Saturday, June 8, 2019

डॉ॰ रामविलास शर्मा -हिंदी लेखक /Dr. Ramvilas Sharama/ Hindi Writer


डॉ॰ रामविलास शर्मा 


इनका जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में सन 1912 में हुआ। 

प्रारंभिक शिक्षा इन्होने गाँव में ही पायी तथा उच्चा शिक्षा के लिए लखनऊ आ गए, वहां से अंग्रेजी में एम.ए. करने के बाद विश्वविधालय में प्राध्यापक और पी एच डी की डिग्री हासिल की। 

व्यवसाय से अंग्रेजी के प्रोफेसर, दिल से हिन्दी के प्रकांड पंडित और महान विचारक, ऋग्वेद और मार्क्स के अध्येता, कवि, आलोचक, इतिहासवेत्ता, भाषाविद, राजनीति-विशारद ।


  डॉ॰ रामविलास शर्मा के साहित्यिक जीवन का आरंभ १९३४ से होता है जब वह सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के संपर्क में आये। इसी वर्ष उन्होंने अपना प्रथम आलोचनात्मक लेख 'निरालाजी की कविता' लिखा जो चर्चित पत्रिका 'चाँद' में प्रकाशित हुआ। लेखन के क्षेत्र में पहले-पहले कविताएँ लिखकर फिर एक उपन्यास और नाटक लिखने के बाद पूरी तरह से आलोचना कार्य में जुट गए। 


कृतियाँ - 





  • प्रेमचन्द (1941)

    • भारतेन्दु युग (1943) परिवर्द्धित संस्करण 'भारतेन्दु युग और हिन्दी भाषा की विकास परम्परा' (1975)
    • निराला (1946)
    • प्रेमचन्द और उनका युग (1952)
    • भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और हिन्दी नवजागरण की समस्याएँ (1985) (मूलतः 1953 में।)
    • प्रगतिशील साहित्य की समस्याएँ (1954)
    • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना (1955)
    • विराम चिह्न (1957)
    • आस्था और सौन्दर्य (1961)
    • निराला की साहित्य साधना-1 (जीवनी-1969)
    • निराला की साहित्य साधना-2 (आलोचना -1972)
    • निराला की साहित्य साधना-3 (पत्राचार संग्रह एवं बृहद् भूमिका-1976)
    • महावीरप्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण (1977)
    • नयी कविता और अस्तित्ववाद (1978)
    • परम्परा का मूल्यांकन (1981)
    • भाषा, युगबोध और कविता (1981)
    • कथा विवेचना और गद्यशिल्प (1982)
    • मार्क्सवाद और प्रगतिशील साहित्य (1984)
    • भाषा और समाज (1961)
    • भारत की भाषा समस्या (1978, मूलतः 1965 में)
    • भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी (तीन खण्डों में-1979-81)
    • सन् सत्तावन की राज्य क्रान्ति और मार्क्सवाद (1990, मूलतः1957 में)
    • भारत में अंग्रेज़ी राज और मार्क्सवाद (दो खण्डों में-1982)
    • स्वाधीनता संग्राम : बदलते परिप्रेक्ष्य (1992)
    • मार्क्स, त्रोत्स्की और एशियाई समाज (1986)
    • मार्क्स और पिछड़े हुए समाज (1986)
    • भारतीय इतिहास और ऐतिहासिक भौतिकवाद (1992)
    • पश्चिमी एशिया और ऋग्वेद (1994)
    • भारतीय नवजागरण और यूरोप (1996)
    • इतिहास दर्शन (1995)
    • भारतीय साहित्य की भूमिका (1996, संगीत का इतिहास भी मूलतः इसी में है।)
    • भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेश (दो खण्डों में-1999)
    • भारतीय सौन्दर्य-बोध और तुलसीदास (2001, अपूर्ण)
    • गाँधी, आम्बेडकर, लोहिया और भारतीय इतिहास की समस्याएँ (2000)
    • मेरे साक्षात्कार (1994)
    • चार दिन (उपन्यास), 1936
    • 'तार सप्तक' में संकलित कविताएँ,1943
    • महाराजा कठपुतली सिंह(प्रहसन), 1946
    • पाप के पुजारी (नाटक), 1936
    • बुद्ध वैराग्य तथा प्रारम्भिक कविताएँ, 1997
    • अपनी धरती अपने लोग ( आत्मजीवन, तीन खण्डों में-1996)
    • आज के सवाल और मार्क्सवाद (2001)
    • भाषा, साहित्य और जातीयता (2012)
    • मित्र संवाद (1992, केदारनाथ अग्रवाल से पत्रव्यवहार)
    • अत्र कुशलं तत्रास्तु (2004, अमृतलाल नागर से पत्रव्यवहार)
    • पाश्चात्य दर्शन और सामाजिक अंतर्विरोध- थेल्स से मार्क्स तक (2001)
    • लोकजागरण और हिन्दी साहित्य
    • प्रगतिशील काव्यधारा और केदारनाथ अग्रवाल (1986)
    • रूप तरंग और प्रगतिशील कविता की वैचारिक पृष्ठभूमि (1990, मूलतः1956)
    • सदियों के सोये जाग उठे (कविता),1998
    पुरस्कार -

    1. १९७० - 'निराला की साहित्य साधना' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार
    2. १९८८ - शलाका सम्मान
    3. १९९० - भारत भारती पुरस्कार
    4. १९९१ - 'भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी' के लिए व्यास सम्मान
    5. १९९९ - साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता सम्मान
    6. २००० - शताब्दी सम्मान (११ लाख रुपये)


     उन्हें ‘निराला की साहित्यिक साधना’ नाम से तीन भाग में लिखे गए आलोचनात्मक ग्रंथ के लिए ही रामविलास शर्मा को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था[ज्ञात हो कि पुरस्कारों में प्राप्त राशियों को उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया। उन राशियों को हिन्दी के विकास में लगाने को कहा।
     हिंदी साहित्य की ‘प्रगतिवादी (मार्क्सवादी) आलोचना का पितामह’ कहा जाता है

    मृत्यु मई 30, 2000
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    उनकी लिखी एक कविता :
    तैर रहे हैं
    ललछौंहे आकाश में
    सिंगाल मछलियों-से
    सुरमई बादल

    खिल उठा
    अचानक
    विंध्या की डाल पर
    अनार-पुष्प-सा
    नारंगी सूर्य

    मंडराने लगी
    झूमती फुनगियों पर
    धूप की

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