रस उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरतमुनि को जाता है।
उन्होंने लिखा है-
''विभावानुभावव्यभिचारी- संयोगद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। ''
उन्होंने 'आठ प्रकार के रसों को माना है।
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आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार --
रस की परिभाषा-
जिस भांति आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है। उसी भांति हृदय की मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है।
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रस क्या है ?
काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्द'।
हिन्दी में रस की संख्या नौ है।
वात्सल्य रस को दसवाँ एवं भक्ति रस को ग्यारहवाँ रस भी माना जाता है।
रस 11 प्रकार के हैं -
(1) शृंगार रस
(2) हास्य रस
(3) करूण रस
(4) रौद्र रस
5) वीर रस
(6) भयानक रस
(7) वीभत्स रस
(8) अदभुत रस
(9) शान्त रस
(10) वत्सल रस
(11) भक्ति रस ।
रस के अवयव
रस के चार अवयव या अंग हैं:-
1) स्थायी भाव
2) विभाव
3) अनुभाव
4) संचारी या व्यभिचारी भाव
स्थायी भाव
स्थायी भाव का मतलब है प्रधान भाव।
शृंगार रस -रति
हास्य=हास
करुण - शोक
रौद्र - क्रोध
वीर - उत्साह
भयानक - भय
वीभत्स--जुगुप्सा
अद्भुत --विस्मय
शांत --निर्वेद
वात्सल्य - वत्सलता/वत्सल
भक्ति रस - अनुराग
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विभाव
साहित्य में, वह कारण जो आश्रय में भाव जागृत या उद्दीप्त करता हो उसे विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं-
- आलंबन विभाव
- उद्दीपन विभाव
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अनुभाव
वे गुण और क्रियाएँ जिनसे रस का बोध हो। मनोगत भाव को व्यक्त करने वाले शरीर-विकार अनुभाव कहलाते हैं। अनुभावों की संख्या 8 मानी गई है-
(1) स्तंभ
(2) स्वेद
(3) रोमांच
(4) स्वर-भंग
(5) कम्प
(6) विवर्णता
(7) अश्रु
(8) प्रलय (निश्चेष्टता) ।
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संचारी या व्यभिचारी भावमन में आने-जाने भावों को संचारी या व्यभिचारी भाव कहते हैं, ये पानी के बुलबुलों के समान उठते और गायब हो जाने वाले भाव होते हैं।
संचारी भावों की कुल संख्या 33 मानी गई है-
(1) हर्ष (2) विषाद (3) त्रास (भय/व्यग्रता) (4) लज्जा (5) ग्लानि (6) चिंता (7) शंका
(8) असूया
(9) अमर्ष (विरोधी का अपकार करने की अक्षमता से उत्पत्र दुःख)
(10) मोह (11) गर्व (12) उत्सुकता (13) उग्रता (14) चपलता (15) दीनता
(16) जड़ता (17) आवेग (18) निर्वेद (19) घृति
(20) मति (21) बिबोध (22) वितर्क
(23) श्रम (24) आलस्य (25) निद्रा (26) स्वप्न (27) स्मृति (28) मद
(29) उन्माद 30) अवहित्था
(31) अपस्मार (मूर्च्छा) (32) व्याधि (रोग) (33) मरण
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