान से उधार लिया था। वह अठन्नी रमजान को देकर कर्ज़मुक्त होना चाहता था।
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(iii) शीर्षक की सार्थकता पर विचार कीजिए।
बात अठन्नी की' कहानी का शीर्षक प्रतीकात्मक शीर्षक है। जब कहानी का शीर्षक किसी विशेष अर्थ की ओर इंगित करता है तब उस शीर्षक को प्रतीकात्मक कहते हैं।
'बात अठन्नी की' कहानी समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की ओर इशारा करते हुए न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।
प्रस्तुत कहानी में रसीला अपने मित्र रमजान का कर्ज़ चुकाने के लिए अपने मालिक बाबू जगत सिंह के दिए गए पाँच रुपए से अठन्नी बचाकर अपने मित्र रमजान को दे देता है। रिश्वतखोर मालिक जगत सिंह ने रसीला को पाँच रुपए मिठाई लाने के लिए दिए थे और उन्होंने उसकी चोरी पकड़ ली। रसीला अपना अपराध स्वीकार कर लेता है। रसीला पर मुकदमा चला और रिश्वतखोर शेख सलीमुद्दीन ने उसे छह महीने की सज़ा सुना दी। लेखक कहता है कि ''पाँच सौ के चोर नरम गद्दों पर मीठी नींद ले रहे थे, और अठन्नी का चोर जेल की तंग, अंधेरी कोठरी में पछता रहा था।''अत: कहानी का शीर्षक सटीक है।
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(iv) ऐसा क्या हुआ कि वक्ता ने दुनिया को अंधेर नगरी कहा? अपने शब्दों में लिखिए।
रमजान ने दुनिया को अंधेर नगरी कहा क्योंकि उसके मित्र गरीब रसीला को मात्र अठन्नी की चोरी के
अपराध में छह महीने की सज़ा सुनाई गई जबकि उसने अपना अपराध
इंजीनियर बाबू जगत सिंह के सामने स्वीकार कर लिया था।
रमजान इस बात से अवगत था कि शेख सलीमुद्दीन तथा बाबू जगत सिंह दोनों ही रिश्वत लेते हैं
लेकिन देश का कानून उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि वे समाज के बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं।
जिस अदालत में रसीला को छह महीने की सज़ा सुनाई गई उस अदालत में शेख सलीमुद्दीन ही न्यायधीश की कुर्सी पर विराजमान थे।
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Apna Apna Bhagya।अपना अपना भाग्य ।Question Answers।Jainendra Kumar।ICSE
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- "अपना-अपना भाग्य" कहानी में कहानीकार ने किस समस्या को उजागर किया है ?
समाज में गरीब और लाचार बालकों का शोषण दिखाना लेखक का उद्देश्य है। लेखक ने सामाजिक असमानता के प्रति तथाकथित बुद्धिजीवियों की उपेक्षापूर्ण, उदासीनता एवं असमर्थता की मनोवृत्ति पर भी तल्ख व्यंग्य किया है।
लेखक और उसका मित्र, असहाय और बेबस बालक के प्रति अपनी जिज्ञासा तो प्रकट करते हैं लेकिन जब उसकी मदद करने का समय आता है तब वे अपनी हृदयहीनता और अमानवीयता का परिचय देते हैं।
वे बालक की सहायता गर्म कपड़े देकर, खाना देकर, पैसे देकर या नौकरी की व्यवस्था करके कर सकते थे
पर उन्होंने बालक की इस स्थिति को उसके भाग्य पर छोड़कर अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं किया।
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- लेखक तंग क्यों हो रहे थे?
लेखक कड़ाके की ठंड से बचने के लिए होटल वापस लौट जाना चाहते थे पर उनका मित्र वहाँ से जाने की अपनी इच्छा जाहिर ही नहीं कर रहा था। लेखक हो रहे थे, क्योंकि सर्दी का मौसम था और शाम हो रही थी।
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- दोनों मित्र किस शहर में और कहाँ बैठे हुए थे?
दोनों मित्र नैनीताल में थे और उस समय वे होटल से निकलकर घूमने के लिए आए थे। शाम का समय था और दोनों निरुद्देश्य घूमने के बाद सड़क के किनारे एक बेंच पर आकर आराम से बैठ गए थे।
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उन्होंने क्या देखा? लेखक ने क्यों कहा "होगा कोई"? पहली ही नज़र में यह कैसे पता चला कि लड़का बहुत गरीब है?
लेखक ने देखा कि कुहरे की सफेदी में कुछ ही हाथ की दूरी से एक काली छाया-मूर्ति उनकी तरफ बढ़ रही है लेकिन लेखक ठंड से परेशान हो चुके थे और होटल लौटना चाहते थे। उन्हें किसी चीज़ में दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए उन्होंने अनमने भाव से कह दिया "होगा कोई"।
लेखक और उनके मित्र को पहली ही नज़र में ही लग गया कि लड़का बहुत गरीब है क्योंकि लड़का नंगे पैर, नंगे सिर और इतनी सर्दी में सिर्फ एक मैली-सी कमीज़ शरीर पर पहने हुए था। रंग गोरा था फिर भी मैल से काला पड़ गया था। उसके माथे पर झुर्रियाँ पड़ गई थीं।
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लड़के ने अपने बारे में लेखक को क्या-क्या बताया?
लड़के ने लेखक को बताया कि वह एक दुकान पर नौकरी करता था, सारे काम के लिए एक रुपया और झूठा खाना मिलता था। अब वह नौकरी भी छूट गई थी। उसने बताया कि वह अपने साथी के साथ नैनीताल से पन्द्रह कोस दूर गाँव से काम की तलाश में आया था। गाँव पर उसके कई भाई-बहन थे। माँ-बाप इतने गरीब थे कि उन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता था। मालिक ने उसके साथी को इतना मारा कि उसकी मृत्यु हो गई है।
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किसे, कब और कौन-सा समाचार मिला ?
जब लेखक और उसका मित्र वापस जाने की तैयारी कर रहे थे तब उन्हें यह समाचार मिला कि पिछली रात एक पहाड़ी लड़का सड़क के किनारे पेड़ के नीचे ठंड से ठिठुर कर मर गया।
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लेखक का मित्र उस पहाड़ी लड़के को कुछ देना चाहता था, पर क्यों नहीं दे पाया?
लेखक का मित्र उस बेसहारा लड़के को कुछ पैसे देना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपनी जेब में हाथ भी डाला लेकिन उन्हें वहाँ सिर्फ दस रुपए के नोट ही मिले, खुले पैसे नहीं थे। लेखक का मित्र बजट बिगड़ने के भय से उस लड़के को दस रुपए का नोट नहीं देना चाहता था।
- "आदमियों की दुनिया" ने उस लड़के के पास क्या उपहार छोड़ा ?
दुनिया के कुछ निष्ठुर और स्वार्थी लोगों ने सिर्फ अपने बारे में सोचा और उस गरीब, बेसहारा और भूखे बालक को ठंड भरी रात में काले चिथड़ों की कमीज़ में मरने के लिए छोड़ दिया।
यदि लेखक या उसके मित्र ने उसकी थोड़ी-सी मदद कर दी होती तो शायद उसकी ऐसी दुर्गति न होती।
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Friday, June 19, 2020
Aawara Maseeha Antral Chapter 3 Class 11 Writer Vishnu Prabhakar Audio NCERT
Awara Maseeha
Thursday, June 4, 2020
घर में वापसी कविता /Ghar Me Wapsi कविता Class 11 Antra
मेरे घर में पाँच जोड़ी आँखें हैं
माँ की आँखें पड़ाव से पहले ही
तीर्थ-यात्रा की बस के
दो पंचर पहिए हैं।
प्रस्तुत कविता में कवि ने अपने घर के सदस्यों के बारे में बताया है।वह अपनी माँ का परिचय देते हुए उनके विषय में कहते हैं कि उनकी माँ की आँखें बस के दो पंचर टायर के समान है। उनकी माँ आंखों से देख नहीं सकती है।
पिता की आँखें –
लोहसाँय की ठंडी शलाखें हैं
बेटी की आँखें मंदिर में दीवट पर
जलते घी के
दो दिए हैं।
उनकी बेटी एवं उनके पिता की आँखें बिल्कुल उस दिए के समान है जो हमेशा प्रज्वलित रहता है और अपनी प्रकाश की ऊर्जा से सभी को एक नई किरण प्रदान करता है।
पत्नी की आँखें आँखें नहीं
हाथ हैं, जो मुझे थामे हुए हैं
[पत्नी की आँखें ,मात्र आँखें नहीं है वे उन हाथों के समान हैं जो उन्हें हमेशा थामकर रखती है। हमेशा उनका ख्याल रखती है।उनकी पत्नी दुनिया की सबसे अच्छी पत्नी है जो हर पल अपने पति का ध्यान रखती है।]
वैसे हम स्वजन हैं, करीब हैं
बीच की दीवार के दोनों ओर
क्योंकि हम पेशेवर गरीब हैं।
रिश्ते हैं; लेकिन खुलते नहीं हैं
और हम अपने खून में इतना भी लोहा
नहीं पाते,
कि हम उससे एक ताली बनवाते
और भाषा के भुन्ना–सी ताले को खोलते,
[जो लोग अमीर होते हैं वह पैसों के पीछे भागते हैं और अपने परिवार को समय नहीं दे पाते हैं। वह अपने परिवार की माँग को पूरी करते-करते अपने-आप में एक दिन खत्म हो जाते हैं और उन्हें पता नहीं चलता है कि परिवार क्या होता है।
लेकिन जो गरीब होते हैं , भले ही पैसे उनके पास ना हो वह भले ही अपने परिवार की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते हैं मगर उनमें एक चीज है वह है साथ मिलकर रहना। साथ मिलकर चलना वे साथ रहते हैं ,साथ खाते हैं साथ सोते हैं एवं साथ जीते हैं।कवि का परिवार 5 सदस्यों का परिवार है और ये सभी एक दूसरे के लिए बहुत मायने रखते हैं।
रिश्तों को सोचते हुए
आपस में प्यार से बोलते,
कहते कि ये पिता हैं,
यह प्यारी माँ है, यह मेरी बेटी है
पत्नी को थोड़ा अलग
करते – तू मेरी
हमसफ़र है,
हम थोड़ा जोखिम उठाते
दीवार पर हाथ रखते और कहते
यह मेरा घर है।
कवि अपने परिवार के बारे में कहते हैं कि यह मेरे पिता है यह मेरी बेटी है ,यह मेरी पत्नी और अपनी पत्नी के बारे में कहते हैं कि वह मेरे जीवन की हमसफ़र है जिसके बिना मैं अधूरा।
अपने पत्नी को संसार में सबसे ज्यादा प्यार करते हैं क्योंकि उनकी पत्नी भी उनसे उतना ही प्यार करती हैं जितना कि वह अपनी पत्नी से प्यार करते हैं और कवि के अनुसार प्यार से ही जिंदगी चलती है।
मूल पाठ यहाँ है-