Tuesday, June 23, 2020

Baat Athanni ki बात अठन्नी की Sahity Sagar (Audio)





अभी सच और झूठ का पता चल जाएगा। अब सारी बात हलवाई के सामने ही कहना।

(i) प्रस्तुत वाक्य का वक्ता कौन है ? श्रोता का परिचय दीजिए।

वक्ता बाबू जगतसिंह हैं। श्रोता रसीला इनके यहाँ नौकरी करता है। वह एक ईमानदार, सीधा व स्वामिभक्त नौकर था। वह सोचता था कि बाबू जी उस पर बहुत विश्वास करते हैं। अत: कम तनख्वाह होने पर भी किसी दूसरे के यहाँ जाकर नौकरी नहीं करना चाहता था। उसके बूढ़े पिता, पत्नी और तीन बच्चे गाँव में रहते थे। वह अपनी सारी तनख्वाह गाँव भेज दिया करता था

(ii) "अभी सच और झूठ का पता चल जाएगा" बाबू जी के इस कथन के
       पीछे छिपे संदर्भ को स्पष्ट रूप में लिखिए।

बाबू जी ने रसीला से पाँच रुपए की मिठाई मँगवाई थी। रसीला बहुत ईमानदार था। उसने रमज़ान से कुछ रुपए उधार लिए थे जिसमें से केवल आठ आने देने बाकी थे। उस दिन रसीला साढ़े चार रुपए की मिठाई लाया और आठ आने रमज़ान को देकर अपना कर्ज़ चुका दिया। बाबू जी मिठाई देखते ही पहचान गए कि यह कम है और रसीला ने हेरा-फेरी की है। इसलिए वह हलवाई के पास जाकर सच व झूठ का पता लगाना चाहते थे।


(iii) बाबू जगतसिंह कौन थे ? उन्होंने रसीला से ऐसा क्या कहा जो उसके
       चेहरे का रंग उड़ गया ? रसीला की प्रतिक्रिया भी लिखिए।

बाबू जगतसिंह इंजीनियर थे और रसीला उनके यहाँ काम करता था।
एक बार पाँच रुपए की मिठाई मँगवाने पर रसीला साढ़े चार रुपए की मिठाई लाया।
उसने आठ आने रमज़ान को दिए जो उसके कर्ज़ के बचे हुए थे।
बाबू जगतसिंह मिठाई देखते ही चौंक गए थे। उन्होंने जैसे ही रसीला से पूछा कि क्या यह
मिठाई पाँच रुपए की है ? रसीला के चेहरे का रंग उड़ गया। वह बहुत डर गया था।
 उसने आखिर में सच कह दिया कि उससे गलती हो गई है।





(iv) रसीला के झूठ बोलने का पता चलने पर बाबू जगतसिंह ने रसीला के
       साथ कैसा व्यवहार किया ? उनका व्यवहार आपको कैसा लगा ?
       समझाकर लिखिए।


रसीला के झूठ बोलने पर बाबू जगतसिंह बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने उसके गाल पर तमाचा मारा।
 हलवाई के पास चलने को कहा। रसीला के द्‌वारा गलती स्वीकार करने पर भी
जगतसिंह ने रसीला को माफ़ नहीं किया। वह उसे थाने ले गए, वहाँ सिपाही को पाँच रुपए देकर
रसीला से सच उगलवाने के लिए कहा। जगतसिंह ने सिपाही से यह भी कहा कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
बाबू जगतसिंह का अपने नौकर के प्रति ऐसा व्यवहार अत्यंत अनुचित है। वह उसकी पहली गलती है जिसे माफ़ किया जा सकता था। उसने मज़बूरी में आकर सिर्फ आठ आने की ही हेरा-फेरी की थी।

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"यह इंसाफ नहीं अंधेर है। सिर्फ़ एक अठन्नी की ही तो बात थी।" रात के समय जब हज़ार पाँच सौ के चोर नरम गद्‌दों पर मीठी नींद ले रहे थे तो अठन्नी का चोर जेल की तंग, अंधेरी कोठरी में पछता रहा है। 

 प्रश्न

(i) यह "इंसाफ नहीं अंधेर नगरी है।" यह कथन किसने कहा और वह        कौन-सा कार्य करता है?


यह वाक्य रमजान ने कहा था। रमजान रसीला का मित्र था। वह शेख सलीमुद्‌दीन के यहाँ नौकरी करता था, वह चौकीदार था। शेख सलीमुद्‌दीन जिला मजिस्ट्रेट थे।

(ii) अठन्नी की चोरी किसने की थी और क्यों?


अठन्नी की चोरी रसीला ने की थी। उसने रमजान से उधार लिया था। वह अठन्नी रमजान को देकर कर्ज़मुक्त होना चाहता था।
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(iii) शीर्षक की सार्थकता पर विचार कीजिए।



बात अठन्नी की' कहानी का शीर्षक प्रतीकात्मक शीर्षक है। जब कहानी का शीर्षक किसी विशेष अर्थ की ओर इंगित करता है तब उस शीर्षक को प्रतीकात्मक कहते हैं।
'बात अठन्नी की'  कहानी समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की ओर इशारा करते हुए न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।
प्रस्तुत कहानी में रसीला अपने मित्र रमजान का कर्ज़ चुकाने के लिए अपने मालिक बाबू जगत सिंह के दिए गए पाँच रुपए से  अठन्नी बचाकर अपने मित्र रमजान को दे देता है। रिश्वतखोर मालिक जगत सिंह ने रसीला को पाँच रुपए मिठाई लाने के लिए दिए थे और उन्होंने उसकी चोरी पकड़ ली। रसीला अपना अपराध स्वीकार कर लेता है। रसीला पर मुकदमा चला और रिश्वतखोर  शेख सलीमुद्‌दीन ने उसे छह महीने की सज़ा सुना दी। लेखक कहता है कि ''पाँच सौ के चोर नरम गद्‌दों पर मीठी नींद ले रहे थे, और अठन्नी का चोर जेल की तंग, अंधेरी कोठरी में पछता रहा था।''अत: कहानी का शीर्षक सटीक है।
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(iv) ऐसा क्या हुआ कि वक्ता ने दुनिया को अंधेर नगरी कहा? अपने शब्दों में लिखिए।

रमजान ने दुनिया को अंधेर नगरी कहा क्योंकि उसके मित्र गरीब रसीला को मात्र अठन्नी की चोरी के
अपराध में छह महीने की सज़ा सुनाई गई जबकि उसने अपना अपराध
इंजीनियर बाबू जगत सिंह के सामने स्वीकार कर लिया था।
रमजान इस बात से अवगत था कि शेख सलीमुद्‌दीन तथा बाबू जगत सिंह दोनों ही रिश्वत लेते हैं
लेकिन देश का कानून उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि वे समाज के बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं।
 जिस अदालत में रसीला को छह महीने की सज़ा सुनाई गई उस अदालत में शेख सलीमुद्‌दीन ही न्यायधीश की कुर्सी पर विराजमान थे।

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